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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poetry in hindi on life

किताब।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ किताब। ♦

बचपन में ही किताबों से,
मुलाक़ात हो जाती है।
सबसे प्यारा और अच्छा,
उपहार होती है किताबें।

घर के अलमारी के
कोने में रहती है किताबें।
कुछ न लेती ज्ञान का,
पाठ पढ़ाती है किताबें।

किताबों में संसार और
अल्फाजों का प्यार है।
धर्म, वेदों ,सभ्यता,
संस्कृति का भंडार है।

देश, समाज, परिवार के
भविष्य का सर्जनहार है।
सब तरह ज्ञान का पाठ,
पढ़ाती है ये किताबें।

विद्या और अध्यापक की,
साथी होती है किताबें।
अकेलेपन की अच्छी,
दोस्त होती है किताबें।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किताब इंसान की सच्ची मित्र होती है, बिना कुछ लिए किताबें सदैव ही हमारी सहायता करती रहती हैं। 100 दोस्तों से अच्छा एक अच्छी किताब होती है। ज्ञान सदैव ही इंसान का साथ देती है, चाहे वह समय कैसा भी हो। ज्ञान ज़िन्दगी के हर मोड़ पर आपका साथ निभाएगा चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। किताबों को अपनी ज़िन्दगी का जरूरी हिस्सा बना लो, तुम्हारी ज़िन्दगी निखार जाएगी।

—————

यह कविता (किताब।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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Note:-

यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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जिंदगी अगर किताब होती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जिंदगी अगर किताब होती। ♦

जिंदगी अगर किताब होती,
हम उसके पन्नो को पढतें।

कब हम अपने अरमान पूरे करेंगे,
जीवन में हर रंग को कैसे भरेंगे।

कौन सा रिश्ता जीवन भर साथ निभायेगा,
कब हम खुश होंगे कब उदास होंगे।

फाड़ देते उन पन्नों को जो हमें रुलाता,
उन पन्नो को हम लिखते जिससे हमें खुशी मिलेगीं।

हमने जीवन में क्या खोया – क्या पाया,
एक पन्ना में समाज और देश के भविष्य की बातें।

महामारी से हम कब तक मुक्त होंगे ये पन्ना भी होता,
एक – एक पल की हम खुशी को कैसे बाँटते।

कैसे खत्म होगी जिंदगी यह पता करने का,
पन्ना होता, जिंदगी अगर एक किताब होती।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवयित्री ने कल्पना किया है की अगर जिंदगी अगर किताब होती तो, जीवन के हर एक एक्ट में हम अपने अनुसार रंग भरते। जीवन के हर अवस्था का पन्ना होता जिसे हम समय समय पर पढ़ लेते, और उसी अनुसार अपने कार्य करते। कुछ भी गड़बड़ होने से पहले ही, सतर्क हो जाते। हर कार्य सही समय पर सही तरीके से पूर्ण कर पाते। कौन सा रिश्ता जीवन भर साथ निभायेगा और कब हम खुश होंगे कब उदास होंगे यह जान पाते। फाड़ देते हम उन पन्नों को जो हमें रुलाता व उन पन्नो को हम लिखते जिससे हमें खुशी मिलेगीं। कैसे खत्म होगी यह जिंदगी यह पता करने का भी एक पन्ना होता, जिंदगी अगर एक किताब होती तो कितना अच्छा होता।

—————

यह कविता (जिंदगी अगर किताब होती।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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बेखबर जिंदगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बेखबर जिंदगी। ♦

जिंदगी के रंग भी बदलते है,
कभी हम बेखबर जिंदगी से,
अनजान सफर की ओर चल देते है।
जिंदगी में कभी ख़ुशी कभी गम।

जीवन की राह में कभी सहज होते,
हर पल खुशी हो यह जरूरी नहीं।
दुख भी जिंदगी का रूप ही है,
जिंदगी में जो चाहा वो मिले,
ये भी कोई जरूरी नहीं है।

जिंदगी भी एक किताब होती,
जिनके पन्ने हम पढ़ पाते।
कब क्या कैसे होगा घटित,
सबको खबर होती बेखबर जिंदगी की।

खाली हाथ आये जीवन में,
खाली ही हाथ जाना भी है।
फिर क्यो हम भागदौड़ में लग रहे,
कुछ अच्छे कर्म करे जीवन में।

जो हमेशा हमें याद करें,
मोह में बांधकर जिंदगी को।
दुख दर्द को इस पीड़ा को सहते है,
अन्त समय मे जिंदगी बेखबर होती है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जो कर्म इंसान करता है वहीं कर्म उसके नाम को इस संसार में जीवित रखते है। इस संसार में सभी खाली हाथ ही आये थे और खाली हाथ ही जाना भी हैं, तो जब तक जीवन हैं अच्छे कार्य ही करें। सदैव ही आपकी यही कोशिश हो की आपकी वजह से कभी भी किसी को किसी भी तरह की कोई तक़लीफ़ न हो। जहां तक हो सके लोगों की मदद करते चले और अच्छा सोचे व अच्छा कार्य करें। एक बात मेरी याद रखें — जिंदगी में किसी से भी स्नेह रखें मोह नहीं, क्योकि जहां मोह होता है वहां बंधन होता है और वही बंधन आपको दर्द देता है। श्रीमद्भागवत गीता के अठारहवें अध्याय में है की “नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा” अर्थात: जब तक इंसान मोह को नहीं त्यागता है तब तक उसे सुख और सद्गति नहीं मिलती हैं।

—————

यह कविता (बेखबर जिंदगी।) “पूनम गुप्ता जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन। ♦

विद्युत तरंगों से पोषित मानव शरीर,
प्राकृतिक वातावरण शांति भाषा की।
शीघ्र मुक्ति पाने की कामना करता,
मंदिर – गिरजाघर खोज में रहता॥

सात्विक, आध्यात्मिक ऊर्जा संपन्न खोजने,
शास्त्र – पुराण में वह खोज करता है।
कष्ट प्रद स्थित में जब होता मानव,
असंतुष्ट हो कष्ट से छटपटाता॥

कामनाओं के भंवर से उबर नहीं पाता,
मुक्ति मार्ग पर वह भटकते हुए जाता है?
आत्मबल भी कमजोर हो जाता,
नकारात्मकता से वह जीवन बिताता।

आपाधापी से गुरूर होने लगता है,
प्रेत योनि में ही, वह अक्सर चला जाता।
दुर्घटना से शरीर तुरंत छूट जाती,
इच्छाएं कामनाएं ही याद में रह जाती॥

आत्मा का अस्तित्व शक्तिशाली होता,
कामना और इच्छा शक्ति प्रबल होती।
विद्युतीय सूक्ष्म शरीर का क्षरण नहीं होता,
अचानक आघात से शरीर का अंग काम नहीं करता॥

ब्राह्मण! अकाल मृत्यु होने पर ब्रह्म हो जाता,
हजारों वर्ष सूक्ष्म शरीर नष्ट होने का इंतजार करता।
भूत, प्रेत जिन्न – पिशाच में चला जाता,
जिस अस्तित्व का मानव कल्पना नहीं करता है॥

आधुनिक विज्ञान और पश्चिमी देशों ने,
भूत – प्रेत जीवधारी सूक्ष्म शरीर माना है।
स्वाभाविक मृत पहले, धीरे-धीरे शरीर की,
काम करने वाली क्रिया को बंद करते जाता है॥

यानी ऊर्जा परिपथ का क्षरण होता रहता,
शरीर सुन्न और मस्तिष्क का, ह्रदय से संबंध छूट जाता॥

सब कुछ शरीर के अंग को सुन्न कर देता,
अंत में प्राण शरीर से निकल जाता है।
आत्मा कोई दूसरा विद्युत तरंगों की शरीर तलाशता,
भ्रूण के रूप में उसमें प्रवेश कर जाता है॥

मानव और जंतु का शरीर कोशिका से निर्मित होता,
उस शरीर में विविध अवयव पाया जाता है।
नाभिक में एक अदृश्य किरण जुड़ी होती है,
एक छोर पर सूक्ष्मतम परमाणु कण मिलता॥

जिसने उसके पालन पोषण का प्रयत्न करता,
वैज्ञानिक उसे गॉड पार्टिकल नाम से पुकारता।
अपने कर्मों के फल से जीव प्रेत योनि को पाता,
और धरती पर आकर अपना शुभ कर्म भूल जाता॥

धर्म परायण जीव भोग में जगत को पाता,
राजा बनकर धरती पर फिर, वही यहां आता।
विद्दूतीय तरंगों से पोषित मानव इस शरीर,
और प्राकृतिक वातावरण में, शांति पाता॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — पांच तत्वों से मिलकर बना ये शरीर जिसका मूल स्वरूप शांत है और इस शरीर को चलायमान बनाने वाली ऊर्जा का भी मूल स्वरुप शांत है। इंसान अपने कर्मों के अनुसार अपना भाग्य बनता है। इंसान के कर्म ही उसे इस संसार में जीवित रखते है। इसलिए अच्छे कर्म ही करना चाहिए मानव को इस संसार में। आपके अच्छे कर्म आपको सद्गति देंगे व बुरे कर्म दुर्गति देंगे। अकाल मृत्यु किसी भी इंसान को प्रेत योनि में ले जाता है। इच्छाओं के भंवर से बाहर निकले सत्य का बोध कर सन्मार्ग पर चलकर धर्म परायण अच्छे कर्म करें।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (शारीरिक क्रियाएं – नव जीवन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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अजब तेरी माया।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अजब तेरी माया। ♦

इस संसार से विदा, जो हो गए।
समय – असमय जो, चिरनिद्रा में सो गए॥

हे मालिक! बता तुमने, उन्हें कहाँ छुपाया है।
फिर क्यूँ उनका अक्स भी, नजर नहीं आया है॥

तेरे तो खेल निराले, अजब तेरी माया है।
जो तूनें ब्रह्मांड में, जीवन – मरण का खेल रचाया है॥

इस जग की रीत, तो तुझसे भी निराली है।
जो विदा हो गए यहाँ से, फिर उनकी परछाई भी काली है॥

फिर क्यूँ इस जगत में, मेरा – मेरी ने कोहराम मचाया है।
न जाने क्यूँ इंसान ने, अपने – पराए का जाल बिछाया है॥

मालूम है ये सबको, कि देने वाला लेना भी जानता है।
फिर भी अहम में डूबा इतना, तुझकों नही पहचानता है॥

एक दिन सबको चले जाना है, ये मानुष तन छोड़कर।
आओं! फिर नेक कर्मों के खाते में रखें, अपना नाम जोड़कर॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में जिसका भी जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इसलिए अच्छे कर्म कर ले, विकर्म का खाता इकट्ठा न करें। आपके अच्छे कर्म ही आपको इस संसार में जीवित रखेंगे। इसलिए बुरे कर्म का त्याग कर, अच्छे कर्म ही करे।

—————

यह कविता (अजब तेरी माया।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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पुरखे जागे – तुम जागो।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पुरखे जागे – तुम जागो। ♦

कल तक पुरखे जाग रहे थे,
जागो अब, तुम जागो।

आंगन मेरा ही है श्रृंगार,
जिसमें विविध पुष्पों का बहार।

विदीर्ण न हो आनंद कानन,
जागो फिर, तुम जागो।

आत्म निरीक्षण तुम करना,
धरा आलोकित अपनी रखना।

अनंत प्राकृतिक संपदा की,
रक्षा तुम्हीं को है करना।

मन के दिन मणि प्रेम प्रकाश,
पांव बढ़ाओ जागो।

बाहें अंगणित बढ़ने वाली,
बढ़ो बढ़ – छांटो पाश।

यदि हो आंगन आश,
रण में बिछा दो दुश्मन लाश।

होगी नहीं पूरी अभिलाषा,
बजा दो उनके ताशा।

नहीं पता है उसको आज,
बांधे सपने रक्खे ख्वाब।

व्यग्र निगाहें उचक उचक कर,
ढूंढ रही सूनी राह।

जागो तुम फिर जागो,
कल तक पुरखे जाग रहे थे।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — अभी तक घर के पुरखे ( वृद्ध ) लोग घर से लेकर बाहर तक सबकुछ देखते संभालते आ रहे थे अब तुम सम्भालो। अब तुम्हारी जिम्मेवारी है सब देख रेख करने का। अब तुम्हारे कंधो पर भविष्य की जिम्मेवारी है, जैसे को तैसा जवाब देने की बारी है।

—————

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यह कविता (पुरखे जागे – तुम जागो।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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सोच रे मानव।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सोच रे मानव। ♦

हे मूर्ख इंसान, तू सत्य की खोज कर।
जग में असत्य बढ़ाने पर मत शोर कर।

कौन है तू,क्या हस्ती तेरी, क्या वजूद तेरा।
जब विचारों का इंकलाब आएगा,
कहाँ होगा, अस्तित्व महफूज तेरा।

क्यों डूबा है, खुद को भगवान बनाने में।
इस शक्ति को एक क्षण भी,
नही लगेगा तुझें मिटाने में।

तुझें मालिक ने बार-बार इशारा देकर,
कोई कसर न छोड़ी, तुझें चेताने में।
कोई कमी बाकी न रही तुझें समझाने में।

जिस कर्म से जग में हताशा और निराशा हो।
उस कर्म को तज दे मनुष्य,
जिससे कलयुगी इंसान की परिभाषा हो।

युगों से देखी नही क्या तुमनें,
इस रब की लाठी तो, बेआवाज होती है।

तू देखता रह जायेगा, ये इंसाफ कर देगी,
क्योंकि इसकी हर बात राज होती हैं।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – किस तरह से आज का इंसान सत्य से दूर, नाना प्रकार के विकर्म कर रहा है। अहंकार-वश स्वयं को भगवान् बनाने में लगा है। वह भूल गया है जब इस रब की लाठी पड़ती है, तो उसमे आवाज़ नही होती। अभी भी समय है तू सुधर जा इंसान, वर्ना तेरे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।

—————

यह कविता (सोच रे मानव।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

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मानव जन्म हुआ मेरा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मानव जन्म हुआ मेरा। ♦

मैं कोई विद्वान नहीं,
विद्वता का पाठ पढ़ाऊ।
कोई मैं अज्ञानी नहीं,
अज्ञानी में अज्ञानी कहाउं।

सिंधु में सानी नहीं,
ज्ञानियों में ज्ञानी नहीं।
सिंह में शानी नहीं,
दानियों में दानी नहीं।
और मेरे देंह – गेह में,
बैठी अशांत भी नहीं।

मैं ध्रुव भी नहीं,
जो वन गमन करूं।
मैं राम नहीं हूं कि,
राक्षसों का वध करूं।

मैं कृष्ण भी नहीं ज्यों,
गोपियों को बंसी सुनाऊं।
वृंदावन में उनके संग,
मिल रास लीला रचाऊं।

महाराजा पृथु नहीं कि,
मेरी पृथ्वी स्तुति करें।
मैं ऋषि संकादि नहीं कि,
महाराजा पृथु सा उपदेश करें।

महाराज पुरंजन नहीं कि,
शिकार खेलने से रानी कुपित होंगी।
मैं राजर्षी भरत भी नहीं,
की मृग योनि को पाऊंगा।
और ऋषि अंगिरा पुत्र कहाउं,
ब्राह्मण कुल जन्म पाऊंगा।

मैं महिंद्र भी नहीं कि,
ब्रह्म हत्या ले बिकाऊ।
मैं चित्रकेतु भी नहीं,
कि विषपान करूं।
वामन भगवान भी नहीं,
तीन पग में ब्रह्माण्ड नापूं।

मैं योग माया भी नहीं,
कि कंस बध भविष्यवाणी करूं।
प्रलंबसुर – अधसुर नहीं,
की उद्धार की सोचूं।
और सुदर्शन शंख चूर्ण नहीं,
जो उद्धार के लिए सोचूं।

मैं अक्रूर जी नहीं कि,
ब्रज यात्रा पर जाऊं।
श्री कृष्ण की स्तुति में,
अपने को लगाऊं।
उद्धव जी की ब्रज यात्रा,
का वर्णन लोगों को सुनाऊं।

और ऋषि अंगिरा पुत्र कहाऊं,
ब्राह्मण कुल में जन्म पाऊं।
मैं इंद्र भी नहीं हूं,
ब्रह्मा हत्या लेकर बिताऊं।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – साधारण मानव के बारे में बताया है बहुत सारे उदाहरण देकर। जीवन साधारण हो लेकिन उत्तम हो, विकार से मुक्त हो, तो अच्छा। शांत, पवित्र जीवन हो। ज्ञान और शील हो, मन शांत व पवित्र हो, आपका। किसी को दुःख न दे, तो अच्छा।

—————

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यह कविता (मानव जन्म हुआ मेरा।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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एक दिन फोन आया।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ एक दिन फोन आया। ♦

विश्व गाथा प्रकाशन से,
मुझे फोन आया।

अ हिंदी क्षेत्र गुजरात,
से भी विश्व गाथा का,
प्रकाशन होता बताया।

लखनऊ में आफिस को,
एक है गाथा का बताया।

हमने उनसे जब नाम,
श्रीमान का जानना चाहा।
उन्होंने प्यार से नाम अपना,
पंकज त्रिवेदी हमें बताया।

हमने कहा श्रीमान आपकी,
पारदर्शिता ही विश्व गाथा,
को ऊंचाई प्रदान किया है।

आगे बढ़कर हिम्मत जुटाया।
अवध निवासी सुख मंगल सिंह।
अपना नाम उन्हें दर्ज कराया।

सोमवंशी क्षत्री कुल मेरा फरमाया।
काशी में प्रवासी हुकुम मैं बताया।
मां भगवती और गंगा को मनाया।
बाबा विश्वनाथ में दिल लगाया।

त्रिवेदी जी के दीर्घायु की कामना।
हमने फोन पर ही उन्हें सुनाया।
नमस्कार बंदगी के दरमियान।
काशी से अपना नाता है सन पाया।

हां जहां तक मुझे याद आता है।
सितंबर 2017 की यह बात है।
बड़े लोगों से बात कभी होती है।
हृदय में उमंग विशेष होती है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – विश्व गाथा प्रकाशन से, फ़ोन कॉल आया, कवि ने कविता के माध्यम से प्रशंसा करना बताया। कैसे किसी की प्रशंसा करें, और शॉर्ट में अपना परिचय दिया। फोन कॉल के दौरान आपको कैसा व्यवहार करना चाहिए ये समझाया।

—————

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यह कविता (एक दिन फोन आया।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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शक्ति विहीन पंख।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ शक्ति विहीन पंख। ♦

शक्तिहीन पंख लगा न बढ़ाइए।
उड़ने की कोशिश न बनाइए।
विपरीत पवन के न जाइए।
ध्यान – ज्ञान अपना बढ़ाइए।

बेवजह बात कही में नहीं आइए।
घमंड की दुनिया कॉल लगाइए।
स्वार्थ से सनी सबंध पहचानिए।
अपने मान और सम्मान बढ़ाइए।

कौन क्या कर रहा इस पर न जाइए।
विज्ञापन की दुनिया मन निकालिए।
भविष्य के चिंतन में खुद को लगाइए।
सत्य की खोज में अपने को लगाइए।

समदर्शी बनने की सोच बढ़ाइए।
संतोष करके नित मंगल पाइए।
क्षमा जाप समाज पूजा बढ़ाइए।
परोपकार उपकार ध्यान लगाइए।

राष्ट्र भक्ति में डूब कर दिखाइए।
भक्ति रस में खुद को भी डुबाइए।
दरिद्र कलह लोभ मोह दूर भगाए।
बेवजह पंख शक्ति हीन न खिलाइए।

शुभ धरातल का रौनक बढ़ाइए।
प्रकृति के करीब धीरे-धीरे आइए।
देश भक्ति का मधुर गीत सुनाइए।
खुशहाल चिंतन में रमते जाइए।

आंगन में अपने ही रौनक लाइए।
हंसी ठिठोली से दिल न भार्माइए।
सीख एक धरा से अपनी बढ़ाइए।
जीवन में सहनशील बन जाइए।

गरीबी का दुखड़ा दूसरे से न सुनाइए।
हृदय को आकाश अंबर सा बढ़ाइए।
बादल की छांव में बैठकर न बताइए।
मंगल मनोहर एक कहानी सुनाइए।

काव्य साहित्य संकलन में लग जाइए।
दुनिया में हिंदुस्तान का नाम बढ़ाइए।
संयम साहस शील हृदय में लाइए।
बेवजह में पंख को ना फडफड़ाइए।

ईमानदारी से काम करते जाइए।
विरोधी बातों में अपनी न लाइए।
राष्ट्र की रक्षा में खुद भी लग जाइए।
सत्य अहिंसा के बूते आशा जगाइए।

यश कीर्ति जगत में अपनी फैलाइए।
मोहब्बत की दुनिया में नाम कमाइए।
हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान करते जाइए।
सुर सुंदर अपना जीवन में लगाइए।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – बेवजह यूँ ही किसी बात में ना आइए, समय बर्बाद ना करें। स्वार्थ से सनी सबंध को पहचान कर घमंड को त्यागकर सत्य की खोज में अपने को लगाइए। बेवजह में पंख को ना फडफड़ाइए। भविष्य के चिंतन में खुद को लगाइए, भक्ति रस में खुद को डुबोकर काव्य साहित्य संकलन में लग जाइए, संयम, साहस व शील हृदय में लाइए, और दुनिया में हिंदुस्तान का नाम बढ़ाइए।

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