Kmsraj51 की कलम से…..
♦ शीशा ए दिल। ♦
शीशा-ए-दिल कांच से भी नाजुक बनाया।
कितने भावों से इसको रब ने सजाया॥
कभी दूसरों के गम में ये जी भरकर रोता।
तो कभी ये अपनी ही चैन की नींद खोता॥
कभी लहरों सा चंचल दिल बन जाये।
कभी किरणों सी चमक भी दे जाये॥
आँख तो इससे खूब दोस्ती भी निभाती।
इसके दर्द को अपने आँसुओं में छिपाती॥
कभी-कभी बेवफाई देख इस ज़माने की।
पग-पग पर दिल के रोने-मुस्कराने की॥
कुछ पत्थर के गुण भी इसमें डाले होते।
फिर ये नयन भी तो न यूँ छम-छम रोते॥
चल पड़ते है लोग दिल के आजमाने को।
इस कदर खेल का हुनर क्यूँ दिया जमाने को॥
अगर ये शीशे की तरह चूर-चूर जो हो गया।
गमों के अंधेरे में जो एक बार सो गया॥
कौन सी लोरी से फिर इसको उठाओगे।
फिर से अर्श से फर्श पर ही इसको पाओगे॥
ए जमाने! बार-बार आजमाइश छोड़ दे तू।
गर तोड़ना है तो एक बार में ही तोड़ दे तू॥
न फिर कभी हमें तुम आवाज लगाना।
न सुन पाएंगे तेरा कोई नया बहाना॥
धीरे-धीरे नाजुकता को त्याग पत्थर का हो लिया।
देख अब इस काँच से नाजुक दिल ने बदल खुद को दिया॥
आखिर दिल की नजाकत को तो समझ लीजिए।
न खिलौना जान किसी के दिल के टुकड़े कीजिये॥
खिलौना तो नया मिल जाएगा बाजार से।
टूटे दिल को जोड़ न पाओगे किसी तार से॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — ये दिल भी बहुत ही खूब है कभी दूसरों के गम में ये जी भरकर रोता, तो कभी ये अपनी ही चैन की नींद में मदमस्त खोता। कभी लहरों सा चंचल ये दिल बन जाये तो कभी किरणों सी चमक भी दे जाये। ये आँख तो इससे खूब दोस्ती भी निभाती है, सदैव से ही इसके दर्द को अपने आँसुओं में छिपाती है। दिल को खिलौना समझकर न कर खिलवाड़ इसके साथ, ए जमाने! बार-बार आजमाइश करना छोड़ दे तू, अगर तोड़ना है तो एक बार में ही तोड़ दे तू इस दिल को। एक बात याद रखना खिलौना तो फिर भी नया मिल जाएगा बाजार से, लेकिन टूटे दिल को जोड़ न पाओगे किसी भी तार से। कुछ समय की ये ज़िंदगी है, इसे प्यार के साथ खुशी से बिता लो, न जाने कब इस धरा से ये शरीर छोड़ चले जाओगे तुम।
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यह कविता (शीशा ए दिल।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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