Kmsraj51 की कलम से…..
♦ गाँव का जीवन। ♦
गाँव की गजब हरियाली के वाह! क्या कहने।
उसी हरियाली में दिल के भाव आज दे बहने।
कहीं पर गाय-भैंसों के छप्परे घास-फूस के।
कहीं पर ओस बन मोती चमके दूब के।
कहीं पर कपड़े की गुड़िया, मिट्टी के घर बनाते बच्चें।
जो दिल के जितने भोले उतने ही होते सच्चे।
कहीं पर चौपाल में, नुक्कड़ पर हुक्का गुड़गुड़ाए।
भाईचारे में बड़े-बूढ़े बातों ही बातों में खिलखिलाए।
पशु संग पक्षियों से भी अनोखा प्रेम नजर आता।
इनको अपने जैसा ही केवल उदार दिल भाता।
कभी कुत्ते की रोटी, तो पहली रोटी गाय को दी जाए।
चिड़िया, कबूतर को भी वो बाजरा बिखराए।
भोर होने पर हर राह चलते को राम-राम भूले न कहना।
सागर न बनने की चाह केवल शांत नदी जैसा बहना।
थोड़ी जरुरतें, न बड़ी दिल में कोई रखे चाह।
आवभगत इतनी कि मेहमान के मुख से निकले वाह।
हर आंगन में जो होती थोड़ी सी कच्ची जगह।
धनिया, पालक, मैथी बोने की मिल जाती वजह।
हर बेकार पड़ी चीज को, उपयोग करने का हुनर आए।
नई-पुरानी में अंतर न दिखे, इस कदर उसको सजाए।
सम्मान आज भी उन भोली आंखों में नजर आए।
आज भी नई नवेली दुल्हन घूंघट में शरमाए।
खेत-खलिहानों से लेकर दिलों में पनपती है हरियाली रिश्तों की।
आज भी संस्कृति, तहजीब को जिंदा रखे बात उन फरिश्तों की।
कुछ दौर जमाने का यहां आकर क्यूं न ठहर जाए।
जहां हर दौर जिंदगी का खिलखिलाता ही नज़र आए।
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — गाँव का जीवन शांत और शुद्ध माना जाता है क्योंकि आज भी गाँवों में लोग प्रकृति के अधिक निकट होते है। हालांकि, इनके जीवन में चुनौतियां भी अधिक होती है। गाँव के लोग ह्रदय से सीधे सच्चे और पवित्र होते हैं। गाँव के लोग ईमानदार और अतिथि सत्कार करने वाले होते है। गाँव का जीवन बाह्य आडम्बर और छल-कपट से दूर होता हैं। सादा जीवन और उच्च विचार की झलक गाँवों में ही देखने को मिलती है वे कृत्रिम साधनों से ज्यादातर दूर ही रहते हैं। गाँव का जीवन शांतिदायक होता है । यहाँ के लोग शहरी लोगों की तरह निरंतर भाग-दौड़ में नहीं लगे रहते हैं । यहाँ के लोग सुबह जल्दी जगते हैं तथा रात में जल्दी सो जाते हैं । यहाँ की वायु महानगरों की वायु की तरह अत्यधिक प्रदूषित नहीं होती। गांव में ना सिर्फ खुली और स्वच्छ हवा है, अपितु मोटरसाइकिल और अन्य वाहनों के कम होने के कारण भी प्रदूषण कम है। हमारे गांवों में बड़े-बड़े खेत खलिहान होने की वजह से वहां का वातावरण खुला व प्रदूषण मुक्त रहता है। आज भी घर में जब रोटी बनती है तो पहली रोटी गाय को और लास्ट रोटी पालतू कुत्ते को दी जाती है। आज भी गाँवो में आपस में मिलने पर राम-राम और राधे-राधे बोला जाता है।
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यह कविता (गाँव का जीवन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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