Kmsraj51 की कलम से…..
♦ देहातन। ♦
वे गोबर से मटमैले हाथ, पसीने की बूंदों से तर वह चेहरा।
गौ सेवा में रत ओ री देहातन ! कितना सुन्दर रूप वह तेरा?
आठों याम तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी।
दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी।
बचपन – बुढ़ापा यूं ही गुजरे तेरा, तेरी यूं ही गुजरे ये जवानी।
शालीन, सभ्य ओ नारी रत्न तेरी! कौन समझेगा यह कहानी?
जो भी किया वह, दूसरों के लिए, किया तूने ओ महादानी!
देहात से शहर तक मेहर तेरी पर, किसी ने ये कब है मानी?
जब जूझती है नित नई उलझन से, लगती है झांसी की रानी ।
खेत खलिहानो में उगाती फसलें, खिलाती सबको है महारानी।
दिन व दिन की मेहनत के चलते, ढल जाती तेरी जवानी।
हाड़ मांस सब सुखा देती है तू, सुखा देती है चेहरे का पानी।
झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी।
बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।
वह सुख सन्तोष उन झुर्रियों से झरता, बस काया हुई पुरानी।
बूढ़ी धमनियों में अभी भी शेष है, लहू में वही स्फूर्ति रवानी।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – गांव के पवित्र और शुद्ध वातावरण में सुन्दर जीवन यापन। आठों पहर तू लगी रहती है, गौ सेवा में ही चारा कभी पानी। दूध पिलाते, घी खिलाते, तेरी यूं ही गुजर जाती है जिंदगानी। झुर्रियों से भरपूर तेरा चेहरा, बताता है मेहनत की कहानी। बुढ़ापे का वह नूर तेरा, है तेरे मेहनतकश जीवन की निशानी।
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यह कविता (देहातन।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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