Kmsraj51 की कलम से…..
Krishna Leela | कृष्ण लीला।
कैसे – कैसे लीला रचाता है,
नटखट कान्हा देखो कैसे मुस्कुराता है।
पैरों में घुंघरू बांध देखो कैसे इतराता है,
गोपियों को देखो कैसे,
प्यारी – प्यारी मुरली सुनाता है।
मुरली की धुन पर देखो,
गोपियों को कैसे-कैसे नचाता है।
सिर पर देखो कैसे,
प्यारा सा मोर पंख लगाता है।
दूध दही का इतना दीवाना,
देखो कैसे-कैसे मटकी फोड़ने आता है।
वृंदावन की गलियां देखो,
कैसे – कैसे अपने भक्तों का मन बहलाता है।
अपने मैया से करता है इतना प्यार,
उसकी डांट खाने से देखो,
बिल्कुल भी नहीं घबराता है।
नटखट कान्हा देखो,
कैसे – कैसे अपनी लीला रचाता है।
गोवर्धन पर्वत को देखो कैसे,
अपनी उंगली पर उठाता है।
अपनी बाल लीला से देखो,
कैसे पूतना को हराता है।
देखो इस संसार में कैसे
अपनी लीला रचाता है।
कंस मामा का वध करके,
देखो सारे लोगों को कैसे,
उसके अत्याचारों से बचाता है।
अर्जुन का सारथी बन के,
देखो कैसे महाभारत के,
युद्ध में कौरवों को हराता है।
कैसे-कैसे देखो दुनिया को,
गीता का उपदेश पढाता है।
कृष्ण कन्हैया देखो,
कैसे-कैसे अपनी लीला रचाता है।
आज सारा जग देखो कैसे,
जन्माष्टमी धूमधाम से मानता है।
♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कविता में कान्हा (श्रीकृष्ण) की बाल लीलाओं के वर्णन के साथ, उनके भक्ति और लोगों के प्रति उनकी अनुराग भावना को प्रकट करते हुए लिखा गया है। कान्हा के अद्भुत और मनमोहक व्यवहार का चित्रण किया गया है, जो उनके भक्तों को खुशी और प्रेम में लिपटा देता है। काव्य में उनकी आलोकिक शक्तियों और लीलाओं का अद्वितीय चित्रण किया गया है, जिससे उनका दिव्य और भगवान के रूप में अवतरण का महत्व प्रकट होता है। इसके अलावा, काव्य में भक्ति, प्रेम, और धार्मिक संदेश को भी दर्शाया गया है, जिससे यह कविता भगवान के जन्म दिन (जन्माष्टमी) के उपलक्ष्य में धूमधाम से मनाने की भावना को प्रकट करती है।
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यह कविता (कृष्ण लीला।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।
- रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
- लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
- लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
- प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
- पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
- सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
- कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
- काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
- व्यास गौरव सम्मान — 2022
- रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
- शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
- विशेष — 17 बार रक्तदान।
- देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
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