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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poonam gupta article

गुरु गोबिंद सिंह जयंती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ गुरु गोबिंद सिंह जयंती। ♦

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इस वर्ष शुक्ल सप्तमी 29 दिसंबर को है इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाते हैं, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था, बिहार की राजधानी पटना के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोबिन्द राय था उनके पिता नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी कुछ समय बाद पंजाब वापस आ गए थे पटना के जिस घर में उनका जन्म हुआ उसमें उन्होंने 4 साल बिताए। गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन से ही स्वाभिमानी और वीर थे, घोड़े की सवारी करना, हथियार पकड़ना, मित्रों की टोलियां एकत्रित करके युद्ध करना, शत्रु को हराने के लिए खेल में शामिल थे। उनकी बुद्धि काफी तेज थी, उन्होंने बहुत ही सरलता से हिंदी, संस्कृत, फारसी का ज्ञान प्राप्त किया था।

1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया, हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर रहने लगे चक्क नानकी ही आजकल आनंदपुर साहिब कहलाता है। यहीं से उनकी शिक्षा का प्रारंभ हुआ गोबिन्द राय जी नित्य प्रति आनंदपुर साहिब में आध्यात्मिक, निडरता का संदेश देते थे। गोबिन्द जी शांत और क्षमा और सहनशीलता की मूर्ति थे।

कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने के विरोध में गुरु तेग बहादुर जी आगे आए उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी की उम्र 9 साल की थी। कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकार न करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सर कटवा दिया। इसके बाद वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए। गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही, उन्होंने लिखना-पढ़ना, सवारी करना अनेक सैन्य कौशल सीखे।

1684 में उन्होंने चंडी दी वार की रचना की। गुरु गोबिंद सिंह जी जहां विश्व के बलिदानी परंपरा में अद्वितीय थे, वही वे एक महान लेखक, मौलिक चिंतक और संस्कृत व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की है। विद्वानों के संरक्षक थे उनके दरबार में 52 कवियों के लिए उपस्थिति रहती थी। उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता था उन्होंने हमेशा भाईचारा, एकता प्रेम को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में हर साल मनाई जाती है। इस दिन विश्व भर में गुरुद्वारा को सजाया जाता है लोग अरदास भजन, कीर्तन के साथ लोग गुरुद्वारे में मत्था टेकने भी जाते हैं। इस दिन नानक वाणी भी पढ़ी जाती है और लोक कल्याण के तमाम अनेक कार्य किए जाते हैं। सभी लोग गुरुद्वारा में गुरु गोबिंद सिंह जयंती का महाप्रसाद खाने जाते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की 1708 में मृत्यु हो गई।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — गुरु गोबिंद सिंह जी जहां विश्व के बलिदानी परंपरा में अद्वितीय थे, वही वे एक महान लेखक, मौलिक चिंतक और संस्कृत व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की है। विद्वानों के संरक्षक थे उनके दरबार में 52 कवियों के लिए उपस्थिति रहती थी। उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता था उन्होंने हमेशा भाईचारा, एकता प्रेम को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

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यह लेख (गुरु गोबिंद सिंह जयंती।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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डॉक्टर दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ डॉक्टर दिवस। ♦

भारत में हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ बिधान चंद्र राय द्वारा दिए गए योगदान के लिए हम इस दिन को उनके जन्म दिवस और पुण्यतिथि के रूप में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सम्मान पूर्वक मनाते हैं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी और चिकित्सक थे, उन्हें सन 1961 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने भारत में शिक्षा के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी इनका जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों 1 जुलाई को थे।

इस महत्वपूर्ण तिथि को मनाने के बहुत सारे कारण भी हैं, सभी डॉक्टर मानवता की सेवा करने और उन लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने महान आदर्श के साथ अपने पेशे से जीवन शुरू करते हैं। कुछ डॉक्टर इन विचारों की दृष्टि से खरे नहीं उतरते हैं और भ्रष्ट और नैतिकता का रास्ता अपना लेते हैं।

लेकिन कोरोना महामारी के समय डॉक्टरों ने जो अपना समय मानवता की सेवा के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए जो जनता सेवा की है। वह एक प्रशंसनीय कार्य है अपनी जान जोखिम में डालकर डॉक्टरों ने लाखों लोगों को इस बीमारी से मुक्त कराया। हम इस बात को नहीं नकार सकते कि डॉक्टर भी भगवान के रूप में कार्य करते हैं।

डॉक्टर का जीवन निस्वार्थ सेवा से भरा हुआ होता है। बहुत ही कुछ ऐसे डॉक्टर होते हैं; जो अनैतिकता के कार्य करते हैं, जिन्हें पैसे का लालच होता है। डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है जो डॉक्टर मानव की सेवा करने के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए सेवा करते हैं। वह भगवान के समान होते हैं। इस दिन को हम शांत और गंभीर तरीके से मनाते हैं। आमतौर पर देश के अनेक हिस्सों में डॉक्टरों के योगदान के लिए उन्हें फूलों के गुलदस्ते या ग्रीटिंग कार्ड्स भी दिए जाते हैं।

इसके अलावा जहां अच्छे डॉक्टरों को उनके अनुभवों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। अनेक सेमिनार आयोजित किए जाते हैं और कुशल डॉक्टरों को सम्मानित किया जाता है।

डॉक्टर दिवस का लाल रंग जो साहस का प्रतीक है, फूलों के रंग से जो प्रेम धर्मार्थ बलिदान, बहादुरी, मानवता की सेवा और साहस को दर्शाते है। यह मेडिकल प्रोफेशनल और उनके द्वारा किए गए योगदान के लिए सम्मान है। डॉक्टर अपनी हर सम्भव किसी भी मनुष्य को ठीक करने लिए प्रयासरत रहते है उनका कर्म ही उनकी पूजा है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — एक अच्छे डॉक्टर का जीवन निस्वार्थ सेवा से भरा हुआ होता है। डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है जो डॉक्टर मानव की सेवा करने के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए सेवा करते हैं। भारत में हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर दिवस मनाया जाता है डॉ बिधान चंद्र रॉय द्वारा दिए गए योगदान के लिए हम इस दिन उनके सम्मान के रूप में उन्हें श्रद्धांजलि देते है। वह चिकित्सक तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हे वर्ष 1961 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया।

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यह लेख (डॉक्टर दिवस।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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बसंत पंचमी।

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♦ बसंत पंचमी। ♦

बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है हर साल माघ के महीने के पांचवें दिन (पंचमी) को हिन्दू कलेण्डर के अनुसार मानते है। हिंदी भाषा मे ” बसंत” बसन्त का अर्थ है बसंत और ” पंचमी” का अर्थ है, पांचवे दिन इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है जो सबको कला बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद देती है। इस दिन देवी सरस्वती का जन्म दिन भी होता है।

शीत ऋतु के बाद बसंत का आगमन होता है इस मौसम में प्रकृति खिल उठती है। खेतो में सरसों के पीले-पीले फूल खिल जाते है इसलिए देवी की पूजा में पीले वस्त्र पहनकर पूजा करने का विधान है, पीले फूल देवी पर अर्पित करते है। इस दिन सभी कलाकार किसी भी वर्ग के हो सब अपने उपकरण का पूजन करते है माँ से आशीर्वाद मांगते है। इसके साथ ही कुछ प्राचीन कहानी भी जुड़ी है।

ब्रह्मा जी के विनती पर देवी सरस्वती ने वीणा बजायी सारे संसार को वाणी की प्राप्ति हुई इसी कारण देवी सरस्वती को वीणा की देवी कहा, ये सब बसन्त पंचमी वाले दिन हुआ।

रावण के द्वारा सीताजी के हरण के बाद श्री राम जी दक्षिण की ओर बढे सीताजी की खोज में चलते चलते वो दण्डकारण्य स्थान पर पहुंचे। वही शबरी भीलनी भी रहती थी, वो श्रीराम की परम भक्त थी जब रामजी उनकी कुटिया में पधारे तो वह अपनी सुधि बुधि भूल गयी और चख चख कर श्रीरामजी की मीठे बेर खिलाने लगी।

दंडकारण्य स्थान गुजरात और मध्यप्रदेश में आता है गुजरात के डॉग जिले का वह स्थान है जहाँ शबरी माँ का आश्रम था बसन्त पंचमी वाले दिन श्रीराम जी उनके आश्रम में आये थे, वो शिला आज भी पूजी जाती है जहाँ श्री रामजी विराजे थे वहीं शबरी माँ का मंदिर भी है।

बसन्त का रंग पीला होता है जो सभी को बहुत लुभावना लगता है पीले रंग से प्रकृति अपना सिंगार करती है बसन्त सबके जीवन में उत्साह और प्रेम भरता है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है। बसन्त पंचमी के महत्व, और बसन्त पंचमी के दिन क्या क्या हुआ था इस बारे में विस्तार से बताया है। ज्ञान और बुद्धि के बिना ये जीवन किसी काम का नहीं। ज्ञान, बुद्धि की देवी अपनी कृपा व करुणा का संचार कर हम पर, हे माँ तुम्हारी करुणा बड़ी अपरम्पार है। मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई मनुष्य है, मां के रूपों में ही छुपा हुआ पूर्ण जग संसार है। उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है, विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी। मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे। जो नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए सदैव भान, पुस्तक ही बस एक नाम। जो निरस जीवन में सरसता का, रंग भरती, वीणा ही वो सरगम। स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव। अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता। कीचड़ में ही कमल है खिलता, अर्थात: सर्व विघ्न से न्यारे व पवित्र, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है। वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बहुत बेहिसाब है। आओ हम सब मिलकर सच्चे मन से माँ की वंदना करे।

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यह लेख (बसंत पंचमी।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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