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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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short poetry in hindi

शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन। ♦

विद्युत तरंगों से पोषित मानव शरीर,
प्राकृतिक वातावरण शांति भाषा की।
शीघ्र मुक्ति पाने की कामना करता,
मंदिर – गिरजाघर खोज में रहता॥

सात्विक, आध्यात्मिक ऊर्जा संपन्न खोजने,
शास्त्र – पुराण में वह खोज करता है।
कष्ट प्रद स्थित में जब होता मानव,
असंतुष्ट हो कष्ट से छटपटाता॥

कामनाओं के भंवर से उबर नहीं पाता,
मुक्ति मार्ग पर वह भटकते हुए जाता है?
आत्मबल भी कमजोर हो जाता,
नकारात्मकता से वह जीवन बिताता।

आपाधापी से गुरूर होने लगता है,
प्रेत योनि में ही, वह अक्सर चला जाता।
दुर्घटना से शरीर तुरंत छूट जाती,
इच्छाएं कामनाएं ही याद में रह जाती॥

आत्मा का अस्तित्व शक्तिशाली होता,
कामना और इच्छा शक्ति प्रबल होती।
विद्युतीय सूक्ष्म शरीर का क्षरण नहीं होता,
अचानक आघात से शरीर का अंग काम नहीं करता॥

ब्राह्मण! अकाल मृत्यु होने पर ब्रह्म हो जाता,
हजारों वर्ष सूक्ष्म शरीर नष्ट होने का इंतजार करता।
भूत, प्रेत जिन्न – पिशाच में चला जाता,
जिस अस्तित्व का मानव कल्पना नहीं करता है॥

आधुनिक विज्ञान और पश्चिमी देशों ने,
भूत – प्रेत जीवधारी सूक्ष्म शरीर माना है।
स्वाभाविक मृत पहले, धीरे-धीरे शरीर की,
काम करने वाली क्रिया को बंद करते जाता है॥

यानी ऊर्जा परिपथ का क्षरण होता रहता,
शरीर सुन्न और मस्तिष्क का, ह्रदय से संबंध छूट जाता॥

सब कुछ शरीर के अंग को सुन्न कर देता,
अंत में प्राण शरीर से निकल जाता है।
आत्मा कोई दूसरा विद्युत तरंगों की शरीर तलाशता,
भ्रूण के रूप में उसमें प्रवेश कर जाता है॥

मानव और जंतु का शरीर कोशिका से निर्मित होता,
उस शरीर में विविध अवयव पाया जाता है।
नाभिक में एक अदृश्य किरण जुड़ी होती है,
एक छोर पर सूक्ष्मतम परमाणु कण मिलता॥

जिसने उसके पालन पोषण का प्रयत्न करता,
वैज्ञानिक उसे गॉड पार्टिकल नाम से पुकारता।
अपने कर्मों के फल से जीव प्रेत योनि को पाता,
और धरती पर आकर अपना शुभ कर्म भूल जाता॥

धर्म परायण जीव भोग में जगत को पाता,
राजा बनकर धरती पर फिर, वही यहां आता।
विद्दूतीय तरंगों से पोषित मानव इस शरीर,
और प्राकृतिक वातावरण में, शांति पाता॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — पांच तत्वों से मिलकर बना ये शरीर जिसका मूल स्वरूप शांत है और इस शरीर को चलायमान बनाने वाली ऊर्जा का भी मूल स्वरुप शांत है। इंसान अपने कर्मों के अनुसार अपना भाग्य बनता है। इंसान के कर्म ही उसे इस संसार में जीवित रखते है। इसलिए अच्छे कर्म ही करना चाहिए मानव को इस संसार में। आपके अच्छे कर्म आपको सद्गति देंगे व बुरे कर्म दुर्गति देंगे। अकाल मृत्यु किसी भी इंसान को प्रेत योनि में ले जाता है। इच्छाओं के भंवर से बाहर निकले सत्य का बोध कर सन्मार्ग पर चलकर धर्म परायण अच्छे कर्म करें।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

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अजब तेरी माया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अजब तेरी माया। ♦

इस संसार से विदा, जो हो गए।
समय – असमय जो, चिरनिद्रा में सो गए॥

हे मालिक! बता तुमने, उन्हें कहाँ छुपाया है।
फिर क्यूँ उनका अक्स भी, नजर नहीं आया है॥

तेरे तो खेल निराले, अजब तेरी माया है।
जो तूनें ब्रह्मांड में, जीवन – मरण का खेल रचाया है॥

इस जग की रीत, तो तुझसे भी निराली है।
जो विदा हो गए यहाँ से, फिर उनकी परछाई भी काली है॥

फिर क्यूँ इस जगत में, मेरा – मेरी ने कोहराम मचाया है।
न जाने क्यूँ इंसान ने, अपने – पराए का जाल बिछाया है॥

मालूम है ये सबको, कि देने वाला लेना भी जानता है।
फिर भी अहम में डूबा इतना, तुझकों नही पहचानता है॥

एक दिन सबको चले जाना है, ये मानुष तन छोड़कर।
आओं! फिर नेक कर्मों के खाते में रखें, अपना नाम जोड़कर॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में जिसका भी जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इसलिए अच्छे कर्म कर ले, विकर्म का खाता इकट्ठा न करें। आपके अच्छे कर्म ही आपको इस संसार में जीवित रखेंगे। इसलिए बुरे कर्म का त्याग कर, अच्छे कर्म ही करे।

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यह कविता (अजब तेरी माया।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

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राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश। ♦

पृथ्वी पालक पृथु महाराज का,
प्रजा जब स्तुत गान करती रही।
उसी समय चार तेजस्वी मुनीश्वर,
तेज पुंज, आकाश मार्ग से आए।

आकाश और से उतरते हुए उन्हें,
राजा पृथु – अनुचर पहचान गए।
आगे बढ़ महाराज किए सम्मान,
उचित संस्कार से मुनियों का मान।

राजा निवेदन सनकादी ने माना,
आपस में बातचीत से पहचाना।
मुनि के चरणों दक सीष लगाया।
सत्य पुरुषों सा व्यवहार दिखाया।

सोने के सिंहासन पर उन्हें बिठाया।
विधिवत पूजा पाठ उनका कराया।
अग्नि देवता सदृष्य तेज था उनका।
मुनियों के तेज से आह्लादित जनता।

विनम्रता पूर्वक राजा पृथु जी बोले,
आपका दर्शन योगियों को दुर्लभ।
यद्यपि आप सर्वव्यापी और सर्वत्र,
फिर भी सर्वसाक्षी आत्मा ना सुलभ।

जिस घर आप कुछ ग्रहण करते हैं,
धनहीन भी ध्यान कर धन्य हो जाता।
हम सभी इंद्रिय संबंधी भोगों को,
अपना पुरुषार्थ मान लिया करते हैं।

आप एकाग्र चित्त ब्रह्म चारी महान।
श्रद्धा भक्ति आचरण पालक विद्वान।
जिस पर आपकी कृपा दृष्टि बरसती,
वह इस संसार में हो जाता है महान।

इन कर्मों के निस्तार का कोई उपाय,
जो भी हो मुनिवर हमको बताइए।
सांसारिक मनुष्य का कैसे होता है,
कल्याण, उसको हमें समझाइए।

यह भी सच है कि उपासक धीर,
पुरुषों के ऊपर वह कृपा करते हैं।
अजन्मा नारायण भगवान जी,
भक्तों का अपने कल्याण करते हैं।

राजा के गंभीर मधुर वाणी सुनकर,
मुनीश्वर प्रशन्नता से कहने लगे?
आप सबकुछ जानते हैं फिर भी,
जन कल्याण हेतु अच्छी बातें पूछी।

साधु पुरुषों की ऐसी बुद्धि होती।
प्रश्न से उनके कल्याण होता है।
मधुसूदन के चरणों में आपकी प्रीत,
अविरल सुंदर है आप की नीति।

ईश्वर में अविरल प्रेम जाग जाता।
वासनायें उसकी सभी नष्ट हो जाती।
आत्म स्वरूप निर्गुण का मुनि ने,
राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

मुनीश्वर ने राजा पृथु को पावन,
पुनीत प्रीति युक्त भजन सुनाए।
ब्रह्म में लीन हो जाने पर पुरुष,
सतगुरु की शरण में जाता बताए।

विषय इंद्रिय संबंधी भोगों से बचाएं।
विचार शक्ति को बढ़ाते ही जाएं।
विचार शक्ति नष्ट हो जाने पर,
पूर्व स्मृतियां भी नष्ट हो जाती हैं।

और स्मृतियों के नष्ट हो जाने पर,
ध्यान – ज्ञान नष्ट होने लगता है।
अपने द्वारा आत्मा नाश होने पर,
जीवन का सब हानि हो जाता है।

भगवान के चरण, चरण कमल ही,
दुस्तर समुद्र को पार कर देते हैं।
कुमार से आत्मीय उपदेश सुनकर,
राजा पृथु उनकी प्रशंसा करने लगे।

आप लोग बड़े ही दयालु कृपालु हैं।
श्रीहरि भेजी, मुझ पर कृपा की है।
जिस कार्य के लिए आप पधारे थे,
आपने अच्छी तरह उसे संपन्न किया।

इस उपकार के बदले आपको क्या दूं ?
मेरा जो वह महापुरुषों का प्रसाद है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने कैसे मुनिश्वरों का स्वागत किया। आत्म स्वरूप निर्गुण मुनिश्वरों ने बहुत ही सरल शब्दों में राजा पृथु जी को ब्रह्म ज्ञान बताया।

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यह कविता (राजा पृथु को मुनिश्वरों का उपदेश।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें: पृथु का प्रादुर्भाव।

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राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव। ♦

राजा पृथु ने सौ अश्वमेध – यज्ञ करने की दीक्षा ली,
पूर्व मुखी सरस्वती तट पर मनु के ब्रम्हावर्त क्षेत्र में यज्ञ की।
महाराज पृथु ने यज्ञ में खुश होकर आहुती दी,
सर्व लोक पूज्य जगदीश्वर भगवान श्रीहरि का साक्षात दर्शन की।

हाजिर जगदीश्वर के साथ ब्रह्मा रूद्र अनुचर लोकपाल भी जी,
नर -नारी देवी – देवता भी साथ साथ आए थे।
गंधर्व आदि और अप्सराएं प्रभु की गा रही थी गीत,
और प्राकृति कितने तरह – तरह की सामग्री समर्पित की।

छद्म वेश धारण कर इंद्र अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खोला,
आकाश मार्ग से घोड़ा लेकर भागने का प्रयास किया।
ईर्ष्या वस गुपचुप इंद्र ने घोड़ा हरने का प्रयत्न किया,
और कवच रूप पाखंड धरवेश अपनी रक्षा में धारण किया।

पृथु अंतिम यज्ञ हेतु भगवान की पूजा में थे लीन,
एक दृष्टि, पृथु – महारथी पुत्र को अत्री ने इंद्र को मारने की आज्ञा दी।
पृथु – पुत्र महाबली घोड़े की रक्षा ने मानो ऐसे लगता,
जिस तरह रावण के पीछे जटायु ने सीता को बचाने दौड़ा।

उसका वह प्रारंभिक करती जी ने उसका नाम,
वीर विजिताश्व बहुत सोच समझकर ही है रखा।
फिर दुबारा वही इंद्र ने वहां पर घोर अंधकार फैला दिया,
उसी घोड़े को सोने की जंजीर सहित आकाश मार्ग ले जाता।

पृथु पुत्र राजकुमार को इंद्र हेतु फिर से अत्रि ने उकसाया,
राजकुमार गुस्से में आकर इंद्र पर लक्ष कर धनुष – बाण चढ़ाया।
देख, देवराज इंद्र छद्म वेष – घोड़ा छोड़ अंतर्ध्यान हो गया,
वीर विजिताश्व अपना घोड़ा लेकर पिता की व्यवस्था में आ गया।

इंद्र ने अश्व हरण की इच्छा से वो था रूप बनाया,
आपके खंड होने के कारण वही था पाखंड कहलाया।

लोक गुरु भगवान ब्रह्मा के समझाने पर प्रबल पराक्रमी,
महाराज पृथु ने अंतिम यज्ञ आग्रह को छोड़ दिया।
यज्ञांत में जब उन्होंने निवृत होकर स्नान किया,
यज्ञ से तृप्त देवताओं ने उन्हें अभीष्ट वर दिया।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने सौ अश्वमेध – यज्ञ करने की दीक्षा ली, पूर्व मुखी सरस्वती तट पर मनु के ब्रम्हावर्त क्षेत्र में यज्ञ की। महाराज पृथु ने यज्ञ में खुश होकर आ-हुती दी, सर्व लोक पूज्य जगदीश्वर भगवान श्रीहरि का साक्षात दर्शन की। छद्म वेश धारण कर इंद्र अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खोला, आकाश मार्ग से घोड़ा लेकर भागने का प्रयास किया। इंद्र से अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लेन के लिए, पृथु अंतिम यज्ञ हेतु भगवान की पूजा में थे लीन, एक दृष्टि, पृथु – महारथी पुत्र को अत्री ने इंद्र को मारने की आज्ञा दी।

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यह कविता (राजा पृथु के यज्ञ शाला में प्रभु का प्रादुर्भाव।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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पृथु का पृथ्वी पर क्रोध।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पृथु का पृथ्वी पर क्रोध। ♦

अन्न – औषधि छिपा के पृथ्वी,
सृष्टि में, रूप बदल कर डाले।
प्रजा भूख से हो रही व्याकुल,
श्री मैत्रेय, विदुर से बोले।

जीवन सभी का अटका – अटका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

प्रजा करुण – क्रंदन सुन पृथु ने,
शस्त्र उठा लिया हाथ में।
पृथ्वी, गौ का रूप धारण कर,
थर-थर – थर-थर लगी कांपने।

पृथ्वी ने सर, पांव पर पटका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

गौ रूपी पृथ्वी ने आकर,
विनीत भाव से नमन किया।
आप जगत – उत्पत्ति – संहारक,
विश्व – रचना का मन बना।

मेरा हाल तो नटनी – नट का,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

मेरी अन्न – औषधि सब,
राक्षस मिलकर खा जाते थे।
सही ढंग से जिन्हें था मिलना,
अन्न – औषधि नहीं पाते थे।

यह सब देख के माथा ठनका,
कवि हूं मैं सरयू – तट का।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने बताया है कि महाराजा पृथु ने पृथ्वी पर क्यों क्रोध, किया। महाराजा पृथु सदैव ही अपनी प्रजा को सुखमय जीवन देने के लिए तत्पर रहते थे, चाहे कैसी भी विकट समय क्यों न हो। हर विकट समस्या से बाहर निकलने की पूर्ण क्षमता थी उनमे।

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यह कविता (पृथु का पृथ्वी पर क्रोध।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें: पृथु का प्रादुर्भाव।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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महाराजा पृथु अभिषेक।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ महाराजा पृथु अभिषेक। ♦

पृथु – अभिषेक आयोजन हुआ।
अभिनंदन वेदमयी ब्राह्मणों ने किया।
पृथ्वी, नदी, गौ, समुद्र, पर्वत, स्वर्ग,
सब ने अर्पण उपहार किया।

उपहार मिला सब तटका – टटका
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

गंधर्व ने मिल किया गुणगान,
सिद्धों ने मिल पुष्प वर्षा कर बढ़ाया मान।
समवेत स्तुति ब्राह्मणों ने किया करके,
दिया मुक्त मन से समुचित ज्ञान।

दीया ज्ञान सब ने दस – दस का
हूं कवि मैं सरयू तट का।

विश्वकर्मा ने दिया सुंदर रथ।
चंदा ने अश्व दिये अमृत मय।
सुदृढ़ धनुष दिया अग्नि ने।
सूर्य ने बाण दिया तेजोमय।

शत्रु को करारा दे जो झटका,
कवि हूं मैं सरयू तट का।

सुदर्शन चक्र दिया विष्णु ने।
लक्ष्मी ने दी संपत्ति अपार।
अंबिका चंद्राकार चिन्हों की ढाल।
रूद्र दे दिए चंद्राकार तलवार।

काम जो करे सरपट सरपट का,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

पृथ्वी दी योगमयि पादुकाएं।
आकाश ने नित्य पुष्प मालाएं।
सातों समुद्र ने दिया शंख।
पर्वत नदियों ने हटाई पथ बालाएं।

बना दिया आपको जीवट का,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

जल – फुहिया जिससे प्रतिपल झ,
वरुण ने छत्र – छत्र श्वेत चंद्र – सम।
धर्म ने माला वायु दो चंवर दिया।
मुकुट इंद्रने ब्रह्मा ने वेद कवच का दम।

संपूर्ण सृष्टि का माथा ठनका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

सुंदर वस्त्रों – अलंकारों से,
हुये सुसज्जित श्री पृथु राज।
स्वर्ग – सिंहासन विराजमान,
आभार अग्नि की जस महाराज।

पहुंचे सभी न कोई अटका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

सूत – माधव बंदीजन गाने लगे।
सिद्ध गंधर्व आदि नाचने बजाने लगे।
प्रीति को मिली अंतर्ध्यान शक्ति।
महाराज को सभी बहलाने लगे।

दे दे करके लटकी – लटका,
हूं कवि मैं सरयू – तट का।

गुण कर्मों का बंदीजन गुणगान किया।
महाराज ने सभी को मुक्त भाव से दान दिया।
मंत्री पुरोहित पुरवासी सेवक का मान किया।
चारों वर्णों का महाराज ने सम्मान किया।

गुंजाइश नहीं किसी खटपट का,
कवि हूं मैं सरयू – तट का ।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने राजा पृथु के अभिषेक का मनोरम सुन्दर दृश्य का सटीक वर्णन किया है। बहुत ही सरल शब्दों में बताया है, की किस किस दैवी शक्ति ने कौन – कौन सा अस्त्र दिया महाराजा पृथु को। इस कविता को पढ़ते समय आप महाराजा पृथु के दरबार की अनुभूति करेंगे।

—————

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यह कविता (महाराजा पृथु अभिषेक।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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नारी सम्मान।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नारी सम्मान। ♦

भगवान का दिया अनमोल,
उपहार, जग में नारी।
ईश्वर ने सब गुणों का,
समावेश कर, धरती पर उतारी।

त्याग, तपस्या, ममता का,
रूप इसने धारा।
जग में होती ये,
हर घर का उजियारा।

इस धरा को अपने अस्तित्व से,
प्रकाशवान किया, वो तो है नारी।
कभी पुत्री, कभी वधू , कभी माँ,
कभी सास का रूप ये धारी।

श्रृंगार, विरह, वेदना, प्रीत, ममता के,
सब रस इसमें ही समाहित।
इसके सद्गुणों का स्मरण भी,
करें प्रसन्न चित।

नारी – सम्मान को किन किन,
शब्दों से करूँ, मैं बखान।
इसके सद्गुणों पर वारी जाऊँ,
जो बढ़ा दे हर परिवार का मान।

नारी – सम्मान जग में लायें,
अमन, खुशहाली।
इनके गुणों का मान करें,
फिर हो जायें, रोज दीवाली।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस संसार में नारी की जगह कोई और नहीं ले सकता, नारी हर रूप में ममतामयी है। इस धरा को अपने अस्तित्व से, प्रकाशवान किया, वो तो है नारी। कभी पुत्री, कभी वधू , कभी माँ, कभी सास का रूप ये धारी। श्रृंगार, विरह, वेदना, प्रीत, ममता के, सब रस इसमें ही समाहित। इसके सद्गुणों का स्मरण भी, करें प्रसन्न चित।

—————

यह कविता (नारी सम्मान।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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अनमोल बूँद।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अनमोल बूँद। ♦

समुन्द्र की एक सीप से पूछों,
एक बूँद, कितनी अनमोल।
जो स्वाति नक्षत्र में गिरें तो,
बने सच्चा मोती, बिन मोल।

एक बूँद की कीमत चातक जानें,
स्वाति नक्षत्र की बूंद से प्यास बुझाए।
गर न मिलें, उचित समय तो,
पूरा वर्ष प्यासा रह जायें।

जब बरसे मेघा,
मयूर नृत्य करें, संग संग रोयें।
उसकी नेत्र-जल की बूंदों को पी,
मयूरी अपने विरह को धोयें।

जल जीवनदायीं,
क्यूँ व्यर्थ इसे बहायें।
बूँद बून्द सहेज लें, नीर की,
जो जीवन – अमृत कहलायें।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – सीप में स्वाति नक्षत्र में गिरें बूँद तो, बने सच्चा मोती, जो होता है अनमोल। इस एक बूँद की कीमत चातक जानें, स्वाति नक्षत्र की बूंद से प्यास बुझाए। गर न मिलें, उचित समय तो, पूरा वर्ष प्यासा रह जायें। प्रकृति का मनोरम दृश्य मयूर का यु मनमोहक नृत्य।

—————

यह कविता (अनमोल बूँद।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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त्रिभाग पर भरोसा करूं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ त्रिभाग पर भरोसा करूं। ♦

बंट चुका त्रिभाग में
किससे कहूं।
हो गया अवसाद माना
कैसे लिखूं।

हृदय शरीर दिमाग जाना
क्या कहूं।
पहले शरीर से अलग
किससे कहूं।

शरीर से अलग है हृदय
अलग दिखा दिमाग,
कहां पलूं।
देती शरीर जवाब
कैसे चलूं।

खुश रहता हूं फिर भी,
ब्रह्मा विष्णु महेश में,
यादों से कहता।

जैसे चलाएं।
चलता चलूं।
मचलता चलूं।

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सोशल मीडिया – भारत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सोशल मीडिया – भारत। ♦

भारत पहले सबको मिलकर समझाता है।
सभ्यता और संस्कृत का उसको ज्ञान कराता है।
भारत की संस्कृति में यही कहा जाता है,
सबको यह पहले बहुत खूब समझाता है।

मनमानी करने वालों को ज्ञान पहले बताता है।
नियम और कानून का ध्यान उसको कराता है।
त्याग और तपस्या का भी पाठ उसे पढ़ाता है।
अहिंसा और शांति का संदेश उसको सिखाता है।

पुरुषोत्तम का देश है भारत उनका मान दिखाता है।
सूर्पनखा रावण की बहना उसको भी समझाता है।
श्रीराम द्वारा लक्ष्मण की तरफ ध्यान दिया जाता है।
इधर उधर जाकर भी जब नहीं मानती शूर्पणखा है।

अंत कोप भाजन से नाक अपनी कटवा दी है।
जबकि श्रीराम द्वारा उसको समझाया जाता है।
एक कथा और सुनाने का मन कर जाता है।
बालकृष्ण के पास कंस की बहन को भेजा जाता है।

उसका भी अंत श्री कृष्ण द्वारा किया जाता है।
कहने का तात्पर्य ही है जो भारत में आया है,
भारत के बने कानून का पालन उसको करना है।
मनमानी इस देश में कहीं नहीं चलने वाला है।
एक समय तक ही उसको छूट दिया जाता है।

इसलिए नियम कानून के अंदर काम करने हैं।
शांति और विश्व बंधुत्व से यहां पर आने हैं।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – यह आर्यावर्त – हमारा भारत देश है, हम सभी का दिल से सम्मान करते है यहाँ। लेकिन यहाँ पर रहना है तो – भारत के बने कानून का पालन उसको करना है। मनमानी इस देश में कहीं नहीं चलने वाला है, एक समय तक ही उसको छूट दिया जाता है। इसलिए नियम कानून के अंदर काम करने हैं। शांति और विश्व बंधुत्व से यहां पर आने हैं।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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