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Kavi Suryakant Tripathi

आधुनिक हिंदी के दिशा नायक निराला।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आधुनिक हिंदी के दिशा नायक निराला। ♦

निराला जी के संबंध में कोई स्वतंत्र समीक्षा पुस्तक नहीं लिखी मिली।
समीक्षात्मक मूल्यांकन करने वाले प्रमुख आलोचक पंडित राम चंद्र शुक्ल और नंद दुलारे वाजपेयी जी ही रहे।

निराला जी के काव्य वैशिष्ट्य और उपलब्धियों पर समीक्षा विचार छायावादी की भांति की गई।

नंद दुलारे वाजपेयी जी सुमित्रानंदन पंत को पसंद करते थे, पंडित शुक्ल या अन्य कवि उन्हें काव्य की कृतियों में वैसा नहीं भाते हैं।
फिर भी कवि की अभिव्यंजन पद्धति से समीक्षा प्रारंभ किया, निराला जी के नाद सौंदर्य पर और अधिक ध्यान दिया।

उनकी प्रगीत मुक्तको में संगीतात्मकाता पाया,
उन्होंने संगीत को काव्य के निकट लाने का प्रयास किया।
उनकी पद्य योजना पहुंच में जटिल दिखाई देती है,
समस्त पद विन्यास कवि की कार्यशैली की विशेषता है॥

काव्य में विषम चरण छंदों का प्रयोग,
काव्य की तीसरी विशेषता रही है।
काव्य दृष्टि से शुक्ला नहीं यह स्वीकारा,
बहु स्पर्श नी प्रतिभा निराला मौजूद है।
शैली और सामाजिक मूल्यों के क्षेत्र में,
निराला आदर्श मान्यता बंधन नहीं स्वीकार किया॥

उनके भाषा में व्यवस्था की कमी और पद योजना का अर्थ व्यंजन दुर्बल माना।
फिर भी उनकी विद्रोही भावना और जगत के विविध प्रस्तुत रूपों आदि को लेकर चलने वाली काव्य प्रतिभा के महत्व को, उदासीन भाव से ही सही स्वीकार किया।

निराला जी के काव्य वैशिष्ट्य और काव्य प्रतिभा की तरफ वाजपेयी ने जगत का ध्यान आकृष्ट किया।
विश्लेषण और मूल्यांकन में आलोचक की कठिनाई को वाजपेयी जी ने शुरुआत में ही कह दिया।

कवि के व्यक्तित्व और उसके निर्माण में ऐसी सूक्ष्म शब्दों का प्रयोग मिलता है,
जिसका विश्लेषण हिंदी की वर्तमान धारणा ने विशेष कठिन क्रिया वाजपेयी जी ने बताया।

पंडित नंद दुलारे जी की समीक्षा अनुसार निराला जी, हिंदी काव्य की प्रथम दार्शनिक कभी और सचेत कलाकार हैं।

निराला जी के विकास के मूल में भावना की अपेक्षा बुद्धि तत्व की प्रधानता है।
जो उनके स्वछंद छंदो, से दिखाई पड़ता है।
उनके काव्य में परंपरा के प्रति, गहरा विद्रोह झलकता है।

छंदोबद्ध संगीतात्मक रचनाओं के द्वारा, निराला जी के काव्य का दूसरा चरण शुरू होता है। बौद्धिकता पर नियंत्रण, भावना युक्त रचना, कला सृष्टि का स्वरुप देने में समर्थ हैं।

निराला जी के काव्य के विकास का तीसरा चरण, गीतिका काव्यों में परिलक्षित होता है। काव्य में विराट बौद्धिक चित्रों के स्थान पर रम्मय आकृतियां अधिक मिलती है।

ऐसा परिवर्तन, निराला के काव्य में, बुद्धि तत्व के कलात्मक परिपक्वता की दिशा में आगे ले जाना है।

शुक्ल जी की मत का खंडन करते हुए, पंडित नंद दुलारे वाजपेयी जी ने कहा।

सार्थक शब्द सृष्टि, प्राढ़ सशक्त पद विन्यास और संगीतात्मकता, निराला जी की हिंदी कविता को प्रमुख देन बताया। शब्द संगीत परखने और व्यवहार में लाने,
में निराला जी आधुनिक हिंदी के दिशा नायक हैं बताया।
— ( साभार हिं. सा. का बृहद इतिहास )

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस Article में समझाने की कोशिश की है की, “पंडित नंद दुलारे वाजपेयी जी ने कहा — सार्थक शब्द सृष्टि, प्राढ़ सशक्त पद विन्यास और संगीतात्मकता, निराला जी की हिंदी कविता को प्रमुख देन बताया। शब्द संगीत परखने और व्यवहार में लाने में निराला जी आधुनिक हिंदी के दिशा नायक हैं बताया।”

—————

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यह लेख (आधुनिक हिंदी के दिशा नायक निराला।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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