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You are here: Home / Archives for विनोद वर्मा जी की कविताएं

विनोद वर्मा जी की कविताएं

श्राद्ध।

Kmsraj51 की कलम से…..

Shraddh | श्राद्ध।

श्राद्धों में जिनकी होती है पूजा
उन पित्रों से बढ़कर नहीं है कोई दूजा।

श्राद्धों में धरती पर हैं वे आते
पता नहीं किस रूप में आशीर्वाद दे जाते।

हर कोई तर्पण है करता
कोई जाता गया तो कोई घर पर ही पिंड भरता।

भान्ति भान्ति के पकवान है बनाते
पित्र ये सब देख खुश हो जाते।

कौओं को खाना खिलाए
पित्र रूप उनमें नजर आए।

ब्राह्मणों को कोई खाना खिलाते
उन्हें ख़ुश देख पित्रों को प्रसन्न मानते।

श्राद्धों में तो खूब होती है पेट भराई
जीते जी जिनसे दूरियां भी खूब है बनाई।

बुजुर्गों की पूजा जीते जी भी की जाए
उनको अपनेपन के लिए न तड़फाएं।

बुजुर्ग जब तक है तब तक उनको दुख देते हैं भारी
श्राद्धों में स्वादिष्ट खाने से पूजा की करते हैं तैयारी।

जिसने जीते जागते बुजुर्गों की है सेवा
श्राद्धों में क्षमता न हो फिर भी मिलेगा मेवा।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता श्राद्ध और पितरों की पूजा के महत्व को उजागर करती है। इसमें बताया गया है कि श्राद्ध के अवसर पर पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, हालांकि वे किस रूप में आते हैं, यह कोई नहीं जानता। लोग तर्पण और पिंडदान के माध्यम से उनका स्मरण करते हैं, भिन्न-भिन्न पकवान बनाते हैं, कौओं को भोजन कराते हैं और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। श्राद्ध केवल दिखावा न बनकर रहे, बल्कि बुजुर्गों और माता-पिता की सेवा और सम्मान उनके जीवित रहते हुए भी किया जाना चाहिए। अक्सर लोग अपने बुजुर्गों को जीवनकाल में उपेक्षित करते हैं और उन्हें दुख पहुंचाते हैं, लेकिन उनके निधन के बाद श्राद्ध में बढ़-चढ़कर पूजा-पाठ और भोजन की व्यवस्था करते हैं। कविता इस विरोधाभास को उजागर करती है और संदेश देती है कि असली पुण्य तो बुजुर्गों की सेवा, सम्मान और स्नेह में है, न कि केवल मृत्यु के बाद किए जाने वाले कर्मकांडों में।
  • अंततः, यह कविता बताती है कि जिसने अपने बुजुर्गों की सच्चे मन से सेवा की है, वह व्यक्ति श्राद्ध में बड़े आयोजन न कर पाने पर भी पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करता है। असली धर्म और कर्तव्य है जीवित संबंधों को महत्व देना और उनके साथ आत्मीयता का व्यवहार करना।

—————

यह कविता (श्राद्ध।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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वो मस्ती भरी बरसात।

Kmsraj51 की कलम से…..

Wo Masti Bhari Barsaat | वो मस्ती भरी बरसात।

वो मस्ती भरी बरसात
अब कहां
जिसमें आनंद होता
था बेपनाह।

बेफ्रिक हो कर
खड्डों में नहाते
रास्ते में आए पानी
तो कागज की किस्तियां
भी बहाते।

पानी के डैम बनाना
फिर पानी छोड़कर
आंनद भी खूब लेना।

झूला झूलने पींगे डालते
फिर झूल झूल कर
मस्ती भरे गीत गाते।

अब न वैसा बचपन रहा
न ही वैसी बरसात
जिसमें हर रोज़ दिखती
थी कोई नई शरारत।

खेतों से छलियां चुराते
छुप छुप कर फिर
उन्हें खाते।

किसी आंगन में
कहीं ककड़ी देखते
उसे चुराकर ही सांस भरते।

अब तो पानी की जगह
दलदल आता
दिन रात बड़ा है डराता।

वो मस्ती भरी बरसात
अब कहां।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता बचपन की बीती हुई मासूम, मस्ती भरी बारिश की यादों को संजोती है। कवि उन दिनों की बारिश को याद करता है, जब बरसात केवल पानी नहीं, बल्कि खुशियों और शरारतों की सौगात लेकर आती थी। कविता में बताया गया है कि पहले बच्चे बेफिक्र होकर खड्डों में नहाते, कागज की नावें बहाते, पानी से डैम बनाते, और पिंग झूला डालकर गीत गाते थे। खेतों से चुपके से छलियां चुराना, किसी के आंगन से ककड़ी उठाना, और फिर छुपकर खाना, ये सब बचपन की मासूम शरारतें थीं। लेकिन अब न वो बचपन रहा, न वैसी बरसात। आज की बारिश में मस्ती की जगह डर और दलदल है। अब बरसात का आनंद खो गया है, और बचपन की वो खुली, निश्छल दुनिया कहीं पीछे छूट गई है। कुल मिलाकर, यह कविता एक नॉस्टेल्जिक भाव को उजागर करती है — बचपन की बारिश की मस्ती, आज की यथार्थपूर्ण स्थिति में एक मीठी कड़वाहट के साथ याद आती है।

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यह कविता (वो मस्ती भरी बरसात।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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पिता।

Kmsraj51 की कलम से…..

Father| पिता।

पिता होते है
घर की शान,
इनकी छत्र छाया में
हंसता खिलता है जहांन।

शाम को थके हारे जब
घर में प्रवेश करते,
सारे घर को
खुशियों से भर देते।

घर में कोई समस्या
जब है आती,
हल ढूंढने तक चैन
भी चली जाती।

संतान की पढ़ाई लिखाई के
खातिर करता मेहनत मजदूरी,
उनकी हर ख्वाहिश को
करता जैसे तैसे पूरी।

संतान तो उनके लिए
संतान है होती,
चाहे वो खुशियां लाती
या दुःख है देती।

संतान के पालन पोषण में
नहीं छोड़ता कोई कसर,
अपने स्वास्थ्य पर क्यों न
पड़ जाए चाहे विपरीत असर।

इतना कुछ करने पर पिता
को कई बार खरी खोटी सुनना है पड़ता,
बस यही बातें उन्हें
जल्दी बुढ़ापे में है जकड़ती।

संतान कई बार पिता के
त्याग को भूल है जाती,
इन्हीं बातों पर पिता को
वृद्धाश्रम की राह नज़र है आती।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता पिता के त्याग, संघर्ष और परिवार के प्रति उनके अटूट प्रेम को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती है। कवि बताते हैं कि पिता घर की शान होते हैं, जिनकी छाया में पूरा परिवार सुकून और खुशियों से भर जाता है। पिता दिनभर मेहनत करने के बाद जब शाम को घर लौटते हैं, तो अपने साथ मुस्कान और ऊर्जा लेकर आते हैं। वे परिवार की हर समस्या का समाधान ढूंढ़ने में लगे रहते हैं, और विशेष रूप से अपनी संतान की पढ़ाई, ज़रूरतों और ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए हर प्रकार की मेहनत और त्याग करते हैं — भले ही इसका असर उनके अपने स्वास्थ्य पर क्यों न पड़े। फिर भी, कई बार उन्हें संतानों से तिरस्कार या कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। यह उपेक्षा और अपमान उन्हें भीतर से तोड़ देती है और उन्हें जल्दी बुढ़ापे की ओर धकेल देती है। कविता अंत में एक दर्दनाक सच्चाई को उजागर करती है — कि अक्सर संतान अपने पिता के बलिदानों को भूल जाती है, और यही उपेक्षा उन्हें वृद्धाश्रम तक पहुँचा देती है।

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यह कविता (पिता।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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ये कैसी यात्रा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Ye Kaisi Yatra | ये कैसी यात्रा।

कोई चला अपनों से मिलने,
तो कोई अपनों से मिलकर चला आया,
न मिलने वाला मिल पाया,
न मिलकर गया वापिस आ पाया।

कोई अपना व्यवसाय विदेश करने चला,
तो कोई परिवार सहित घूमने निकला।

न ही व्यवसाय हो पाया,
न ही घूमने का आनंद ले पाया,
मन में अपनों से मिलने के सपने लगे थे आने,
पता नहीं था मौत आज आ बैठी है सिरहाने।

प्रशिक्षु चिकित्सक कर रहे थे खाने की तैयारी,
मालूम न था कि खाना किस्मत में नहीं है हमारी,
एक ने अपने आप को न जाने कैसे बचाया,
लगा ऐसे मानों मौत के मुंह से वापिस आया।

जिंदगी कौन सा खेल कब खेल जाए,
आज तक ये रहस्य कोई जान न पाए।
दोस्तो गुमान किस बात का करना,
पता नहीं अगले पल किसे है मरना।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता जीवन की अनिश्चितता और मृत्यु की अकस्मात उपस्थिति को मार्मिक ढंग से व्यक्त करती है। इसमें बताया गया है कि कुछ लोग अपनों से मिलने निकले थे, कुछ घूमने या व्यवसाय के लिए, लेकिन न वे मिल पाए, न लौट पाए — क्योंकि अचानक आई मौत ने सब कुछ छीन लिया। कविता में एक दुखद दृश्य चित्रित किया गया है जहाँ प्रशिक्षु चिकित्सक भोजन की तैयारी कर रहे थे, पर उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनकी किस्मत में वह भोजन नहीं लिखा था। उनमें से एक किसी तरह बच गया, मानो मौत के मुंह से लौट आया हो। अंत में कवि एक गहरी सीख देता है कि जीवन बहुत अस्थिर और अनिश्चित है — न जाने कौन सा पल आखिरी हो। इसलिए घमंड, लालच या अभिमान करने का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि अगले ही पल क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता।

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यह कविता (ये कैसी यात्रा।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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हमारा क्या कसूर।

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Hamara Kya Kasoor | हमारा क्या कसूर।

खुशी खुशी घूमने पहुंचे पहलगाम,
क्या पता था कि यहाँ हो जाएगा काम तमाम।
कोई विदेश से आया तो कोई अपने ही देश से,
हसीन वादियों का आनंद ले रहे थे बड़े शौक से।

एकाएक सन्नाटा सा छा है जाता,
किसी को कुछ भी समझ नहीं आ पाता।
गोलियों की आवाज़ जोर से है आती,
किसी से धर्म की तो किसी से कलमा पढ़ने की बात पूछी जाती।

हिन्दू शब्द जैसे ही सुनाई देता,
सीने में गोली दाग जान ले लेता।
कलमा पढ़ने में जो नहीं हुआ पास,
उसे भी जीने की नहीं रही थी आस।

हाथों से अभी मेहंदी का रंग भी नहीं था उतरा,
सुहाग उजाड़ कर जिन्दगी कर दी कतरा – कतरा।
आखिर कसूर क्या था जो गोलियों से उड़ाए,
अपने ही देश के तो थे हम कहाँ थे पराए।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता पहलगाम जैसी सुंदर और शांत जगह पर हुई एक दर्दनाक घटना को दर्शाती है। कवि बताता है कि लोग खुशी-खुशी वहाँ घूमने आए थे, कोई विदेश से तो कोई देश के अन्य हिस्सों से, पर उन्हें क्या पता था कि यह यात्रा उनकी आखिरी बन जाएगी। अचानक वहाँ अफरा-तफरी मच जाती है, गोलियों की आवाजें गूंजने लगती हैं। कुछ लोग धर्म पूछकर जान लेने लगते हैं — अगर कोई हिन्दू निकले तो उसे गोली मार दी जाती है, और जो कलमा नहीं पढ़ पाते, उनकी भी जान नहीं बख्शी जाती। कविता उस दर्द को भी दर्शाती है जब नवविवाहित दुल्हनों की हाथों से मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था, और उनका सुहाग उजड़ गया। सवाल उठाया गया है कि आखिर उनका कसूर क्या था? वे तो अपने ही देश के नागरिक थे, फिर भी उन्हें पराया समझकर मारा गया। कुल मिलाकर, यह कविता धार्मिक असहिष्णुता और आतंक की भयावहता को उजागर करती है, साथ ही यह सवाल उठाती है कि जब अपने ही देश में लोग सुरक्षित नहीं हैं, तो इंसानियत कहाँ बची है?

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यह कविता (हमारा क्या कसूर।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मोबाइल फोन का असर।

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Effect of Mobile Phone | मोबाइल फोन का असर।

There is no shame, no respect, seeing all this the common people are getting upset. While making reels they speak dirty words, it seems as if the values ​​have vanished. Effect of mobile phone.

नई पीढ़ी का है ये हाल,
फेसबुक, इंस्टाग्राम पर मचा रखी है धमाल।
मोबाइल फोन का एक जादू सा है छाया
जिसको देखो, जहाँ देखो हरदम इसमें है खोया।

न शर्म, न इज्जत का है कोई ध्यान,
देख ये सब आमजन हो रहा है परेशान।
रील बनाते समय निकालते हैं गन्दे बोल,
संस्कारों का निकल गया है मानो झोल।

मर्यादा का नहीं रहा है कोई नाम,
सिर्फ फौलोवर्स बढ़ाना बन गया है काम।
लाईक व कमेंट देख खुश हो जाते,
मात्र इसी को ही प्रसिद्धि बतलाते।

संस्कार भूल रही है नई पीढ़ी,
शायद इसी को ही समझते हैं आधुनिकता की सीढ़ी।
जिसको देखो वो मोबाइल पर है व्यस्त,
बच्चा, नौजवान और बूढ़ा सब है इसमें मस्त।

मोबाइल फोन का बड़ा नशा है आज,
खाना खाते, उठते बैठते इसका प्रयोग बन गया सबका काज।
मोबाइल फोन के बच्चे हो गए हैं आदि,
गर न मिले तो जान की बाजी तक लगा दी।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में नई पीढ़ी की मोबाइल और सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता व्यक्त की गई है। कवि दर्शाते हैं कि युवा फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर अत्यधिक सक्रिय हैं और मर्यादा, संस्कार व इज्जत की परवाह किए बिना सिर्फ लाइक्स और फॉलोअर्स बढ़ाने में लगे हुए हैं। मोबाइल फोन का नशा इतना बढ़ गया है कि बच्चे, युवा और बूढ़े सभी इसके आदि हो चुके हैं। यह आदत उनके आचरण, संस्कृति और जीवनशैली को प्रभावित कर रही है, जिससे समाज में एक नई समस्या उत्पन्न हो रही है।

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यह कविता (मोबाइल फोन का असर।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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माँ बाप।

Kmsraj51 की कलम से…..

Maa Baap | माँ बाप।

In this poem, the poet has depicted the sacrifice, dedication of parents and their status in changing times. He says that many relationships are formed in life, but no one can take the place of parents. They are like God and shape our personality.

जीवन में हर रिश्ता बन है जाता।
माँ बाप कोई और नहीं बन पाता॥

माँ बाप होते हैं भगवान् का रूप।
उनसे ही बनता हमारा स्वरूप॥

माँ बाप के त्याग व समर्पण को भुलाया नहीं जाता।
कोई इन्हें ठुकराता तो कोई इन्हें गले है लगाता॥

माँ बाप आज सिसकियां है भरते।
अपने ही घर में खुलकर जी नहीं सकते॥

जब होते हैं बच्चे छोटे तो माँ बाप लगते बड़े प्यारे।
जब बच्चे हुए बड़े तो माँ बाप फिरते बेसहारे॥

पोता – पोती से प्यार भी खूब जताते।
पर खुलकर उनसे बात भी नहीं कर पाते॥

यूँ तो पोता पोती होते इन्हें बड़े प्यारे।
क्या करे अब बदल गई दुनियाँ और इसके नजारे॥

आज श्रवण कुमार बड़ी मुश्किल से है मिलता।
जिन माँ बाप को है मिलता उनका बुढ़ापा सुख में है बीतता॥

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि ने इस कविता में माता-पिता के त्याग, समर्पण और बदलते समय में उनकी स्थिति को दर्शाया है। वह कहते हैं कि जीवन में कई रिश्ते बनते हैं, लेकिन माता-पिता का स्थान कोई और नहीं ले सकता। वे भगवान के समान होते हैं और हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं। माता-पिता के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन समाज में कुछ लोग उन्हें ठुकरा देते हैं, तो कुछ उन्हें सम्मान और प्रेम देते हैं। आजकल माता-पिता अपने ही घर में सिसकते हैं और खुलकर जी नहीं पाते। जब बच्चे छोटे होते हैं, तब माता-पिता उन्हें बहुत प्रिय लगते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, माता-पिता उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। वे अपने पोते-पोतियों से प्रेम तो करते हैं, लेकिन उनसे खुलकर बात नहीं कर पाते, क्योंकि समय के साथ समाज और परिस्थितियाँ बदल गई हैं। आज के समय में श्रवण कुमार जैसे आदर्श पुत्र बहुत कम मिलते हैं। जिन माता-पिता को अच्छे और संस्कारी बच्चे मिलते हैं, उनका बुढ़ापा सुखमय बीतता है। इस प्रकार, कविता माता-पिता के महत्व को समझने और उनका सम्मान करने की प्रेरणा देती है।

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यह कविता (माँ बाप।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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सास बहू।

Kmsraj51 की कलम से…..

Saas Bahu | सास बहू।

Earlier mothers-in-law forced their daughters-in-law to wear veils and follow traditions, but now times have changed. Today's mother-in-law treats her daughter-in-law like a daughter, and both share each other's joys and sorrows like friends.

सास बहू का रिश्ता है बड़ा पुराना,
इसकी चर्चा करता है सारा जमाना।
नई नवेली बहू जब घर में है आती,
सास रिश्तेदारों से मुलाकात है करवाती।

बहू आने की खुशी भी खूब है जताती,
आपस में हंंसी खुशी से समय बिताती।
समय की गति सदा एक जैसी नहीं रह पाती,
कभी – कभी आपस में तकरार भी हो जाती।

सास बहू को दहेज न लाने के ताने भी लगाती,
बहू माँ बाप की लाज बचाने में चुपचाप सह जाती।
वक्त बदलने में देर नहीं लगती,
अब बहू बिन दहेज खूब है जचती।

जब मैं थी बहू ये कहानी सास सुनाती,
सास के सामने हमेशा घूंघट में ही नजर आती।
अब सास, वो सास कहाँ रही,
जिनकी बहूओं ने लाख परेशानियां है सही।

आज बहू सास को माता है कहती,
सास भी बहू को बेटी की तरह है सहलाती।
सहेलियों की तरह आपस में है रहती,
अपने सुख दुःख एक दूसरे से हैं कहती।

♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता सास और बहू के रिश्ते के बदलाव को दर्शाती है। पहले सास-बहू का रिश्ता औपचारिकता और कई बार तकरार से भरा होता था, लेकिन समय के साथ इसमें सकारात्मक परिवर्तन आया है। शुरुआत में, जब नई बहू घर में आती है, तो सास उसे अपनाने का दिखावा करती है और रिश्तेदारों से परिचय करवाती है। हालांकि, समय के साथ कुछ मतभेद भी उभर आते हैं, जैसे दहेज को लेकर कटाक्ष। बहू इन तानों को सहती है, लेकिन धीरे-धीरे समाज में बदलाव आता है, और बिना दहेज वाली बहुएँ भी घर में स्वीकार की जाने लगती हैं। पहले की सासें अपनी बहुओं को घूंघट में रहने और परंपराओं का पालन करने के लिए मजबूर करती थीं, लेकिन अब समय बदल चुका है। आज की सास अपनी बहू को बेटी की तरह मानती है, और दोनों सहेलियों की तरह एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी होती हैं। कविता इस रिश्ते में आई सकारात्मकता को दर्शाती है, जहाँ अब सास-बहू का संबंध प्रेम और आपसी समझदारी पर आधारित हो गया है।

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यह कविता (सास बहू।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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बरसात का मौसम।

Kmsraj51 की कलम से…..

Rainy Season | Barasat Ka Mausam | बरसात का मौसम।

'rainy season', describing the arrival of the rainy season and its effects. The rain showers bring greenery all around and the clouds start touching the ground.

वर्षा की बौछारें अब लगी है आने।
चहुँ ओर हरियाली सी लगी है छाने॥

बादल मानों जमीं को लगे है छुने।
झमाझम वर्षा अब लगी है होने॥

किसान खेतों में फसल लगे हैं बोने।
धान की रोपाई भी लगी है होने॥

बच्चे भी छुट्टियों का आनंद लगे हैं लेने।
सुबह शाम पढ़ाई करते दिन भर अनेकों खेल खेले॥

वर्षा की फुहारें जब भी लगे पड़ने।
मोर भी नाच कर स्वागत लगे हैं करने॥

वर्षा ऋतु में पानी भी होने लगता है प्रदूषित।
छानकर व उबाल कर पीने से फायदे हैं अदभुत॥

हैजा, पेचिस व मलेरिया फैलाते हैं अपना जाल।
सावधानी न बरतने पर कर देते हैं बेहाल॥

नदी नालों के पास जाने से बचें।
तभी तो बरसात के दिन निकलेगें अच्छे॥

♦ विनोद वर्मा जी / जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता ‘बरसात का मौसम’ के बारे में है, जिसमें वर्षा ऋतु के आगमन और इसके प्रभावों का वर्णन किया गया है। वर्षा की बौछारों से चारों ओर हरियाली छा जाती है और बादल ज़मीन को छूने लगते हैं। किसान खेतों में फसलें बोने लगते हैं, विशेषकर धान की रोपाई की जाती है। बच्चे छुट्टियों का आनंद लेते हैं, दिन भर खेलते हैं और सुबह-शाम पढ़ाई करते हैं। मोर भी बारिश की फुहारों का स्वागत नाच कर करते हैं। हालांकि, वर्षा ऋतु में पानी प्रदूषित हो जाता है, इसलिए उसे छानकर और उबालकर पीना चाहिए। इसके अलावा, हैजा, पेचिस और मलेरिया जैसी बीमारियाँ फैलती हैं, जिससे सावधानी न बरतने पर लोग परेशान हो सकते हैं। अंत में, कवि सलाह देते हैं कि नदी-नालों के पास जाने से बचना चाहिए ताकि बरसात के दिन अच्छे से बिताए जा सकें।

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यह कविता (बरसात का मौसम।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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