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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

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You are here: Home / Archives for वेदस्मृति ‘कृती’

वेदस्मृति ‘कृती’

नारी : सृष्टि की फुलवारी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नारी : सृष्टि की फुलवारी। ♦

सृजनकर्ता का अनुपम उपहार है नारी,
नारी ही तो है सृष्टि की फुलवारी।

नीरव भीतों को नारी ही तो घर बनाती है,
गृहलक्ष्मी जब तुलसी में दीप जलाती है।

द्वारे पर जब नारी रंग रँगोली के बिखराती है,
प्रसन्न हो माता लक्ष्मी स्वयं चली आती है।

जहाँ सम्मान घर की लक्ष्मी का नहीं होता,
किसी देवता का वहाँ वास नहीं होता।

नारी ही सृष्टि में बाल फूल खिलाती है,
प्रगति की राहों से बाधा शूल हटाती है।

सावित्री सी डट जाये तो यम पर भी भारी है,
सुहाग लौटाने की सुनी यम की लाचारी है।

मान करोगे नारी का तो सौ भूल भुला देगी,
वरना त्रि-देवों को भी झूले में झुला देगी।

प्रकृति रूप है नारी का वरना बंजर धरा सारी है,
नारी है तो सृष्टि है नारी सृष्टि की फुलवारी है।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — नारी का सम्मान करोगे तो वह भी तुम्हारा सम्मान करेगी, नारी घर की लक्ष्मी है। यह जरूरी है कि हम स्वयं को और अपनी शक्तियों को समझें। जब कई कार्य एक समय पर करने की बात आती है तो महिलाओं को कोई नहीं पछाड़ सकता। यह उनकी शक्ति है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। में समाज में ही नहीं, बल्कि परिवार के भीतर भी महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव को रोकना होगा। महिलाओं को खुद से जुड़े फैसले लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए – सही मायने में हम तभी नारी सशक्तिकरण को सार्थक कर सकते हैं। नारी सशक्तिकरण में आर्थिक स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चाहे वो शोध से जुड़ी गतिविधियां हों या फिर शिक्षा क्षेत्र, महिलाएं काफी अच्छा काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।

—————

यह कविता (नारी : सृष्टि की फुलवारी।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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जगमग जगमग दीप जले।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जगमग जगमग दीप जले। ♦

जगमग जगमग दीप जले।
अब न कहीं अंधियार पले।

पुन: अयोध्या आए राम,
बनी अयोध्या तीरथ धाम।
मुदित मगन सब धावत आए,
जिव्हा पे सबकी एक ही नाम।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

आ गए राघव मिली खबरिया,
सज गई सारी अवध नगरिया।
राम दरस पावे की ख़ातिर,
चढ़ गए सारे महल अटरिया।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

गुरु, माता सब नगर के वासी,
केवल दर्शन के अभिलाषी।
सारे दुख सब संताप मिटे,
डालें कृपादृष्टि अविनाशी।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दिन अमावस प्रकाश सवेरा,
सघन तिमिर दीपों का डेरा।
हर मुँडेर पे दीपमालिका,
हो न पाया तम का बसेरा।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दिवस आज का बहुत पुनीत,
हुई थी सच की झूँठ पर जीत।
मिला राम को राज अवध का,
नगर सुसज्जित, मंगल गीत।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

दीपोत्सव का पर्व है प्यारा,
पाँच दिवस का उत्सव न्यारा।
हर द्वारे पर नेह प्रेम का,
प्रेषित मंगलदीप हमारा।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

हर घर में आए ख़ुशहाली,
गूँजे बच्चों की किलकारी।
माता लक्ष्मी की मिले कृपा,
सबकी सुन्दर हो दीवाली।

जगमग जगमग दीप जले,
अब न कहीं अंधियार पले।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — श्री राम जी के अयोध्या लौटकर आने पर पुनः अयोध्या वासियों का खुशी का कोई ठिकाना नहीं। इस मधुर ख़ुशी के उपलक्ष में अयोध्या वासी दीप जलाकर दीपावली प्रकाश पर्व मनाया। पूरी अयोध्या जगमग जगमग दीप से जल उठे, चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश फैल गया। हर घर में आए ख़ुशहाली, गूँजे बच्चों की किलकारी। माता लक्ष्मी जी की मिले कृपा सभी को सबकी सुन्दर हो दीवाली। सभी ख़ुशी में मंगल गीत गाए।

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यह कविता (जगमग जगमग दीप जले।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
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करवा चौथ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ करवा चौथ। ♦

भले सारी दुनिया के लिए आम हूँ मैं,
मगर कोई है जिसके लिए ख़ास हूँ मैं।
लगाई है मेंहदी उनके नाम की आज मैंने,
जिनकी धड़कनों में बसा अहसास हूँ मैं।

मेरा दिन भर भूखे रहना उनके लिए सजा है,
किन्तु मेरे लिए इस भूख का अपना मज़ा है।
ये मेरे निश्चल प्रेम की अभिव्यक्ति का है ढंग,
इसलिए मेरी रजा में ही शामिल उनकी रजा है।

मेरा दिन भर कुछ न खाना – पीना भाता नहीं उन्हें,
अपने तर्कों से बार – बार व्रत की समीक्षा वो करते हैं।
शाम ढलते ही टकटकी लगाकर देखते हैं आसमान को,
मुझसे ज़्यादा आतुरता से चाँद की प्रतीक्षा वो करते हैं।

सुहागिनों के गजरे को छूकर बयार महक जाती है,
देख सँवरी सजनी सजना की तबियत बहक जाती है।
चूड़ी खनके, पायल छनके, माथे पर दमके बिंदिया,
पंछी सम कलरव कर सनम की चाहत चहक जाती है।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस मुक्तक/कविता में समझाने की कोशिश की है — पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते को और अधिक मजबूती देने वाले पर्व करवा चौथ के बारे में विस्तार से बताया है। तेरी चंद्र कलाओं से भी सुंदर, सजने का इनका सलीका होगा। चाँद और नारी के गुणों व पति के प्यार संग सोलह श्रृंगार का सुंदर मधुर वर्णन किया है। पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते है इसलिए संगनी का आधार, पिया का गुरुर, बनाता संबंध मजबूत। एक दूसरे का कर सम्मान, अर्धनारीश्वर यही कराता भान, जीवन संगनी के प्यार से संघर्षमय जीवन, हो जाता आसान। सुहागिनों के गजरे को छूकर बयार महक जाती है, देख सँवरी सजनी सजना की तबियत बहक जाती है।

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यह मुक्तक/कविता (करवा चौथ।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
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माहिया छंद – माँ दुर्गा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माहिया छंद – माँ दुर्गा। ♦

— 1 —
पर्वत से आयेगी
माँ शेरों वाली
रहमत बरसायेगी।

— 2 —
घर – घर जयकारा हो,
माँ का उत्सव है
रौशन जग सारा हो।

— 3 —
दुःख सारे हर लेगी
संकट हरणी माँ
अब झोली भर देगी।

— 4 —
जब चूनर लहरायी
समझ गये सारे
माँ आयी … माँ आयी।

— 5 —
दुर्गा अम्बे काली,
हे माँ जगदम्बे
हर ले विपदा सारी।

— 6 —
करते हैं हम वन्दन,
जगदम्बे तेरा
हम माटी तुम चन्दन।

— 7 —
करती हूँ मैं विनती,
करुणाकर मैया
सुन लो सब के मन की।

— 8 —
मैया अब आ जाओ,
हलुआ पूड़ी का
तुम भोग लगा जाओ।

— 9 —
किरपा मिल जायेगी,
मैया जो चाहे
विपदा टल जायेगी।

— 10 —
सारे जग की मैया,
भक्त खड़े द्वारे
पार लगाओ नैया।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए —माँ दुर्गा का आह्वान किया है, दुःख सारे हर लेगी, संकट हरणी माँ अब झोली भर देगी। आओ हम सब मिलकर माँ दुर्गा का आह्वान करें। माता रानी हम सब के सब दुःख हर कर हमारी झोली खुशियों से भर दे। ॥ प्रेम से बोलो जय माता दी ॥

—————

यह माहिया छंद / कविता (माहिया छंद – माँ दुर्गा।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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मैं क्षत्राणी हूँ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मैं क्षत्राणी हूँ। ♦

महाभारत काल एवं सभी पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के अनेक पात्र ऐसे हैं जिनका योगदान उस काल की घटना विशेष में बहुत ही सराहनीय रहा है किन्तु उसका उतना उल्लेख नहीं हुआ जितना केंद्रीय पात्रों का।

ऐसी ही एक पात्र है महाभारत काल की हिडिम्बा, जिसने अपने इकलौते पुत्र की आहुति इस युद्ध में दे दी थी। आज की कहानी उस माँ को समर्पित है जिसके बलिदान की बदौलत अर्जुन की उस शस्त्र से रक्षा हुई जो युद्ध के परिणाम को बदल सकता था।

——•——

न जाने कब से मैं अपने कक्ष में उदास, व्यथित एवं निःसहाय बैठी हूँ किन्तु न ह्रदय की टीस कम हो रही है और न अश्रु थम रहे हैं। न अतीत की स्मृतियों की श्रृंखला ही रुक रही है।

अपने इकलौते पुत्र घटोत्कच की वीरगति का समाचार ह्रदय को शूल की तरह बींधे जा रहा है। न कोई मेरे दुःख को बांटने वाला है न अभी तक सांत्वना के दो शब्द ही मेरे हिस्से में आये हैं। संताप की अग्नि मुझे निरंतर दग्ध करती जा रही है।

सोचती हूँ कि जीवन में मुझे क्या मिला ? न जाने किस कर्म दोष के कारण मेरा राक्षस कुल में जन्म तो हुआ किन्तु राक्षसों की तामसिक वृत्तियों से मुझे कभी प्रीति नहीं रही। या यूँ भी कह सकते हैं की जन्म से दानवी हो कर भी मैं अपनी वृत्तियों से राक्षसी नहीं रही।

मुझे मनुष्यों का मांस और दानवों को प्रिय लगने वाली अनेक वस्तुएँ सदा अप्रिय रहीं। शायद एक मनुष्य के प्रति मेरा प्रेम और आकर्षण मेरी इन्हीं प्रवृत्तियों का परिणाम था। हिडिम्बा के मानस पटल पर अतीत साकार हो गया ………

क्या मैं कभी भूल सकती हूँ वह दिन, जब मेरे सहोदर ने मुझे एक मनुष्य को पकड़ कर लाने की आज्ञा मुझे दी थी और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं वन में गयी थी। वहाँ मैंने अति सुन्दर, पराक्रमी, बलवान मध्यम पाण्डव भीम को देखा और प्रथम दृष्टि में ही उनसे प्रेम कर बैठी।

इस प्रेम को पाने के लिए मुझे अपने कुल का कोप तथा बहिष्कार सहना पड़ा। इस त्याग के पश्चात् भी मुझे अपना प्यार अत्यन्त अल्प अवधि के लिए ही मिला। ‘ पुत्रवती होते ही आर्य पुत्र भीम को लौटा दूँगी ‘ ऐसा वचन मैंने माता कुंती को दिया था, जिसे पुत्र घटोत्कच के जन्म लेते ही मैंने पूर्ण निष्ठा से निभाया।

अब पुत्र घटोत्कच और आर्य पुत्र के प्रेम की स्मृतियाँ ही मेरे जीवन का एकमात्र सहारा थीं। समय का पहिया घूमता रहा और घटोत्कच युवा हो गया। बिल्कुल अपने पिता के समान ही तेजस्वी, निडर, पराक्रमी।

एक दिन अचानक पुत्र घटोत्कच के कारण ही मुझे आर्य पुत्र भीम के पुनः दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह बलि के लिए उन्हें ही पकड़ लाया। मैं इस कल्पना से भी कांप गयी और मुझे अनायास ही उन सभी बलि दिए गए मनुष्यों की याद हो आयी और इस विचार से ग्लानि हुई कि आज जैसे मैं आर्य पुत्र की बलि की कल्पना से भी कांप गयी उसी प्रकार उन पत्नियों, माताओं का जीवन कैसे बीत रहा होगा जिनकी हम लोगों ने अनुष्ठान के नाम पर बलि चढ़ा दी थी। उस दिन से मैंने जीवन भर कभी बलि न देने का निश्चय किया।

किन्तु इस घटना का एक अच्छा परिणाम ये रहा कि पिता और पुत्र का मिलन तो हुआ।

कुछ वर्षों के बाद महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेरे पुत्र ने जो पराक्रम दिखाया उसे देख सारे दिग्गज योद्धा दंग रह गये। मेरा मातृत्व, पालन पोषण गौरवान्वित हो उठा। आख़िर क्षत्राणियां और क्या किया करती हैं ? क्या मैंने भी वही सब कुछ नहीं किया ?

आर्य पुत्रियों के समान ही मैंने जीवन में केवल एक बार प्रेम किया। उस प्रेम को जीवन पर्यन्त निभाया पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। एक महा पराक्रमी वीर पुत्र को जन्म दिया। आवश्यकता पड़ने पर अपने एकमात्र पुत्र को युद्ध में प्रस्तुत कर देने में भी नहीं हिचकिचाई।

सोचते सोचते हिडिम्बा को पुनः अपने पुत्र की वीरगति का स्मरण हो आया और अपार हार्दिक वेदना से वह पुनः कराह उठी – ” हा घटोत्कच ! अब तुम्हारे बिना मैं कैसे जीवन यापन करुँगी ?

तुम्हारे वियोग से मुझे असहनीय वेदना हो रही है। क्या मेरे इस संताप और बलिदान की कभी कोई चर्चा होगी। नहीं, शायद कभी नहीं। भला राक्षस कुमारियाँ भी कहीं भविष्य में पढ़े जाने वाले इतिहास की नायिकाएं हुआ करती हैं ?

चर्चा हो या न हो, किन्तु मेरा हृदय और ईश्वर जानता है, कि जन्म से न सही किन्तु कर्म से मैं क्षत्राणी हूँ। हां, हां, हां, मैं क्षत्राणी हूँ। पुत्र घटोत्कच तुमने मेरे यहां जन्म
लेकर मेरा गौरव तो बढ़ाया ही है अपने पिता, पाण्डव कुल और वीरों का गौरव भी बढ़ाया है। .. कहते – कहते व्यथित हिडिम्बा पुनः सिसक उठी।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — घटोत्कच की माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान के बारे में बताया है। लोग माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान को भूल गए है। माता हिडिम्बा ने ख़ुशी – ख़ुशी अपने पुत्र घटोत्कच को धर्म युद्ध महाभारत में जाने का आदेश दे दिया।

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यह लेख (मैं क्षत्राणी हूँ।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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भ्रूण की पुकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ भ्रूण की पुकार। ♦

बहुत नन्हा, बहुत कोमल,
अजन्मा भ्रूण हूँ मैं माँ।
मगर एहसास हैं मुझमें,
बहुत पीड़ा हुई है माँ।

दवा जो ली अभी तुमने,
असर घातक लगा मुझको।
नुकीला सा अभी कुछ माँ,
सुई जैसा चुभा मुझको।

कहीं टुकड़े न हो जाएँ,
बचा लो माँ, बचा लो माँ!
सहूँ कैसे असह्य पीड़ा ?
बताओ माँ, बताओ माँ ?

अधूरे हैं अभी सपने,
अभी तो – प्यास है मुझमें।
अधूरी है, अभी – काया,
नहीं आकार है – इसमें।

स्पन्दन क्यों बने क्रन्दन,
न रोको श्वास मेरी, माँ।
सुनो विनती रुदन मेरा,
तुम्हीं हो आस, मेरी माँ।

बहुत नाज़ुक बहुत छोटा,
अजन्मा भ्रूण हूँ – मैं माँ।
चमन का मैं तुम्हारे ही,
अविकसित फूल हूँ मैं माँ।

नहीं, तुमको सताऊँगी,
मुझे दुनिया में आने दो।
तुम्हारे नाम का मुझको,
दिया बन जगमगाने दो।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — बेटियां शक्ति, प्रेम, करुणा, ममता की वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती, फूल सी महकती मुस्कुराती, राजकुमारी सबकी प्यारी लाड़ली – दुलारी, सबका सदैव ही ध्यान रखने वाली। ईश्वर द्वारा मानव जाती के लिए प्रदान की गई अनमोल शक्तिपुंज हैं। जो हर रूप में प्रेम और सहयोग के लिए तैयार रहती है। नहीं, तुमको सताऊँगी, मुझे दुनिया में आने दो। तुम्हारे नाम का मुझको, दिया बन जगमगाने दो। भ्रूण की पुकार।

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यह कविता (भ्रूण की पुकार।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

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बेटी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बेटी। ♦

नन्हें – नन्हें हाथों से अपने,
गालों को मेरे सहला देती है।
पल भर में मेरी भोली सी बेटी,
संतापित मन को बहला देती है।

खाना पकाने में उँगली जली मेरी,
माँ की तरह मुझे वो डाँटने लगी।
मासूम सी बेटी मेरी न जाने कब,
हर दर्द मेरा ‘ कृती ‘ बाँटने लगी।

न जाने कब बेटी इतनी बड़ी हो गई,
पहन के लाल जोड़ा आके खड़ी हो गई।
हुआ साकार बचपन यादों में उसका ‘कृती’
बहुत मुश्किल विदाई की ये घड़ी हो गई।

साज है बेटा तो गीत है बेटी।
सृष्टि में बिखरा संगीत है बेटी।

नन्ही कोंपल सी जब जन्मी वो,
सूना आँगन – गुलज़ार … हुआ।
आने से – उसके छाई रौनक़,
जैसे कोई फल जाए दुआ।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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समय का सदुपयोग।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ समय का सदुपयोग। ♦

पुनः प्रभातं पुनरेव शर्वरी पुनः
शशांकः पुनरुद्यते रविः।
कालस्य किं गच्छति याति यौवनं
तथापि लोकः कथितं न बुध्यते॥

फिर से प्रभात, फिर से रात्रि, फिर से चंद्र, और फिर से सूरज का उगना ! काल का क्या जाता है ? कुछ नहीं; यह तो यौवन जाता है, फिर भी लोग कहाँ समझते हैं? आज हम सभी यांत्रिक युग में जी रहे हैं।

आज हमारे पास ऐसे ऐसे यंत्र हैं जो वे सभी काम कुछ ही पलों में कर देते हैं जिन्हें करने में हमारी पूर्व पीढ़ी को लम्बा समय लगता था। आश्चर्य तो इस बात का है कि तब लोगों के पास व्यायाम से लेकर त्योहारों, रिश्तेदारों, परंपराओं इत्यादि के लिए पर्याप्त समय था।

आज जब यंत्रों की सहायता से चुटकियों में काम हो जाते हैं फिर भी लोग कहते हैं कि उनके पास किसी भी बात तक करने के लिये समय नहीं है।

किन्तु मुझे ऐसा कहना उचित नहीं प्रतीत होता। मैं इस बात को इस तरह कहूँगी कि आज लोगों के पास समय ही समय है किन्तु समय का सदुपयोग करने का विवेक नहीं है।

कहा जाता है कि कुदरत किसी के साथ पक्षपात नहीं करती। सबको कुदरत के उपहार समान रूप से मिले हैं जैसे कि जल, वायु, धूप इत्यादि। परन्तु हमारी पारिवारिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हमें ये प्राकृतिक उपहार भी कम या अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।

इस जगत में केवल #समय ही एक ऐसा अनमोल उपहार है जिसमें कोई पक्षपात नहीं। राजा हो या रंक सबके पास अपने निजी २४ घंटे।

ये भी सही है कि समय एक ऐसा विमान है जो बिना ईंधन के लगातार उड़ता है परन्तु अच्छी बात ये है कि इस विमान के पायलट हम हैं। पायलट जितना कुशल होगा उड़ान उतनी अच्छी होगी।

काल कोई सा भी हो प्राचीन या वर्तमान, जब-जब जिसने समय खोया वो अन्त में पछताया ही है। प्राचीन काल की कहानियों में प्रायः निकम्मे – परिश्रमी, शेखचिल्ली – आलसी पात्र होते थे वे उस समय के लोगों को समय का महत्व बताने के लिये ही रचे गये होंगे।

पुरातन काल से लेकर अब तक के किसी भी व्यक्तित्व के बारे में यदि नज़दीक से जानेंगे तो हर एक सार्थक, प्रेरक व्यक्तित्व में यह एक विशेष गुण अवश्य मिलेगा कि उनकी सफलता और ओज का कारण उनका समय प्रबंधन रहा है।

जिसने समय साध लिया उसने लोक, परलोक अपना जीवन, अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य लोगों का जीवन भी साध लिया।

इस विषय पर असीमित लिखा जा सकता है किन्तु अन्त में बस यही निवेदन करना चाहूँगी कि मित्रों ‘#समय अनमोल है’ ये किताबी बात नहीं है। आज़माया हुआ सत्य है। इसे व्यर्थ न गँवायें।

अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी: रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।

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यह आलेख (समय का सदुपयोग।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख/आलेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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पाहन से मुलाकात।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पाहन से मुलाकात। ♦

एक दिन एक पाहन से
हुई थी मुलाक़ात।
उसने कहीं उस दिन,
मुझसे अपने मन की बात।
पूछा उसने मुझसे…
कुछ नाराज़गी से —

“क्यों करते हो तुलना हमारी
तुम कठोर हृदय मनुज से ?”

ये अपमान है हमारा
मेरी समझ से,
क्योंकि —
हम तो संगीत के राग
से ही पिघल जाते हैं।
कोई तराश दे तो,
मूर्ति में ढल जाते हैं।

हम दिखते हैं कठोर,
किन्तु मन में नहीं चोर।
दुर्ग और भवनों में,
आलीशान इमारतों में,
मेरे पारिवारिक सदस्य
जड़ें है कई गुम्बदों में।

सुनी हैं मैंने सच्ची दास्तानें,
मनुष्य की कुटिलता की।
दौलत, सत्ता के लोभ,
अपनों के कत्ल और क्रूरता की।

पाषाण नहीं करते ऐसा,
फिर हम पर ये आरोप कैसा ?

तुम्हारे ह्रदय जितने कठोर नहीं हैं हम।
घाती, कपटी, कुटिल चोर नहीं हैं हम।
देखो, सुनो जाकर अपने टी वी पर,
कैसे मनुज की वजह से मनुज मर रहा है।
मेरा ह्रदय तोसे कहते हुए भी पिघल रहा है।

और भी बहुत कुछ कहा उसने,
एक पत्थर ने सामने मेरे …
कटु सच का पुलिन्दा रख दिया।
और किस कदर मनुष्य होने पर
मुझे शर्मिंदा कर दिया।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की हैं — पत्थर का उदाहरण देकर बताया है की आजकल के पत्थर दिल मनुष्य से तो लाख गुना अच्छा पत्थर है। सुनी हैं मैंने सच्ची दास्तानें मनुष्य की कुटिलता की। दौलत, सत्ता के लोभ, अपनों के कत्ल और क्रूरता की। पाषाण नहीं करते ऐसा, फिर हम पर ये आरोप कैसा ?

—————

यह कविता(पाहन से मुलाकात।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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Filed Under: 2021-KMSRAJ51 की कलम से, वेदस्मृति ‘कृती’ जी की कविताये।, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: कवितायें, कवितायें हिन्दी में, पाहन से मुलाकात।, वेदस्मृति ‘कृती’, वेदस्मृति ‘कृती’ जी की कविताये, हिंदी कविता, हिन्दी साहित्य, हिन्दी-कविता

मेरा ईश्वर से विश्वास उठने ही लगा था कि।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मेरा ईश्वर से विश्वास उठने ही लगा था कि। ♦

बचपन से सुनती आयी हूँ कि –
पत्ता भी नहीं हिलता ‘उसकी ‘ ( प्रभु की )
मर्ज़ी के बिना ….
फिर भी इंसान रह नहीं पाता अपनी
ख़ुदगर्ज़ी के बिना…
वर्तमान दौर में ये अटूट विश्वास
हिलने लगा था।

‘रब’ है ही नहीं, ऐसा ही लगने लगा था।
सारे मीडिया यंत्र दहाड़ रहे हैं,
मृत्यु के मंजर पर गला फाड़ रहे हैं।

अब लोग ईश्वर की मर्ज़ी से
या आयु पूरी होने पर नहीं मरते।
ईश्वर उनके प्राण नहीं हरते।
अब तो ख़ुदा कोई नया आ गया है,
जिसे विप्लव मौत का बहुत भा गया है।

ये भी सुना था और पढ़ा था बचपन से:
‘हर सौ वर्ष में एक महामारी फैलती है धरा पर-
जो निगल लेती है असंख्य ज़िंदगियाँ’।
और वसुन्धरा का हरापन –
जैसे चेचक, हैज़ा, टीबी इत्यादि।

कुछ अतीत की हैं महामारियाँ,
सभी प्राणघातक बीमारियाँ –
असंख्य जानें चली जातीं थीं।
फिर टीके बनते थे,
जो बच जाते थे उनको लगते थे।

फिर से वही दौर आ गया है-
फ़र्क़ ये है कि पहले टी वी नाम का
मूर्ख बक्सा नहीं था – इसलिए
जिन्हें वो रोग हो गया वे रोग से मर जाते थे।

कम से कम बाक़ी अफ़वाहों और भय से,
से बच कर सुरक्षित रह जाते थे।

जनसंख्या हज़ारों में थी – सैंकड़ों मरते थे।
जब जनसंख्या लाखों में हो गयी तो हज़ारों मर गये।
अब करोड़ों में है तो लाखों मर रहे हैं,
पर अब आविष्कारों के दुरुपयोग से।

रोगी रोग से और निरोगी रोग के भय,
से मर रहे हैं/ जो बचे हैं वो भी डर रहे हैं।
ईश्वर की भूमिका तो समाप्त हो चली है।
नये ईश्वर से अब ये सौग़ात ए मौत मिली है।

अब सबकी मृत्यु का ज़िम्मेदार या तो ‘प्रभु
कोरोना’ है या फिर देवी असुविधाएं या देवी दुर्व्यवस्थाएँ।

न उम्र न कोई अन्य रोग न लापरवाही,
कुछ बुद्धिजीवी यही चर्चा रोज़ कर लेते हैं।
एक दूसरे को चिन्ता की डोज़ दे कर,
कुछ देर सरकारों को कोस लेते हैं।

संवेदनशीलता दिखाने का सबसे सरल,
और टिकाऊ तरीक़ा है बुद्धिविलास।
और फिर सामर्थ्य अनुसार वाणी विलास,
बहुत से गुरू, शिक्षक सकारात्मक ज्ञान देते हैं।

गिलास आधा ख़ाली है के स्थान पर गिलास,
आधा भरा है ऐसा कहना सिखलाते हैं।

ताकि सकारात्मकता आये,
तो समाचार- कोविड से इतने **** मर गये ,
इसके स्थान पर इतने ***** बच गये।
क्यों नहीं कह सकते ?

अर्थात् गिलास आधा भरा है ये क्यों नहीं कह सकते ?
आख़िर बचने वाले मरने वालों से तो ज़्यादा हैं न।

ये भी कहेंगे- पर अभी नहीं-
कोविड ख़त्म होने के बाद अपने भाषणों में,
हाई – फ़ाई होटल के कमरों में ‘मोटिवेशनल स्पीच’ में
ये दौर जब चला जायेगा-

तब सकारात्मक संदेशों के वृक्ष पर,
उदाहरणों का बौर आयेगा।
जिनका स्रोत इस नकारात्मकता से ही तो आयेगा।
तब ये सबको बहुत भायेगा।

ख़ैर – मुझे इस राजनीति में नहीं पड़ना,
बस भरोसा भगवान पर कैसे लौटा ये है कहना।
तो – मुझे भी लगने लगा था कि
ईश्वर नाम की कोई सत्ता नहीं है अब।

पड़ोस के एक वृद्ध के बारे में पता चला तब,
कि वे क़रीब एक साल से मृत्यु की गोद में पल रहे हैं –
और अभी तक यमराज को छल रहे हैं-
आयु अस्सी के आसपास है।

प्राणघातक रोग से ग्रस्त हैं,
घर के लोग भी अब उनसे त्रस्त हैं।

कोरोना पॉजिटिव भी हो गये थे,
अपने आप नेगेटिव भी हो गये।
हॉस्पिटल वो जा नहीं सकते,
डॉ ० घर पर आ नहीं सकते।

जाँच रिपोर्ट के अनुसार उन्हें न दवा
बचा सकती है न दुआ।
पर वो अब तक बचे हुए हैं।
परिवार पर बोझ से लदे हुए हैं।
अपनों की ही ज़िल्लत सह रहे हैं।

जिन्हें खिलाया था गोद में वही,
‘कब मरेंगे ‘ मुँह पर कह रहे हैं।

ये बात मैंने अपनी एक मित्र को बतायी,
उसने भी मुझे एक ऐसी ही घटना बतायी।
धीरे – धीरे मुझे ऐसे बहुत से लोग मिले,
जो अनेकों रोगों से थे घिरे।

महीनों से कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर थे गिरे-
पर प्रभु कोविड भी कुछ न कर सके।
तब कहीं जा कर मेरा खोया विश्वास लौट आया।
और फिर मैंने ईश्वर की मर्ज़ी को सर नवाया 🙏🏼
ईश्वर की सत्ता पर भरोसा जताया।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की हैं – कोरोना महामारी के आने से कैसे इंसानी जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। कैसे इंसान के अंदर से इंसानियत खत्म हो गया। कोई भी किसी की भी मदद नहीं कर रहा है। रोगी रोग से और निरोगी रोग के भय से मर रहे हैं, जो बचे हैं वो भी डर रहे हैं।

—————

यह कविता/आर्टिकल (मेरा ईश्वर से विश्वास उठने ही लगा था कि।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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