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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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short poems about life and death

शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन। ♦

विद्युत तरंगों से पोषित मानव शरीर,
प्राकृतिक वातावरण शांति भाषा की।
शीघ्र मुक्ति पाने की कामना करता,
मंदिर – गिरजाघर खोज में रहता॥

सात्विक, आध्यात्मिक ऊर्जा संपन्न खोजने,
शास्त्र – पुराण में वह खोज करता है।
कष्ट प्रद स्थित में जब होता मानव,
असंतुष्ट हो कष्ट से छटपटाता॥

कामनाओं के भंवर से उबर नहीं पाता,
मुक्ति मार्ग पर वह भटकते हुए जाता है?
आत्मबल भी कमजोर हो जाता,
नकारात्मकता से वह जीवन बिताता।

आपाधापी से गुरूर होने लगता है,
प्रेत योनि में ही, वह अक्सर चला जाता।
दुर्घटना से शरीर तुरंत छूट जाती,
इच्छाएं कामनाएं ही याद में रह जाती॥

आत्मा का अस्तित्व शक्तिशाली होता,
कामना और इच्छा शक्ति प्रबल होती।
विद्युतीय सूक्ष्म शरीर का क्षरण नहीं होता,
अचानक आघात से शरीर का अंग काम नहीं करता॥

ब्राह्मण! अकाल मृत्यु होने पर ब्रह्म हो जाता,
हजारों वर्ष सूक्ष्म शरीर नष्ट होने का इंतजार करता।
भूत, प्रेत जिन्न – पिशाच में चला जाता,
जिस अस्तित्व का मानव कल्पना नहीं करता है॥

आधुनिक विज्ञान और पश्चिमी देशों ने,
भूत – प्रेत जीवधारी सूक्ष्म शरीर माना है।
स्वाभाविक मृत पहले, धीरे-धीरे शरीर की,
काम करने वाली क्रिया को बंद करते जाता है॥

यानी ऊर्जा परिपथ का क्षरण होता रहता,
शरीर सुन्न और मस्तिष्क का, ह्रदय से संबंध छूट जाता॥

सब कुछ शरीर के अंग को सुन्न कर देता,
अंत में प्राण शरीर से निकल जाता है।
आत्मा कोई दूसरा विद्युत तरंगों की शरीर तलाशता,
भ्रूण के रूप में उसमें प्रवेश कर जाता है॥

मानव और जंतु का शरीर कोशिका से निर्मित होता,
उस शरीर में विविध अवयव पाया जाता है।
नाभिक में एक अदृश्य किरण जुड़ी होती है,
एक छोर पर सूक्ष्मतम परमाणु कण मिलता॥

जिसने उसके पालन पोषण का प्रयत्न करता,
वैज्ञानिक उसे गॉड पार्टिकल नाम से पुकारता।
अपने कर्मों के फल से जीव प्रेत योनि को पाता,
और धरती पर आकर अपना शुभ कर्म भूल जाता॥

धर्म परायण जीव भोग में जगत को पाता,
राजा बनकर धरती पर फिर, वही यहां आता।
विद्दूतीय तरंगों से पोषित मानव इस शरीर,
और प्राकृतिक वातावरण में, शांति पाता॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — पांच तत्वों से मिलकर बना ये शरीर जिसका मूल स्वरूप शांत है और इस शरीर को चलायमान बनाने वाली ऊर्जा का भी मूल स्वरुप शांत है। इंसान अपने कर्मों के अनुसार अपना भाग्य बनता है। इंसान के कर्म ही उसे इस संसार में जीवित रखते है। इसलिए अच्छे कर्म ही करना चाहिए मानव को इस संसार में। आपके अच्छे कर्म आपको सद्गति देंगे व बुरे कर्म दुर्गति देंगे। अकाल मृत्यु किसी भी इंसान को प्रेत योनि में ले जाता है। इच्छाओं के भंवर से बाहर निकले सत्य का बोध कर सन्मार्ग पर चलकर धर्म परायण अच्छे कर्म करें।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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अजब तेरी माया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अजब तेरी माया। ♦

इस संसार से विदा, जो हो गए।
समय – असमय जो, चिरनिद्रा में सो गए॥

हे मालिक! बता तुमने, उन्हें कहाँ छुपाया है।
फिर क्यूँ उनका अक्स भी, नजर नहीं आया है॥

तेरे तो खेल निराले, अजब तेरी माया है।
जो तूनें ब्रह्मांड में, जीवन – मरण का खेल रचाया है॥

इस जग की रीत, तो तुझसे भी निराली है।
जो विदा हो गए यहाँ से, फिर उनकी परछाई भी काली है॥

फिर क्यूँ इस जगत में, मेरा – मेरी ने कोहराम मचाया है।
न जाने क्यूँ इंसान ने, अपने – पराए का जाल बिछाया है॥

मालूम है ये सबको, कि देने वाला लेना भी जानता है।
फिर भी अहम में डूबा इतना, तुझकों नही पहचानता है॥

एक दिन सबको चले जाना है, ये मानुष तन छोड़कर।
आओं! फिर नेक कर्मों के खाते में रखें, अपना नाम जोड़कर॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में जिसका भी जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इसलिए अच्छे कर्म कर ले, विकर्म का खाता इकट्ठा न करें। आपके अच्छे कर्म ही आपको इस संसार में जीवित रखेंगे। इसलिए बुरे कर्म का त्याग कर, अच्छे कर्म ही करे।

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यह कविता (अजब तेरी माया।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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