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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poem on love in hindi

ओ साजन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ओ साजन। ♦

पाता जगा यदि जीवन इन्हीं तरंगों पर,
गीत तुम्हारे ओ साजन।

स्वप्न सारे रात के ये मोह-बन्धन तोड़ जाते,
घिर आती तुम्हारी छवि फिर अश्रुजल के किनारे।
बजते जिगर में तार गति के चरण निर्झर किरणों में,
लेता साध ही तुम्हें मैं वीणा मरण अधर में।
जो यह व्याप्त है चारों ओर मर्म के विरह-सा पथ में,
एक सुख से कांप उठता अमावस के पर्व में।
अवसाद श्यामल मेघ-सा साजन॥

कितने स्निग्ध शिशिर से सब्ज आते स्नेह से,
शेष संवाद किस अतल की सजाते किरणों से।
उठती चीख मर्म वाणी की अकथित भाषाहीन से,
कहानी उन प्रभातों की पाता भूल न पलभर।
घूमा निरंतर मैं रिक्तकर द्वार पर तुम्हारे जब से,
किस लिये चेतना का शून्य मन अशांत उमंगों से।
प्रचंड कुहराम है साजन॥

कितना विवश मैं आज पर जन्म-जन्मांतर से परिचित,
अन्तर की उमस से दग्ध पिपासा ही आज नीरव।
विराट-विप्लव यह लोहित कर्म का समर्पण आज,
किसी की सांस का दो कण खींच लाया निर्माल्य तक।
किसी दिन असफलता में साधना में लीन होगी मगर,
तुम्हारे इन्हीं जीवन तरंगों पर जगा पाया यदि अगर।
गा उठुंगा गान साजन॥

सदायें दिल की किसी को टूटते सुना पाता यदि,
ये रातें मरणवाहन जिसकी पनपती इक जिंदगी।
खोल पाता यदि अंतःस्थली की अमावस जिंदगी की,
पिपासाओं के प्रलय को अगर पी पाता समझ चेतन पावस।
यदि लेता सोख उभरती वांछा अपनी निदारुण,
फिर कभी बुझ न पाती मेरी लगाई।
शीतल-सी पावक साजन॥

मेरे जख्मों पर हँस सके वह दर्द का दौर आये,
रजनी सावित्री हो उठे मेरा दीप निहार बहाये।
बीती बहारें बींधती चमन में आये शिशिर को संग लाये,
मेरे मौन सूलों की गुहारें रुक न पाये ये विकल।
यदि न हो पाये मुखर भी नयन आकुल अन्तरों के,
रह ही जायेगा चिर-शून्य सच कह दूं मैं हूं शून्य।
दहक अंगार-सा जाऊंगा साजन॥

यह बसेरा इस वीरान में रात भर का मानता हूं,
कब उछाहों ने न घेरा बस विष बरसता ही मिला।
कौन सी आरज़ू लाऊं फूलों के महल में आज,
जीवन की निधियां लुटाऊं कौन संचित रह सकी जो।
जलती रहे रात भर मेरी चिरुकी भरपूर इतनी,
यह जीवन में रहे सर्वत्र क्या यही कम जलन विद्रुप रुदन के,
पाता जगा यदि जीवन इन्हीं तरंगों पर।
गीत तुम्हारे ओ साजन॥

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — अपने साजन की याद में एक सजनी की क्या मनोदशा होती है? उसके मन में किस तरह के विचारों व भावनाओ के तरंग उड़ते है ये बताने की कोशिश की है। उमड़ घुमड़ कर बहुत सारी भावनाएं चलती है उअके मन पटल पर, वो कही खो सी गई है। उसकी भावनाएं कुछ इस तरह चलती है…… मेरे जख्मों पर हँस सके वह दर्द का दौर आये, रजनी सावित्री हो उठे मेरा दीप निहार बहाये। बीती बहारें बींधती चमन में आये शिशिर को संग लाये, मेरे मौन सूलों की गुहारें रुक न पाये ये विकल। यदि न हो पाये मुखर भी नयन आकुल अन्तरों के, रह ही जायेगा चिर-शून्य सच कह दूं मैं हूं शून्य। दहक अंगार-सा जाऊंगा साजन।

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यह कविता (ओ साजन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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ये इश्क।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ये इश्क।  ♦

सुना करते है ये इश्क तो होता है बहुत लाजवाब।
न किया तो सोचों खो दिया एक सुनहरा ख्वाब॥

सोचा चलो हम भी इश्क कर ही लेते है।
इस दिल को एक नया उपहार देते है॥

कुछ नियम तो नहीं, मालूम नही थे इसके हमको।
बस शिद्दत से चाहना होता है इश्क करो जिसको॥

हम करने लगे उसको दिल जान से प्यार।
बना लिया उसको रात – दिन का यार॥

दुनिया वाला इश्क दिल से आकर चला गया न जाने कब।
यूँ प्यार भरी नजरों से देखते ही रहें हमें सब॥

पर हम तो बहुत दीवाने हुए हो गए मस्ताने।
अपनी प्यारी कलम के इश्क में बन गए परवाने॥

सच कहूँ तो मुझें भी खबर न लगी ये हुआ कब।
मेरे इश्क ने इसको सच्ची प्रेमिका बना लिया अब॥

कुछ जुनून कुछ इश्क मेरा, मेरी कलम से।
मेरी मंजिल तक पहुँचा देगी, कसम से॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — एक सच्चे और अच्छे रचनाकार का पूर्ण प्रेम मात्र अपनी कलम और अपनी रचना से होती है। एक सच्चा रचनाकार अपनी रचनाओं से सभी दिलों में सच्चा व पवित्र सात्विक प्रेम जागृत करता है। इस संसार के प्रेम की बात करे तो… इश्क का मतलब क्या केवल दो जिस्मों का मिलन ही होता है या फिर कुछ और ? अगर सच कहु तो सच्चा इश्क वो होता है जिसमे दो आत्माओ का मन का तार जुड़ता है, पूर्ण मन से एक दूजे को समझते है। सच्चे इश्क में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता है। बस होता है तो पूर्ण मन से प्रेम ही प्रेम। प्रेम का मतलब दो जिस्मों का मिलन नहीं होता, प्रेम का मतलब होता है पूर्ण मन से एक दूजे का सम्मान करना, रक्षा करना, ख्याल रखना।

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यह कविता (ये इश्क।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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श्रृंगारदान।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♦ श्रृंगारदान। ♦

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जरूरत का सारा सामान लाया हूँ।
मीना बाजार, घर, दुकान लाया हूँ।
कुछ ज़ाम भी है कुछ जख्म भी है।
कुछ तले भुने हुए अरमान लाया हूँ॥

अपनी अना को सस्ते में बेचकर।
तुम्हारा खोया स्वाभिमान लाया हूँ।
तू मेरी खिसकती जमीन मत देख।
तेरे हिस्से का धुला आसमान लाया हूँ॥

कस्ती से उसका पतवार छीनकर।
समंदर से साहिल, गुमान लाया हूँ।
और क्या क्या चाहिए बतला मुझे।
श्रृंगारदान में भरकर ईमान लाया हूँ॥

तुम कहते थे कायर हूँ, कंजूस हूँ मैं।
देख खिदमत में दिलो-जान लाया हूँ।
मत कहना अब मुझे बेवफा कभी तुम।
अपनी ग्रीवा तेरे लिए कृपाण लाया हूँ॥

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, कविता के माध्यम से कई सारे उदाहरण देकर बहुत ही सुंदर वर्णन किया है कि जीवन में कितना भी उतार – चढ़ाव आये कभी भी इंसानी गुणों को ना भूलो।

—•—•—•—

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यह कविता “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

  • जरूर पढ़े: स्वाद बदलना होगा।
  • जरूर पढ़े: क्या-क्या देखें।

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मान भी लो।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♦ मान भी लो। ♦

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हर दिन न होंगे एक जैसे हालात मान लो।
तुम्हारी भी होगी उनसे मुलाकात मान लो।
आप खामख्वाह चाँद की जिद पकड़ बैठी।
जमीं पे भी हुआ करती है करामात मान लो॥

दिल का दरवाजा कभी बन्द मत करना।
मेहफिल में बढ़ती है ताल्लुकात मान लो।
गुप्तगू और राब्ता का दौर ये चलता रहे।
बावस्ता रफ्ता-रफ्ता, बनती है बात मान लो॥

सभी नजारे नहीं होते हैं अपने काम के।
काली भी नहीं होती सारी रात मान लो।
ठहरे हुए पानी में सड़ांध आने लगती है।
जरुरी है कंकड़ का भी खुराफात मान लो॥

नामुराद साहिल से गले मिलने से पहले।
सहता है समंदर के कई आघात मान लो।
नजरिया बदलने से भी किस्मत बदलता है।
ले आओ नया कागज़, कलम, दावात मान लो॥

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, कविता के माध्यम से प्यार-भरी मन के भावनाओं का बखूबी बहुत ही गहराई से कम शब्दों में सुंदर वर्णन किया हैं।

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यह कविता “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

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आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

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