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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Short hindi poems

घोर कलयुग है आ गया क्या?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ घोर कलयुग है आ गया क्या? ♦

नेता है लेते लुत्फ सत्ता का, अधिकारी बने सहयोगी है।
भ्रष्टाचार और महंगाई हर राज में, जनता ने ही भोगी है।

यह पैट्रोल बढ़ा यह डीजल बढ़ा, यह तो बात पुरानी है।
सरकारी तन्त्र में भ्रष्टाचार की, सबको मालूम कहानी है।

बदसलूकों की महफिल में, शराफत की बात बेईमानी है।
नीचे से ऊपर ये सारे मिले हैं, किससे आवाज उठानी है?

खरीद तंत्र घोटाला, भर्ती घोटाला, सिर से ऊपर पानी है।
सब्सिडी लेती जनता भी देखो, हो गई कितनी शाणी है?

दुर्दशा देश की होती है तो होए, सबको अपनी चिन्ता है।
महा स्वार्थ के इस दौर में, हर मानव में कितनी हीनता है?

पंचायत से घोटाले संसद तक, जांच एजेंसियां भी डूबी है।
न्यायालयों के दरवाजों के आगे, विलम्ब की झाड़ उगी है।

गरीब जाए तो किधर को जाए? चारों ही ओर तो अंधेरा है।
वोट की चोट से हर राज है बदला, सबमें लुटेरों का डेरा है।

हम सब जानते सचाई पर जाने, कैसे इस आग में जिंदा है?
इसी में ढलना मजबूरी है सबकी, इस बात से मैं शर्मिंदा है।

घोर कलयुग है आ गया क्या? हर ओर जो आपाधापी है।
ऐसा है लगता, देखता हूं, इन्साफ की चौखट में बेइंसाफी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — नेता बड़े मजे से सत्ता का आनंद ले रहे है, उनको जनता की फिक्र ही नहीं है। पंचायत से लेकर संसद तक सब तरफ घोटाला ही घोटाला हो रहा है, क्या नेता क्या अधिकारी सबके सब मिले हुए है। खरीद तंत्र घोटाला, भर्ती घोटाला, सिर से ऊपर पानी है। सब्सिडी लेती जनता भी देखो, हो गई कितनी शाणी है? किसी को भी देश की चिंता नहीं है, दुर्दशा देश की होती है तो होए, सबको अपनी चिन्ता है। महा स्वार्थ के इस दौर में, हर मानव में कितनी हीनता भर गई है? पंचायत से घोटाले संसद तक, जांच एजेंसियां भी इनमें डूबी है। न्यायालयों के दरवाजों के आगे खड़े बेचारे, विलम्ब की झाड़ उगी है।

—————

यह कविता (घोर कलयुग है आ गया क्या?) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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कैसी हो गयी है जिन्दगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ कैसी हो गयी हैं जिन्दगी। ϒ

ना कुछ सोचो ना कुछ करो, क्योंकि…
चाय के प्यालों से होंठों का फासला हो गयी है जिंदगी।

भूख से बिलखती रूहों को मत देखो।
शान-औ-शौकत के भोजों१ में खो गयी है जिंदगी।

बस सहारा ढूढ़ते, सड़क पे फट गए जूतों से क्या-
सुबह शाम बदलती गाड़ियों का कारवाँ हो गयी है जिंदगी।

तन पे फटे हुए कपडे मत देखो-
नए तंग मिनी स्कर्ट सी छोटी हो गयी है जिंदगी।

पानी की तड़प भूल कर-
महगीं शराब की बोतलों में खो गयी है जिंदगी।

फुटपाथ पे सोती हजारों निगाहों की कसक छोड़ के,
इक तन्हा बदन लिए, हजारों कमरों में सो गयी है जिंदगी।

हजारों सवाल खामोश खड़े; बस।
सुलगती सिगरेट के धुएं सी हो गयी है जिंदगी।

शब्दार्थ:
१. भोजों = दावतों

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ – हैदराबाद, तेलंगाना ®

हम दिलसे आभारी है – डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के, हिंदी में कविता शेयर करने के लिए। KMSRAJ51.COM के Author Team पैनल में तहे दिल से स्वागत है – आपका।

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के लिए मेरे विचार:

♣ “डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी” ने “कैसी हो गयी है जिन्दगी।…“ काे कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इक – इक शब्द दिल की गहराइयों तक उतरते है। आपके लेखन की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखते है, आपके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो नज़्म, गज़ल हो या कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

♥••—••♥

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

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“मातृ दिवस” – ममता की माँ सूरत…।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ ममता की माँ सूरत…। ϒ

⇒ Mother Nature of Mamta.

🙂 “मातृ दिवस” – ममता की माँ सूरत…।

माँ! माँ है माँ होती।
ममता की माँ सूरत।
धरा पर माँ एक सूरज।
खुद ही है माँ पलती।
बच्चा भी है पालती॥

बच्चे को वह सुधारती।
गर्भ में धारण करती।
बच्चा संवार कर रखती।
निज रक्त मज्जा -पालती।
स्तन के दूध पिलाती॥

हल्राती -दुलराती,
है प्यार उसे दिखाती।
वह साथ में सुलाती।
रात भर जाग बिताती,
विस्तार गीले रह जाती॥

खुद भूखे रहकर भी –
बच्चे को दूध पिलाती।
सूखे बिस्तर – लिटाती।
माँ – माँ ही कहलाती
मजदूरी भले कर लाती॥

नन्हकी – नन्हका खिलाती।
देती मति – मतिमान।
मगण – मगज पिरोती।
मगन मन ही मन होती।
मखतूली – पहनाती॥

‘मंगल’ भावना भारती।
बच्चे को भाति दुलराती।
माँ! माँ है माँ होती।
ममता की माँ सूरत।
धरा पर माँ एक सूरज॥

शब्दार्थ:- मति-बुद्धि | मतिमान- बुद्धिमान | मगण – चालाकी | मगज- दिमाग | मखतूली-काले रेशम का धागा |

शुभकामनाओं के साथ।

∇ सुखमंगल सिंह – ♥
——♦——
सुखमंगल सिंह जी।
हम दिल से आभारी हैं सुखमंगल सिंह जी के प्रेरणादायक कविता (“मातृ दिवस” – ममता की माँ सूरत…।) हिन्दी में Share करने के लिए।

सुखमंगल सिंह जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुखमंगल सिंह जी” ने कविता के माध्यम से मां के गुणाें, त्याग और पालना का खुले मन से वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविता छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविता काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।
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In English

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भेदभाव…।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ भेदभाव…। ϒ

⇒ Discrimination

🙂 भेदभाव …

जब जन्म दिया मुझको माँ ने,
लोगो की खुशी अवशान हुई।
पुत्री का जन्म हुआ घर में,
यह खुशी नही अपमान हुई॥

कुछ समय कटा तन्हाई में,
फिर पुत्र प्राप्ति संयोग बना।
लोगों की खुशी चरम पर थी,
जैसे ईश्वर का योग बना॥

फिर बड़ा हुए हम दोनो ही,
नित भेदभाव ही होता था।
भाई को मिलता था सबकुछ,
पुत्री के लिये जग सोता था॥

वह जिद करती गर लोगो से,
तो नित ही पीटी जाती थी।
पर पुत्र अगर जिद करता था,
वह चीज तुरत ही आती थी॥

जब और बड़े हो गये दोनों,
स्कूल मे नाम लिखाया था।
बच्ची का नाम सरकारी मे,
पर पुत्र को टॉप बनाया था॥

पुत्र को पुरा समय दिया,
पुत्री पर भार ओढाया था।
जैसे वो काम के लिये बनी,
इतना उसको उलझाया था॥

इसके भी बाद पुत्री ने –
अपने स्टेट को टॉप किया।
पर पुत्र फैल हुआ एकदम,
सब पैसा सुविधा नास किया॥

अब भी वो जिल्लत ना छूटी,
पुत्री की सादी होती है।
पुत्री अपने घर जाती है,
अपने किस्मत पर रोती है॥

कुछ समय बिता घर वाले,
एक बहू को घर मे लाये थे।
अब पुत्र बहू को परिवार,
अपने सिने से लगाये थे॥

पर समय बितते देर नही,
जब पुत्र बहू रंग दिखलाये।
बूढ़े माँ बाप को वो दोनो,
अपने जीवन से ठुकराए॥

यह घटना इतनी निर्मम थी,
जो पुत्र ने यु ही कर डाला।
जिस पुत्र को अपना मानते थे,
उसने ही बेघर कर डाला॥

जब पता चला यह पुत्री को,
आंसू की नदी प्रवाह हुई।
चल दी माँ बाप को लेने को,
लेकर घर को प्रस्थान हुई॥

यह प्रेम देखकर पुत्री का,
मां बाप ने गले लगाया था।
अपनी गलती पर रोये थे,
जो पुत्री को तडपाया था॥

क्यों भेद भाव हम करते है,
पुत्री का कोई मोल नही।
वह रत्न ही ऐसी अवनी पर,
जो होती है अनमोल सही॥

©- अशोक सिह, – आजमगढ़, उत्तर प्रदेश। ∇

ashok-singh-kmsraj51

हम दिल से आभारी हैं अशोक सिह जी के प्रेरणादायक हिन्दी कविता “भेदभाव।” साझा करने के लिए।

About Ashok Singh – अशोक जी के शब्दाें में – अभी मैं IAS की तैयारी कर रहा हूँ। दिल मे समाज सेवा की लौ जलाये हुए कुछ बेहतर करने को प्रयासरत हूँ और अपना सत प्रतिशत देने को तत्पर। मेरा HOBBY कविताएं लिखना, दक्षिण भारत की फिल्में देखना, क्रिकेट खेलना, समाज से जुङे रहना, संगीत सुनना(खासकर पुराने) शामिल है।

अशोक सिह जी के लिए मेरे विचार: 

♣ “अशोक सिह जी” ने कविता के माध्यम से लड़कियों के प्रति आज के मानव के मन में उठने वाले विचार और साेच का बखूबी अतिसुन्दर वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविताऐं छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविताओं काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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लहरें गायेंगी…।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ लहरें गायेंगी…। ϒ

⇒ Waves Gayengi ?

🙂 “लहरें गायेंगी”…।

लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे।
देखो दुनिया वालों मिलकर तारे रहते ‘
रहते हैं आकाश में पर सारे रहते॥

मिल जुलकर अपनों में खुशी मनाते,
देखा रहा मानव फिर भी भरम खाते।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

जानवर भी मिलकर एक किनारे रहते,
पर इंसान झगड़ते लड़ते मरते रहते।
इंसानों को डर है लुट जाने का लेकिन,
लेकिन वे सब मस्त पड़े पहलवानों जैसे॥

यहाँ सभी धरती के अपराधी पर मानव,
दूर कहीं पर रोता मजहब बनकर दानव।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

हवा भी दूषित और प्रदूषित हो गयी,
एक कलंकित नागिन कल ही सबको छू गयी।
जब आज की नारी पर हमला होता है,
दूर कोई मजहब कोना पकडे रोता है॥

भाई – भाई को जाने क्या हो गया है,
सारा पुराना नाता जाने क्यों खो गया है।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

अपने देश को बोलो क्या हो गया है,
अपने-अपने मजहब मेंही सबकुछ खो गया है।
इसे भी कोई परिंदा नहीं बताने वाला है,
भाइयों में जंग नया होने वाला है॥

रोज सबेरे निकल रहा जनाजा प्यार का,
क्या होगा अब अपने इस संसार का।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

इंसानों ने कितनों का सम्मान छीना है,
हैवानों सा बहनों पर कहर दीना है।
वह भी एक समय था भाई-भाई प्यार,
रोता है आज देखकर समय सारा संसार॥

उन इंसानों ने अपनी जान गंवाई,
लेकिन बहनों की लड़कर जान बचाई।
लहरें गीत गायेंगी सबको सुनाएंगी,
‘मंगल’ मीत गायेंगे सभी हँसी उड़ायेंगे॥

शुभकामनाओं के साथ।

∇ सुखमंगल सिंह – ♥
——♦——
सुखमंगल सिंह जी।
हम दिल से आभारी हैं सुखमंगल सिंह जी के प्रेरणादायक कविता (लहरें गायेंगी।) हिन्दी में Share करने के लिए।

सुखमंगल सिंह जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुखमंगल सिंह जी” ने कविता के माध्यम से वर्तमान समय में मनुष्यों के मन में हाेने वाले नाेक-झाेक का खुले मन से वर्णन किया हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविता छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविता काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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सुलगती हवा में…।

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ϒ सुलगती हवा में…। ϒ

⇒ कुछ कड़वी सच्ची बातें, कुछ सुझाव।

Simmering in the air ?
Some bitter truths, some suggestions.

🙂 सुलगती हवा में…।

गर्म झांझ से झंखाड़ बन गयी लताएं।
विदा हुए महावर में भीगें मधुमास।
मार्च में जो दहके थे गेरूए “पलाश” ।
बदरंग जुदा हो चुके टहनियों से उदास आज।
गर्म लपट सहती मुरझा गई –
गुलाब की पँखुरियाँ।
रुई से उड़ते नही अब खेतों में चिट्टे कास …॥

आग उगलते आसमा से –
कुम्हलाई चम्पई कलियाँ सारी।
अकुला गयी सिंदूरी गेंदे की क्यारी-क्यारी।
तवा सी सड़कों पर न झरे हरसिंगार।
सहमे गुड़हल झाँकते अब तो कभी कभार।
सिगड़ी सी सुलगती इस मई में-
पीली सरसों भी बनी धूसर गुबार …॥

शोले बरसते या भट्टियों से चली हवा।
दिखती नही हरी कोपलें दो चार।
धू धू लपट जेठ की सिकी दोपहर।
आग जैसे उगलती या की अंगार …॥

सुलगती हवा में भी मगर झूमता लहर लहर।
चिलचिलाती धूप के थपेड़ों से जो बेअसर,
भीषण लू में खिलकर मुस्कुराता –
हुआ वो पीला पीला “अमलतास” ।
हौले हौले झूलती शोख लम्बी कड़ियाँ,
या जर्द अंगूरी गुच्छे है या …
रौशन झूमर की लट्टू लड़ियाँ,
ढलती साँझ में मंथर डोलती रहती –
नन्हें गुब्बारों से लरजी लदी टहनियाँ …॥

विपरीत समय और विषम दशा में –
पल्लवन का नाम है “अमलतास” ।
सूरज की आँच से निडर डोलता।
दम टूटते मौसम में ताज़ी साँस।
विपरीत समय में पल्लवन –
का नाम “अमलतास” ।
जीने का सलीका सिखा रहा,
चुपचाप यही कि देखो तुम भी –
जीवन के झंझावतों में अडिग,
अकेले ही लहलहाना बनकर,
“अमलतास” …॥

© …(Madhu Chaturvedi Ji) _ Writer at film association Mumbai ®

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मधु जी के लिए मेरे विचार:

♣ “मधु जी” ने “सुलगती हवा में…।“ कविता के माध्यम से “प्रकृति, सूर्य की किरणों और वृक्षाें के बीच हाेने वाले खट्टे मीठे संबंधों” पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। “अमलतास” के वृक्षाें और प्रकृति, सूर्य की किरणों के बीच हाेने वाले खट्टे-मीठे नोच झोक का बहुत ही सरल शब्दों में अति सुन्दर वर्णन किया हैं। मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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काले काले “सावनी” बादल…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ काले काले “सावनी” बादल…। ϒ

⇒ कुछ कड़वी सच्ची बातें, कुछ सुझाव।

Black Black “Sawni” Cloud ?
Some bitter truths, some suggestions.

🙂 काले काले “सावनी” बादल…।

पुराने एलबम में माँ के बचपन की,
अनदेखी तस्वीर हाथ लग जाए जैसे…
किसी मोड़ पर “तुम” बहार लेकर,
अनायास फिर से मिलना मुझ से ऐसे॥

जेठ की तपती धूप में अचानक,
टप-टप बूंदों से तर हो जाए जैसे…
लिफ़ाफे पर दिल बना गुमनाम ख़त।
कच्ची उम्र में मिल जाए जैसे।
हैरानियाँ ले तुम मिलना मुझको ऐसे॥

भूला हुआ “नोट” गिरे किताब से या,
ट्रेन की वेटिंग लिस्ट कन्फर्म हो जाए जैसे।
ठिठुरती पूस की रात में चाय का,
एक कप हाथ में थमा दे कोई जैसे।
तुम मुझको मिल जाना ऐसे॥

खो चुकी “चाभी” खुद ब खुद नजर आए।
या तितली काँधे पर आ बैठ जाए जैसे।
काले काले “सावनी” बादल छँटते ही,
सतरंगी इंद्रधनुष इठलाकर छाए जैसे।
तुम मुझको मिल जाना कभी ऐसे॥

छिलकों में एक फल्ली साबूत फिर निकलना।
या भरी बस में खिड़की वाली सीट लपकना।
आखरी दम की फूंक और चूल्हे का दमकना।
या भीगने से पहले छत से कपड़ों का सिमटना।
मुझे इतनी तसल्लियाँ देने तुम मिलना॥

सूनी क्यारी के पहले मोगरे से खिलकर,
या तन पर चरणामृत के छींटे सा पड़ना।
मैं मशरूफ़ रहूँ भीड़ में कही और तुम,
दबे पाँव पीछे से कसकर आँख मूंदना।
बिछड़े दोस्त कभी मुझसे ऐसे मिलना॥

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मधु जी के लिए मेरे विचार:

♣ “मधु जी” ने “काले काले “सावनी” बादल…।“ कविता के माध्यम से “सच्चे प्यार के बीच होने वाले खट्टे-मीठे नोच झोक” पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। हर एक के जीवन में दया भाव का महत्व कितना है – इसका बहुत ही सरल शब्दों में अति सुन्दर वर्णन किया हैं। मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

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नेकियाँ कोई दरिया में कब तक बहा ले…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ नेकियाँ कोई दरिया में कब तक बहा ले…। ϒ

⇒ कुछ कड़वी सच्ची बातें, कुछ सुझाव।

How long have you been upright in a river ?
Some bitter truths, some suggestions.

🙂 नेकियाँ कोई दरिया में कब तक बहा ले।

नेकियाँ कोई दरिया में कब तक बहा ले।
इंसाफ का तराजू गुनहगार के हवाले।
महज़ ख़याल तो नही वो “ऊपरवाला”।
मासूम चेहरे जब बेशुमार गम उठाए।
बुत, दरगाह, मंदिर में तुझको ढूँढते है।
तू कहाँ है तब हम अक्सर सोचते है …॥

“सच” पर इल्जामों का घना साया।
ईमान को कटघरे में तन्हा पाया।
“फ़रेब” मुस्कुराता रहा इत्मीनान से।
मायूस आँखों से ये सितम देखते है।
तू है कहाँ अक्सर सोचते है …॥

तमागेदारों से हारकर “बेगुनाही” झुकी,
मुफ़लिस की मौत पर सियासत न रुकी।
“गरीबी” से बड़ा कोई गुनाह नही यहाँ।
तमाम नाइंसाफी तेरी ज़मी पर देखते है।
तू मशरूफ कहाँ अक्सर सोचते है …॥

जर्रा-जर्रा जैसे दर्द मीलों है सीजा।
कतरा-कतरा खारे पानी में भीगा।
बेबस सी दास्ताँ इन कच्चे घरों की।
रास्तों से हम आँख मूंद कर गुजरते है।
बुत, ग्रन्थ, दरगाह, मंदिर में ढूंढते है।
तू मशरूफ कहाँ अक्सर सोचते है …॥

© …(Madhu Chaturvedi Ji) _ Writer at film association Mumbai ®

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मधु जी के लिए मेरे विचार:

♣ “मधु जी” ने “नेकियाँ कोई दरिया में कब तक बहा ले…।“ कविता के माध्यम से “वर्तमान समय में दया भाव और उसके परिणाम” पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। हर एक के जीवन में दया भाव का महत्व कितना है – इसका बहुत ही सरल शब्दों में अति सुन्दर वर्णन किया हैं। मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

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दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…। ϒ

⇒ कुछ कड़वी सच्ची बातें, कुछ सुझाव।

Dust Books ruins drawers being swollen.
Some bitter truths, some suggestions.

दराजों में गर्द खाती किताबें खंडहर सी हुई जा रही है।
धड़कते दिल अब “किताबों” में चेहरे छिपाते नही है।
तोहफों की फेहरिश्त से भी ये हटती जा रही है।
पन्ने पलटते हुए ज़ेहन में उन की चहल कदमी।
बेख्याली में किताब में खत दबाने की लत जा रही है।
दराजों में गर्द खाती किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

मोबाइल में मशरूफ रहने वाली ये नस्ल बेख़बर।
उलझी साँसें रजनीगंधा बन कागज़ को महका रही है।
जिल्द में आज तलक उंगलियों की खुश्बू मगर।
दरकते पन्नों को अनदेखी की घुन खा रही है।
दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

कभी दुनिया भूला देते थे इनमें खोये हुए।
आज फ़क़त अलमारी का सामान हुई जा रही है।
तल्ले में चढ़ी वो किताब नाउम्मीद हो सोचती,
हमारे हिस्से का वक़्त “ दुनिया” मोबाइल में गँवा रही है।
दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

देर रात के साथी थे गुल्लू , निर्मला, बड़े भाईसाहब,
मोबाइल की खातिर सिरहाने से भी हटाई जा रही है।
रात भर सीने पर धड़कने गिनती थी कभी।
अब अँधेरे में मोबाइल की रौशनी आ रही है।
दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

किताबों में सूखे गुलाब अमानत थे किसी के,
ये नज़ाकत हाल बेमानी हुई जा रही है।
अब भी कागज़ी इत्र की आरज़ू में,
बाग़ की चंद कलियाँ उदास झड़ी जा रही है।
दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

चाचा-चौधरी से तो तेज़ दिमाग कंप्यूटर भी हारे,
साबू को अकेला छोड़ नन्ही उंगलियाँ टैब चला रही है।
एक दिन ज़माना ऊबेगा खोखली भौतिकता से,
“गोदान“ की धनिया गोबर को समझा रही है।
दराजों में गर्द किताबें खंडहर सी हुई जा रही है…..॥

© …(Madhu Chaturvedi Ji) _ Writer at film association Mumbai ®

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मधु जी के लिए मेरे विचार:

♣ “मधु जी” ने “मगर एक शर्त है…।“ कविता के माध्यम से “किताबो से बन रही दूरियों” पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। हर एक के जीवन में क़िताबों का महत्व कितना है – इसका बहुत ही सरल शब्दों में अति सुन्दर वर्णन किया हैं। मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

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मगर एक शर्त है…।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ मगर एक शर्त है…। ϒ

⇒ कुछ बातें, कुछ सुझाव।

But there is a condition.
Some things, some suggestions.

मगर एक शर्त है…..

पुरुष “औरत” की आज़ादी का तरफ़दार है,
मगर उसकी कुछ शर्तें है …..।

वो हिमायती है खुला आकाश देने का,
पैरवी करता है ऊँचाइयों को नापने देने का,
मगर उसकी कुछ शर्तें है …..।

औरत की तरक्की का रहनुमा भी बन रहा है,
हाँ ! वो पुरुष खुद को आज़ाद ख्याल कहता है।
मगर उसकी चंद शर्तें हैं …..।

आसमा पर दायरों के निशान वो खींचेगा,
शर्त यह है कि स्त्री के परों पर कायदों के,
भार का फैसला उसका होगा।

“आगाज़” की लगाम उसकी मर्जियों पर और
पैमानों की सरहदें भी वो ही तय करेगा।
औरत की ख्वाहिशों की डोर उसके काबू में,
पैरों में बेड़ी की कड़ियाँ भी वो ही गिनेगा …..।

आसमां पर ठौर की मोहलत उसकी दी हुई हो और…..
दिशा बदलने भी उसको स्त्री की अर्जियाँ, गुजारिशे चाहिए।

दहलीज़ की ईंट वो रखे और
उसकी इजाज़त का ही हो “तौर-ए-सफर”
उसके मुताबिक “हद-ए-मंजिल”
औरत को कटघरे में खड़ा करने …..
मुक्कमल इंतज़ाम भी करेगा।

तमाम उसूलों की मंजूरी के बाद ही वो,
औरत के हक़ की वकालत करेगा।

“औरत को कितना सोचना है ये भी वो सोचेगा”
खुद थामेगा स्त्री के ख्वाबों का परचम,
पुरुष आज़ाद ख्याल है मगर एक शर्त है …..।

© …(Madhu Chaturvedi Ji) _ Writer at film association Mumbai ®

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मधु जी के लिए मेरे विचार:

♣ “मधु जी” ने “मगर एक शर्त है…।“ कविता के माध्यम से Women’s Freedom पर विशेष दिल को छूने वाला कितना सरल सुंदर-शिक्षाप्रद व अनुकरणीय वर्णन किया हैं। हर एक के जीवन में एक नारी ke Freedom का महत्व कितना है – इसका बहुत ही सरल शब्दों में अति सुन्दर वर्णन किया हैं। मधु जी – की लेखनी की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखती है, इनके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

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  • वैरागी जीवन।
  • मेरी कविता।
  • प्रकृति के रंग।
  • फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।
  • यह डूबती सांझ।
  • 10th Foundation Day of KMSRAJ51
  • प्रकृति और होरी।
  • तुम से ही।
  • होली के रंग खुशियों के संग।
  • आओ खेले पुरानी होली।
  • हे नारी तू।
  • रस आनन्द इस होली में।

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ब्रह्मचारिणी माता।

हमारा बिहार।

शहीद दिवस।

स्वागत विक्रम संवत 2080

नव संवत्सर आया है।

वैरागी जीवन।

मेरी कविता।

प्रकृति के रंग।

फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

यह डूबती सांझ।

10th Foundation Day of KMSRAJ51

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