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Smt. Sushila Devi poems

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद।

Kmsraj51 की कलम से…..

Novel Samrat Munshi Premchand | उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद।

हिंदी और उर्दू के महानतम,
भारतीय लेखकों में, जिसने,
हिंदी साहित्य का प्रकाश फैलाया।
नमन मुंशी प्रेमचंद जी को,
जिनका नाम इस लेखनी में,
उच्च शिखर पर आया।

लेखनी में अपनी जिसने,
एक आम आदमी के,
हर वर्ग के दुखों को समेटा।
हर दृष्टि से पारिवारिक, सामाजिक,
राजनैतिक पहलुओं को साहित्य में लपेटा।

लेखक प्रेमचंद अपनी कथाओं,
कहानियों में खुद ही पात्र बनाए।
तभी आज भी वो अपनी कथा,
कहानियों में जीवंत नजर आए।

दलित, किसानों, गरीबों का,
लेखक मसीहा बनकर आए।
कल्पना नहीं कोई, सीधे ही,
दिल की भावनाओं से जुड़ जाये।

साहित्य में मुंशी प्रेमचंद ने,
हिंदी और उर्दू की पताका है लहराई।
लोकनाट्य व नौटंकी को दोबारा,
स्थापित करने में अहम भूमिका है निभाई।

वो तो आधुनिक हिंदी,
कहानी के पितामह कहलाये।
अपनी लेखनी से, उपन्यास सम्राट,
की उपाधि से सज आये।

साहित्य के मील का पत्थर भी,
महान सम्राट प्रेमचंद जी कहलाये।
उनको शत-शत नमन करके,
आओं, हम उनके साहित्य मील का,
एक सूक्ष्म कंकड़ ही बन जाये।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट, लमही नाम के गांव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ था। प्रेमचंद के पिताजी मुंशी अजायब लाल और माता आनन्दी देवी थी। मुंशी प्रेमचंद जी का मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। इन्होंने अपने प्रिय मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर अपना नाम धनपतराय की जगह प्रेमचंद रखा और इसी नाम से कहानियों और उपन्यासों के रूप में अपने विचारों और भावों को अभिव्यक्ति दी। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है जो कि एक सचेत नागरिक, संवेदनशील लेखक और सकुशल प्रवक्ता थे।

—————

यह कविता (उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
    {International Internship University and Swarn Bharat Parivar}
  • Teacher’s Icon Award — 2023
  • राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
  • सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
  • राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
  • गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
  • राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
  • अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
  • साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
  • 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
  • 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
  • इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
  • 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पावन बेला।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पावन बेला। ♦

सोमवार की आज ये अति शुभ बेला आई।
हर्षित हो आई आज सूरज की तरुणाई॥

जल-दूध अभिषेक ने शिवलिंग की गाथा सुनाई।
श्रावण माह के सोमवार को हर-हर महादेव की गूंज आई॥

यंत्र और मंत्र दोनो ने मिलकर भोलेबाबा को पुकार लगाई।
सब मंगलमय कर दो जन-जन के ह्रदय ने आवाज लगाई॥

इस श्रावण माह में सबकी झोली खुशियों से भर देना।
अवगुणों का विष पी अमृतमयी गुणों का वर देना॥

हे शम्भू, पधारों इस धरा पर स्वागत करें हम तेरा।
इस माह में तेरी ही धुन में बीतेगा तेरे भक्तों का साँझ-सवेरा॥

रहें हमेशा गले में तेरे सर्पों की माला।
सावन में तेरा पूजन करें जीवन में उजाला॥

हर दिशा में गूंजेंगे बम-बम भोले के जयकारे।
सच्चे ह्रदय से तुझें याद करने वाले सबकाज संवारे॥

भोलेनाथ तू तो है दया, करुणा का सागर।
असुर भी तेरी पूजा करें तो उसको भी दे वर॥

इंद्रदेव भी नतमस्तक होकर जो जल बरसाए।
तेरी जटाओं में बसी गंगा मैया उसको शीतलता दे जाए॥

हे! शिवशंभु हे! शंकर हे! जटाधारी, हे त्रिनेत्रधारी।
श्रावण मास में सुन लेना अपने भक्तों की पुकार सारी॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावन के महीने में अत्यधिक वर्षा होती है, इसीलिए यह समय भगवान शंकर का प्रिय महीना होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में जो भी भक्त सच्चे मन से व पूरी लगन के साथ भगवान शंकर की पूजा करता है, उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इस महीने में सबसे अधिक त्यौहार आते हैं और हिंदुओं के हिसाब से उन त्योहारों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। जावालोप निषद में उल्लिखित है कि रुद्राक्ष शिव के आंसू हैं। इनका तृतीय उ‌र्ध्व नेत्र व बाईं आंखों की संयुक्त शक्ति का प्रतीक है। डमरू ज्ञान का उद्गाता है। शिव का एक नाम त्रिलोचन भी है। शिवजी मृत्युन्जय हैं। इनकी पूजा मृत्यु और काल को पराजित करती है। अयोध्या में सरयूतट पर नागेश्वरनाथ मंदिर सावन मास में भक्तों से परिपूर्ण रहता है। सोमवार के दिन शिव आराधना करने पर चंद्रमा से आने वाली तरंगें मन को शांत बनाती हैं। कांवड़ शिव पूजा का एक स्वरूप है। गंगा या पवित्र नदियों सरयू आदि से जल भरकर शिव पर अभिषेक करने से परात्पर शिव के साथ विहार होता है। कांवड़ से ज्ञान की उच्चता का प्रतिपादन होता है।

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यह कविता (पावन बेला।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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विरह की दुनिया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ विरह की दुनिया। ♦

ये संसार भी अजब गजब बातों का मेला।
भीड़ में रहकर भी हर इंसान है अकेला॥

जग एक है पर इसमें दुनिया बसी अनेक।
अपना एक अलग ही संसार बसाए है हरेक॥

कहीं खुशी, कहीं सपनों की, कहीं दुनिया गम की।
कहीं हँसी की, कहीं आँसुओं से आँखें नम की॥

कहीं अरमानों की, कहीं जज्बातों की।
कहीं पर शबाब में डूबी रातों की॥

इच्छाओं की माया नगरी का कितना सुंदर रूप।
जो पल – पल बदले अपने कितने स्वरूप॥

आओं एक ऐसी दुनिया की बात बताते है।
जिसकी मंजिल नही फिर क्यूँ राह बनाते है॥

यहाँ विरह का संसार बिल्कुल ही निराला।
रोने की पुकार नही लगा जुबाँ पर ताला॥

विरह की वेदना तो इंसान को खाये।
जब दुख सहा भी न जाये, कहा भी न जाये॥

जब दिल में बसी हो विरह की वेदना।
क्यूँ खत्म हो जाये सब अंतर्मन की चेतना॥

जो चांदनी हर वक्त रही शीतलता बरसाये।
अब वही नागिन जैसी डसने को आये॥

आँखों में हो जाता आसुंओ का बसेरा।
न जाने कहाँ खो जाता खुशी का सवेरा॥

विरह से तो फूलों की भी बदले बहार।
खुशी भी दिखाए फिर अपने नखरे हजार॥

जब विरह बिछोड़े का दिल में समाये।
सारी दुनिया ही बेमानी हो जाये॥

सबसे ज्यादा विरह की अग्नि वो तड़पाये।
जब इंसान पास रहकर भी दूर हो जाये॥

सच ही है जो हर पल नजर आए हसीन।
नजरिया ही बदल जाये जब दिल हो गमगीन॥

विरह की अग्नि दिल को पल-पल झुलसाय।
फिर किसी जल से ये बुझने न पाए॥

बस ऐसे विरह को तो रब ही दूर करे।
जब मिलन के किसी अहसास को दिल से भरे॥

कभी ये बिछोड़ा किसी के जीवन में न आये।
जो भूख – प्यास की सुध – बुध दे भुलाये॥

विरह को अपनी जिंदगी में न बसाना इस कदर।
काट डाले जो इंसान की खुशियों के पर॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आजकल के मानव एक ही परिवार में रहते हुए भी सभी परिवार के सदस्य एक दूजे से काफी दूर हो गए हैं। मोबाइल इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया में इस कदर डूब गए हैं की उनके आसपास क्या हो रहा है उन्हें बिलकुल भी नही पता हैं। आधुनिकता के दौड़ में इस कदर अंधे हो गए है की सही व गलत का फर्क भी नही कर पाते, काम वासना के वशीभूत होकर अपना, परिवार का व समाज और अपने देश का सर्वनाश कर रहे हैं। अगर इसी तरह चलता रहा तो एक सदी के अंदर ही – संस्कार, संस्कृति व सभ्यता, सत्य कर्म, धर्म बिलकुल ही ख़त्म हो जायेगा। सब के सब धर्मभ्रष्ट व कर्मभ्रष्ट, विकारी हो जायेंगे। चारों तरफ पूरी पृथ्वी पर त्राहिमाम-त्राहिमाम होगा, सभी मन से पूर्ण अशांत होंगे। अब भी समय हैं हे मानव सुधर जाओ वर्ना, पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बचेगा।

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यह कविता (विरह की दुनिया।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई। ♦

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

बाजारों में कोल्ड ड्रिंक्स की हुई भरमार।
विज्ञापनों में भी दिखें बस इनसे ही प्यार॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

बाजारों में देसी शीतल पेय दिखता नहीं।
क्योंकि वो अब धड़ल्ले से बिकता नहीं॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

ठंडे विदेशी पेय की बाजारों में धूम मची।
जगह-जगह बोतलों की दुकान सजी है॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

क्यों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहें?
क्यों हमें बोतल बंद शीतल पेय से प्यार रहें?

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

आओं कुछ स्वदेशी ठंडक वाला पीते है।
गन्ने का जूस पीकर पहले की जिंदगी जीते है॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

ठंडे पेय के असली देसी गुणों पर आए।
क्यों बाहरी चमक पर हम जी ललचाये?

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

होता गुणों का भंडार मटके का ठंडा पानी।
सुनी है इसकी कहानी बड़ों की जुबानी॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

चलों गर्मी में जल – जीरे का स्वाद भी चखते है।
धूप में सुबह से खड़े उस रेहड़ी का मान रखते है॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

नींबू वाले मटके के पेय का स्वाद कुछ निराला है।
बाजार का मसाले वाला सलाद भी मतवाला है॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

स्वदेशी पेय की महक भी दिल पर छा गयी।
इनके आगे तो सब कोल्ड ड्रिंक्स शरमा गयी॥

लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — नींबू पानी और काले नमक का कॉम्बिनेशन पाचन से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है। इसका सेवन करने से अपच की समस्या नहीं होती है। नींबू पानी के साथ काले नमक का सेवन करने से एसिडिटी, स्किन रोग और अर्थराइटिस की समस्या नहीं होती है। काला नमक भोजन से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को अवशोषित करता है। गन्ने में कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं, ऐसे में ये हमारी इम्यूनिटी को भी मजबूत करता है। गन्ने में अल्कलाइन की अच्छी खासी मात्रा होने की वजह से यह शरीर को कैंसर जैसी घातक बीमारी से भी बचाता है। गन्ने का जूस पीने से स्तन, पेट और फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता है।

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यह कविता (लो जी अब तपतपाती गर्मी आ गई।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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सोच रे मानव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सोच रे मानव। ♦

हे मूर्ख इंसान, तू सत्य की खोज कर।
जग में असत्य बढ़ाने पर मत शोर कर।

कौन है तू,क्या हस्ती तेरी, क्या वजूद तेरा।
जब विचारों का इंकलाब आएगा,
कहाँ होगा, अस्तित्व महफूज तेरा।

क्यों डूबा है, खुद को भगवान बनाने में।
इस शक्ति को एक क्षण भी,
नही लगेगा तुझें मिटाने में।

तुझें मालिक ने बार-बार इशारा देकर,
कोई कसर न छोड़ी, तुझें चेताने में।
कोई कमी बाकी न रही तुझें समझाने में।

जिस कर्म से जग में हताशा और निराशा हो।
उस कर्म को तज दे मनुष्य,
जिससे कलयुगी इंसान की परिभाषा हो।

युगों से देखी नही क्या तुमनें,
इस रब की लाठी तो, बेआवाज होती है।

तू देखता रह जायेगा, ये इंसाफ कर देगी,
क्योंकि इसकी हर बात राज होती हैं।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – किस तरह से आज का इंसान सत्य से दूर, नाना प्रकार के विकर्म कर रहा है। अहंकार-वश स्वयं को भगवान् बनाने में लगा है। वह भूल गया है जब इस रब की लाठी पड़ती है, तो उसमे आवाज़ नही होती। अभी भी समय है तू सुधर जा इंसान, वर्ना तेरे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।

—————

यह कविता (सोच रे मानव।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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