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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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शैक्षिक हिंदी कहानी

कर्तव्य की उपेक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ कर्तव्य की उपेक्षा। ϒ

kmsraj51-dereliction-of-duty

एक सेठ के पास बहुत सारी गायें थी। उसने उनकी देखभाल के लिए दाे नाैकर रखे। कुछ दिनाें के बाद पता चला कि गायें बहुत दुबली हाे गई हैं और कुछ मर भी चुकी हैं। सेठ को इस पर बहुत गुस्सा आया। उसने इसके लिए दाेनाें नाैकराें काे जिम्मेदार ठहराया। जांच करने पर पता चला कि दाेनाें नाैकर अपने-अपने व्यसनाें में लगे रहे। एक काे जुआ खेलने की आदत थी। गायाें की देखभाल करने में उसका मन नहीं लगता था।

अक्सर वह जुआ खेलने बैठ जाता और गायाें की देखभाल नहीं हाे पाती थी। यही बात दुसरे के साथ भी थी। वह पूजा-पाठ का व्यसनी था। वह गायाे की तरफ ध्यान नहीं देता और पूजा-पाठ में लगा रहता था। सेठ दाेनाें काे राजा के पास ले गया। राजा काे उनके बारे में फैसला करना था। लाेगाें काे लगा कि राजा पूजा-पाठ करने वाले नाैकर काे क्षमा कर देगा। लेकिन राजा ने दाेनाें काे समान दंड दिया और कहा कर्तव्य की उपेक्षा अपराध है चाहे वह किसी भी कारण से किया जाए।

प्यारे दोस्तों – जब भी कभी काेई भी जिम्मेदारी वाला कार्य आपके ऊपर हाे, अर्थांत आपके ऊपर निर्भर हाे ताे सही समय पर कार्य काे प्रधानता देते हुए सही तरह से करें।

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© आप सभी का प्रिय दोस्त ®

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
of,,  http://kmsraj51.com/

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

 ~Kmsraj51

———– © Best of Luck ® ———–

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

 

 

 

____Copyright © 2013 – 2017 Kmsraj51.com  All Rights Reserved.____

Filed Under: 2016-Kmsraj51 की कलम से….., हिंदी कहानियाँ। Tagged With: dereliction of duty, Hindi Kahani-हिंदी कहानी, Hindi Stories, Hindi Stories / 10 सबसे ज्यादा पढ़ी गयीं हिंदी कहानियां, Hindi Stories-कहानियां हिन्दी में।, https://kmsraj51.com/, kms, kmsra, KMSRAJ, Kmsraj51, Largest Collection of Hindi Stories, stories in hindi, उत्साह-वर्द्धक कहानी हिन्दी में।, कथा-कहानी, कर्तव्य की उपेक्षा।, कहानियां, कहानियां हिन्दी में।, कहानी हिन्दी में, कहानी-उपन्यास, कहानी-किस्से, नैतिक कहानी हिंदी में।, प्रेरणादायक हिंदी कहानियां, बच्चों के लिए प्रेरणात्मक हिंदी कहानी का संग्रह, बच्चों के लिए हिन्दी कहानी, भाई और बहन के स्नेह की कहानी।, शैक्षिक हिंदी कहानी, शैक्षिक हिन्दी कहानियां बच्चों के लिए।, शैक्षिक हिन्दी कहानी संग्रह, हिंदी कहानी, हिंदी कहानी : Hindi Stories, हिंदी कहानी बच्चों के लिए, हिंदी में कहानियां, हिन्दी में कहानी

सबसे बड़ा पुण्य।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ सबसे बड़ा पुण्य। ϒ

मानव सेवा ही प्रभु (GOD) सेवा हैं। “जो लोग निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं। जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानो की सेवा-सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है।” प्यारे दोस्तों … मुझे एक सच्ची कहानी याद आ रही है, कहानी कुछ इस तरह से हैं। बहुत समय पहले कि बात है…..

the-biggest-virtue-kmsraj51

एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था। हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था। वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो – आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था। यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था।

एक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए। राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा…..

“महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?”

देव बोले –  “राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं।”

राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा – “कृपया देखिये तो इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”

देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया।

राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा –  “महाराज ! आप चिंतित ना हों , आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम यहाँ नहीं है।”

उस दिन राजा के मन में आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नजर-अंदाज कर दिया और पुनः परोपकार की भावना लिए दूसरों की सेवा करने में लग गए।

कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी। इस पुस्तक के रंग और आकार में बहुत भेद था, और यह पहली वाली से काफी छोटी भी थी।

राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा – “महाराज! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है?”

देव ने कहा –  “राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं!”

राजा ने कहा –  “कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग? निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है?”

देव महाराज ने बहीखाता खोला, और ये क्या, पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था।

राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा – “महाराज, मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो मंदिर भी कभी-कभार ही जाता हूँ?

देव ने कहा – “राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जो लोग निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं। जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानो की सेवा-सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है। ऐ राजन! … तू मत पछता कि तू पूजा-पाठ नहीं करता, लोगों की सेवा कर तू असल में भगवान की ही पूजा करता है।

परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर हैं।

देव ने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा – “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छनं समाः एवान्त्वाप नान्यतोअस्ति व कर्म लिप्यते नरे।”

अर्थात – “कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की ईच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे। राजन! भगवान दीनदयालु हैं। उन्हें खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है… सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो। दीन-दुखियों का हित-साधन करो। अनाथ, विधवा, किसान व निर्धन आज अत्याचारियों से सताए जाते हैं इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो और यही परम भक्ति है।”

राजा को आज देव के माध्यम से बहुत बड़ा ज्ञान मिल चुका था और अब राजा भी समझ गया कि परोपकार से बड़ा कुछ भी नहीं और जो परोपकार करते हैं वही भगवान के सबसे प्रिय होते हैं।

प्यारे दोस्तों – जो व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं, परमात्मा हर समय उनके कल्याण के लिए यत्न करता है। हमारे पूर्वजों ने कहा भी है – “परोपकाराय पुण्याय भवति” अर्थात दूसरों के लिए जीना, दूसरों की सेवा को ही पूजा समझकर कर्म करना, परोपकार के लिए अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पुण्य है और जब आप भी ऐसा करेंगे तो स्वतः ही आप … ईश्वर के प्रिय भक्तों में शामिल हो जाएंगे।

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* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

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* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

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जीवन में जाे हाेता है अच्छे के लिए ही हाेता हैं।

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ जीवन में जाे हाेता है अच्छे के लिए ही हाेता हैं। ϒ

मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी। उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां – एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?

उस देवदूत को यह ख्याल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझें क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं – छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं, और कोई देखने वाला नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है। तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी, और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा, और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं, और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो, जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने आया था, वह पैसे तो खर्च हो गए – वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है। पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है – मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता – क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है।

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया, और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं, और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा, और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं, और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूती के आर्डर दिए कि उनके लिए जूती बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ?

यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं, और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं! और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है, और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका! और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।

∇ सार ∇

तुम अगर अपने को बीच में लाना बंद कर दो, तो तुम्हें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दो उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। तुम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दो। वह जो भी हो, तुम्हारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता तुम मत करना।

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जीतने की प्रबल इच्छा।

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ जीतने की प्रबल इच्छा। ϒ

Strong desire to win-Kmsraj51

यह बात बहुत समय पहले कि है, एक महान शुरवीर योद्धा अपने दुश्मन राज्य से जब युद्ध करने जा रहा था, ताे उसने देखा की उसके सैनिकों में दुश्मनाें से युद्ध करने काे लेकर भय हैं। भय का मुख्य कारण था, दुश्मन राज्य के सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी।

युद्ध करने के लिए सागर के पार जाना था। वह महान शुरवीर योद्धा अपने सभी सैनिकों के साथ बड़े समुद्री जहाजाें व बड़े नावाें से सागर के किनारे पहुँचने पर सारे जहाजाें और नावाें काे जला दिया।

फिर उस महान शुरवीर योद्धा ने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाते हुए बाेला अगर आप सभी काे वापस घर जाना है, ताे हर हाल में हम सभी काे दुश्मनाें से जीतना ही हाेगा, क्योंकी वापस जाने के लिए नाव व जहाज अब नहीं रहे । अगर हम सभी दुश्मनाें से युद्ध ना जीत पाए ताे यही मारे जायेगे। इसलिए हर हाल में हम सभी काे दुश्मनाें से युद्ध जीतना ही हैं।

साेचियें मित्रों क्या हुआँ हाेगा।

वह महान शुरवीर योद्धा, युद्ध जीत गया था। सभी सैनिकों काे आंतरिक प्रबल इच्छा शक्ति का एहसास हाे गया था।

सीख: अगर किसी भी कार्य काे करने की प्रबल आंतरिक दृढ़ इच्छा हाे, ताे सफलता जरूर मिलेगीं।

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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सकारात्मक सोच + निरंतर कार्य = सफलता।

स्वयं पर और स्व-कर्माे पर विश्वास माना सफलता का आधार(नींव) मज़बूत।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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अधूरी भक्ति।

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ अधूरी भक्ति। ϒ

Incomplete Bhakti-kmsraj51

मृत्यु के उपरांत एक साधु तथा डाकू साथ-साथ यमराज की सभा में पहुँचे। यमराज ने अपने बही-खातों की जाँच-पड़ताल करके उनसे कहा-यदि तुम दोनों को अपने लिए कुछ कहना हो तो कह सकते हो।

“डाकू विनम्र स्वर में बोला-महाराज मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। जो भी दंड विधान आपके यहाँ मेरे लिए हो वह करें। मैं प्रस्तुत हूँ।” फिर साधु बोले-आप तो जानते ही हैं, मैंने जीवनभर भक्ति की है। कृपया मेरे सुख साधनों का प्रबंध शीघ्र करवाएँ।

“यमराज ने दोनों की इच्छा सुनकर डाकू से कहा-तुम्हें यह दंड दिया जाता है कि तुम आज से इस साधु की सेवा किया करो।” डाकू ने सिर झुकाकर आज्ञा शिरोधार्य की, परंतु साधु ने आपत्ति की-महाराज इस दुष्ट के स्पर्श से मैं भ्रष्ट हो जाऊँगा। मेरी भक्ति तथा तपस्या खंडित हो जाएगी।

अब यमराज के आदेश के स्वर में आक्रोश बोले-निरपराध भोले व्यक्तियों का वध करने वाला तो इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने को तत्पर है और तुम हो कि वर्षों की तपस्या के पश्चात् भी यह न जान सके कि सबमें एक ही आत्म-तत्त्व समाया हुआ है। जाओ तुम्हारी भक्ति अभी अधूरी है, अतः आज से तुम इसकी सेवा किया करो।’

सीख: अहंकार काे त्याग कर, विनम्रता के गुण काे धारण करना ही सच्ची भक्ति हैं।

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माँ के दिल जैसा दुनिया मेँ कोई दिल नहीं।

Kmsraj51 की कलम से…..

KMSRAJ51-CYMT

ϒ माँ का दिल।~सुमित वत्स। ϒ

एक १६ साल के लड़के ने
अपनी मम्मी से कहा की
मम्मी मुझे मेरे १८ वे साल के
जन्मदिन पर क्या गिफ्ट
दोगी?
तो उस लड़के की मम्मी ने
उस से कहा की जब
तेरा १८
सालवा आएगा तो अलमारी के
ऊपर देख लेना उसमे
तेरा गिफ्ट
रहेगा। अभी बता दूंगी तो
गिफ्ट
का मज़ा नहीं आएगा।
कुछ दिन बाद
वो लड़का बीमार
हो गया उसके
मम्मी पापा उसको अस्पताल
लेकर गए।

जाँच के बाद डॉक्टर ने
लड़के के माता-पिता से
कहा की इसके दिल में छेद
है ये अब २ महीने से
ज्यादा नही जी पायेगा।

२ साल भर बाद लड़का ठीक
होकर घर गया।
तो उसे पता चला की उसकी
माँ नही रही।
उसे ये पता चलते ही उसने
अलमारी खोली और उसने देखा की
अलमारी में एक गिफ्ट
पड़ा था। उसने जल्दी से
वो गिफ्ट खोला
उस गिफ्ट में एक
चिठ्ठी थी उस चिट्टी में
लिखा था की

” मेरे जिगर के टुकड़े अगर तू
ये चिठ्ठी पढ़ रहा है
तो तू बिलकुल ठीक
होगा तुझे याद है जब तू
बीमार हुआ था तब हम तुझे
अस्पताल लेकर गए थे।

डॉक्टर ने कहा की तेरे
दिल में छेद है तो उस दिन
मै बहुत रोई और
फैसला किया की मेरा दिल
तुजे दूंगी याद है एक दिन
तूने कहा था की मम्मी मुझे
१८ साल वे जन्मदिन पर
क्या दोगी तो बेटा मैं तुझे
अपना दिल दे रही हुँ,
उसको हमेशा संभाल कर
रखना। ……

“हैप्पी बर्थडे बेटा”

सार : एक माँ इसलिए मर
गयी क्यों की उसका बेटा जी
सके।
दुनिया में माँ से बड़ा दिल
किसी का नही।

माँ के दिल जैसा दुनिया मेँ
कोई दिल नहीं।

© सुमित वत्स।

Sumit Vats-kmsraj51
सुमित वत्स।

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मस्तिष्क में रिक्त जगह।

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ϒ मस्तिष्क में रिक्त जगह।~सुमित वत्स। ϒ

एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …..

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें, टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ …
आवाज आई …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये।

फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे।
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
….. अब तो पूरी भर गई है ….. सभी ने एक स्वर में कहा …..

सर ने टेबल के नीचे से …..
चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच स्थित…
थोडी सी जगह में सोख ली गई …..

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया।

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं।

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और …..

रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है …..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या
कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी।
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है …..

यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे।
और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय
नहीं रहेगा …..

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने …..
बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ।
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक – अप करवाओ …..
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है ….. पहले तय करो कि क्या जरूरी है।
….. बाकी सब तो रेत है …..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे।

अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया
कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले ….. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …..
इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन…..
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये।

© सुमित वत्स।

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खुद के गिरहबान में झांक कर ताे देख लाे।

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ϒ खुद के गिरहबान में झांक कर ताे देख लाे। ϒ

एक गाँव में एक किसान रहता था। जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था। एक दिन उसकी बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया। वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर की तरफ रवाना हुवा।

वो मक्खन गोल पेढ़ो की शकल में बना हुवा था और हर पेढ़े का वज़न एक Kg था। शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया, और दुकानदार से चायपत्ती, चीनी, तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया।

किसान के जाने के बाद। दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया। उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला।

हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm. के ही निकले।

अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा, दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा, के वो दफा हो जाए, किसी बे-ईमान और धोखेबाज़ मनुष्य से कारोबार करना उसे गवारा नही।

900 gm. मक्खन को पूरा एक Kg. कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता। किसान ने बड़ी ही आजिज़ी (विनम्रता) से दुकानदार से कहा “मेरे भाई मुझसे बद-ज़न ना हो हम तो गरीब और बेचारे लोग है, हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ” आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।

दोस्तों,

इस कहानी को पढ़ने के बाद आप क्या महसूस करते हैं, किसी पर उंगली उठाने से पहले क्या हमें अपने गिरहबान में झांक कर देखने की ज़रूरत नही……? कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही…..?

⇒ अपने भीतर की कमजोरी की जाँच करें।

⇒ किसी पर उंगली उठाने से पहले स्वयं कि कमजोरी को देखे।

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सर्वश्रेष्ठ कौन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

KMSRAJ51-CYMT

© “जो दूसरों के बारे में सोंचने और उनका भला करने से नही चुकता, वही सर्वश्रेष्ठ है ।” ®

बहुत समय पहले की बात है। एक बिख्यात ऋषि गुरुकुल में बालको को शिक्षा प्रदान किया करते थे। उनके गुरुकुल में राजा महाराजा के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।

वर्षो से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी, और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरो को लौटने की तैयारी कर रहे थे क़ि तभी ऋषि की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी, आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं।

आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा किया। ऋषिवर बोले, प्रिय शिष्यों ! आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है। मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक बाधा दौड़ में हिस्सा लें।

दौड़ शुरू हुई। वे तमाम बाधाओ को पार करते हुए, अंत में एक सुरंग के पास पहुँचे।

सुरंग में अँधेरा था और नुकीले पत्थर जैसे कुछ चमक रहे थे। जिनके चुभने से असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था। दौड़ के बाद सभी सुरंग में अलग अलग व्यवहार कर रहे थे। दौड़ पूरा करने की होड़ में सही गलत सब कुछ भूल गए।

खैर दौड़ जैसे तैसे सभी ने पूरी की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए। ऋषि बोले, मैं देख रहा हूँ, कुछ ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी की और कुछ ने काफी समय लगाया। ऐसा क्यों हुआ ?

यह सुनकर एक शिष्य ने बोला, हम सभी लगभग एक ही साथ दौड़ रहे थे, पर सुरंग में पहुँचते ही स्थिति बदल गयी। कोई-कोई तो एक दूसरे को धकेलते हुए आगे बढ़ रहे थे, तो कोई संभल संभलकर आगे बढ़ रहा था।

कुछ तो ऐसे भी थे जो पैर में चुभ रहे पत्थरों को उठाकर अपनी जेब में रख रहे थे, ताकि बाद में आने वालों को पीड़ा न सहनी पड़े। इसीलिए सबने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की। ठीक है जिन्होंने भी पत्थर उठायें हैं वो आगे आएं और मुझे दिखाएं, ऋषि ने आदेश दिया।

कुछ शिष्य आगे आये और पत्थर निकालने लगे। पर ये क्या, जिन्हें वो पत्थर समझ रहे थे वो तो बहुमूल्य हीरे है। सभी आश्चर्य में पड़ गए। ऋषि ने कहा इन हीरों को मैंने ही सुरंग में रखा था। दुसरों के विषय में सोंचने वाले शिष्यों को ये मेरा उपहार है।

“जो दूसरों के बारे में सोंचने और उनका भला करने से नही चुकता, वही श्रेष्ठ है ।”

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

-KMSRAJ51

 

 

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कथा एक राजकुमार की।

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ϒ कथा एक राजकुमार की। ϒ

एक था राजकुमार मितभाषी, सुन्दर, सुकुमार।
महलों में पला बढ़ा लोगों की नज़र में अत्यंत ईमानदार॥

तैंतालीस बसंत देख चुका। यह युवराज, राजगद्दी खाली, पर नहीं पहनता ताज। खुद को अभी नहीं समझता था उपुक्त। राज काज के झंझटों से था वह मुक्त। सारा राज-पाट बूढ़े मंत्री के कन्धों पर था। मंत्री था बड़ा वफ़ादार, था वो मंत्रियों का सरदार। एक दिन आखेट पर चला गया दूर तक साथ में मंत्री, सेवादार रथ, पालकी गाजे, बाजे बहुत-बहुत पहरेदार।  पहुँच गया सुदूर एक गांव मच गया हाहाकार राजकुमार आया, राजकुमार आया मच गया शोर हलचल चहु ओर, आनन् फानन में सभा बुलाई ढोल तमाशा, नाच-गाना, बढ़िया लज़ीज़ खाना।

राजकुमार मुखातिब हुए प्रजा से – बोलो भाई हमारे राज्य में कोई कष्ट हो तो बताओ खुल कर सुनाओ।

समवेत स्वरों में आवाज़ आई सरकार, हमलोगन गरीबी ते बहुतै दिक्क हन कौनो उपाय बतावा जाई।

युवराज को कुछ नहीं सूझा आँखों ही आँखों में सेवादार से पूछा और फुसफुसाहट भरी आवाज़ में बूझा फिर बाँहे समेट कर खड़े हुए और ज्ञान बघारा।

भई गरीबी तो केवल दिमाग की सोच है तुम लोग नाहक ही परेशान हो, मन में सोच लो तो सुखी इंसान हो।

यह सुनते ही पूरी सभा में सन्नाटा छा गया लोग तालियाँ बजाना भूल गए। कंठ रुंध गए चक्षुओ से अश्रुधार बह निकली।

सदिओं से जिस गरीबी को लेकर हमारे बाप-दादा, खून पसीना बहाते रहे, रहे पीढ़ियो तक परेशान। उसका समाधान कितना आसान।

मौक़ा देख सेवादारों ने आवाज़ लगाईं।

राजकुमार की जय हो !! युवराज की जय हो !!

भीड़ से आवाज़ आई युवराज की जय हो !! राजकुमार की जय हो !!

राज्य में सब सुखी थे लोगों के दिमाग से गरीबी ख़त्म हो गयी थी। तो क्या हुआ यदि लोग भूखों मर रहे थे। जवान बूढ़े लग रहे थे बूढ़े केवल ज़िंदा लाश थे। पर वो गरीब कतई नहीं थे।

तभी अचानक एक दिन कुछ सिर फिरों ने कहना शुरू किया। गरीबी के बारे में अनाप-शनाप बकना शुरू किया, कि हम गरीब इसलिए हैं क्योंकि ऊपर से भेजा हुआ पैसा, डाकू हड़प जाते है पूरा वैसे का वैसा।

लोगों ने कहा राजकुमार ने तो कुछ और ही बताया था। क्या राजकुमार को पता नहीं था?

सिरफिरों ने कहा उनको जरूर पता होगा। उनके परमपूज्य पिता श्री महाराजाधिराज ने एक बार गलती से बता दिया था।
कि सोलह आने में केवल दो आने ही जनता तक पहुँचते है बाकी सब डाकू लूट लेते हैं।

ये अलग बात है कि उन्होंने डाकुओं को कुछ नहीं कहा। उनकी इस साफगोई पर ही जनता गद्गद थी।

सिरफिरे ये भी कहने लगे कि काफी डाकू तो, मंत्रियो और दरबारिओं के कपड़े पहन कर अपनी बंदूके छुपा कर दरबारे ख़ास में हैं।

जनता को धीरे-धीरे विश्वास होने लगा। सिरफिरों को भी आभास होने लगा। लोग नंगे पैर, भूखे पेट चिथड़ो में लिपटे हुए।

राजधानी के चौक पर जमा हो गए, लम्बी-लम्बी तकरीरें बहुत सारे सुझाव।

सभी मंत्रियों दरबारियों की कपड़े उतरवाकर जांच हो। डाकुओं को पहचान कर बाहर निकाला जाए कुछ का कहना था। सारे मंत्रियों, दरबारियों को बर्खास्त किया जायें जितने मुह उतनी बातें।

लोगों का गुस्सा सरे आम हो गया, दरबारे ख़ास में कोहराम हो गया। सबने सिर से सिर मिलाकर मंत्रणा की चतुर मंत्रियों का गैंग बना।
सरकारी भोंपू से समझाया गया जनता को भरमाया गया।

ये सिरफिरे झूठ बोल रहे हैं इसमें विदेशी ताकतों का हाथ है। हम तो आपके साथ हैं। लोगों ने बूढ़े मंत्री की बात का भरोसा किया भीड़ छटने लगी। इस दौरान राजमाता विदेशी दौरे पर थीं युवराज कहीं दूर आखेट पर।

उनके लौटने तक सब शांत हो गया था डाकू खुश थे। चतुर मंत्रियों का गैंग मुस्कुरा रहा था, एक दुसरे की पीठ थप-थपा रहा था।

तभी अचानक राज्य के सबसे बुज़ुर्ग न्यायाधीश ने आदेश पारित कर दिया, कि जो भी डाकू रंगे हाथ डाका डालते हुए पकड़ा जाएगा, वो दरबारे ख़ास में नहीं बैठ पायेगा।

दरबारियों और मंत्रियों में गुस्सा था कुछ दरबारी भी दरबारे ख़ास को डाकुओं से मुक्त कराना चाहते थे और बहुत खुश थे बाकी सब नाखुश थे।

नाराज़ मंत्रियों, दरबारियों की संख्या बहुत ज्यादा थी। बूढ़े मंत्री की बात भी कोई सुन नहीं रहा था। राजकुमार सो रहा था। राजमाता का पता नहीं।

सब ने मिलकर हल निकाला। नया क़ानून बनायेंगे अपने डाकू भाइयों को बचायेंगे।

फिर क्या आनन्-फानन में अध्यादेश बनाया गया खूबसूरत शब्दों से सजाया गया। युवराज का अब भी पता नहीं शायद आखेट से लौट कर गहरी नींद में थे।

तभी राजकुमार ने सपने में देखा भारी भीड़ नंगे आदमी। चीथड़ो में लिपटी हुई औरतें बड़े पेट और पतली टांगों वाले बच्चे, आँखों में अंगारे, हाथो में बरछी, भाले, आरे।

राजकुमार की घिघ्घी बांध गयी बिस्तर छोड़ कर महल से नींद में ही भागे। रथ, सारथी, पहरेदार, सेवादार सब पीछे वो आगे।

बाहर पूरे राज्य में सारे मंत्री, दरबारी। जनता को डाकुओं के बारे में समझा रहे थे। डाकू समाज के लिए कितने जरूरी हैं ये बुझा रहे थे।
चोर उचक्के, छोटे मोटे मवाली आपको तंग नहीं कर सकते। अगर कोई सरकारी डाकू आपके संपर्क में है।

जनता फुसफुसाई लेकिन दरबारे ख़ास में। डाकुओं की नुमाइंदगी तो बहुत ज्यादा है मंत्री गुर्राए। उनका काम भी तो ज्यादा है हमारे लिए वो इतना करते हैं। क्या हम उनको इज्जत से दरबारे ख़ास में बैठा भी नहीं सकते।

जनता में सुगबुगाहट थी वो मंत्रियों की बात नहीं सुन रहे थे। सिरफिरे जनता को भड़का रहे थे डाकू हड़का रहे थे।

ऐसी सी ही एक सभा में युवराज हाँफते हांफते पहुचे। जनता, मंत्री, दरबारी सब खड़े हो गए युवराज अभी नींद में थे।
माथे पर पसीना लडखडाती आवाज़ उनको लग रहा था। चारों तरफ गरीबों की भीड़ है हथियारों से लैस।
युवराज का मुह सूख रहा था, मंत्री के हाथ से छीन कर अध्यादेश फाड़ दिया। जनता, मंत्री, दरबारी सब सन्न काटो तो खून नहीं थोड़ी देर तक छाया रहा सन्नाटा।

तभी चतुर मंत्रियों को कुछ याद आया सभी एक साथ चिल्लाये।

राजकुमार की जय !! युवराज की जय !!

पर इस बार भीड़ से एक भी आवाज़ नहीं आई। जनता चुप थी राजकुमार का सपना टूट चुका था, वो धीरे-धीरे थके हुए कदमों से अपने रथ की तरफ बढ़ रहा था, और भारत एक नया इतिहास गढ़ रहा था।

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We are grateful to my dear friend Mr. Rahul Jaiswal, for sharing this Inspirational Story in Hindi.

 

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