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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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positive mind

सन् 1600 बनाम सन् 2014 – 40।

kmsraj51 की कलम से …..

Kmsraj51-CYMT-Oct-14-1

सन् 1600 बनाम सन् 2014-40 ….. 

वर्तमान दौर चाहे वह राजनीति का हो या आर्थिक या फिर इस देश के चिर-संस्कारों से निर्मित नैतिक मूल्यों का ये सभी एक बहुत ही भयावह दौर से गुजर रहे हैं शायद कुछ लोग जो विद्वता के धनी है इसे संक्रमण काल के नाम से भी जानते हैं तो कुछ लोग इसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोगवाद कह रहे हैं लेकिन यह समय मात्र और मात्र एक सच्चे भारतीय जो इसकी अखंडता एवं गौरवमयी इतिहास से थोड़ा भी सरोकार रखता है, के लिए बहुत ही विषम एवं चिंताजनक है स्पष्ट रुप में कहें तो बहुत ही भयावह है।


इतिहास गवाह है कि इस देश की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि इसने एक से एक संस्कारी महापुरुष तथा देशभक्त पैदा किए हैं लेकिन यह इस मिट्टी का दुर्भाग्य है कि विनाशकारी खरपतवार के रुप में यहां जयचंदों ने भी जन्म लिया है तथा इस पावन धरा को कलंकित किया है। आज का भारत भी इसी दौर से गुजर रहा है जहां ख्ररपतवार इतना बढ़ गया है कि अब पोषक फसलें नज़र ही नहीं आती और यह स्थिती केवल राजनीति ही नहीं कमोबेश हर क्षेत्र की हैं। इसका मात्र और एक मात्र कारण हमारे चिर-संस्कारों एवं मूल्यों का ह्रास होना है। मूल्यों एवं आदर्शों का प्रवाह सदैव शीर्ष से होता है और कहा भी है कि यथा राजा-तथा प्रजा लेकिन आज अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए हमारे देश के कर्णधार नेतृत्व कर्ताओं ने इस उक्ति को ही बदल दिया और बयान दिया कि जैसी जनता है वैसे ही नेतृत्व कर्ता बनेंगे अर्थात ये लोग जनता के इच्छानुसार ही अपने हित साधन के लिए सारे अपराध एवं भ्रष्ट तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। आखिर वो कौन सी प्रजा या जनता है जिसने राजा को भ्रष्ट एवं डकैत बनने के लिए जनादेश दिया? शायद इसका उत्तर यह है कि इस देश में जनता या नागरिक नाम की कोई व्यवस्था अब अस्तित्व में ही नहीं है यहां केवल उपभोक्तावादी संस्कृति के पोषक मतदाता रहते हैं जिन्हें कोई भी खरीद सकता है तथा ये तथाकथित मतदाता भोली चिड़ियाओं की भांति किसी भी बहेलिए के जाल में फंसने को आतुर है। फिर चाहे वह बहेलिए देशी हो या विदेशी इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लालच ने संवेदनाओं को मृत प्राय: कर दिया है। इन चिड़ियाओं को स्वतंत्र आसमान से बेहतर सुख-सुविधा युक्त वो स्वप्निल सोने का पिंजड़ा अधिक रास आने लगा है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं और जो मात्र और मात्र एक छलावा भर है।

आज इस देश की जनता को देश के प्रोफाईल से अधिक अपना हाई प्रोफाईल प्रिय है कमोबेश आज हमारा देश गुलामी से पहले के उसी दौर से गुजर रहा हैं। जनता विभिन्न मुद्दों पर आपस में बंटी हुई है चाहे वो आरक्षण का मुद्दा हो या राज्यवाद या फिर धर्म या जातिवाद का चारों और विघटनकारी शक्तियों का बोलबाला हैं हर आदमी ने अपने चारों और अपने स्वार्थों का एक घेरा बना रखा है तथा इस घेरे या उसके क्षुद्र स्वार्थों को नुकसान पहुंचाने वाला हर आदमी उसका शत्रु है। इस देश में अपनी जातिगत गौरव गाथा गाने वाले इतने जातिगत व धार्मिक सामाजिक संगठन है जिनको शायद गिनना भी संभव नहीं होगा लेकिन दुर्भाग्य है कि वे महापुरुष जो राष्ट्र के लिए एक होकर लड़े उनको भी इन कम्बख्तों ने अपने स्वार्थ के अनुरुप बांट दिया । आज कहीं भी अखिल भारतीय समाज नाम की कोई संस्था नही है क्योंकि सभी ने अपने आपको कई सांचों में बांट लिया है तथा सभी के अपने अपने हित हैं जिनके लिए वे लड़ रहे है उनकी तरफ से देश भले गर्त में जाए कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन्हें यह पता नही कि जब तक यह देश अखंड एवं सुरक्षित है तभी तक उनका या उनके समाज का अस्तित्व है: आज की युवा पीढ़ी को एक अदद नौकरी और सुख सुविधा युक्त घर से अधिक सोचने की जरूरत महसूस नहीं होती देश के विषय में या अपनी सभ्यता संस्कृति के बारे में मनन करने का कोई औचित्य नहीं हैं अपने घर की बनी रोटी भी यदि विदेशी पेकिंग में दी जाती है तो खुशी होती है। आज कमोबेश हर दूसरा आदमी मानसिक गुलामी के दौर से गुजर रहा है राष्ट्र छद्म अराजकता के वातावरण से गुजर रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है? विकास के नाम पर अपने स्वाभिमान, राष्ट्रीय संस्कृति को भूलाना तथा भौतिकता के चकाचौंध में प्राकृतिक संसाधनों का बंदरबांट कर देश को रसातल की और ले जाना, क्या आजादी का यही मतलब है?

आज के दौर की तुलना भारत के राजपूतकालीन समय से की जा सकती है जब भारत कई छोटी- छोटी रियासतों में बंटा हुआ था तथा ये रियासतें छुद्र स्वार्थों की पूर्ती हेतु आपस में लड़ती रहती थीं। विलासिता एवं अकर्मण्यता की पर्याय बन चुकी ये रियासतें अंदर से जर्जर हो चुकी थी।परिणामस्वरूप ये रियासतें कमजोर होती गईं विदेशी आक्रांताओं ने अपनी हवस एवं बेलगाम क्षुधा की पूर्ति हेतु इसा पावन धरा को कलुषित किया ताकत का एक बड़ा भाग भारतीय समाज कई बुराईयों जैसे छुआछुत, उच्श्रंखल जातिवाद , संप्रदायवाद इत्यादि में जकड़ा हुआ था तो क्या आज कमोबेश हमारे सामने वही परिदृश्य नहीं दिखाई दे रहा है। किसी ने क्या खूब कहा है कि इतिहास अपनी पुनरावृत्ति करता है पर क्या इतने कम अंतराल पर और क्या हम इससे सीख लेने के बजाय इसकी पुनरावृति होने देंगें। आज ये छोटे-छोटे राज्य जो कि नदी के पानी, भाषा, खनिजों के आधिपत्य के लिए न्यायालय में हाजिरी दे रहे हैं और सैकड़ों पार्टियां जो क्षुद्र स्वार्थों के लिए जनता को सब्ज बाग दिखा कर उनका वोटा हासिल कर रही हैं तत्पश्चात उसी जनता का शोषण तो क्या ये आजादी और उससे भी पूर्व अंग्रेजों के आगमन के समय का परिदृश्य प्रस्तुत नहीं कर रही है तथा जनता लाचार कई मतभेदों में उलझी हुई निरिह बनी सब कुछ सहने को विवश है।अगर इसी का नाम आजादी है तो वह दिन दूर नहीं जब इस देश के गद्दार इस देश की अमूल संपदा के साथ-साथ यहां के कथित मतदाताओं के भविष्य का भी किसी विदेशी के हाथों सौदा कर दें तथा बाद में कहें कि जीडीपी बढ़ाने के लिए यह जरूरी था।
जिस देश के पड़ोसी ताकतवर, कूटनीतिक एवं साम्राज्यवादी हों उस देश का राजनैतिक व नैतिक पतन की ओर अग्रसर होना उसके दुश्मनों के मार्ग को और सुगम बना देता है तथा वह देश बिना किसी युद्ध के ही गुलाम बनाया जा सकता है क्योंकि किसी देश का नेतृत्व ही उस देश की समृद्धि और ताकत का आईना होता है जिसमें उस देश की बाकी आवाम की झलक देखी जा सकती है।

संजय मिश्र “सदांश”

नोट: यह रचना किसी विशेष वर्ग, समुदाय या व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है, न ही हमारा उद्देश्य किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है । यह लेख पूर्ण रुप से मां भारती को समर्पित है। यदि कोई तथ्य किसी से मिलता है तो यह संयोग मात्र होगा।


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** संजय मिश्रा **

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We are grateful to Mr. संजय मिश्रा  for sharing this inspirational article in Hindi for http://kmsraj51.com/ readers.

आपका सबका प्रिय दोस्त,

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor Founder & CEO
of,,  http://kmsraj51.com/

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

http://wp.me/p3gkW6-1dk

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

http://wp.me/p3gkW6-mn

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

http://wp.me/p3gkW6-1dD

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

http://wp.me/p3gkW6-Ig

* चांदी की छड़ी।

http://wp.me/p3gkW6-1ep

 

 

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“Soul Sustenance & Message for the day 26-01-2014”

KMSRAJ51 Celebrate ~ Happy Anniversary!! Month
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KMSRAJ51 Celebrate ~ Happy Anniversary!! Month
95 kmsraj51 readers

kmsraj51 की कलम से …..
Indian Flag

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Soul Sustenance 26-03-2014
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The Life Jacket Of Hope

In the midst of the constant changes of life and confusing or chaotic situations, hope, becomes our life jacket, which helps us to keep afloat and not to drown in the hurricane that at times causes unexpected or sudden changes. Without hope, we expect the worst. Our vision gets cloudy; we do not find or see any ray of light to see by. The mind fills with questions, allowing it to be overpowered by doubts and insecurity. Fear takes control of us and everything turns into a mountain or an un-climbable wall. It seems to us that we will not be able to get out of the difficult and critical moments, or it will be difficult for us to get out of the “hole”. We feel incapable of going forward. Fear and doubt paralyze us and prevent us from deciding with clarity and acting with determination. We need to find support or help and, when we don’t get it, we go even further down.

Living with hope keeps us awake. With hope we are open to the opportunities that life offers us. We overcome fear and expect the best. With hope our forces are joined in order to deal with and overcome difficulties. We maintain the vision that everything will get better and things will streamline themselves, giving out benefits to all. Hope helps us to keep the meaning of our life alive.

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Message for the day 26-03-2014
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Cooperation brings beauty and growth.

Expression: Everyone seeks for cooperation from others, but the beauty lies in cooperating with others. True cooperation is that which is given with the heart and touches the lives of others positively. It inspires others to be cooperative too. This is the true help that one can extend to others.

Experience: When I am able to be cooperative with others and provide them with the help that they require, I am able to enjoy the joy of giving unconditionally. I am free from expectations from others and I am able to enjoy the growth that I perceive in others. I don’t expect others to change for me but because they can improve.

In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

Note::-
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सन् 1600 बनाम सन् 2014 – 40 ~ Year 1600 vs. Year 2014 – 40 !!

::- Krishna Mohan Singh(kmsraj51) …..


kmsraj51 की कलम से …..
pen-kms

** सन् 1600 बनाम सन् 2014-40 ….. **

वर्तमान दौर चाहे वह राजनीति का हो या आर्थिक या फिर इस देश के चिर-संस्कारों से निर्मित नैतिक मूल्यों का ये सभी एक बहुत ही भयावह दौर से गुजर रहे हैं शायद कुछ लोग जो विद्वता के धनी है इसे संक्रमण काल के नाम से भी जानते हैं तो कुछ लोग इसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोगवाद कह रहे हैं लेकिन यह समय मात्र और मात्र एक सच्चे भारतीय जो इसकी अखंडता एवं गौरवमयी इतिहास से थोड़ा भी सरोकार रखता है, के लिए बहुत ही विषम एवं चिंताजनक है स्पष्ट रुप में कहें तो बहुत ही भयावह है।
इतिहास गवाह है कि इस देश की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि इसने एक से एक संस्कारी महापुरुष तथा देशभक्त पैदा किए हैं लेकिन यह इस मिट्टी का दुर्भाग्य है कि विनाशकारी खरपतवार के रुप में यहां जयचंदों ने भी जन्म लिया है तथा इस पावन धरा को कलंकित किया है। आज का भारत भी इसी दौर से गुजर रहा है जहां ख्ररपतवार इतना बढ़ गया है कि अब पोषक फसलें नज़र ही नहीं आती और यह स्थिती केवल राजनीति ही नहीं कमोबेश हर क्षेत्र की हैं। इसका मात्र और एक मात्र कारण हमारे चिर-संस्कारों एवं मूल्यों का ह्रास होना है। मूल्यों एवं आदर्शों का प्रवाह सदैव शीर्ष से होता है और कहा भी है कि यथा राजा-तथा प्रजा लेकिन आज अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए हमारे देश के कर्णधार नेतृत्व कर्ताओं ने इस उक्ति को ही बदल दिया और बयान दिया कि जैसी जनता है वैसे ही नेतृत्व कर्ता बनेंगे अर्थात ये लोग जनता के इच्छानुसार ही अपने हित साधन के लिए सारे अपराध एवं भ्रष्ट तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। आखिर वो कौन सी प्रजा या जनता है जिसने राजा को भ्रष्ट एवं डकैत बनने के लिए जनादेश दिया? शायद इसका उत्तर यह है कि इस देश में जनता या नागरिक नाम की कोई व्यवस्था अब अस्तित्व में ही नहीं है यहां केवल उपभोक्तावादी संस्कृति के पोषक मतदाता रहते हैं जिन्हें कोई भी खरीद सकता है तथा ये तथाकथित मतदाता भोली चिड़ियाओं की भांति किसी भी बहेलिए के जाल में फंसने को आतुर है। फिर चाहे वह बहेलिए देशी हो या विदेशी इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लालच ने संवेदनाओं को मृत प्राय: कर दिया है। इन चिड़ियाओं को स्वतंत्र आसमान से बेहतर सुख-सुविधा युक्त वो स्वप्निल सोने का पिंजड़ा अधिक रास आने लगा है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं और जो मात्र और मात्र एक छलावा भर है।

आज इस देश की जनता को देश के प्रोफाईल से अधिक अपना हाई प्रोफाईल प्रिय है कमोबेश आज हमारा देश गुलामी से पहले के उसी दौर से गुजर रहा हैं। जनता विभिन्न मुद्दों पर आपस में बंटी हुई है चाहे वो आरक्षण का मुद्दा हो या राज्यवाद या फिर धर्म या जातिवाद का चारों और विघटनकारी शक्तियों का बोलबाला हैं हर आदमी ने अपने चारों और अपने स्वार्थों का एक घेरा बना रखा है तथा इस घेरे या उसके क्षुद्र स्वार्थों को नुकसान पहुंचाने वाला हर आदमी उसका शत्रु है। इस देश में अपनी जातिगत गौरव गाथा गाने वाले इतने जातिगत व धार्मिक सामाजिक संगठन है जिनको शायद गिनना भी संभव नहीं होगा लेकिन दुर्भाग्य है कि वे महापुरुष जो राष्ट्र के लिए एक होकर लड़े उनको भी इन कम्बख्तों ने अपने स्वार्थ के अनुरुप बांट दिया । आज कहीं भी अखिल भारतीय समाज नाम की कोई संस्था नही है क्योंकि सभी ने अपने आपको कई सांचों में बांट लिया है तथा सभी के अपने अपने हित हैं जिनके लिए वे लड़ रहे है उनकी तरफ से देश भले गर्त में जाए कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन्हें यह पता नही कि जब तक यह देश अखंड एवं सुरक्षित है तभी तक उनका या उनके समाज का अस्तित्व है: आज की युवा पीढ़ी को एक अदद नौकरी और सुख सुविधा युक्त घर से अधिक सोचने की जरूरत महसूस नहीं होती देश के विषय में या अपनी सभ्यता संस्कृति के बारे में मनन करने का कोई औचित्य नहीं हैं अपने घर की बनी रोटी भी यदि विदेशी पेकिंग में दी जाती है तो खुशी होती है। आज कमोबेश हर दूसरा आदमी मानसिक गुलामी के दौर से गुजर रहा है राष्ट्र छद्म अराजकता के वातावरण से गुजर रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है? विकास के नाम पर अपने स्वाभिमान, राष्ट्रीय संस्कृति को भूलाना तथा भौतिकता के चकाचौंध में प्राकृतिक संसाधनों का बंदरबांट कर देश को रसातल की और ले जाना, क्या आजादी का यही मतलब है?

आज के दौर की तुलना भारत के राजपूतकालीन समय से की जा सकती है जब भारत कई छोटी- छोटी रियासतों में बंटा हुआ था तथा ये रियासतें छुद्र स्वार्थों की पूर्ती हेतु आपस में लड़ती रहती थीं। विलासिता एवं अकर्मण्यता की पर्याय बन चुकी ये रियासतें अंदर से जर्जर हो चुकी थी।परिणामस्वरूप ये रियासतें कमजोर होती गईं विदेशी आक्रांताओं ने अपनी हवस एवं बेलगाम क्षुधा की पूर्ति हेतु इसा पावन धरा को कलुषित किया ताकत का एक बड़ा भाग भारतीय समाज कई बुराईयों जैसे छुआछुत, उच्श्रंखल जातिवाद , संप्रदायवाद इत्यादि में जकड़ा हुआ था तो क्या आज कमोबेश हमारे सामने वही परिदृश्य नहीं दिखाई दे रहा है। किसी ने क्या खूब कहा है कि इतिहास अपनी पुनरावृत्ति करता है पर क्या इतने कम अंतराल पर और क्या हम इससे सीख लेने के बजाय इसकी पुनरावृति होने देंगें। आज ये छोटे-छोटे राज्य जो कि नदी के पानी, भाषा, खनिजों के आधिपत्य के लिए न्यायालय में हाजिरी दे रहे हैं और सैकड़ों पार्टियां जो क्षुद्र स्वार्थों के लिए जनता को सब्ज बाग दिखा कर उनका वोटा हासिल कर रही हैं तत्पश्चात उसी जनता का शोषण तो क्या ये आजादी और उससे भी पूर्व अंग्रेजों के आगमन के समय का परिदृश्य प्रस्तुत नहीं कर रही है तथा जनता लाचार कई मतभेदों में उलझी हुई निरिह बनी सब कुछ सहने को विवश है।अगर इसी का नाम आजादी है तो वह दिन दूर नहीं जब इस देश के गद्दार इस देश की अमूल संपदा के साथ-साथ यहां के कथित मतदाताओं के भविष्य का भी किसी विदेशी के हाथों सौदा कर दें तथा बाद में कहें कि जीडीपी बढ़ाने के लिए यह जरूरी था।
जिस देश के पड़ोसी ताकतवर, कूटनीतिक एवं साम्राज्यवादी हों उस देश का राजनैतिक व नैतिक पतन की ओर अग्रसर होना उसके दुश्मनों के मार्ग को और सुगम बना देता है तथा वह देश बिना किसी युद्ध के ही गुलाम बनाया जा सकता है क्योंकि किसी देश का नेतृत्व ही उस देश की समृद्धि और ताकत का आईना होता है जिसमें उस देश की बाकी आवाम की झलक देखी जा सकती है।

संजय मिश्र “सदांश”

नोट: यह रचना किसी विशेष वर्ग, समुदाय या व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है, न ही हमारा उद्देश्य किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है । यह लेख पूर्ण रुप से मां भारती को समर्पित है। यदि कोई तथ्य किसी से मिलता है तो यह संयोग मात्र होगा।

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पर ** दिल से धन्यवाद संजय भाई !! **
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सकारात्मक सोच का जादू।

Kmsraj51 की कलम से…..

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सकारात्मक सोच का जादू 

सकारात्मक सोच का जादू
सकारात्मक सोच का जादू

एक ऋषि के दो शिष्य थे। जिनमें से एक शिष्य सकारात्मक सोच वाला था वह हमेशा दूसरों की भलाई का सोचता था और दूसरा बहुत नकारात्मक सोच रखता था और स्वभाव से बहुत क्रोधी भी था। एक दिन महात्मा जी अपने दोनों शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए उनको जंगल में ले गये।
जंगल में एक आम का पेड़ था जिस पर बहुत सारे खट्टे और मीठे आम लटके हुए थे। ऋषि ने पेड़ की ओर देखा और शिष्यों से कहा की इस पेड़ को ध्यान से देखो।फिर उन्होंने पहले शिष्य से पूछा की तुम्हें क्या दिखाई देता है।

शिष्य ने कहा कि ये पेड़ बहुत ही विनम्र है लोग इसको पत्थर मारते हैं फिर भी ये बिना कुछ कहे फल देता है। इसी तरह इंसान को भी होना चाहिए, कितनी भी परेशानी हो विनम्रता और त्याग की भावना नहीं छोड़नी चाहिए। फिर दूसरे शिष्या से पूछा कि तुम क्या देखते हो, उसने क्रोधित होते हुए कहा की ये पेड़ बहुत धूर्त है बिना पत्थर मारे ये कभी फल नहीं देता इससे फल लेने के लिए इसे मारना ही पड़ेगा।

इसी तरह मनुष्य को भी अपने मतलब की चीज़ें दूसरों से छीन लेनी चाहिए। गुरु जी हँसते हुए पहले शिष्य की बढ़ाई की और दूसरे शिष्य से भी उससे सीख लेने के लिए कहा। सकारात्मक सोच हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर डालती है। नकारात्मक सोच के व्यक्ति अच्छी चीज़ों मे भी बुराई ही ढूंढते हैं।

उदाहरण के लिए:- गुलाब के फूल को काँटों से घिरा देखकर नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सोचता है की “इस फूल की इतनी खूबसूरती का क्या फ़ायदा इतना सुंदर होने पर भी ये काँटों से घिरा है ” जबकि उसी फूल को देखकर सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति बोलता है की “वाह! प्रकर्ती का कितना सुंदर कार्य है की इतने काँटों के बीच भी इतना सुंदर फूल खिला दिया” बात एक ही है लेकिन फ़र्क है केवल सोच का।

तो मित्रों, अपनी सोच को सकारात्मक और बड़ा बनाइए तभी हम अपने जीवन में कुछ कर सकते हैं।

kms1006
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* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

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* चांदी की छड़ी।

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सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र।

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Positive thinking is the success mantra of life.

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क्या आपके पास कोई ऐसा हुनर है जो औरों से अलग है? अगर आपको लगता है “नहीं” तो आप बिल्कुल गलत हैं। क्योंकि हर इंसान को भगवान ने बनाया है और सबके पास कोई ना कोई ऐसा हुनर है जो औरों से अलग है। आमतौर पर लोग ये कहते हैं कि “हमने तो पूरी कोशिश कि पर काम नही हुआ”, दरअसल अगर आप पूरी कोशिश करेंगे तो आप असफल होंगे ही नहीं। सपने हर कोई देखता है पर पूरा हर कोई नहीं कर पाता,,,, जानते हैं क्‍यों? क्योंकि कुछ लोग बस देखते हैं, सोचते हैं और जरा सी विषम परिस्थितियां आ गयी तो उनके सपने उन्ही की तरह टूट जाते हैं। अगर आपको अपने सपनों को वाकई में पूरा करना है, तो आपको हर पल उसे ही सोचना होगा और उसे पाने के लिये हर प्रयास करना होगा। किसी ने कहा है कि “एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति अदृश्य को देख लेता है, अमूर्त को महसूस करता है, और असंभव को पा लेता है।” डार्विन पी. किन्सले ने कहा है कि, “यह सोचने के बजाये कि आप क्या खो रहे हैं, ये सोचने का प्रयास करें कि आपके पास ऐसा क्या है, जो बाकी सभी लोग खो रहे हैं। क्‍योंकि एक बार जब आप नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से बदल देंगे तो आपको सकारात्मक नतीजे मिलना शुरू हो जायेंगे।” सकारात्‍मक सोच को अगर वास्‍तु से जोड़ कर देखें तो इसका सीधा तात्‍पर्य सकारात्‍मक ऊर्जा से है। वास्‍तु के मुताबिक जिस घर में ज्‍यादा प्राकृतिक रौशनी आती है, कोने साफ सुथरे रहते हैं, घर के दरवाजे पर कोई गंदगी नहीं होती, बेडरूम चमकता रहता है, पढ़ाई का कमरा ज्‍यादा प्रकाश वाला होता है और टॉयलेट मुख्‍य द्वार के ठीक सामने नहीं होता वहां पॉजिटिव एनर्जी वास करती है यानी सकारात्‍मक ऊर्जा उस घर में सदैव बनी रहती है। ऐसे घरों में लोग खुश रहते हैं और जल्‍दी बीमार नहीं पड़ते। साथ में ढेर सारी लक्ष्‍मी आती है। इसी प्रकार जिस मस्तिष्‍क में सकारात्‍मक सोच भरी होती है, जो लोग हमेशा सकारात्‍मक दृष्टि से सोचते हैं, उनका दिमाग हमेशा खुला रहता है और वे ज्‍यादा खुश रहते हैं। खुश रहने की वजह से उनके अंदर आंतरिक शांति बनी रहती है। परिवार या दोस्‍तों के बीच उनके संबंध हमेशा मधुर होते हैं। ऐसे लोग ज्‍यादा तनाव नहीं लेते, लिहाजा वे जल्‍दी बीमार नहीं पड़ते, वे खुद से संतुष्‍ट रहते हैं और दूसरों के लिए हमेशा आगे से आगे रहते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में कम से कम रुकावटें आती हैं। करियर की बात करें तो सकारात्‍मक ऊर्जा से भरपूर लोगों का करियर या भविष्‍य हमेशा उज्‍जवल होता है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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सन् 1600 बनाम सन् 2014 – 40 ~ Year 1600 vs. Year 2014 – 40 !!

::- Krishna Mohan Singh(kmsraj51) …..


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** सन् 1600 बनाम सन् 2014-40 ….. **

वर्तमान दौर चाहे वह राजनीति का हो या आर्थिक या फिर इस देश के चिर-संस्कारों से निर्मित नैतिक मूल्यों का ये सभी एक बहुत ही भयावह दौर से गुजर रहे हैं शायद कुछ लोग जो विद्वता के धनी है इसे संक्रमण काल के नाम से भी जानते हैं तो कुछ लोग इसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोगवाद कह रहे हैं लेकिन यह समय मात्र और मात्र एक सच्चे भारतीय जो इसकी अखंडता एवं गौरवमयी इतिहास से थोड़ा भी सरोकार रखता है, के लिए बहुत ही विषम एवं चिंताजनक है स्पष्ट रुप में कहें तो बहुत ही भयावह है।
इतिहास गवाह है कि इस देश की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि इसने एक से एक संस्कारी महापुरुष तथा देशभक्त पैदा किए हैं लेकिन यह इस मिट्टी का दुर्भाग्य है कि विनाशकारी खरपतवार के रुप में यहां जयचंदों ने भी जन्म लिया है तथा इस पावन धरा को कलंकित किया है। आज का भारत भी इसी दौर से गुजर रहा है जहां ख्ररपतवार इतना बढ़ गया है कि अब पोषक फसलें नज़र ही नहीं आती और यह स्थिती केवल राजनीति ही नहीं कमोबेश हर क्षेत्र की हैं। इसका मात्र और एक मात्र कारण हमारे चिर-संस्कारों एवं मूल्यों का ह्रास होना है। मूल्यों एवं आदर्शों का प्रवाह सदैव शीर्ष से होता है और कहा भी है कि यथा राजा-तथा प्रजा लेकिन आज अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए हमारे देश के कर्णधार नेतृत्व कर्ताओं ने इस उक्ति को ही बदल दिया और बयान दिया कि जैसी जनता है वैसे ही नेतृत्व कर्ता बनेंगे अर्थात ये लोग जनता के इच्छानुसार ही अपने हित साधन के लिए सारे अपराध एवं भ्रष्ट तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। आखिर वो कौन सी प्रजा या जनता है जिसने राजा को भ्रष्ट एवं डकैत बनने के लिए जनादेश दिया? शायद इसका उत्तर यह है कि इस देश में जनता या नागरिक नाम की कोई व्यवस्था अब अस्तित्व में ही नहीं है यहां केवल उपभोक्तावादी संस्कृति के पोषक मतदाता रहते हैं जिन्हें कोई भी खरीद सकता है तथा ये तथाकथित मतदाता भोली चिड़ियाओं की भांति किसी भी बहेलिए के जाल में फंसने को आतुर है। फिर चाहे वह बहेलिए देशी हो या विदेशी इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लालच ने संवेदनाओं को मृत प्राय: कर दिया है। इन चिड़ियाओं को स्वतंत्र आसमान से बेहतर सुख-सुविधा युक्त वो स्वप्निल सोने का पिंजड़ा अधिक रास आने लगा है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं और जो मात्र और मात्र एक छलावा भर है।

आज इस देश की जनता को देश के प्रोफाईल से अधिक अपना हाई प्रोफाईल प्रिय है कमोबेश आज हमारा देश गुलामी से पहले के उसी दौर से गुजर रहा हैं। जनता विभिन्न मुद्दों पर आपस में बंटी हुई है चाहे वो आरक्षण का मुद्दा हो या राज्यवाद या फिर धर्म या जातिवाद का चारों और विघटनकारी शक्तियों का बोलबाला हैं हर आदमी ने अपने चारों और अपने स्वार्थों का एक घेरा बना रखा है तथा इस घेरे या उसके क्षुद्र स्वार्थों को नुकसान पहुंचाने वाला हर आदमी उसका शत्रु है। इस देश में अपनी जातिगत गौरव गाथा गाने वाले इतने जातिगत व धार्मिक सामाजिक संगठन है जिनको शायद गिनना भी संभव नहीं होगा लेकिन दुर्भाग्य है कि वे महापुरुष जो राष्ट्र के लिए एक होकर लड़े उनको भी इन कम्बख्तों ने अपने स्वार्थ के अनुरुप बांट दिया । आज कहीं भी अखिल भारतीय समाज नाम की कोई संस्था नही है क्योंकि सभी ने अपने आपको कई सांचों में बांट लिया है तथा सभी के अपने अपने हित हैं जिनके लिए वे लड़ रहे है उनकी तरफ से देश भले गर्त में जाए कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन्हें यह पता नही कि जब तक यह देश अखंड एवं सुरक्षित है तभी तक उनका या उनके समाज का अस्तित्व है: आज की युवा पीढ़ी को एक अदद नौकरी और सुख सुविधा युक्त घर से अधिक सोचने की जरूरत महसूस नहीं होती देश के विषय में या अपनी सभ्यता संस्कृति के बारे में मनन करने का कोई औचित्य नहीं हैं अपने घर की बनी रोटी भी यदि विदेशी पेकिंग में दी जाती है तो खुशी होती है। आज कमोबेश हर दूसरा आदमी मानसिक गुलामी के दौर से गुजर रहा है राष्ट्र छद्म अराजकता के वातावरण से गुजर रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है? विकास के नाम पर अपने स्वाभिमान, राष्ट्रीय संस्कृति को भूलाना तथा भौतिकता के चकाचौंध में प्राकृतिक संसाधनों का बंदरबांट कर देश को रसातल की और ले जाना, क्या आजादी का यही मतलब है?

आज के दौर की तुलना भारत के राजपूतकालीन समय से की जा सकती है जब भारत कई छोटी- छोटी रियासतों में बंटा हुआ था तथा ये रियासतें छुद्र स्वार्थों की पूर्ती हेतु आपस में लड़ती रहती थीं। विलासिता एवं अकर्मण्यता की पर्याय बन चुकी ये रियासतें अंदर से जर्जर हो चुकी थी।परिणामस्वरूप ये रियासतें कमजोर होती गईं विदेशी आक्रांताओं ने अपनी हवस एवं बेलगाम क्षुधा की पूर्ति हेतु इसा पावन धरा को कलुषित किया ताकत का एक बड़ा भाग भारतीय समाज कई बुराईयों जैसे छुआछुत, उच्श्रंखल जातिवाद , संप्रदायवाद इत्यादि में जकड़ा हुआ था तो क्या आज कमोबेश हमारे सामने वही परिदृश्य नहीं दिखाई दे रहा है। किसी ने क्या खूब कहा है कि इतिहास अपनी पुनरावृत्ति करता है पर क्या इतने कम अंतराल पर और क्या हम इससे सीख लेने के बजाय इसकी पुनरावृति होने देंगें। आज ये छोटे-छोटे राज्य जो कि नदी के पानी, भाषा, खनिजों के आधिपत्य के लिए न्यायालय में हाजिरी दे रहे हैं और सैकड़ों पार्टियां जो क्षुद्र स्वार्थों के लिए जनता को सब्ज बाग दिखा कर उनका वोटा हासिल कर रही हैं तत्पश्चात उसी जनता का शोषण तो क्या ये आजादी और उससे भी पूर्व अंग्रेजों के आगमन के समय का परिदृश्य प्रस्तुत नहीं कर रही है तथा जनता लाचार कई मतभेदों में उलझी हुई निरिह बनी सब कुछ सहने को विवश है।अगर इसी का नाम आजादी है तो वह दिन दूर नहीं जब इस देश के गद्दार इस देश की अमूल संपदा के साथ-साथ यहां के कथित मतदाताओं के भविष्य का भी किसी विदेशी के हाथों सौदा कर दें तथा बाद में कहें कि जीडीपी बढ़ाने के लिए यह जरूरी था।
जिस देश के पड़ोसी ताकतवर, कूटनीतिक एवं साम्राज्यवादी हों उस देश का राजनैतिक व नैतिक पतन की ओर अग्रसर होना उसके दुश्मनों के मार्ग को और सुगम बना देता है तथा वह देश बिना किसी युद्ध के ही गुलाम बनाया जा सकता है क्योंकि किसी देश का नेतृत्व ही उस देश की समृद्धि और ताकत का आईना होता है जिसमें उस देश की बाकी आवाम की झलक देखी जा सकती है।

संजय मिश्र “सदांश”

नोट: यह रचना किसी विशेष वर्ग, समुदाय या व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है, न ही हमारा उद्देश्य किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है । यह लेख पूर्ण रुप से मां भारती को समर्पित है। यदि कोई तथ्य किसी से मिलता है तो यह संयोग मात्र होगा।

** Important Note:: यह लेख संजय मिश्रा द्वारा शेयर किया गया है !! http://kmsraj51.wordpress.com/ **
पर ** दिल से धन्यवाद संजय भाई !! **
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** संजय मिश्रा **

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स्वर्ग – Heaven – Hindi Inspirational Story

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Heaven – स्वर्ग

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एक यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के साथ सड़क पर चल रहा था. जब वे एक विशालकाय पेड़ के पास से गुज़र रहे थे तब उनपर आसमान से बिजली गिरी और वे तीनों तत्क्षण मर गए. लेकिन उन तीनों को यह प्रतीत नहीं हुआ कि वे अब जीवित नहीं है और वे चलते ही रहे. कभी-कभी मृत प्राणियों को अपना शरीरभाव छोड़ने में समय लग जाता है.

उनकी यात्रा बहुत लंबी थी. आसमान में सूरज ज़ोरों से चमक रहा था. वे पसीने से तरबतर और बेहद प्यासे थे. वे पानी की तलाश करते रहे. सड़क के मोड़ पर उन्हें एक भव्य द्वार दिखाई दिया जो पूरा संगमरमर का बना हुआ था. द्वार से होते हुए वे स्वर्ण मढ़ित एक अहाते में आ पहुंचे. अहाते के बीचोंबीच एक फव्वारे से आईने की तरह साफ़ पानी निकल रहा था.

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यात्री ने द्वार की पहरेदारी करनेवाले से कहा:

“नमस्ते, यह सुन्दर जगह क्या है?

“यह स्वर्ग है”.

“कितना अच्छा हुआ कि हम चलते-चलते स्वर्ग आ पहुंचे. हमें बहुत प्यास लगी है.”

“तुम चाहे जितना पानी पी सकते हो”.

“मेरा घोड़ा और कुत्ता भी प्यासे हैं”.

“माफ़ करना लेकिन यहाँ जानवरों को पानी पिलाना मना है”

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यात्री को यह सुनकर बहुत निराशा हुई. वह खुद बहुत प्यासा था लेकिन अकेला पानी नहीं पीना चाहता था. उसने पहरेदार को धन्यवाद दिया और अपनी राह चल पड़ा. आगे और बहुत दूर तक चलने के बाद वे एक बगीचे तक पहुंचे जिसका दरवाज़ा जर्जर था और भीतर जाने का रास्ता धूल से पटा हुआ था.

भीतर पहुँचने पर उसने देखा कि एक पेड़ की छाँव में एक आदमी अपने सर को टोपी से ढंककर सो रहा था.

“नमस्ते” – यात्री ने उस आदमी से कहा – “मैं, मेरा घोड़ा और कुत्ता बहुत प्यासे हैं. क्या यहाँ पानी मिलेगा?”

उस आदमी ने एक ओर इशारा करके कहा – “वहां चट्टानों के बीच पानी का एक सोता है. जाओ जाकर पानी पी लो.”

यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के साथ वहां पहुंचा और तीनों ने जी भर के अपनी प्यास बुझाई. फिर यात्री उस आदमी को धन्यवाद कहने के लिए आ गया.

“यह कौन सी जगह है?”

“यह स्वर्ग है”.

“स्वर्ग? इसी रास्ते में पीछे हमें एक संगमरमरी अहाता मिला, उसे भी वहां का पहरेदार स्वर्ग बता रहा था!”

“नहीं-नहीं, वह स्वर्ग नहीं है. वह नर्क है”.

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यात्री अब अपना आपा खो बैठा. उसने कहा – “भगवान के लिए ये सब कहना बंद करो! मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब क्या है!”

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आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा – “नाराज़ न हो भाई, संगमरमरी स्वर्ग वालों का तो हमपर बड़ा उपकार है. वहां वे सभी लोग रुक जाते हैं जो अपने भले के लिए अपने सबसे अच्छे दोस्तों को भी छोड़ सकते हैं.”

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(यह कहानी पाउलो कोएलो की किताब “The Devil and Miss Prym” से ली गयी है !!

Note ::- Lots of Thank`s पाउलो कोएलो

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सद्विचार-हिन्दी में !!

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सद्विचार-kmsraj51 की कलम से …..
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इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुःख और दूसरा श्रम । दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता ।

ज्ञान का अर्थ है-जानने की शक्ति । झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है ।

अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूती से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है ।

आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है ।

कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं । बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा ।

जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है ।

समर्पण का अर्थ है-पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रत्येक क्षण में उसे परिणत करते रहना ।

मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं ।

सबसे महान् धर्म है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनना ।

सद्व्यवहार में शक्ति है । जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है ।

जिनका प्रत्येक कर्म भगवान् को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है ।

कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा ।

सत्संग और प्रवचनों का-स्वाध्याय और सदुपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले । अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है ।

सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ । उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है ।

साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है ।

आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है ।

जैसे कोरे कागज पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंतःकरण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है ।

योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है ।

यह आपत्तिकालीन समय है । आपत्ति धर्म का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है ।

जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते ।

प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके ।

बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है ।

जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है ।

भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं ।

हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें, इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है ।

प्रगति के लिए संघर्ष करो । अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके ।

धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कर्त्तव्य है । इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उठानी पड़ती हों ।

अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं ।

शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुर्बुद्धि और कौन हो सकता है?

जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है ।

आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं । अनधिकारी धर्मोपदेशक खोटे सिक्के की तरह मात्र विक्षोभ और अविश्वास ही भड़काते हैं ।

इन दिनों जाग्रत् आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे । बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें ।

जो भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है-प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ ।

दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता ।

आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है ।
चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है ।

व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सार्मथ्यवान् नहीं बन सकता है ।

युग निर्माण योजना का लक्ष्य है-शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना ।
भुजाएँ साक्षात् हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश, इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता नहीं ।

विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रहते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता ।

मनुष्य दुःखी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है ।

धर्म अंतःकरण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है ।

जीवन साधना का अर्थ है- अपने समय, श्रम और साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना ।

निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है ।

आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है ।

हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे ।

अपनी दुष्टताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती हैं, पर अपने आप से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता ।

किसी महान् उद्देश्य की ओर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना ।

महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित । जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है ।

सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता ।

खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए । इससे आपका हृदय हल्का रहेगा ।

मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है ।

असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है ।

किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है ।

अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो ।

उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है-दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना ।

वही जीवति है, जिसका मस्तिष्क ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है ।

चरित्र का अर्थ है- अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना ।

मनुष्य एक भटका हुआ देवता है । सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं ।

अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान् की सच्ची पूजा है ।

जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है ।

हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कर्त्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये ।

वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं ।

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देश भक्ति देख तुम्हारी।

दर्द – ए – कश्मीर।

ऑपरेशन सिंदूर।

संघर्ष है कहानी हर जीवन की।

हमारा क्या कसूर।

टूटता विश्वास।

मोबाइल फोन का असर।

चाह नव वर्ष की।

व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है।

माँ बाप।

सास बहू।

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