Kmsraj51 की कलम से…..
Maa Baap | माँ बाप।
जीवन में हर रिश्ता बन है जाता।
माँ बाप कोई और नहीं बन पाता॥
माँ बाप होते हैं भगवान् का रूप।
उनसे ही बनता हमारा स्वरूप॥
माँ बाप के त्याग व समर्पण को भुलाया नहीं जाता।
कोई इन्हें ठुकराता तो कोई इन्हें गले है लगाता॥
माँ बाप आज सिसकियां है भरते।
अपने ही घर में खुलकर जी नहीं सकते॥
जब होते हैं बच्चे छोटे तो माँ बाप लगते बड़े प्यारे।
जब बच्चे हुए बड़े तो माँ बाप फिरते बेसहारे॥
पोता – पोती से प्यार भी खूब जताते।
पर खुलकर उनसे बात भी नहीं कर पाते॥
यूँ तो पोता पोती होते इन्हें बड़े प्यारे।
क्या करे अब बदल गई दुनियाँ और इसके नजारे॥
आज श्रवण कुमार बड़ी मुश्किल से है मिलता।
जिन माँ बाप को है मिलता उनका बुढ़ापा सुख में है बीतता॥
♦ विनोद वर्मा जी / (मझियाठ बलदवाड़ा) जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦
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- “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कवि ने इस कविता में माता-पिता के त्याग, समर्पण और बदलते समय में उनकी स्थिति को दर्शाया है। वह कहते हैं कि जीवन में कई रिश्ते बनते हैं, लेकिन माता-पिता का स्थान कोई और नहीं ले सकता। वे भगवान के समान होते हैं और हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं। माता-पिता के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन समाज में कुछ लोग उन्हें ठुकरा देते हैं, तो कुछ उन्हें सम्मान और प्रेम देते हैं। आजकल माता-पिता अपने ही घर में सिसकते हैं और खुलकर जी नहीं पाते। जब बच्चे छोटे होते हैं, तब माता-पिता उन्हें बहुत प्रिय लगते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, माता-पिता उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। वे अपने पोते-पोतियों से प्रेम तो करते हैं, लेकिन उनसे खुलकर बात नहीं कर पाते, क्योंकि समय के साथ समाज और परिस्थितियाँ बदल गई हैं। आज के समय में श्रवण कुमार जैसे आदर्श पुत्र बहुत कम मिलते हैं। जिन माता-पिता को अच्छे और संस्कारी बच्चे मिलते हैं, उनका बुढ़ापा सुखमय बीतता है। इस प्रकार, कविता माता-पिता के महत्व को समझने और उनका सम्मान करने की प्रेरणा देती है।
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यह कविता (माँ बाप।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।
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