Kmsraj51 की कलम से…..
♦ आज न होगा। ♦
आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
विपदा में व्यथित जो समूची धरती है।
नफरत के शोलों से विदीर्ण हर वक्ष आज है,
मानवता तिल – तिल कर आज यहां मरती है।
दर्द का दरिया बह रहा है दिल में,
हृदय की जमीन हो गई अब परती है।
मानस कल्पना की लहरों से भी अब तो,
आक्रोश – कटाक्ष की आग ही झड़ती है।
अतृप्त लालसाओं ने जग को है घेरा,
स्वार्थ बेड़ियों ने रूह ही मानो जकड़ी है।
अब उठती ही कहां है कोमल भावनाएं मन में?
हृदय भाव की गति भौतिकता ने जो जकड़ी है।
होता न आदर आज गांव के गलियारों में,
शहरों में तो पहले से ही रही आपाधापी है।
आज न नातों – रिश्तों की कद्र है कहीं पर,
मानव रूप में पाश्विक सभ्यता देखो आती है।
गांव की गुड्डी को गभरू बहन यहां कहते थे,
आज नव जवान देहाती भी खुराफाती है।
महफूज कहां रही अब अस्मत बहू – बेटी की?
वह अपनों के ही हाथों आज लूटी जाती है।
पढ़े-लिखे आदिमानव हो चले हैं हम क्या?
अर्धनग्न घूमते हैं और मद्य – मांस ही खाते हैं।
पशु सी करते हैं करतूतें सब उन्मादी में,
फिर खुद को सभ्य – सुसंस्कृत मानव बताते हैं।
हाय – हाय री! फैशन लाचारी और मानव दुर्दशे,
सच में आज विद्रूपता है जीती और हम है हारे।
शहर – शहर और गांव – गांव में देखो आज तुम,
हर कोई फिरते हैं फैशन के पीछे मारे – मारे।
आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
इन सब घटनाओं से भीतर भारी पीड़ा है।
मानव समाज में विकृतियों आते देख को,
सोचता हूं, यह विधि की कैसी क्रीड़ा है?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — समस्त संसार का एक ही मूलमंत्र होना चाहिए, वो है जीवमात्र पर दया करना। यह दया भाव मनुष्य का मनुष्य के प्रति या मनुष्य का अन्य जीवों के प्रति होती है। जीवमात्र पर दया करना ही मानवता है। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। पर आजकल हो क्या रहा है? इसके बिलकुल उलट – सबकुछ हो रहा है आज का मानव शैतान व राक्षस हो गया है, शराब पीना, मांस खाना, बलात्कार करना, काम वासना व नशे में चूर होकर बड़े से बड़ा विकर्म करने से भी जरा भी नही डरता, क्यों ? पूर्ण रूप से शैतान व राक्षस बन गया है आज का मानव पढ़-लिखकर भी ऐसे कुकर्म करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता की आने वाली पीढ़ी के लिए हम क्या सीख दे रहे हैं, हद हैं तेरी रे मानव क्या से क्या हो गया तू !
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यह कविता (आज न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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