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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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poem on life in hindi

पिता की सीख ही सच्ची थी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Pita Ki Seekh Hi Sacchi Thi | पिता की सीख ही सच्ची थी।

“कहलाना तो है मानव हमको,
पर पशु सा हमे सब करने दो।
पिता हो तुम तो फिर क्या हुआ?
हमे मर्जी से ही सब करने दो।”

“जन्म दिया और पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया, बड़ा किया।”
“कौन सा तीर मारा है तुमने?
फर्ज मां – बाप का अदा किया।”

“धन्य लला तुम जो जान खपा कर,
आज तुमसे ये शब्द उपहार मिला।
नेकी कर दरिया में डाल का उम्दा,
पितृ कर्म का उत्तम उपकार मिला।

निवाला अपने मुंह का छीन कर,
तेरे मुंह में, इसी लिए ही डाला था?
नूर गंवाया, तेरी मां ने तुझे जनाया,
क्या इसी लिए ही तुझे पाला था?”

सुन भारी-भरकम बोझिल शब्द पिता के,
हुए अनुगुंजित अधिभारित अनुशासित थे।
हुए अंकुशित बुद्धि के घोड़े डर बेदखली के,
पर मनोभाव तो अभी भी त्यों विलासित थे।

होते ही जायदाद नाम अपने पिता की,
हुआ बेटा फिर से आपे से ही बेकाबू था।
उद्भासित पिता के अनुभव को भुला कर,
किया दूर प्रयोग से विवेक का तराजू था।

कुछ यारों ने लुटा, कुछ विकारों ने लुटा,
शेष कुछ लूट गई बेवफा महबूबा थी।
पिता की कमाई तो जाती रही हाथ से,
खुद के लिए तो कमाई उसे अजूबा थी।

पिता की पीठ में बजे नगाड़े की धुन,
समझा, कितनी मीठी, कितनी खट्टी थी।
मालामाल था, कंगाल हो लिया था जब,
तब समझा, पिता की सीख ही सच्ची थी।

गर्म खून था ठंडने लगा जब उसका,
लगा तोलने हर सौदा विवेक तराजू से।
संभलती दुकान फिर से जिंदगानी की,
तब तक जा चुकी थी ताकत ही बाजू से।

पछतावा तो था पर किस काम का ?
चिड़िया ने चुग लिए खेत अब सारे थे।
स्मृति पटल में अनुगुंजित शब्द पिता के,
अब समझा कि उनमें कौन से इशारे थे?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। आमतौर पर एक बच्चे का जुड़ाव सबसे अधिक उसके माता-पिता से होता है क्योंकि उन्हीं को वो सबसे पहले देखता और जानता है। माँ-बाप को बच्चे का पहला स्कूल भी कहा जाता है। लेकिन आजकल के बच्चों को हो क्या गया है ओ यह क्यों भूल जाते है की जैसा ओ अपने माता-पिता के साथ करेंगे वैसा ही उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। एक बात याद रखें – पिता सदैव ही अपने अनुभव से आपको अच्छी सीख देते है, उनका कभी भी अनादर न करे, माता-पिता का यदि आप अनादर करेंगे तो सबकुछ मिल तो जायेगा लेकिन वह जल्द ही ख़त्म भी हो जायेगा। उनकी दुआओ व सीख से ही आप जीवन में आगे बढ़ेंगे।

—————

यह कविता (पिता की सीख ही सच्ची थी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: hemraj thakur, hemraj thakur poems, hindi poem on father and son, poem on life in hindi, short poem in hindi, कविता हिंदी में, छोटी सी कविता हिंदी में, पिता का साया कविता, पिता की सीख ही सच्ची थी, पिता की सीख ही सच्ची थी - हेमराज ठाकुर, पिता के लिए कविता हिंदी में, पिता पर 4 पंक्तियां, पिता पर छोटी सी कविता, मनुष्य का जीवन चक्र, हेमराज ठाकुर, हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

यह अकेला है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Akela Hai | यह अकेला है।

हमने जाड़े की सर्दी है झेली,
हर गर्मी का मौसम है झेला।
वसन्त ऋतु की बहारें हैं देखी,
देखा वर्षा ऋतु का क्रुद्ध खेला।

स्मृति के विलासित गहवार में,
हैं उभरती धंसती कई यादें।
हसरतें जो कुछ थी पूरी हुई,
रह गए अधूरे ही थे कई वादे।

इस जिन्दगी के अधूरे सफर में,
खूब है देखा यह जग का मेला।
किसी के धन की अम्बर है देखी,
किसी के नसीब में न देखा धेला।

अजूबों से भरी इस दुनियां में,
मैंने सपने सबके अधूरे देखे।
राजा रंक सब परेशान हैं देखे,
किसी के ख़्वाब नहीं पूरे देखे।

किसी को अहम से इठलाते देखा,
तो किसी को शर्म से शर्मिंदा देखा।
अमीर – गरीब सबको मरते हैं देखा,
किसी को सदा न यहां जिन्दा देखा।

पर होड़ाहोड़ी और आपाधापी में,
निरन्तर छटपटाते हैं सबको देखा।
लक्ष्मण रेखा को लांघते जो संघर्ष में,
उनको समाज द्वारा नकारते हैं देखा।

अजीब करिश्मा है इस जीवन का,
इस भीड़ भड़ाक में यह अकेला है।
इस जीवन ने अपने पूरे सफर में,
हर वफा व छल प्रपंच को झेला है।

यह जीवन इस जग के लगभग,
हर सम्भव सुख दुख से खेला है।
हसरतें तो थी आकाश में उड़ने की,
पर जीवन की हद ने इसे नकेला है।

अनुभव में जो आया है अब तक मेरे,
कि यह जीवन तो निरन्तर अकेला है।
आया इस दुनियां में यह अकेला ही था,
जाता भी इस दुनियां से यह अकेला है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते है, लेकिन एक बात सदैव ही कॉमन होती है, कोई भी मनुष्य आता भी अकेला है और सदैव जाता भी अकेला ही है, कुछ साथ भी लेकर नही जाता है, तो सोचने वाली बात है की फिर मनुष्य अपने जीवन में अहंकार क्यों करता है, इतना गुमान किस बात का करता है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि शरीर का निर्माण पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और तीन गुणों- सतो (सत), रजो (रज) व तमो (तम) से हुआ है। इसके बाद ब्रह्म का अंश जीव के रूप में शरीर में प्रवेश करके उसे जीवात्मा बनाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति के गुण जीव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस प्रकार मनुष्य बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था तक पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं, उसी प्रकार परिवार भी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं।

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यह कविता (यह अकेला है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 3

इक प्रयास (एक प्रयास)।

कभी नहीं पाला मैनें, ‘परिमल’ ऐसा रोग,
दिल्लगी सबके साथ है, नेकी अपने लोग।

कटोरा जिसके हाथ में, घर-घर माँगे खाय,
जिसके हाथ कट गये, वे कहाँ हाथ फैलाय।

माने तो सब बावले, आशिक मजनूं हीर,
उन्हें पगला न कहिये, जाने उनके हृदय पीर।

आगार अपना तो भर लिया, लंबा मारा हात,
कहता सबसे फिरे, धरम करम की बात।

मैं थककर चूर हुआ, तू भी थककर चूर,
तेरा दर तो आ गया, मेरी मंजिल अभी दूर।

भव की चिंता वो करे, जिसको जग से प्यार,
मैं बेजार हो चुका सबसे, सब मुझसे हैं बेज़ार।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (इक प्रयास। / पार्ट – 3) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: kavi satish shekhar srivastava parimal, poem on life in hindi, Satish Shekhar Srivastava 'Parimal', इक प्रयास पार्ट – 3 – सतीश शेखर श्रीवास्तव परिमल, कवि सतीश शेखर श्रीवास्तव – परिमल, जीवन एक चुनौती पर कविता, जीवन मूल्य पर कविता, वर्तमान समाज पर कविता, संघर्षमय जीवन पर कविता, सतीश शेखर श्रीवास्तव – परिमल

इक प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ इक प्रयास। ♦

इक प्रयास। / पार्ट – 2

इक प्रयास (एक प्रयास)।

छैल छबीली जिसके बाँहों में, सफेद झूठ उसके बोल,
कुछ क्षण का साथ है, और कुछ क्षण का मेल।

गहराई थी अतल की, वितल था दो मील,
बादल उसे पी गया, देखती रह गई झील।

जन्मों-जन्म प्यासी रही, घट-घट पिलाया नीर,
‘परिमल’ ऐसा दान तो, नदिया दे तो क्षीर।

बंदूकों के नोक पर, मचाये कौन शोर,
गली-गली में पहरेदार हैं, घर को लूटे घर के चोर।

बागों में आई नहीं, बहारों की बयार रास,
उपवन में बस गई, फूल-पंखुड़ियों की बास।

सीमा को छू न पाया, दानवीरों का दान,
भूखों को ले गया घर, इक नंगा-भूखा इंसान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (इक प्रयास। / पार्ट – 2) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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बिखरे पत्तों सी जिन्दगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बिखरे पत्तों सी जिन्दगी। ♦

ये जिंदगी ताश के बिखरे पत्तों जैसी,
खेल की तरह ही जीतती हारती है वैसी।

कभी बादशाह जैसी अपनी हुकूमत दिखाती,
कभी रानी बन सुंदरता का आईना दर्शाती।

कभी जोकर बन सभी को हंसाए, रुलाए,
आंखों में आंसू, होठों पर कभी मुस्कान लाए।

बावन पत्तों सा रिश्तों का बना संसार,
एक भी गुम हो जाए तो जीवन लगे निराधार।

सभी भावनाऐं इस कदर इन पत्तों में समाई,
कभी ईंट, कभी हुकुम का इक्का ले आई।

कभी पान के पत्ते सी, कभी चिड़ी जैसे पंख लगाए,
भावनाएं ले ऐसी, ये जिंदगी सरसाये।

जो रंगीन पत्तों की बात करें, उल्टे या सीधे एक समान,
बावन के ढेर में छुपे जो, रंगीन ताश दिखाए रंगीन जहान।

अलग-अलग करीने से लगाने पर, ये खेल में खूब रंग लगाए,
इसमें ही खोने पर, ताश के पत्तों जैसी जिंदगी बिखर जाए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जिंदगी के उतार-चढ़ाव उस दिमागी खेल की तरह हैं जिसमें कभी हार होती है तो कभी जीत। यदि हम खेल को कुशलतापूर्वक और ध्यान से खेलते हैं तो विजय मिलती है और ध्यान चूकने पर हार का सामना करना पड़ता है। जिंदगी में परेशानियों व विपत्तियों का आगमन व्यक्ति को हताश कर देता है और उसके जीवन में अंधकार भर देता है। लेकिन मानव जीवन का यही वो समय होता है जब उसे पूर्ण धैर्य से कार्य करना चाहिए और शांत मन से उचित निर्णय लेकर आगे बढ़ना चाहिए। मानव जीवन में परेशानियों व विपत्तियों का आगमन मनुष्य को मानसिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए आते है।

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यह कविता (बिखरे पत्तों सी जिन्दगी।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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भक्त की अभिलाषा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ भक्त की अभिलाषा। ♦

खुशी से वास्ता नहीं,
मुश्किलों से गहरा लगाव है।
मेरी जिंदगी कभी तपती दोपहरी,
कभी घनी छांव है।

अपनों ने दिए बेहिसाब दर्द,
मेरी कराहती वेदना की अपनी घाव है।
शब्द हुए अपाहिज,
दर्द से लथपथ पांव है।

रूह तक झुलस चूका हूं,
अपनों ने जलाए वही अलाव है।
पतझड़ के मौसम में जुर्रत नहीं,
बहार की ख्वाइश कैसे करूं।

आंखें नम हैं मेरी हे प्रभु,
लव पे तबस्सुम की ख्वाइस कैसे करूं।
इतना आसान नहीं मेरे लिए,
गुजरी बातों को भूल जाएं।

जिस राह पर चलूं मेरे प्रभु,
मेरे हिस्से में कंकड़।
अपनों के लिए फूल बन जाए।
एक स्वर गूंजता मार दूंगा,
क्यूं यही शोर सब ओर है।

समाज भ्रष्ट या फिर कमजोर है,
हे शिवशम्भू, कृष्णकन्हैया,
मां लक्ष्मी, चित्रगुप्त,।
मैं हूं निर्बल,,,
अब मेरी भी विनती सुन लो,
मंदिर-मंदिर माथा टेका,
पर कहीं भी मिली नहीं।

तुम्हारे दर्शन बिन प्रभु,
लगता है मन कहीं नहीं।
आश लगाए बैठा हूं,
माता, जगत पिता संग आयेगी,
बहुतेरे भक्त हैं तेरे,
दुःख हर कर, गले जरूर लगाएगी।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — एक सच्चा भक्त सदैव ही मानव कल्याण के लिए प्रभु से प्रार्थना करता है, वह अपने लिए कभी भी कुछ नहीं मांगता है। वह सदैव ही सभी के लिए सुख ही सुख की कामना करता है प्रभु से, चाहे दुनिया वाले या उसके अपने कितना भी उसे तकलीफ़ दे। मानव जीवन में उतार-चढ़ाव तो लगा ही रहता है, इसका मतलब ये नहीं की अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी को भी तकलीफ़ दिया जाएं। एक बात सदैव ही याद रखें – विकर्म का फल सदैव ही तकलीफ़ देने वाला ही होगा, अच्छे कर्मों का फल देर से भले ही मिले लेकिन आपके लिए सुखदायी होता है। इसलिए अच्छे कर्म करे, मानवता को शर्मशार करने वाले कोई भी कर्म ना करें।

—————

यह कविता (भक्त की अभिलाषा।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मुश्किल नहीं नामुमकिन है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मुश्किल नहीं नामुमकिन है। ♦

मानव मन के मतभेदों को, धरती से मिटाना मुश्किल है,
रामायण हुआ महाभारत हुआ, मानव मदहोशी वैसी है।
मानव ही कहलाया कभी देव तो कभी दानव या राक्षस,
जाति धर्म में बंटे इंसानों की, आज भी यह लड़ाई कैसी है?

उम्मीद तो जागती है अंधेरे में जुगनुओं की रोशनी से भी,
पर उनकी टिमटिमाहट से मुकमल उजाला नहीं होता है।
लगता तो है दूर से कि मानो टीका अंबर क्षितिज पर ही है,
पर असल में तो अंबर को किसी ने संभाला नहीं होता है।

मुश्किल नहीं नामुमकिन है इस दौर में नीति समझाना,
क्योंकि आज हर तरकश में तर्कों के तीखे तीर भरे हैं।
जब पूछते हो सब कोई सवाल यही कि “ईश्वर कहां है?”
“तुमने देखा क्या?” ऐसे माहौल में भगवान से कौन डरे हैं?

मूर्खता है आज कहना किसी से कि भगवान से तो डरो,
इतनी भी लूटपाट और अभद्रता बिल्कुल ठीक नहीं है।
आज हर कोई देता फिरता है जवाब यही कि “बस करो,
यह जमाना है प्रैक्टिकल का, जिन्दगी कोई भीख नहीं है।

फिर सोचता हूं कि होना चाहिए फिर से कोई महाभारत,
जो बेकाबू इंसान सातवें आसमान से जमीन पर आ जाए।
फिर से जाग उठे इन्सान के भीतर वही पुरानी इंसानियत,
आदमी फितरतों को छोड़कर भगवान से डर खा जाए।

आज वश में नहीं है समझाइश चांद सितारों के भी शायद,
आज तो फिर से दुनियां में ज्ञान का सूरज उगना चाहिए।
मकसद नहीं है महज किसी की जिन्दगी में उजाला लाना,
कोशिश यह है कि जग में अहम अंधकार ही डूबना चाहिए।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आज का इंसान इंसानियत को बिलकुल भूल गया है, उसे अपने स्वार्थ के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं है। अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आज का इंसान कोई भी बड़े से बड़ा विकर्म करने से डरता नहीं है। उसे भगवान या उस अनंत सत्ता का भी डर भी अब नहीं रहा। क्या फिर से इंसान को सुधारने के लिए महाभारत की जरूरत है। आखिर क्यों आज का इंसान इतना स्वार्थी हो गया है। अपने अहंकार में डूबा आज का इंसान अपने विकर्मो के कारण अपना सर्वनाश करता जा रहा है। आने वाली पीढ़ी का भविष्य और भी ज्यादा अंधकारमय बना रहा है। अगर अब भी नहीं संभले और सुधरे तो तुम्हारा विनाश निश्चित है।

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यह कविता (मुश्किल नहीं नामुमकिन है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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मिले न मुझको सच्चे मोती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिले न मुझको सच्चे मोती। ♦

वन शहर गाँवों में ढूँढ़ा मैनें,
खोजा सागर – तल की गहराई में।
बहुत मिले जन लोग – लुगाई,
पर मिले न मुझको सच्चे मोती।

सिंधु शहर में कोलाहल था,
थलचर जलथल में उछल रहे थे।
इक – दूसरे को निगल रहे,
सगे-संबंधी जीवन से खेल रहे थे।
निज स्वारथ के मनन का,
गठरी दिखी चिंतायें ढोती।

उलझे – उलझे जीव जनावर थे,
चिकनी – चिकनी संवादों में।
भागम – भाग दौड़ लगाती थी,
समर सिंधु के रहने वालों में।
खुद अपने में ही खोई थी,
हर प्राणी की जीवन – ज्योति।

खोज रहा था मैं भव-सुदामन से,
सुनहली चमकीली नग निकाली।
परन्तु सभी पाहन छलिया थी,
रूप – रंग से छलने वाली।
उद्विग्न – घायल आस रह गई,
मन सँजोती सपन धीरज खोती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (मिले न मुझको सच्चे मोती।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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शोर मचाती जब-तब।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शोर मचाती जब-तब। ♦

गा रहे पल हरदम,
गुनगुनाती सी शाम है।
उजाले में कशमशा कर,
मचाती शोर जब-तब।

दूर किसी झरोखे से झाँक,
देख रही सदा ये जिंदगी।
कानों में आ-आकर,
कहती कथा कोई पुरागी।

रहती ओट में सदा,
लुक-छिपकर कोलाहल करती है।

अंत:करण की मूक आवाजें,
कलरव करती साँसों में।
थम-थम सी जाती धमनियों को,
चेता जाती आती-जाती आहों में।

खामोश रहती चुपचुप,
गुमसुम-सी चंचल रहती है।

झुरमुट की झँझरी छिदी-छिदी,
झरझर हो गई प्रत्याशा।
क्षणभंगुर-सा जीने को,
राग वेदना गाती शाशा।

सरगम के सुर-तालों में,
वेदना व्यथा बतलाती है।

नोट: शाशा – मनमुख(मन), पुरागी – दफन।
(ये शब्द मैनें कबीलाई भाषा से ली है।)

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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आँखों में अश्रु भरे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आँखों में अश्रु भरे। ♦

रख काँधे पर सर अपना,
अँखियों में अश्रु भरे हुए।
पहन अँधियारों को,
दर्द – पीड़ा की सुबकी लेते।
हर्ष – कर्ष की बातों में,
अब्धुमन की वीरानी खाती।

किसकी आहट सुनें,
पास कौन आयेगा।
अतिथि की आँखों को,
जो आँसू दे जायेगा।
किससे हम अनुरक्त हो,
भेजते उर-वेदना की पाती।

क्यूँ करे कोई याद,
इष्ट अपना यहाँ कौन।
जग इक बंधन है,
अनुराग इक सपन।
विचार कर अकुलाए,
अंत: करण को ढाँढ़स दे जाती।

है चंदा भी अकेला,
अकेली है उसकी चाँदनी।
मुग्ध हो हँसी दोनों,
ले ली है हृदय पर अपनी।
खाली मन प्राणों से,
मीत-प्रीति की चुटकियाँ ले आती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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