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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for author Vedsmriti ‘Kritee’

author Vedsmriti ‘Kritee’

करवा चौथ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ करवा चौथ। ♦

भले सारी दुनिया के लिए आम हूँ मैं,
मगर कोई है जिसके लिए ख़ास हूँ मैं।
लगाई है मेंहदी उनके नाम की आज मैंने,
जिनकी धड़कनों में बसा अहसास हूँ मैं।

मेरा दिन भर भूखे रहना उनके लिए सजा है,
किन्तु मेरे लिए इस भूख का अपना मज़ा है।
ये मेरे निश्चल प्रेम की अभिव्यक्ति का है ढंग,
इसलिए मेरी रजा में ही शामिल उनकी रजा है।

मेरा दिन भर कुछ न खाना – पीना भाता नहीं उन्हें,
अपने तर्कों से बार – बार व्रत की समीक्षा वो करते हैं।
शाम ढलते ही टकटकी लगाकर देखते हैं आसमान को,
मुझसे ज़्यादा आतुरता से चाँद की प्रतीक्षा वो करते हैं।

सुहागिनों के गजरे को छूकर बयार महक जाती है,
देख सँवरी सजनी सजना की तबियत बहक जाती है।
चूड़ी खनके, पायल छनके, माथे पर दमके बिंदिया,
पंछी सम कलरव कर सनम की चाहत चहक जाती है।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस मुक्तक/कविता में समझाने की कोशिश की है — पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते को और अधिक मजबूती देने वाले पर्व करवा चौथ के बारे में विस्तार से बताया है। तेरी चंद्र कलाओं से भी सुंदर, सजने का इनका सलीका होगा। चाँद और नारी के गुणों व पति के प्यार संग सोलह श्रृंगार का सुंदर मधुर वर्णन किया है। पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते है इसलिए संगनी का आधार, पिया का गुरुर, बनाता संबंध मजबूत। एक दूसरे का कर सम्मान, अर्धनारीश्वर यही कराता भान, जीवन संगनी के प्यार से संघर्षमय जीवन, हो जाता आसान। सुहागिनों के गजरे को छूकर बयार महक जाती है, देख सँवरी सजनी सजना की तबियत बहक जाती है।

—————

यह मुक्तक/कविता (करवा चौथ।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी मुक्तक/कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

—————

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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माँ दुर्गा और बेटियां।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ दुर्गा और बेटियां। ♦

आया नवरात्री का त्योहार,
फिर सजा अम्बे का दरबार।
देख बिलखती बेटियाँ, एक,
नैन से नीर बहा दूजे से अंगार।

करुण स्वर में करती पुकार,
आयी एक बेटी माँ के द्वार।
बोली मत भेजो मुझे धरा पर,
कर दो मुझ पे ये उपकार।

दंश गिद्ध का सहूँ मैं कैसे ?
दानव जग में रहूँ मैं कैसे ?
बर्बरता की कथा शब्दों में,
बोलो माँ कहूँ मैं कैसे ?

या तुम रहो मम सह,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः।
सुन कर पुत्री की करूँ कथा,
शेरा वाली ने उस से कहा…

—•—

चूड़ियाँ उतार कर शक्ति का आवाह्न कर ,
अंतस में झाँक अब स्वयं की पहचान कर।

मदद को पुकार नहीं शक्ति रूप धार तू ,
सभी दानवों का अब स्वयं कर संहार तू।

हर शुम्भ निशुम्भ की बन के काल सर्पिणी,
ले त्रिशूल हाथ में तू है शक्ति रूपिणी।

न दिखा स्व वेदना अब सिंह सी हुंकार भर,
जगा शक्ति रूप को फिर प्रचंड प्रहार कर।

धड़ से अब कर अलग वहशियों के भाल को,
दुर्योधनों के रक्त से धरा अब लाल हो।

महिषमर्दिनी सम अब तेरी ललकार हो,
दरिन्दों के रक्त से अब भारती का श्रृंगार हो।

जो तुझे मान दे उसे नेह नीर दे,
जो तुझे पीर दे अंग उसके चीर दे।

असुरों का नाश कर अपने प्रखर ओज से,
वसुधा भी मुक्त हो पापियों के बोझ से।

त्राहि माम त्राहि माम कहें रक्तबीज सब,
देखें तुझे सुसज्जित आयुधों के संग जब।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — सुन कर पुत्री की करूँ कथा, शेरा वाली ने उस से कहा… अब ना सहो तुम अत्याचार, शक्ति रूप धारण कर सभी दानवों का अब स्वयं कर संहार तू। हर शुम्भ निशुम्भ (दानव प्रवृती के लोग) की बन के काल सर्पिणी, ले त्रिशूल हाथ में तू कर संहार तू है शक्ति रूपिणी तू। ना अपने को अबला समझ, रोने की जगह, अब सिंह सी हुंकार भर, जगा शक्ति रूप को फिर प्रचंड प्रहार कर, सभी दानवों का अब स्वयं कर संहार तू। ॥ प्रेम से बोलो जय माता दी ॥

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यह कविता (माँ दुर्गा और बेटियां।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

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माहिया छंद – माँ दुर्गा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माहिया छंद – माँ दुर्गा। ♦

— 1 —
पर्वत से आयेगी
माँ शेरों वाली
रहमत बरसायेगी।

— 2 —
घर – घर जयकारा हो,
माँ का उत्सव है
रौशन जग सारा हो।

— 3 —
दुःख सारे हर लेगी
संकट हरणी माँ
अब झोली भर देगी।

— 4 —
जब चूनर लहरायी
समझ गये सारे
माँ आयी … माँ आयी।

— 5 —
दुर्गा अम्बे काली,
हे माँ जगदम्बे
हर ले विपदा सारी।

— 6 —
करते हैं हम वन्दन,
जगदम्बे तेरा
हम माटी तुम चन्दन।

— 7 —
करती हूँ मैं विनती,
करुणाकर मैया
सुन लो सब के मन की।

— 8 —
मैया अब आ जाओ,
हलुआ पूड़ी का
तुम भोग लगा जाओ।

— 9 —
किरपा मिल जायेगी,
मैया जो चाहे
विपदा टल जायेगी।

— 10 —
सारे जग की मैया,
भक्त खड़े द्वारे
पार लगाओ नैया।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए —माँ दुर्गा का आह्वान किया है, दुःख सारे हर लेगी, संकट हरणी माँ अब झोली भर देगी। आओ हम सब मिलकर माँ दुर्गा का आह्वान करें। माता रानी हम सब के सब दुःख हर कर हमारी झोली खुशियों से भर दे। ॥ प्रेम से बोलो जय माता दी ॥

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यह माहिया छंद / कविता (माहिया छंद – माँ दुर्गा।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
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लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

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प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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मैं क्षत्राणी हूँ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मैं क्षत्राणी हूँ। ♦

महाभारत काल एवं सभी पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के अनेक पात्र ऐसे हैं जिनका योगदान उस काल की घटना विशेष में बहुत ही सराहनीय रहा है किन्तु उसका उतना उल्लेख नहीं हुआ जितना केंद्रीय पात्रों का।

ऐसी ही एक पात्र है महाभारत काल की हिडिम्बा, जिसने अपने इकलौते पुत्र की आहुति इस युद्ध में दे दी थी। आज की कहानी उस माँ को समर्पित है जिसके बलिदान की बदौलत अर्जुन की उस शस्त्र से रक्षा हुई जो युद्ध के परिणाम को बदल सकता था।

——•——

न जाने कब से मैं अपने कक्ष में उदास, व्यथित एवं निःसहाय बैठी हूँ किन्तु न ह्रदय की टीस कम हो रही है और न अश्रु थम रहे हैं। न अतीत की स्मृतियों की श्रृंखला ही रुक रही है।

अपने इकलौते पुत्र घटोत्कच की वीरगति का समाचार ह्रदय को शूल की तरह बींधे जा रहा है। न कोई मेरे दुःख को बांटने वाला है न अभी तक सांत्वना के दो शब्द ही मेरे हिस्से में आये हैं। संताप की अग्नि मुझे निरंतर दग्ध करती जा रही है।

सोचती हूँ कि जीवन में मुझे क्या मिला ? न जाने किस कर्म दोष के कारण मेरा राक्षस कुल में जन्म तो हुआ किन्तु राक्षसों की तामसिक वृत्तियों से मुझे कभी प्रीति नहीं रही। या यूँ भी कह सकते हैं की जन्म से दानवी हो कर भी मैं अपनी वृत्तियों से राक्षसी नहीं रही।

मुझे मनुष्यों का मांस और दानवों को प्रिय लगने वाली अनेक वस्तुएँ सदा अप्रिय रहीं। शायद एक मनुष्य के प्रति मेरा प्रेम और आकर्षण मेरी इन्हीं प्रवृत्तियों का परिणाम था। हिडिम्बा के मानस पटल पर अतीत साकार हो गया ………

क्या मैं कभी भूल सकती हूँ वह दिन, जब मेरे सहोदर ने मुझे एक मनुष्य को पकड़ कर लाने की आज्ञा मुझे दी थी और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं वन में गयी थी। वहाँ मैंने अति सुन्दर, पराक्रमी, बलवान मध्यम पाण्डव भीम को देखा और प्रथम दृष्टि में ही उनसे प्रेम कर बैठी।

इस प्रेम को पाने के लिए मुझे अपने कुल का कोप तथा बहिष्कार सहना पड़ा। इस त्याग के पश्चात् भी मुझे अपना प्यार अत्यन्त अल्प अवधि के लिए ही मिला। ‘ पुत्रवती होते ही आर्य पुत्र भीम को लौटा दूँगी ‘ ऐसा वचन मैंने माता कुंती को दिया था, जिसे पुत्र घटोत्कच के जन्म लेते ही मैंने पूर्ण निष्ठा से निभाया।

अब पुत्र घटोत्कच और आर्य पुत्र के प्रेम की स्मृतियाँ ही मेरे जीवन का एकमात्र सहारा थीं। समय का पहिया घूमता रहा और घटोत्कच युवा हो गया। बिल्कुल अपने पिता के समान ही तेजस्वी, निडर, पराक्रमी।

एक दिन अचानक पुत्र घटोत्कच के कारण ही मुझे आर्य पुत्र भीम के पुनः दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह बलि के लिए उन्हें ही पकड़ लाया। मैं इस कल्पना से भी कांप गयी और मुझे अनायास ही उन सभी बलि दिए गए मनुष्यों की याद हो आयी और इस विचार से ग्लानि हुई कि आज जैसे मैं आर्य पुत्र की बलि की कल्पना से भी कांप गयी उसी प्रकार उन पत्नियों, माताओं का जीवन कैसे बीत रहा होगा जिनकी हम लोगों ने अनुष्ठान के नाम पर बलि चढ़ा दी थी। उस दिन से मैंने जीवन भर कभी बलि न देने का निश्चय किया।

किन्तु इस घटना का एक अच्छा परिणाम ये रहा कि पिता और पुत्र का मिलन तो हुआ।

कुछ वर्षों के बाद महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेरे पुत्र ने जो पराक्रम दिखाया उसे देख सारे दिग्गज योद्धा दंग रह गये। मेरा मातृत्व, पालन पोषण गौरवान्वित हो उठा। आख़िर क्षत्राणियां और क्या किया करती हैं ? क्या मैंने भी वही सब कुछ नहीं किया ?

आर्य पुत्रियों के समान ही मैंने जीवन में केवल एक बार प्रेम किया। उस प्रेम को जीवन पर्यन्त निभाया पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। एक महा पराक्रमी वीर पुत्र को जन्म दिया। आवश्यकता पड़ने पर अपने एकमात्र पुत्र को युद्ध में प्रस्तुत कर देने में भी नहीं हिचकिचाई।

सोचते सोचते हिडिम्बा को पुनः अपने पुत्र की वीरगति का स्मरण हो आया और अपार हार्दिक वेदना से वह पुनः कराह उठी – ” हा घटोत्कच ! अब तुम्हारे बिना मैं कैसे जीवन यापन करुँगी ?

तुम्हारे वियोग से मुझे असहनीय वेदना हो रही है। क्या मेरे इस संताप और बलिदान की कभी कोई चर्चा होगी। नहीं, शायद कभी नहीं। भला राक्षस कुमारियाँ भी कहीं भविष्य में पढ़े जाने वाले इतिहास की नायिकाएं हुआ करती हैं ?

चर्चा हो या न हो, किन्तु मेरा हृदय और ईश्वर जानता है, कि जन्म से न सही किन्तु कर्म से मैं क्षत्राणी हूँ। हां, हां, हां, मैं क्षत्राणी हूँ। पुत्र घटोत्कच तुमने मेरे यहां जन्म
लेकर मेरा गौरव तो बढ़ाया ही है अपने पिता, पाण्डव कुल और वीरों का गौरव भी बढ़ाया है। .. कहते – कहते व्यथित हिडिम्बा पुनः सिसक उठी।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — घटोत्कच की माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान के बारे में बताया है। लोग माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान को भूल गए है। माता हिडिम्बा ने ख़ुशी – ख़ुशी अपने पुत्र घटोत्कच को धर्म युद्ध महाभारत में जाने का आदेश दे दिया।

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यह लेख (मैं क्षत्राणी हूँ।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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भ्रूण की पुकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ भ्रूण की पुकार। ♦

बहुत नन्हा, बहुत कोमल,
अजन्मा भ्रूण हूँ मैं माँ।
मगर एहसास हैं मुझमें,
बहुत पीड़ा हुई है माँ।

दवा जो ली अभी तुमने,
असर घातक लगा मुझको।
नुकीला सा अभी कुछ माँ,
सुई जैसा चुभा मुझको।

कहीं टुकड़े न हो जाएँ,
बचा लो माँ, बचा लो माँ!
सहूँ कैसे असह्य पीड़ा ?
बताओ माँ, बताओ माँ ?

अधूरे हैं अभी सपने,
अभी तो – प्यास है मुझमें।
अधूरी है, अभी – काया,
नहीं आकार है – इसमें।

स्पन्दन क्यों बने क्रन्दन,
न रोको श्वास मेरी, माँ।
सुनो विनती रुदन मेरा,
तुम्हीं हो आस, मेरी माँ।

बहुत नाज़ुक बहुत छोटा,
अजन्मा भ्रूण हूँ – मैं माँ।
चमन का मैं तुम्हारे ही,
अविकसित फूल हूँ मैं माँ।

नहीं, तुमको सताऊँगी,
मुझे दुनिया में आने दो।
तुम्हारे नाम का मुझको,
दिया बन जगमगाने दो।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — बेटियां शक्ति, प्रेम, करुणा, ममता की वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती, फूल सी महकती मुस्कुराती, राजकुमारी सबकी प्यारी लाड़ली – दुलारी, सबका सदैव ही ध्यान रखने वाली। ईश्वर द्वारा मानव जाती के लिए प्रदान की गई अनमोल शक्तिपुंज हैं। जो हर रूप में प्रेम और सहयोग के लिए तैयार रहती है। नहीं, तुमको सताऊँगी, मुझे दुनिया में आने दो। तुम्हारे नाम का मुझको, दिया बन जगमगाने दो। भ्रूण की पुकार।

—————

यह कविता (भ्रूण की पुकार।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

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बेटी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बेटी। ♦

नन्हें – नन्हें हाथों से अपने,
गालों को मेरे सहला देती है।
पल भर में मेरी भोली सी बेटी,
संतापित मन को बहला देती है।

खाना पकाने में उँगली जली मेरी,
माँ की तरह मुझे वो डाँटने लगी।
मासूम सी बेटी मेरी न जाने कब,
हर दर्द मेरा ‘ कृती ‘ बाँटने लगी।

न जाने कब बेटी इतनी बड़ी हो गई,
पहन के लाल जोड़ा आके खड़ी हो गई।
हुआ साकार बचपन यादों में उसका ‘कृती’
बहुत मुश्किल विदाई की ये घड़ी हो गई।

साज है बेटा तो गीत है बेटी।
सृष्टि में बिखरा संगीत है बेटी।

नन्ही कोंपल सी जब जन्मी वो,
सूना आँगन – गुलज़ार … हुआ।
आने से – उसके छाई रौनक़,
जैसे कोई फल जाए दुआ।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — बेटियां शक्ति, प्रेम, करुणा, ममता की वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती, फूल सी महकती मुस्कुराती, राजकुमारी सबकी प्यारी लाड़ली – दुलारी, सबका सदैव ही ध्यान रखने वाली। ईश्वर द्वारा मानव जाती के लिए प्रदान की गई अनमोल शक्तिपुंज हैं। जो हर रूप में प्रेम और सहयोग के लिए तैयार रहती है।

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साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
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आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
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श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
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हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

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युवा और नशा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ युवा और नशा। ♦

तना सीना, तनी ग्रीवा, लगे अच्छी युवाओं की।
शिथिल कंधे, मुँदी आँखें, नहीं भातीं युवाओं की।

घुसे हैं देश में दुश्मन, तुम्हारा मार्ग भटकाने,
समय से पूर्व ही तुमको, नशे की नींद सुलवाने।
मिले जो मुफ़्त में भी तो, सदा कहना नशे को ना,
बड़ा अनमोल है जीवन, नशे में न खो देना।

क़तारें ख़ूब लंबी हैं, नशे के सरगनाओं की।
सफल साज़िश न हो पाये, भयंकर योजनाओं की।
तना सीना, तनी ग्रीवा, लगे अच्छी युवाओं की।
शिथिल कंधे, मुँदी आँखें, नहीं भातीं युवाओं की।

तुम्हीं तो देश का कल हो, तुम्हीं हो देश की गरिमा,
रचो इतिहास ऐसा तुम, बढ़े जो देश की महिमा।
तुम्हीं को नींव रखनी है, नशे से मुक्त भारत की,
करे जो बात गाँजे की, सजा दो इस जहालत की।

जगाओ चेतना अपनी, दिशा बदलो हवाओं की।
नशे के घोल में डूबी, नशीली इन फ़िज़ाओं की।
तना सीना, तनी ग्रीवा, लगे अच्छी युवाओं की।
शिथिल कंधे, मुँदी आँखें, नहीं भातीं युवाओं की।

नशे के रास्तों से तुम, न नाता जोड़ कर आना,
पिता ने लाड़ से पाला, न रोता छोड़ कर जाना।
शपथ लो आज ही तुम सब, अलख घर – घर जलानी है,
पुनः शेखर भगत सिंह सी, तुम्हें लिखनी कहानी है।

तुम्हीं तो प्राण हो माँ के, कली हो भावनाओं की।
पिता का मान, मन्नत हो, रखो लज्जा दुआओं की।
तना सीना, तनी ग्रीवा, लगे अच्छी युवाओं की।
शिथिल कंधे, मुँदी आँखें, नहीं भातीं युवाओं की।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — आज की युवा पीढ़ी किस तरह नशा के गर्त में धसती जा रही है, नशे में धुत युवक किसी को भी अच्छे नहीं लगते। नशे के आदी युवक का कोई भविष्य नहीं होता। तना सीना, तनी ग्रीवा, लगे अच्छी युवाओं की। शिथिल कंधे, मुँदी आँखें, नहीं भातीं युवाओं की। इसलिए नशा छोड़े और एक सुन्दर भविष्य के निर्माण में सहयोगी बने। आप युवाओं पर ही भारत का भविष्य निर्भर है, यूँ ही नशे की दीवानी – उड़े जवानी वाले युवक न बनो।

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यह कविता (युवा और नशा।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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समय का सदुपयोग।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ समय का सदुपयोग। ♦

पुनः प्रभातं पुनरेव शर्वरी पुनः
शशांकः पुनरुद्यते रविः।
कालस्य किं गच्छति याति यौवनं
तथापि लोकः कथितं न बुध्यते॥

फिर से प्रभात, फिर से रात्रि, फिर से चंद्र, और फिर से सूरज का उगना ! काल का क्या जाता है ? कुछ नहीं; यह तो यौवन जाता है, फिर भी लोग कहाँ समझते हैं? आज हम सभी यांत्रिक युग में जी रहे हैं।

आज हमारे पास ऐसे ऐसे यंत्र हैं जो वे सभी काम कुछ ही पलों में कर देते हैं जिन्हें करने में हमारी पूर्व पीढ़ी को लम्बा समय लगता था। आश्चर्य तो इस बात का है कि तब लोगों के पास व्यायाम से लेकर त्योहारों, रिश्तेदारों, परंपराओं इत्यादि के लिए पर्याप्त समय था।

आज जब यंत्रों की सहायता से चुटकियों में काम हो जाते हैं फिर भी लोग कहते हैं कि उनके पास किसी भी बात तक करने के लिये समय नहीं है।

किन्तु मुझे ऐसा कहना उचित नहीं प्रतीत होता। मैं इस बात को इस तरह कहूँगी कि आज लोगों के पास समय ही समय है किन्तु समय का सदुपयोग करने का विवेक नहीं है।

कहा जाता है कि कुदरत किसी के साथ पक्षपात नहीं करती। सबको कुदरत के उपहार समान रूप से मिले हैं जैसे कि जल, वायु, धूप इत्यादि। परन्तु हमारी पारिवारिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हमें ये प्राकृतिक उपहार भी कम या अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।

इस जगत में केवल #समय ही एक ऐसा अनमोल उपहार है जिसमें कोई पक्षपात नहीं। राजा हो या रंक सबके पास अपने निजी २४ घंटे।

ये भी सही है कि समय एक ऐसा विमान है जो बिना ईंधन के लगातार उड़ता है परन्तु अच्छी बात ये है कि इस विमान के पायलट हम हैं। पायलट जितना कुशल होगा उड़ान उतनी अच्छी होगी।

काल कोई सा भी हो प्राचीन या वर्तमान, जब-जब जिसने समय खोया वो अन्त में पछताया ही है। प्राचीन काल की कहानियों में प्रायः निकम्मे – परिश्रमी, शेखचिल्ली – आलसी पात्र होते थे वे उस समय के लोगों को समय का महत्व बताने के लिये ही रचे गये होंगे।

पुरातन काल से लेकर अब तक के किसी भी व्यक्तित्व के बारे में यदि नज़दीक से जानेंगे तो हर एक सार्थक, प्रेरक व्यक्तित्व में यह एक विशेष गुण अवश्य मिलेगा कि उनकी सफलता और ओज का कारण उनका समय प्रबंधन रहा है।

जिसने समय साध लिया उसने लोक, परलोक अपना जीवन, अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य लोगों का जीवन भी साध लिया।

इस विषय पर असीमित लिखा जा सकता है किन्तु अन्त में बस यही निवेदन करना चाहूँगी कि मित्रों ‘#समय अनमोल है’ ये किताबी बात नहीं है। आज़माया हुआ सत्य है। इसे व्यर्थ न गँवायें।

अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — अपना समय क्रोध, पछतावा, चिंता तथा ईर्ष्या में मत ज़ाया करें। दुखी: रहने के लिए ज़िन्दगी बहुत छोटी है। पल – पल का उपयोग करें ताकि पछताना न पड़े।

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यह आलेख (समय का सदुपयोग।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख/आलेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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शिक्षक दिवस पर दोहे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शिक्षक दिवस पर दोहे। ♦

ऑनलाइन पढ़ा रहे, कैसा आया काल।
बच्चे तो सब मस्त हैं, शिक्षक हैं बेहाल॥ – 1

नित शरारत नयी करें, गायब बारम्बार।
दण्डित कर सकते नहीं, शिक्षक हैं लाचार॥ – 2

पढ़ने का तो नाम है, खेल करें सब शिष्य।
पल दो पल के बाद ही, दिखे नया परिदृश्य॥ – 3

जब से शिक्षण जगत में, पनपा भ्रष्टाचार।
ज्ञान दीप की लौ बुझी, शिक्षा अब व्यापार॥ – 4

दिन प्रतिदिन घट रही, शिक्षक की पहचान।
सीमित शिक्षक दिवस तक, शिक्षक का सम्मान॥ – 5

शिक्षक पुष्प पलाश सम, औषध से अनुबंध।
जिसकी जितनी ग्राह्यता, उतनी भरे सुगंध॥ – 6

अमरशक्ति के पुत्र सभी, अभिमानी मतिमंद।
विष्णुदत्त से गुरु मिले, बहा ज्ञान मकरंद॥ – 7

उत्तम गुरु सानिध्य से, मूरख बने सुजान।
पंचतंत्र सी कृति मिली, हुआ जगत कल्यान॥ – 8

ज्ञान क्षितिज पर छा रहा, अमावस सा अंधकार।
लागू हों नव नीतियाँ, लौटे फिर उजियार॥ – 9

अनुचित शिक्षण दे रहा, मानवता पर घाव।
गुरुकुल पद्धत का पुनः , हो अब प्रादुर्भाव॥ – 10

नीति वचन गायब हुए, शिक्षण हुआ अशुद्ध।
बालक फिर कैसे बनें, अब्दुल, नानक, बुद्ध॥ – 11

विद्युतीय हैं श्यामपट, गूगल शिक्षण स्रोत।
झलक दिखा कर लुप्त हों, बच्चे ज्यों खद्योत॥ – 12

अब गरीब का बच्चा उच्च शिक्षा नहीं ले पा रहा।
क्योंकि अब तो शिक्षा हो गया है नोट छापने वाला व्यापार॥

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए दोहे के रूप में समझाने की कोशिश की हैं — आजकल कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई की क्या स्थिति है? जब से शिक्षण जगत में पनपा है भ्रष्टाचार। ज्ञान दीप की लौ बुझी, अब तो शिक्षा हो गया है व्यापार। अब वह समय कहीं खो गया जहां बच्चों को दिया जाता था प्रैक्टिकल ज्ञान। अब गरीब का बच्चा उच्च शिक्षा नहीं ले पा रहा क्योंकि अब तो शिक्षा हो गया है नोट छापने वाला व्यापार।

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यह दोहे (शिक्षक दिवस पर दोहे।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

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अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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सावन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सावन। ♦

आया सावन
अति मनभावन
पड़ गए झूले
अमुआ की डाल पे
चल सखि झूलें
नभ तक ले – लें
पींगे सँभाल के।

आया सावन —
करतल करके
वृक्षों के पात भी
मिल बूँदों से
ख़ुश हो कर के
करते हैं बात भी।

आया सावन —
प्यासी धरती
सूखे हैं गात भी
जल बिन तरसी
बदली बरसी
जल की सौग़ात दी।

आया सावन —
बम-बम भोले
गूँजे शिव द्वार पे
शंकर भोले
सारे बोलें
तू पालनहार रे।

आया सावन —
चूनर धानी
धरती ने ओढ़ ली
बरखा रानी
करे मनमानी
सागर से होड़ की।

आया सावन —
काग़ज़ कश्ती
पानी में डाल के
छोड़ के सुस्ती
मिलकर मस्ती
करते हैं बाल रे।

आया सावन —
साजन सजनी
हाथों में हाथ ले
अपनी अपनी
प्रेम प्रीत की
करते हैं बात रे।

आया सावन —
जंगल – जंगल
नाचे हैं मोर रे
नभ से थल तक
केवल जल-जल
नदियों का शोर रे।
आया सावन,
अति मनभावन।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की हैं – सावन के मौसम में धीमी – धीमी बारिश का होना, प्रकृति का खूबसूरत दृश्य, झूला-झूलना, हर तरफ हरियाली ही हरियाली, पृथ्वी पर चारो ओर प्रकृति का सुन्दर नज़ारा नजर आती है। मन खुशियों में झूमता है जैसे मोर मस्त होकर नाचता हैं।

—————

यह गीत/कविता/आर्टिकल (सावन।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
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