Kmsraj51 की कलम से…..
♦ रामायण और जीवन मूल्य। ♦
राम कथा में वैश्विक मूल्य।
भारतवर्ष में सत्य सनातन धर्म की पहचान है रामायण। युगों – युगों से इस धरा पर श्री रामचंद्र जी का नाम सदैव ही लिया जाता रहा है और आने वाले युगों तक भी लिया जाता रहेगा क्योंकि —
“कलयुग केवल नाम अधारा
सुमिर सुमिर नर उतरहीं पारा”॥
यह चौपाई केवल एक उदाहरण ही नहीं है अपितु इसमें सोलह आने सही बात कही गई है। राम कथा और रामायण ऐसे विषय हैं जिन पर कितने ही शोध हो चुके हैं, हो रहे हैं और आगे भी होते ही रहेंगे क्योंकि हमारे ऋषि – मुनियों द्वारा जो भी ग्रंथ लिखे गए हैं वह इतने सत्य, इतने प्रामाणिक और इतने प्रासंगिक है, इतने सार्वकालिक हैं कि उन्हें जिस भी युग में, जिस भी काल में पढ़ा जाएगा या पढ़ा जाता रहा है उनमें से कुछ नए तथ्य ही निकल कर सामने आते हैं।
जीवंत रूप में — रामायण व रामचरितमानस का पाठ।
वह एक ऐसे अथाह सागर के समान है जिसमें मंथन करने पर केवल अमृत ही प्राप्त होता है और यह हमारी निष्ठा है, परिश्रम है, साधना है, श्रद्धा है, विश्वास है, आस्था है, भक्ति है, धर्म है कि हम उस में से कितना अमृत निकाल पाते हैं। राम कथा और कृष्ण कथा भारतवर्ष में सदैव ही चलती रहती है। यह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि वे जीवंत रूप में इन कथाओं के माध्यम से प्रत्येक भारतवासी के हृदय में निवास करते हैं। वरना हर साल वही रामायण हर साल वही कथा हर समय वही रामचरितमानस का गान ….. फिर भी लोग सुनते हैं, समझते हैं, भावविभोर हो जाते हैं, क्यों ?
हिंदू धर्म में अभिवादन का एक स्वरूप ‘राम-राम’।
यह इसलिए कि इन कथाओं के माध्यम से हम सदैव ही उनके चरित्र का स्मरण करते हैं। उन्हें अपने पास समझते हैं, मानते हैं, उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं, नतमस्तक होते हैं। यह हमारे सत्यता का प्रमाण है और प्रभु भक्ति का एक सरल उपाय है। हिंदू धर्म में अभिवादन का एक स्वरूप ‘राम-राम’ भी कहा जाता है।
ऐसा क्यों इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। जितने भी परंपराएं, रीति रिवाज,16 संस्कार हमारे सत्य सनातन धर्म में बनाए गए हैं उन सब के पीछे वैज्ञानिक कारण उपलब्ध है। हमारे ऋषि मुनि बहुत ही दूर दृष्टा थे। उन्होंने आस्था और विश्वास को वैज्ञानिकता को धर्म के साथ जोड़ दिया ताकि लोग इनका प्रयोग करने में थोड़ा सा भय भी समझे ताकि यह धर्म उन्हें हर प्रकार के विकारों से दूर रखें।
और रामायण में भी कहा गया है कि —
‘भय बिन होय न प्रीति’॥
रामचरितमानस के कुछ अद्वितीय उदाहरण।
श्री रामचरित मानस में शिव भक्त श्री रावण के मन की बात जो उन्होंने न केवल स्वयं के मोक्ष के लिए सोची अपितु सारी राक्षस जाति के शुभ कल्याण के लिए भी इस पर विचार किया।
यथा …
सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥
भावार्थ: रावण ने विचार किया कि देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है, तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और प्रभु के बाण (के आघात) से प्राण छोड़कर भवसागर से तर जाऊँगा॥
मानस प्रेमी ही जान पायेगें कि तुलसीदास जी ने कितना परिश्रम किया होगा, इस प्रस्तुति को संकलित करने में, हम कलयुगी जीव केवल इन्हें पढ़कर ही अपना जीवन सफल कर सकते हैं क्योंकि इन सब में “राम” है और जहाँ “राम” हैं वहां प्रेम है, भक्ति है, समर्पण है, विश्वास है, श्रद्धा है, त्याग है, मर्यादा है, करूणा है, और जब इतने सकारात्मक गुण हमारे जीवन में एक साथ आ जाते हैं तो फिर वह जीवन वास्तव में ही सार्थक हो जाता है क्योंकि इन सब का किसी के भी जीवन में आना एक विशुद्ध चरित्र को जन्म देता है, यानी किसी भी मनुष्य के जीवन में यह सब गुण जब आ जाते हैं तो वह चरित्र निश्चल, विनम्र, और विशुद्ध, आत्मीय तथा प्रभु के सामिप्य को प्राप्त करने वाला हो जाता है, और कहते भी है ना —
‘राम से बड़ा राम का नाम’ और जहां “राम” हैं वहां सब कुछ है।
इसलिए यदि इन चौपाइयों के अर्थ हमें ना भी समझ में आए तो केवल पढ़ने भर से हमारे जीवन का उद्धार संभव है आवश्यकता है तो केवल विश्वास की, आस्था की, भक्ति की, प्रेम की और समर्पण की।
रामचरितमानस* की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े से बड़े संकट से भी मुक्त हो जाता है। जितना सरल राम का नाम है उतना ही सरल उनका भजन है उनका स्मरण है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग करने से जीवन में हर प्रकार से सुख – समृद्धि आती ही है। इसमें कोई भी संशय नहीं है क्योंकि “राम” का नाम सर्वकालिक TIMELESS है।
1. रक्षा के लिए —
मामभिरक्षक रघुकुल नायक ।
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ॥
2. विपत्ति दूर करने के लिए —
राजिव नयन धरे धनु सायक ।
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ॥
3. सहायता के लिए —
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ ।
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ॥
4. सब काम बनाने के लिए —
वंदौ बाल रुप सोई रामू ।
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ॥
5. वश मे करने के लिए —
सुमिर पवन सुत पावन नामू ।
अपने वश कर राखे राम ॥
6. संकट से बचने के लिए —
दीन दयालु विरद संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ॥
7. विघ्न विनाश के लिए —
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही ।
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ॥
8. रोग विनाश के लिए —
राम कृपा नाशहि सव रोगा ।
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ॥
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए —
दैहिक दैविक भोतिक तापा ।
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ॥
10. दुःख नाश के लिए —
राम भक्ति मणि उर बस जाके ।
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ॥
11. खोई चीज पाने के लिए —
गई बहोर गरीब नेवाजू ।
सरल सबल साहिब रघुराजू ॥
12. अनुराग बढाने के लिए —
सीता राम चरण रत मोरे ।
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ॥
13. घर मे सुख लाने के लिए —
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि ।
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ॥
14. सुधार करने के लिए —
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती ।
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ॥
15. विद्या पाने के लिए —
गुरू गृह पढन गए रघुराई ।
अल्प काल विधा सब आई ॥
16. सरस्वती निवास के लिए —
जेहि पर कृपा करहि जन जानी ।
कवि उर अजिर नचावहि बानी ॥
17. निर्मल बुद्धि के लिए —
ताके युग पद कमल मनाऊँ ।
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ॥
18. मोह नाश के लिए —
होय विवेक मोह भ्रम भागा ।
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ॥
19. प्रेम बढाने के लिए —
सब नर करहिं परस्पर प्रीती ।
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ॥
20. प्रीति बढाने के लिए —
बैर न कर काह सन कोई ।
जासन बैर प्रीति कर सोई ॥
21. सुख प्रप्ति के लिए —
अनुजन संयुत भोजन करही ।
देखि सकल जननी सुख भरहीं ॥
22. भाई का प्रेम पाने के लिए —
सेवाहि सानुकूल सब भाई ।
राम चरण रति अति अधिकाई ॥
23. बैर दूर करने के लिए —
बैर न कर काहू सन कोई ।
राम प्रताप विषमता खोई ॥
24. मेल कराने के लिए —
गरल सुधा रिपु करही मिलाई ।
गोपद सिंधु अनल सितलाई ॥
25. शत्रु नाश के लिए —
जाके सुमिरन ते रिपु नासा ।
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ॥
26. रोजगार पाने के लिए —
विश्व भरण पोषण करि जोई ।
ताकर नाम भरत अस होई ॥
27. इच्छा पूरी करने के लिए —
राम सदा सेवक रूचि राखी ।
वेद पुराण साधु सुर साखी ॥
28. पाप विनाश के लिए —
पापी जाकर नाम सुमिरहीं ।
अति अपार भव भवसागर तरहीं ॥
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए —
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा ।
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ॥
30. दरिद्रता दूर के लिए —
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना ।
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ॥
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए —
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा ।
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ॥
32. शोक दूर करने के लिए —
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी ।
आए जन्म फल होहिं विशोकी ॥
33. क्षमा माँगने के लिए —
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता ।
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ॥
श्री राम कथा अद्भुत है, अनोखी है, सुंदर है, रसिक है। इसके बारे में किसी कवि ने निम्न पंक्तियां कही है जो सर्वथा उचित जान पड़ती है —
ये है राम कथा, ये है राम कथा,
इसे पढ़ कर मिट जाती है,
जीवन की हर व्यथा।
ये है राम कथा, ये है राम कथा॥
श्री रामचरितमानस और नीति शिक्षा।
तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस नीति – शिक्षा का एक महत्मपूर्ण ग्रंथ है। इसमें बताई गई कई बातें और नीतियां मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती हैं, जिनका पालन करके मनुष्य कई दु:खों और परेशानियों से बच सकता है।
रामचरित मानस में चार ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान हर हाल में करना ही चाहिए। इन चार का अपमान करने वाले या इन पर बुरी नजर डालने वाले मनुष्य महापापी होते हैं। ऐसे मनुष्य को जीवनभर किसी न किसी तरह से दुख भोगने पड़ते ही है।
“अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी ।
इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई” ॥
अर्थात: छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री – ये चारों एक समान होती हैं। इन पर बुरी नजह डालने वाले या इनका सम्मान न करने वाले को मारने से कोई पाप नहीं लगता। वास्तव में रामचरितमानस में कोई भी उक्ति ऐसी नहीं है, कोई भी चौपाई ऐसी नहीं है जिसमें कोई शिक्षा ना हो। केवल आवश्यकता है तो हमें इनका अनुकरण करने की।
हमें निज धर्म पर चलना सिखाती रोज रामायण ।
सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण ॥
जिन्हें संसार सागर से उतरकर पार जाना है ।
उन्हें सुख से किनारे पर लगाती रोज रामायण ॥
कहीं छवि विष्णु की बाकी, कही शंकर की है झांकी,
हृदयानंद झूले पर झूलाती रोज रामायण ।
सरल कविता की कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का,
जहां प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥
कभी वेदों के सागर में, कभी गीता की गंगा में,
सभी रस बिंदुओं को मन में मिलाती रोज रामायण ॥
कही त्याग, कही प्रेम ,कहीं समर्पण का भाव है,
भक्ति, प्रेम का संदेश जन – जन को पहुंचाती रोज रामायण।
सत्य, निष्ठा ,मर्यादा का अनुपम संदेश है ये,
भारत की गरिमा में चार चांद लगाती रोज रामायण” ॥
यह भी कहा जाता है कि —
“जिन हिंदू परिवारों में रामचरितमानस की चौपाई के स्वर नहीं होते उन घरों में राग, शोक, दुख, दरिद्रता व क्लेश सैदेव चारपाई बिछाए स्थाई रूप से निवास करते हैं”।
अतः श्री रामचरितमानस का पाठ अत्यंत कल्याणकारी है। इसे हमे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
निष्कर्ष — Conclusion
निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि श्रीरामचरितमानस एक ऐसा महाकाव्य है जो प्रत्येक भारतीय के हृदय में बसा है। इसके नियम, मूल्य, मान्यताएं, रीति रिवाज हमारी रक्त धारा के साथ मिलकर हमारे शरीर में अनवरत चलाएमान है, गतिमान है, और जो रक्त धारा है, वह जीवनदायिनी शक्ति है, आधार है वह तो बहुमूल्य होगी ही।
श्री रामचरितमानस के बिना भारत की पहचान संभव नहीं हो सकती।
यह सर्वसाधारण भारतीय का अपना महाकाव्य है।
” सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुण गान ।
सादर सुनहिं ते तरही भव, सिंधु बिना जल जान” ॥
(सुंदरकांड, दोहा- 60)
अर्थात: रघुनायक श्री राम जी का गुणगान अति मंगलकारी है जो नर इसे आदर के साथ सुनते हैं, इस संसार सागर से पार उतर जाते हैं।
रामचरितमानस एक वृहद ग्रंथ है। इसको शब्द सीमा में बांधना असंभव कृत्य है, क्योंकि स्वयं देवताओं ने भी जिसके बारे में नेति – नेति कहा हो, तो हम जैसे अल्प बुद्धि व्यक्ति इसका वर्णन करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं। इसका कथानक, इसकी विशालता, इसकी विविधता को समझ पाना हमारे बस का काम नहीं है। फिर भी एक तुच्छ प्रयास है क्योंकि …
“जाति पाती पूछे नहीं कोई ।
हरि को भजे सो हरि का होई “॥
अतः हमने भी भक्ति भावना को समाहित करते हुए श्री रामचरितमानस के ऊपर अपने विचार व्यक्त किए है क्योंकि यह प्राकृतिक है, जहां श्री रामचरितमानस का नाम होगा वहां भक्ति अवश्य होगी।
अतः अंत में बस यही कहना चाहूंगी कि श्रीरामचरितमानस का जो स्थान भारतवर्ष में है या पूरे विश्व में है वो ऐसे ही आदरणीय बना रहे, और आगे भी यह ग्रंथ हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए भक्ति, संस्कार, चेतना, नैतिकता, मानवीय मूल्यों का संरक्षण, संवर्धन करता रहे इसी मंगल कामना के साथ — “जय श्री राम”।
1 — आचार्य तुलसीदास: रामचरित मानस
इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।
♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦
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- ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — राम कथा (रामायण) – मंथन करने पर केवल अमृत ही प्राप्त होता है और यह हमारी निष्ठा है, परिश्रम है, साधना है, श्रद्धा है, विश्वास है, आस्था है, भक्ति है, धर्म है कि हम उस में से कितना अमृत निकाल पाते हैं।
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यह लेख (रामायण और जीवन मूल्य।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
ग्रंथानुक्रमणिका —
- डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
- प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
- आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
- प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
- प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
- सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
- भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
- नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
- इंटरनेट साइट्स।
ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।
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