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poetry on farmer in hindi

हंसिया।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ हंसिया। ♦

हंसिया हल्के हाथ की,
मालिक से लड़ जाए।
खटर पटर करके चली।
गटर – गटर घर खाए।

हरीयर चारा चटक – चटक,
लपक – लपक नर लाए।
झटक – झटक उस चेहरे को,
मालिक द्वार पर लाए।

पटर पटर चारा मशीन से,
हरीअर चारा बाला जाए।
खेती गहबार अरहर की,
हच हच हंसिया काट गिराए।

धार प्रक्षालन रेती पर कर।
अरहर मालिक घर लाए।
धीराता वीरता के गुण सदा,
मनुष्य में मालिक बताए।

हसिया हाथ हिलाते जाती।
योग साधना बताने आती।
मन मौसम बनाने आती।
नारायण कोठीला भर आती।

अपनों को अपनापन सिखाती।
वह बार-बार लड़ने को जाती।
भूखे भक्तों की भूख मिटाती।
विश्व क भाव का पाठ पढ़ाती।

हंसकर हंसिया हाथ आती।
फंसरी काट मुक्ति दिलाती।
हंसिया हाथ हिलाते जाती।
विविध तरह का रूप दिखाती।

मदुआ सांवा खूब काटती।
उड़द टामुन से घर भारती।
चना चबैना गंगाजल अमृत।
हंसिया के मुठिया में रहता।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – बहुत सारे उदाहरण देकर हंसिया के महत्व और हंसिया के कार्य व गुणों को कवि ने बखूबी अक्षरस वर्णित किया हैं। हंसिया किस तरह से एक किसान का महत्वपूर्ण औजार हैं, मुख्य रूप से चारा काटना हो, गेहूँ, जौ, धान, बाजरा या कोई अन्य फसल काटना हो हंसिया का ही मुख्य रोल होता हैं।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (हंसिया।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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किसान ब्याज।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ किसान ब्याज। ♦

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आज आ गया जब घर में,
भारी भरकम अनाज।
ताक लगाए बनिया बैठा,
पैसा लगाने को आज।

दे रखा था पहले से ही,
रुपया कुछ पर ब्याज।
अड़ा खड़ा बनिया घर पर,
लेने को सस्ता अनाज।

देख रहा था तिरछी आंखें,
वह किसान का अनाज।
खैनी फांक रहा वह,
किसान के द्वार।

बोला इसी फसल में चुकता।
कर दो मेरा पूरा ब्याज।
अभी मूल की बातें होती।
तुम पर गिरेगी गाज।

घूमर घूमर बादल छाए।
ख्यालों में आकाश दिखाएं।
बेचारा किसान क्या करता ?
आधा अनाज ब्याज का देता ?

गुजरे दिन सदियों किसान के,
कोई सुध नहीं लेता।
बरसों से थोड़ी आशावत,
एमएसपी पर अनाज बिकता।

बिचौलियों ने चक्कर डाला।
आंदोलन का हवाला।
अनाज गोदाम जो जाए।
मुझे भी मिले निवाला।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – किसान, ब्याज और एमएसपी को कविता के माध्यम से।

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यह कविता “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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बुझने से पहले।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ बुझने से पहले। ♦

जिस तरह रात सरकते-सरकते।
सीने में जलता कोयला।
धीरे-धीरे से राख़ बनते हुए।
बुझकर ठंडी पड़ रही हूँ।
धुआंकश की नली में इस वक्त।
धुआं की बारीक बेल तक नहीं॥

तुमने गौर नहीं किया था उस दिन।
तुमने आग में जो धकेल दिये।
उस कुंदे में जान अभी बाकी थी।
कच्चे लट्ठे से उठते धुआं के बादल।
जलन से चढ़ती जा रही।
तुम्हारी आँखों की लाली॥

और तुम फ़िर से इंधन छिड़क कर,
आग लगा देते थे।
और मैं भड़क कर धक्-धक् दहकने लगती थी।
वो किस तरह की तेज़ ज्वालाएँ थीं मेरी।
वो किस तरह की जलती अंगारे आंखें थी मेरी।
वो किस तरस की लौ की जीभ थी मेरी॥

उन दिनों तुम्हारी,
अक्खड़ और दुष्टता से भरी।
घमंड के महल को जलाकर।
भस्म करने के हठ से ही।
दहड़-दहड़ दहक रही थी मैं भी॥

तुम तो चूल्हे की सीमा के अंदर ही।
मुझे जलाकर उसकी आंच पर,
अपनी दाल पकाने वाले चालाक हो।
मुझे जला-जलाकर ही,
अपनी भूख मिटाने में माहिर हो॥

सच कहूँ तो एक भूख मुझमें भी थी।
इस घोर अंधकार की रातों में।
तुम्हारी आँखों में चिराग बनकर।
जल जाने की भूख।
और एक प्यास भी मुझमें थी।
इस बर्फीली रातों की कड़ाके की ठंड में॥

तुम्हारे पत्थर दिल को।
अपनी गरम होंठों से चूमकर।
जान डाल देने की प्यास।
मगर अफ़सोस…
आग लगाने वाले हाथ ही।
रोशनी न समझने पर॥

बाज़ार खत्म हो जाने के बाद भी।
तोल मोल खत्म न होने पर,
क्षय होने लगती हूँ।
क्षमा करने लगती हूँ।
लेकिन तुम जैसे थे, वैसे ही हो आज भी।
पिघली नहीं है रत्तीभर भी।
आग लगाने वाली तुम्हारी ताकत॥

उंडेल देते हो इंधन, फ़िर भी।
मिटती नहीं है तुम्हारी वो भूख भी।
तुम्हारे अंगारों के कुंड में जलते-जलते।
खुद को ही जलाते-जलाते।
अंत में राख़ के अंदर ही अंदर बुझते-बुझते।
इस बर्फीली रातों में, ठंडी पड़ती जा रही हूँ॥

उतने में कहीं ओर से,
इस शीतल रात की आखरी प्रहर।
किसी पंछी की मीठी पुकार।
तेल घटे दिल के दीये में।
प्रेम बहाती किसी की नर्म उंगलियां॥

सोच रही हूँ।
बुझने से पहले फ़िर एक बार।
नयापन से, नये सिरे से।
लाख दीपक के तरह।
मैं क्यूं न जल उठूँ?

♦– मीरा मेघमाला –♦

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यह कविता “मीरा मेघमाला” जी की रचना है। आपके द्वारा लिखी कविता ह्रदय को छूने वाली होती है। हर उम्र के लोग आपकी कविताओं को पसंद करते है। आपकी कविताओं से हर उम्र के लोगो को फायदा मिलता है। आपकी लेखनी यु ही चलती रहे। आपके उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ। “मीरा मेघमाला” जी KMSRAJ51.COM के ऑथर टीम पैनल में आपका तहे दिल से स्वागत है।

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अकाल की भारी बरसात।

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♦ अकाल की भारी बरसात। ♦

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अकाल से तपते बंजर खेतों में।
संज्ञहीन बैठे किसान के सामने।
कैमरा और माइक के साथ।
अचानक प्रकट हुआ।
टीवी चैनल का एक संवाददाता और
एक ही सांस में बरसाने लगा कईं सवाल॥

‘ये अकाल है, या क्या है?
इसका जिम्मेदार कौन है?
इससे आपको क्या तकलीफ़ है?
नज़दीक ही सिंचाई बांध है और
पास में ही भरी बहती नहर।
फ़िर भी पानी की कमी का आरोप।
बताइए ये कितना सही है॥’

शुन्य में गढ़ी नज़र।
जरा भी न हटाते हुए।
विषण्ण हंसी के साथ।
किसान का एकालाप।
‘पैसे वालों ने खोदा गड्ढा बड़ा है।
और पानी तो हमेशा।
नीचे की ओर ही बहता है॥’

अकाल से दहकते धूप के गाँव में।
एक दिन एक ही घंटे भर।
एकाएक भारी बारिश।
खड़कती बिजलियां।
और तेज़ आंधी की भयावह दौड़।
धराशायी पेड़-पौधों को देखकर।
ढह कर बेहोश गिर पड़ा किसान।
और उसके सामने।
संवाददाता फ़िर से हुआ हाज़िर॥

‘बारिश की कमी को कोसते हो।
जब बारिश हुई तो फूट-फूट कर रोते हो।
गिर पड़े पेड़-पौधों पर ही यूं लेटे हो।
बताओ अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’
घबराहट से पल भर आंखें खोलते।
हालात को देखकर फ़िर से होश खोते॥

कमज़ोर आवाज़ में बड़बड़ाने लगा।
कंगाल किसान।
“क्या करें भाई।
पैसे वालों के महलों के जितने मज़बूत नहीं है।
अपने खेतों की केले के पौधों की कमर।
कैसे सह पाएँगे आंधी-तूफ़ानों का असर॥”

♦– मीरा मेघमाला –♦

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यह कविता “मीरा मेघमाला” जी की रचना है। आपके द्वारा लिखी कविता ह्रदय को छूने वाली होती है। हर उम्र के लोग आपकी कविताओं को पसंद करते है। आपकी कविताओं से हर उम्र के लोगो को फायदा मिलता है। आपकी लेखनी यु ही चलती रहे। आपके उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ। “मीरा मेघमाला” जी KMSRAJ51.COM के ऑथर टीम पैनल में आपका तहे दिल से स्वागत है।

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