Kmsraj51 की कलम से…..
Pita Ki Seekh Hi Sacchi Thi | पिता की सीख ही सच्ची थी।
“कहलाना तो है मानव हमको,
पर पशु सा हमे सब करने दो।
पिता हो तुम तो फिर क्या हुआ?
हमे मर्जी से ही सब करने दो।”
“जन्म दिया और पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया, बड़ा किया।”
“कौन सा तीर मारा है तुमने?
फर्ज मां – बाप का अदा किया।”
“धन्य लला तुम जो जान खपा कर,
आज तुमसे ये शब्द उपहार मिला।
नेकी कर दरिया में डाल का उम्दा,
पितृ कर्म का उत्तम उपकार मिला।
निवाला अपने मुंह का छीन कर,
तेरे मुंह में, इसी लिए ही डाला था?
नूर गंवाया, तेरी मां ने तुझे जनाया,
क्या इसी लिए ही तुझे पाला था?”
सुन भारी-भरकम बोझिल शब्द पिता के,
हुए अनुगुंजित अधिभारित अनुशासित थे।
हुए अंकुशित बुद्धि के घोड़े डर बेदखली के,
पर मनोभाव तो अभी भी त्यों विलासित थे।
होते ही जायदाद नाम अपने पिता की,
हुआ बेटा फिर से आपे से ही बेकाबू था।
उद्भासित पिता के अनुभव को भुला कर,
किया दूर प्रयोग से विवेक का तराजू था।
कुछ यारों ने लुटा, कुछ विकारों ने लुटा,
शेष कुछ लूट गई बेवफा महबूबा थी।
पिता की कमाई तो जाती रही हाथ से,
खुद के लिए तो कमाई उसे अजूबा थी।
पिता की पीठ में बजे नगाड़े की धुन,
समझा, कितनी मीठी, कितनी खट्टी थी।
मालामाल था, कंगाल हो लिया था जब,
तब समझा, पिता की सीख ही सच्ची थी।
गर्म खून था ठंडने लगा जब उसका,
लगा तोलने हर सौदा विवेक तराजू से।
संभलती दुकान फिर से जिंदगानी की,
तब तक जा चुकी थी ताकत ही बाजू से।
पछतावा तो था पर किस काम का ?
चिड़िया ने चुग लिए खेत अब सारे थे।
स्मृति पटल में अनुगुंजित शब्द पिता के,
अब समझा कि उनमें कौन से इशारे थे?
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। आमतौर पर एक बच्चे का जुड़ाव सबसे अधिक उसके माता-पिता से होता है क्योंकि उन्हीं को वो सबसे पहले देखता और जानता है। माँ-बाप को बच्चे का पहला स्कूल भी कहा जाता है। लेकिन आजकल के बच्चों को हो क्या गया है ओ यह क्यों भूल जाते है की जैसा ओ अपने माता-पिता के साथ करेंगे वैसा ही उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। एक बात याद रखें – पिता सदैव ही अपने अनुभव से आपको अच्छी सीख देते है, उनका कभी भी अनादर न करे, माता-पिता का यदि आप अनादर करेंगे तो सबकुछ मिल तो जायेगा लेकिन वह जल्द ही ख़त्म भी हो जायेगा। उनकी दुआओ व सीख से ही आप जीवन में आगे बढ़ेंगे।
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यह कविता (पिता की सीख ही सच्ची थी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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