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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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vivek kumar

ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

Kmsraj51 की कलम से…..

Gyan Ki Jyot Jaga De Maa | ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

Mother Hansvahini is requested to fill his empty dictionary and remove the darkness of ignorance.

हे मां शारदे,
वीणावादिनी मां,
ज्ञान की देवी,
ज्ञान की ज्योत जगा दे मां,
मैं हूं तुच्छ अज्ञानी,
मुझे ज्ञान का मार्ग दिखा दे मां।

हे मां हंसवाहिनी,
अंधकार निवारणी,
मेरा शब्दकोश है खाली,
भर दे तू इसे बजाकर ताली,
मुझ तुच्छ अज्ञानी को,
ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

हे मां बागेश्वरी,
तू बजाती सुरों की बांसुरी,
मेरे कलम की लेखनी को दे धार,
लेखनी आपसे, आप सबके द्वार,
मुझ तुच्छ अज्ञानी को,
ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

हे मां भारती,
ज्ञान सबमें तू ही भरती,
तमस दूर हो हृदय हमारे,
आशा और विश्वास तुम्हारे,
मुझ तुच्छ अज्ञानी को,
ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

हे मां ज्ञानदा,
आंखों पर पड़े न मेरे परदा,
मां मेरी कविता में तू,
भर दे वीणा की झंकार,
मुझ तुच्छ अज्ञानी को,
ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।

हे मां वाग्देवी,
मुझे दे सद्बुद्धि,
भेंट करूं तुझे कलम पुष्प से,
गूंथे हुए सब हार,
मुझ तुच्छ अज्ञानी को,
मां ज्ञान की ज्योत जगा देना।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है —यह कविता मां सरस्वती की वंदना करते हुए ज्ञान और बुद्धि की प्रार्थना करती है। कवि मां शारदा से निवेदन करता है कि वह अपनी वीणा के मधुर स्वर से उसे ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें, क्योंकि वह अज्ञानी और तुच्छ है। मां हंसवाहिनी से आग्रह किया गया है कि वह उसके खाली शब्दकोश को भर दें और अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करें। मां बागेश्वरी से कवि अपनी लेखनी को धार देने की प्रार्थना करता है ताकि वह सभी तक ज्ञान का प्रकाश पहुंचा सके। मां भारती से अनुरोध किया गया है कि वह सभी के हृदय से अज्ञान का तमस (अंधकार) दूर करें और आशा तथा विश्वास का संचार करें। मां ज्ञानदा से कवि यह विनती करता है कि उसकी आंखों पर अज्ञान का कोई पर्दा न पड़े और उसकी कविता में वीणा की झंकार भर जाए। अंत में, मां वाग्देवी से वह सद्बुद्धि की कामना करता है और अपनी कविता को एक पुष्पहार के रूप में अर्पित करने की इच्छा व्यक्त करता है। संपूर्ण कविता ज्ञान प्राप्ति की प्रार्थना और मां सरस्वती की स्तुति में समर्पित है।

—————

यह कविता (ज्ञान की ज्योत जगा दे मां।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मेरा चांद मुझे आया है नजर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Mera Chand Mujhe Aaya Hai Nazar | मेरा चांद मुझे आया है नजर।

she starts her fast by staying without water, she pleads to Karva Mata, may my beloved live a thousand or two thousand years, don't make me wait anymore, just show me your face. I have seen my moon.

कब आओगे,
कर रही इंतजार,
नैना हो रही लाचार,
सज संवर कर बैठी तैयार,
सजाकर माथे पर बिंदिया,
साथ में गले का हार,
रचा रखी हाथों में मेहंदी,
बस कर रही एक पुकार,
कब आओगे?

जिसका है इंतजार,
हर सुहागिन जिसकी करती आस,
दिल में बसा राखी विश्वास,
निर्जला रह, करती व्रत की शुरुआत,
करवा माता से लगाती गुहार,
पिया की उम्र हो हजार दो हजार,
अब न तरसाओ,
जरा दर्श तो दिखलाओ।

तेरे दीदार में मन हो रहा अधीर,
अब तो आ जाओ,
नयनों की प्यास बुझाओ,
पूरी कर दो मेरी आस,
आ जाओ मेरे पास।

क्यों रूठकर बैठे हो,
कहां छुपकर बैठे हो,
आ जाओ भी एक बार,
पुकार सुन,
शायद चांद को आई रहम,
जिस चांद का कर रही थी इंतजार,
वो चांद मुझे आया है नजर।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता एक सुहागन के इंतजार और प्रेम की गहराई को दर्शाती है। कविता में वह अपने पति के आगमन की प्रतीक्षा कर रही है, सज-धजकर तैयार बैठी है, माथे पर बिंदी और हाथों में मेहंदी रचाई है। उसका मन व्याकुल है, और वह लगातार अपने पति के लौटने की पुकार कर रही है। करवा चौथ के व्रत में वह निर्जला रहकर, करवा माता से अपने पति की लंबी उम्र की कामना कर रही है।वह पति से रूठने या छुपने का कारण पूछती है, और उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पुकारती है। अंत में, उसे प्रतीक्षा में राहत मिलती है जब वह चांद को देखती है, जिसका उसे लंबे समय से इंतजार था।

—————

यह कविता (मेरा चांद मुझे आया है नजर।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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गांधीगिरी अपनाओ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Gandhigiri Apanao | गांधीगिरी अपनाओ।

A graphic representation featuring the word "Gandhi" repeated multiple times, highlighting its cultural and historical importance.

अहिंसा
की हो बात,
स्वतंत्रता
की मिले सौगात,
सादगी
जिसकी पहचान,
सत्य
जिसका कमान,
बापू
तुम हो महान।

सत्याग्रह
जिसकी शक्ति,
गांधी
थे वो व्यक्ति,
निडरता
जिससे मिला न्याय,
ब्रह्मचर्य
तालु पर नियंत्रण पाए,
बापू
इसीलिए महान कहलाए।

धोती
जिसकी पहचान,
लाठी
शास्त्र समान,
कर्मठता
ब्रह्म का वरदान,
सरलता
जीवन को बनाए आसान,
बापू
तुम्हीं हो राष्ट्र का सम्मान।

आज का दौड़
भ्रष्टाचार,
मन का गौर
गलत विचार,
सत्य का नाश
बना लाश,
माहौल का विनाश
बन गया दास,
फिर कैसे होगा विकास?

आ जाओ
फिर एक बार,
बदलेगी
दिशाएं चार,
सत्य
पसारेगा पैर,
हिंसा
की अब तो खैर,
बापू
आ जाओ करने सैर।

सोच
मन की बदलो,
बोल
मीठे ही बोलो,
सद्भावना
दिल से जोड़ो,
अहिंसा
का दामन न छोड़ो,
गांधीगिरी
से अब नाता जोड़ो।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता का सारांश है कि महात्मा गांधी (बापू) को महानता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अहिंसा, सत्य, और सादगी उनके जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत थे। सत्याग्रह और ब्रह्मचर्य से उन्होंने निडरता और आत्म-नियंत्रण का प्रदर्शन किया, और इसी कारण उन्हें महान माना गया। उनकी पहचान धोती, लाठी और सरल जीवन शैली से होती थी, जो उन्हें राष्ट्र का सम्मानित व्यक्ति बनाती है। कवि आज के भ्रष्ट और हिंसक माहौल की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि गांधी जी के विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। वे आह्वान करते हैं कि हम गांधीगिरी (गांधी के विचारों) से जुड़ें, मन को शुद्ध करें, और अहिंसा, सत्य, और सद्भावना का पालन करें ताकि समाज में बदलाव आ सके।

—————

यह कविता (गांधीगिरी अपनाओ।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हे मुरारी अब लाज बचाओ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hey Murari Ab Laaj Bachao | हे मुरारी अब लाज बचाओ।

Oh Murari, now save the honour of every woman from such monsters. Oh Murari, now save the honour from the evil eyes of vultures. Oh Murari, now save the honour.

ये कैसी विपदा आन पड़ी,
चहुंओर अंधियारा छाया है।
अपने ही बने भक्षकगण से,
हे मुरारी अब लाज बचाओ।

सृष्टि की जननी का मान नहीं,
जहां नारी का सम्मान नहीं।
ऐसे हैवानों से हर नारी का,
हे मुरारी अब लाज बचाओ।

हे सृष्टि के पालकदाता,
अब तेरा ही बस सहारा है।
गिद्दों की गंदी नजरों से,
हे मुरारी अब लाज बचाओ।

आतताइयों से भरी महफिल में,
द्रौपदी की लाज बचाने।
जिस तरह तुम आए थे,
हे मुरारी सब की लाज बचाओ।

ऐसी घृणित सोंच मिटाने,
सबके दिल को सात्विक बनाने।
मात्र तेरा ही एक सहारा है,
हे मुरारी अब लाज बचाओ।

जग की विनती सुनकर,
हर नारी की पुकार पर,
एक बार फिर आ जाओ,
हे मुरारी अब लाज बचाओ।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता का सारांश है कि समाज में महिलाओं की स्थिति गंभीर हो गई है, जहां उनके सम्मान और सुरक्षा को खतरा है। कवि भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे इस संकट से नारी की रक्षा करें, जैसे उन्होंने महाभारत में द्रौपदी की लाज बचाई थी। कवि कहते है कि जब तक समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होगा, तब तक सृष्टि की जननी का भी मान नहीं होगा। कवि भगवान से निवेदन कर रहे हैं कि वे इस संसार में व्याप्त बुराई, हैवानियत, और घृणित सोच को समाप्त करें और समाज को सात्विक और पवित्र बनाएं।

—————

यह कविता (हे मुरारी अब लाज बचाओ।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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भाई का पैगाम।

Kmsraj51 की कलम से…..

Brother’s message | भाई का पैगाम।

The brother explains to his sister that she should not depend on anyone for her protection, but should make herself strong and self-reliant.

रक्षाबंधन पर,
भाई का पैगाम,
सभी बहनों के नाम।

ओ मेरी बहना,
राखी तू जरूर बांधना,
रक्षा का मैं वचन भी दूंगा।

मगर,
इस कलयुगी युग में,
राक्षसी प्रवृत मानवों में।

आस पास के,
गैर तो गैर अपने लोगों में,
कौन कैसा है पहचानने में।

खा जायेगी तू धोखा,
गिरगिट जैसी रंग बदलती दुनिया में,
गुम हो जाएगी तुम्हारी पहचान।

सुन री बहना,
साये की तरह मेरा साथ नहीं,
इस बात का तूझे ख्याल है रखना।

मुझ पर निर्भर,
मत रह ये बहना,
तुम ही हो घर का गहना।

सुन तू,
नाजों से पली,
तू कोमल सी कली।

हैवानों की नजर,
इसीलिए तुझ पर गरी,
तू लगती हो सुंदर परी।

रुक,
इस मिथ्या को तोड़,
रिश्तों के बंधन छोड़।

नियत अब,
तू पहचाना सीख,
न मांग तू किसी से भीख।

समाज में छवि,
दया कोमलता की प्रतिमूर्ति,
ममता की जो करती है पूर्ति।

समय आने पर,
तू ही चंडी तू काली है,
जग की करती रखवाली है।

निर्भया बनो,
उठो जागो और याद कर,
अपनी शक्ति का संचार कर।

सृष्टि की,
जननी तू पालक तू,
जीवन का आधार हो तू।

फिर,
चंद वहशी से मत डर,
उठ, कर उनका प्रतिकार।

वचन,
आज रक्षाबंधन पर दो,
अन्मविश्वास खुद में ला दो।

तू,
अबला नहीं,तू सबला है,
कोमल नहीं तू कठोर है।

अब,
ना डर प्रतिकार कर,
खुद की रक्षा स्वयं कर।

लोगों की सोंच,
बदलेगी आएगी वो सुबह,
हाथ लगाते होंगे वो तबाह।

सनक ऐसी पाल,
अच्छे के लिए अच्छा,
बुरे के लिए काल बन।

फिर कोई तुझे,
छूने से भी घबड़ाएगा,
सपना मेरा साकार हो जायेगा।

अब,
भाई की न करना फरियाद,
तू ही है मेरी बहना फौलाद।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कविता में एक भाई अपनी बहन को रक्षाबंधन के अवसर पर संदेश भेजता है, जिसमें वह उसे अपनी सुरक्षा के लिए जागरूक और आत्मनिर्भर बनने की सलाह देता है। भाई बहन से कहता है कि वह राखी जरूर बांधे, और वह उसकी रक्षा का वचन भी देता है। लेकिन साथ ही वह इस कलयुगी युग में चारों ओर फैले खतरों और मानवों की राक्षसी प्रवृत्तियों से सतर्क रहने के लिए भी कहता है। भाई अपनी बहन को यह समझाता है कि उसे खुद की रक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि खुद को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। वह उसे याद दिलाता है कि समाज में उसे कोमल और दयालु समझा जाता है, लेकिन समय आने पर उसे अपनी शक्ति को पहचानना होगा और चंडी व काली जैसी शक्तिशाली रूप धारण कर समाज की रक्षा करनी होगी। भाई यह भी कहता है कि उसे किसी भी बुराई का डटकर मुकाबला करना चाहिए और खुद की सुरक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। अंत में, वह बहन से वादा लेता है कि वह शक्ति रूप बनेगी, अपनी शक्ति को पहचानेगी और खुद को सबला मानेगी। भाई बहन से कहता है कि अब वह किसी पर निर्भर न रहे और खुद ही अपनी रक्षा करे, जिससे समाज में बदलाव आए और बुरे लोग उससे डरने लगें।

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यह कविता (भाई का पैगाम।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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आजादी का मर्म।

Kmsraj51 की कलम से…..

Marm of Freedom | आजादी का मर्म।

Wake up, rise up, don't stay silent now, fight back against the atrocities, do it yourself and tell others, sing the praises of freedom. The essence of freedom.

आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की
याद दिलाने आया हूं।
गुलामी की दासताओं का
दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

बातें उन दिनों की है जब बेड़ियों में
जकड़ा देश हमारा था,
त्राहि-त्राहि लोग कर रहे
जुल्मों सितम करारा था।
फिरंगियों की दास्तानों से
थर्राया देश हमारा था,
खिलाफ बोलने वालों की
सरेआम चमड़ी उधेड़ी थी।

अंग्रेजों के जुल्मों ने मन में
उबाल मचाया था,
विरुद्ध बोलने की हिमाकत
नहीं किसी ने उठाई थी।
यातनाओं से तंग आ चुका
एक वीर मर्द पुराना था,
सपूत वो कोई और नहीं
मंगल पांडे का जमाना था।

धीरे-धीरे आग की लौ
पूरे देश में थी फैल गई,
गुलामी के दंश के बीच
आजादी की हवा फैल गई।
कुंवर सिंह और झांसी ने
मोर्चा खूब संभाला था,
उनकी शहादत को देश ने
सीने में बड़े संभाला था।

परतंत्रता के घाव पर
बापू ने मरहम लगाई थी,
लाल बाल पाल की तिकड़ी ने
आजादी की झलक दिखाई थी।
खूनी खेल, खेल रहे फिरंगी को
सबक सबने सिखाई थी,
सभी के प्रयासों से अंत में
आजादी हमने पाई थी।

सोने की चिड़ियां को आज
आजादी के मर्म का भान है,
फिर हम क्यूं भूल गए उन वीरों को
जिसका सभी को ज्ञान है।
एक बार पुनः उन यादों को
ताजा करने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

जिस आजादी के लिए
कुर्बानी दी जहान रे,
यूं ही हम भूल रहे
खो रहा हमारा मान रे।
जागो उठो अब चुप न रहो
जुल्मों का तुम प्रतिकार करो,
खुद करो औरों को बोलो
आजादी का गुणगान करो।

भूल रहे उन मर्मों की
याद कराने आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की
याद दिलाने आया हूं।
गुलामी की दसताओं का
दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

बीती यादों को ताजा कर
सबक सिखाने आया हूं,
हुंकार भरने आया हूं,
संकल्पित करने आया हूं।
देश भक्ति का भाव जगा
सपना साकार करने आया हूं।

अमन चैन संग मिट्टी की
सौंधी खुशबू बिखेरने आया हूं,
वंदे मातरम् के गान का
अर्थ बताने आया हूं।
आजादी का राग सुना
जज्बात जगाने आया हूं,
वीरों की कहानी याद दिला,
आजादी का मर्म बताने
युवाओं को आया हूं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि युवाओं को आजादी के महत्व और वीर शहीदों की कुर्बानियों को याद दिलाने आये है। वह उन दिनों का वर्णन करते है जब भारत अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा हुआ था, और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। अंग्रेजों के अत्याचारों ने देशवासियों को विद्रोह करने पर मजबूर कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप मंगल पांडे और अन्य वीरों ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत की। धीरे-धीरे यह विद्रोह पूरे देश में फैल गया, और वीरों ने मोर्चा संभाल लिया। कवि महात्मा गांधी, लाल-बाल-पाल की तिकड़ी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद दिलाते हुए बताते है कि कैसे उनके प्रयासों से अंततः भारत ने आजादी पाई। वह इस बात पर भी जोर देते है कि आज के युवाओं को उन वीरों और उनकी कुर्बानियों को नहीं भूलना चाहिए, बल्कि उनके बलिदानों का सम्मान करना चाहिए।कवि युवाओं को जागरूक करने और उन्हें देशभक्ति के लिए प्रेरित करने आये है। वह उन्हें याद दिलाते है कि हमें अपनी आजादी का सम्मान करना चाहिए और उसके महत्व को समझना चाहिए। अंत में, वह देशभक्ति की भावना जागृत करने और आजादी के महत्व को समझाने का आह्वान करते है।

—————

यह कविता (आजादी का मर्म।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। भोला सिंह हाई स्कूल पुरुषोत्तम, कुरहानी में अभी एक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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योग करें निरोग रहें।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yog Karen Nirog Rahen | योग करें निरोग रहें।

Life Yoga for some time, keep everyone completely healthy, some important yoga postures, Surya Namaskar or Tadasana, Dhruvasana or Chakrasana, Sarvangasana or Halasana, Dhanurasana.

जीवन हमारा है अनमोल,
इसका नहीं है कोई तोल।
शिक्षित सुयोग्य होकर भी,
लापरवाही क्यूं करते सभी।

व्यस्त चर्या में सब है मगन,
रोग का सब दे रहे समन।

यदि काया निरोग रखना है,
तो डेली वेज योग करना है।
अपने लिए वक्त निकालिए,
जीवन स्वास्थ्यकर बनाइए।

कुछ समय का जीवन योग,
रखें सबको बिल्कुल निरोग।
योग के कुछ प्रमुख आसन,
सूर्य नमस्कार या ताड़ासन।

ध्रुवासन हो या हो चक्रासन,
सर्वांगासन हो या हलासन।

धनुरासन हो या भुजंगासन,
पद्मासन के संग वज्रासन।
हर आसन का अपना मोल,
धरा का बच्चा बच्चा बोल,
योग हमसब को करना है।

इसके छात्रछाया में रहना है,
अनुलोम विलोम प्राणायाम,
सबके लिए संजीवनी आम।

खुद जुड़े औरों को जोड़े,
योग से कभी मुंह न मोड़ें।
सब मिलकर आज ये कहे,
डेली योग करें निरोग रहें।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि ने जीवन को अनमोल बताते हुए इसकी कीमत को समझाया है। शिक्षित और सुयोग्य होने के बावजूद लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहते हैं। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद, स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। कवि ने सुझाव दिया है कि यदि हम अपनी काया को निरोग रखना चाहते हैं, तो हमें रोजाना योग का अभ्यास करना चाहिए। योग के लिए समय निकालना और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए ताकि जीवन स्वस्थ और निरोगी बना रहे। कवि ने कुछ प्रमुख योग आसनों का उल्लेख किया है जैसे सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, ध्रुवासन, चक्रासन, सर्वांगासन, हलासन, धनुरासन, भुजंगासन, पद्मासन और वज्रासन। हर आसन का अपना महत्व है और वे शरीर को निरोगी बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, अनुलोम विलोम प्राणायाम को भी सभी के लिए संजीवनी के रूप में वर्णित किया गया है। कवि ने यह संदेश दिया है कि हमें न केवल खुद योग से जुड़ना चाहिए, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। अंत में, कवि सबको मिलकर यह संकल्प लेने के लिए प्रेरित करता है कि “हम नियमित रूप से योग करें और निरोग रहें।”

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यह कविता (योग करें निरोग रहें।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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बेबस शिक्षक।

Kmsraj51 की कलम से…..

Bebas Shikshak | बेबस शिक्षक।

studied with great care, Without sleep, without yawning.

बड़े जतन से की पढ़ाई,
बिना नींद बिन जम्हाई।
बड़े शौक थे देंगे ज्ञान,
बढ़ेगा मान और सम्मान।

यही सोच ले भरी उड़ान,
मिली शिक्षा की कमान।
बन गया शिक्षक महान,
न रहा खुशी का ठिकान।

मिली जिम्मेदारी से हुआ रत,
बच्चों की पढ़ाई में हुआ मस्त।
सोचा था शिक्षा का करूंगा दान,
परिवार पर भी रखूंगा ध्यान।

बच्चों को मिले बेहतर शिक्षा बनाया लक्ष्य,
ईमानदारी से किए काम का मिला साक्ष्य।
काम से खुश एवम् संतुष्ट था,
काफी समय गुजर गया था।

अचानक शिक्षा विभाग में,
हुआ आमूलचूल परिवर्तन।
छात्र हित के नाम पर,
शिक्षक के काम पर।

शुरू हुई धमाचौकरी,
कठिन हुई अब नौकरी।
न होली, छठ न ही दिवाली,
सभी त्योहार अब खाली-खाली।

घर छूटा अपने छूटे, छूट गया समाज,
जीना दुर्लभ हो गया आज।
छात्र सह शिक्षक हो रहे बेरंग,
पढ़ाई तभी होगी जब होंगे संग।

आदेशालोक में पर्व त्योहार की छुट्टी हुई रद्द,
छुट्टी में भी शिक्षक स्कूल पहुंचे पढ़ाने गद्द।
जब बच्चे नहीं आयेंगे स्कूल,
शिक्षक क्या करेंगे जाकर स्कूल।

पढ़ाई लगातार हो अच्छी बात है,
रुचिकर हो ये गुणवत्तापूर्ण बात है।
कम समय में बेहतर ज्ञान,
होना चाहिए इसका भान।

पर्व त्योहार भी पढ़ाई का ही है पार्ट,
खुशनुमा माहौल में पढ़ाना भी है आर्ट।

जबर्दस्ती जब मुंह में न जाता खाना,
कैसे मिलेगा ज्ञान का खजाना।
नौकरी में ना कभी करना नहीं,
बेबस शिक्षक हूं कुछ कहना नहीं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता शिक्षक के जीवन की एक दृष्टि प्रस्तुत करती है। शिक्षक ने अपने काम में समर्पित बलिदान दिया, लेकिन अचानक शिक्षा विभाग में परिवर्तन हो गया और उन्हें धमाचौकी झेलनी पड़ी। इसके बाद, उनकी जिंदगी में कई बदलाव आए, जैसे कि त्योहारों की छुट्टियों का रद्द होना और नौकरी की प्रतिस्पर्धा। फिर भी, उन्होंने पढ़ाई को महत्व दिया और अपने छात्रों की शिक्षा में समर्पित रहा। वे यह सिखाते हैं कि पढ़ाई केवल किताबों से ही नहीं, बल्कि प्रसन्नता और रुचि के साथ भी होती है। शिक्षक की भूमिका इस कविता में उजागर की गई है, जो समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण होती है।

—————

यह कविता (बेबस शिक्षक।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आओ गांधीगिरी अपनाएं।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aao Gandhigiri Apnaye | आओ गांधीगिरी अपनाएं।

Evil could not touch him, could not stop his path. While walking on the path of action, do not step back from struggles.

आज 2 अक्तूबर का शुभ दिन आया,
गांधी जी की है याद कराया।
सत्य अहिंसा जिनको भाया,
जिसने अंग्रेजो के छक्के छुड़ाया।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

तन पे धोती हाथों में लाठी,
देश का जन-जन उनका सहपाठी।
न लाठी न बंदूक, फिर भी काम दुरुस्त,
गोरे के सारे षडयंत्र उनके सामने सुस्त।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

बुराई जिसे छू न सका,
राह उनकी न रोक सका।
कर्म पथ पर चलते सही,
संघर्षों से पीछे हटे नहीं।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

अहिंसा के बनकर पुजारी,
अंग्रेजों के भागने की आई बारी।
सोने की चिड़ियां हुई आजाद,
ये आजादी रहेगा सबको याद।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

चट्टानों सा अविचल, करते काम शुरू,
देश को राह दिखाये जैसे गुरु।
उनके सिद्धांतों ने दिलाया मान,
राष्ट्र को मिला खोया सम्मान।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

बापू ने जो सपना था देखा,
सत्य अहिंसा जिनका सखा।
बापू की धार न हो बेकार,
आओ मिलकर इसे करें साकार।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

गांधी एक नाम नहीं विचार है,
इन्हें अपनाने का चलो करते प्रयास है।
जो हो न सके गोली बंदूक से,
वो होगा सत्य अहिंसा के जोर से।
स्वतंत्रता तो सबको भाएं,
आओ गांधीगिरी अपनाएं।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में गांधी जी की के महत्वपूर्ण सिद्धांतों और उनके स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को महत्वपूर्ण रूप से प्रमोट किया गया है। कविता में सत्य और अहिंसा के महत्व, गांधी जी के संघर्ष और उनके महत्वपूर्ण भूमिका का स्मरण किया गया है। इसके साथ ही, लोगों से गांधीगिरी को अपनाने की प्रेरणा दी गई है, ताकि वे सत्य और अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता पूर्वक हर दिशा में अच्छे से काम कर सकें।

—————

यह कविता (आओ गांधीगिरी अपनाएं।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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बेटी है वरदान।

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Beti Hai Vardan | बेटी है वरदान।

a girl can do everything and be strong through pain and still smile.

बेटी है वरदान,
करें न इनका अपमान।
बेटी होती सबसे खास,
छीना जाता क्यूं इनकी सांस।

कुदरत का अनमोल रतन,
जीवन देने का करो जतन।
दुनियां की दौलत उसने पाई,
जिसके घर बेटी है आई।

घर की रौनक होती बेटी,
हर बगिया महकाती बेटी।
मान सम्मान दिलाती बेटी,
त्याग और बलिदान की मूरत होती।

मुश्किल घड़ी में साथ निभाती,
कभी नहीं वो घबड़ाती।
चंचलता से वो भरी पड़ी,
विकट पल में भी रहती खड़ी।

लक्ष्मी का वो होती रूप,
समय देख हो जाती चुप।
21 वीं सदी की नई सोंच,
बेटा बेटी में न कोई खोंच।

बेटा-बेटी जब एक समान,
क्यूं न करें इनपर अभिमान।

इनके पक्के इरादे का जोड़ नहीं,
हिला दे इन्हें ऐसा कोई तोड़ नहीं।
बेटी ही मान, बेटी ही सम्मान,
बेटी है कुदरत का अनूठा वरदान।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में बेटियों के महत्व को बताया गया है। यह कविता बेटी को वरदान मानने की बात करती है और बेटियों का कभी भी अपमान न करने की बात कही गई है। बेटी विशेष होती है और वही घर की रौशनी, दौलत, और समाज में मान-सम्मान का प्रतीक होती है। उनके त्याग और समर्पण को महत्वपूर्ण माना गया है और उन्हें समर्थन और सुरक्षा देना जरूरी है। बेटियाँ लक्ष्मी के रूप में होती हैं और उनके साथ अच्छे से बात व व्यवहार करने की नई सोच की आवश्यकता है, जिसमें बेटा और बेटी को समान दृष्टिकोण से देखा जाता है।

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यह कविता (बेटी है वरदान।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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  • पर्यावरण का नुकसान।
  • देश भक्ति देख तुम्हारी।
  • दर्द – ए – कश्मीर।
  • ऑपरेशन सिंदूर।
  • संघर्ष है कहानी हर जीवन की।
  • हमारा क्या कसूर।
  • टूटता विश्वास।
  • मोबाइल फोन का असर।
  • चाह नव वर्ष की।
  • व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है।
  • माँ बाप।
  • सास बहू।

KMSRAJ51: Motivational Speaker

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मां ने छोड़ी अन्तिम सांसें।

कुदरत का कहर तो बरपेगा।

समझो बरसात लगी है आने।

पिता।

ये कैसी यात्रा।

पर्यावरण का नुकसान।

देश भक्ति देख तुम्हारी।

दर्द – ए – कश्मीर।

ऑपरेशन सिंदूर।

संघर्ष है कहानी हर जीवन की।

हमारा क्या कसूर।

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