Kmsraj51 की कलम से…..
♦ आता है अकेला – चार कंधे से जाता। ♦
इंसान आता है इस धरा पर अकेला — चार कंधे से जाता।
मनुष्य धरा पर अकेला आता,
रोता हुआ खुद जन्म पाता।
जन्म जिस घर में वह लेता,
गीत गवनई वहां गाया जाता।
छठी बरही भी किया जाता,
पालन करने वाला पिता होता।
वहां ढोल मजीरा बजता पाता,
गांव में मुंह मीठा किया जाता।
बच्चे – बच्ची खुशहाली आती,
कालिया आंगन की खुल जाती।
माता उसी की दुखहर्ता होती,
चारों तरफ से बधायां मिलती।
क्रिया – कर्म समझ नहीं पाता,
कुछ दिन बाद खुद उलझ जाता।
मोह – माया में मनुष्य बध जाता,
जन्म – मरण चक्कर फंसा पाता।
आप पाप पुण्य में फंस जाता,
कंचन चक्कर, धरा में घस जाता।
जो भी मंशा लेकर मानव आता,
ठगा हुआ दुनिया में खुद पाता।
कर्म धर्म सारे समझ नहीं पाता,
उसके संग कुछ भी नहीं जाता।
जबकि मनुष्य जीवन सुंदर पाता,
यश कीर्ति धरा पर ही रह जाती।
जिस जीवन हेतु देवता तरस जाता,
उसी पाकर मनुष्य दुख लेकर आता।
जीवन चक्र में वह सुख कहां पाता,
शरण में देवताओं के जब नहीं जाता।
मुक्ति पाने की अभिलाषा लाता,
सत्कार मुंह से जाने क्यों कराता।
अपनी भूल पर अंत छटपटाता,
पाप – पुण्य कर्म समझ नहीं पाता।
झटपट अर्थार्जन में ध्यान बटाता,
पितृ – ऋण भी चुका नहीं पाता।
मृत्यु के समय सबको रुला जाता,
चार कंधों से श्मशान घाट जाता।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – बहुत भाग्य से मानव जीवन मिला है जिसके लिए देवता भी तरशते है। अपने इस अनमोल जीवन को यूँ ही नष्ट ना कर दो। अपने इस अनमोल जीवन का सार्थक प्रयोग करो। जीवन के खट्टे- मीठे उतार चढ़ाव का मधुर वर्णन किया है। अच्छे कर्म कर, जीवन का सदुपयोग कर, मानव जन्म को आनंदमय बनाएं।
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यह कविता (आता है अकेला – चार कंधा से जाता।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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