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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

हेमराज ठाकुर जी की कविताएं

योग।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yog | योग।

अण्ड – ब्रह्माण्ड की महा विद्या है, योग जिसका नाम है।
यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान है॥
समाधि जिसकी चर्म अवस्था, जिसमें तत्व का ज्ञान है।
योग सिखाए जीव को भक्ति – मुक्ति और ब्रह्म ज्ञान है॥

मिथ्या जगत और ब्रह्म सत्य है, यही तो योग का सार है।
परम ब्रह्म ही शाश्वत है इस जग में, नश्वर यह संसार है॥
पीढ़ी दर पीढ़ी ले आना, इसे, यह गुरुओं का उपकार है।
निरोगी काया प्रभु की छाया सत है, बाकी सब विकार है॥

स्थूल जगत में रमता है भोगी, सूक्ष्म से योगी को प्यार है।
मैं और मेरा प्रभुत्व लालसा, यह तो नीरा ही अहंकार है॥
योगी को प्यार अंतर्जागत है, भोगी को तो बाह्य संसार है।
योग जगत की परा विद्या, इस पर ज्ञानी का अधिकार है॥

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें। पद्मासन हो वज्रासन हो, या हो चकरा आसन, ध्यानमग्न हो बैठ जायें, बिना करे प्राशन। आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें। हर रोज़ सुबह के समय योग करने के फायदे अनमोल है – यह हमारी पहली सांस को पुन: चक्रित करता है। योग का अभ्यास करने से शरीर किक-स्टार्ट होता है। ह्रदय रोग से बचाव करता है योग। दिमाग सदैव ही रहता है एक्टिव। बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता। योग के द्वारा सांसों को साध कर परमानन्द की अनुभूति किया जा सकता है। तन और मन को निरोग रखने के लिए प्रतिदिन योग करे।

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यह कविता (योग।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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प्रेम अधूरा ही है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Prem Adhoora Hee Hai | प्रेम अधूरा ही है।

प्रेम अन्त अभिलाषा है जीवन की,
पर मिला वह सबको अधूरा ही है।
राम – कृष्ण की कहानी को सुन लो,
उनमें भी कौन सा वह पूरा ही है?

यह रही दास्तां यूं ही है जीवन की,
हर युग में और हर जिंदगानी में।
राधा – कृष्ण का मेल हुआ कहां?
राम – सिया भी बिछुड़े नादानी में।

हुआ मुक्कमल न स्वपन किसी का,
प्रेम की चाहें ही सबकी अधूरी रही।
भले ही प्रेयसी राधा थी या सीता थी,
अधूरेपन की पीड़ा तो है सबने सही।

मूर्तिमान हुआ प्रेम किसका कहां है?
जिसकी अभिलाषा हम सब करते हैं।
अधूरा सा मिला है जो भी हम सबको,
उसे खोने से भी सब कितना डरते हैं?

जी लेते हैं जिंदगी हम पूरी हर रिश्तों में,
पर हर रिश्ते में देखे तो प्रेम अधूरा ही है।
कई – कई विवाहों से भी कहां प्यास बुझी?
अवतारों के जीवन में भी प्रेम कहां पूरा है?

जिन्दगी जद्दोजहद है प्रेम और वासनाओं की,
लोग सकून कहां किसी को यहां लेने देते हैं?
यह संसार तो है बीहड़ घाटी नित कर्मों की,
यहां अवतारों की भी परीक्षा लोग ले लेते हैं।

यह सच है कि प्रेम जरूरत है हर जीवन की,
भाषा प्रेम की पशु – पक्षी को भी समझ आती है।
जिन्दगी के तमाम उम्र के सिलसिले में हर सम्भव,
प्रेम के अधूरेपन का दर्द हमेशा सबको सताता है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सच्चा प्रेम एक गहरा और निःस्वार्थिक भावना है जो दो व्यक्तियों के बीच संबंध को बांधती है। यह एक आत्मिक और उदार बन्धन है जो अपने आप को समर्पित करता है और एक-दूसरे के हित में संयम बनाए रखता है। सच्चा प्रेम अपने आप को व्यक्त करने और स्वयं को स्वीकार करने की क्षमता वाला होता है। सच्चा प्रेम कठिनाइयों, आपत्तियों और चुनौतियों के बावजूद टिकता है। यह दूसरे व्यक्ति को निर्मल रूप से स्वीकार करता है, उनकी गलतियों और कमियों के बावजूद उन्हें सच्चा प्यार करता है। सच्चा प्रेम समर्पित, आदर्शवादी, और सहानुभूतिपूर्ण होता है। सच्चा प्रेम आपके साथी की सफलता, खुशी और प्रगति के लिए चिंतित रहता है और उनके सपनों और उच्चतम OUTPUT की प्रोत्साहना करता है। यह समर्पण, विश्वास, सम्मान, संयम और सम्पूर्ण समर्पण का एक गहरा बंधन होता है। सच्चा प्रेम आपके और आपके साथी के बीच एक संतुलित और आनंदमय संबंध स्थापित करता है। यह सच है कि प्रेम जरूरत है हर जीवन की, भाषा प्रेम की पशु – पक्षी को भी समझ आती है। जिन्दगी के तमाम उम्र के सिलसिले में हर सम्भव, प्रेम के अधूरेपन का दर्द हमेशा सबको सताता है। जब भी करो प्रेम तो सच्चा प्रेम ही करो, वरना दिखावे के प्रेम करने का कोई फायदा नहीं है।

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यह कविता (प्रेम अधूरा ही है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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पशु बलि।

Kmsraj51 की कलम से…..

Animal sacrifice | पशु बलि।

Pashu Bli

न जाने समाज क्यों, कुछ पिशाचियत पर अड़ता है?
बे ज़ुबान निरीह पशुओं की, बलि चढ़ाने पर लड़ता है।

देवताओं के नाम पर लेता है, जान इन बे जुबानों की।
क्यों भुल जाता है फितरत तब, समाज यहां इंसानों की?

सनातन संस्कृति के भाल पर, बलि प्रथा एक कलंक है।
कर्म दण्ड तो प्रभु सबको देगा, चाहे राजा हो या रंक है।

जिद करता है देव समाज, “न बलि तो सबको देनी होगी।”
विवश करते है देवता को भी, बलि तो तुझको लेनी होगी।

कारिंदों की जिद के चलते, देवता सदियों से बलि लेता है।
दहशत फैलाई जाती है, जो न दे, उसकी जान भी लेता है।

कौन हुआ है अमर अब तक, इन पशुओं की जान चढ़ाने से?
मैं करता हूं ऐसे कई सवाल, कई बार इस बिगड़े जमाने से।

सब जानते हैं कि गलत है यह सब, पशु बलि सच खोटी है।
फिर भी अपनी जान बचाने के भ्रम से, मार काट तो होती है।

इसी से ही कई जगहों पर, हमारे देवों की बदनामी होती है।
सनातन संस्कृति की दया धर्मिता, हमारी नादानी खोती है।

पिशाच नहीं तो क्या है फिर हम, जो दया धर्म है छोड़ दिया।
वैदिक पुरखों के सनातन धर्म को, स्वाद, स्वार्थ में तोड़ दिया?

देव न लेता है जान किसी की, फिर वह काहे का देव हुआ?
बस कारिन्दों की मांसाहार की चाह, बलि लेता है देव हुआ।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सभी धर्मों में जीव-हिंसा को बहुत बड़ा पाप माना गया है। जो धर्म प्राणियों की हिंसा का आदेश देता है, वह कल्याणकारी हो सकता हैं, इसमें किसी प्रकार भी विश्वास नहीं किया जा सकता। धर्म की रचना ही संसार में शांति और सद्भाव बढ़ाने के लिये हुई है। लेकिन आज का मानव अपने स्वाद के लिए बलि के नाम पर बेजुबान निर्दोष प्राणियों की हिंसा कर अपना पेट भरने लगा। हे मानव अब भी समय है छोड़ दो “बेजुबान निर्दोष प्राणियों की हिंसा” कर अपना पेट भरना और बलि के नाम पर उनकी हत्या करना।

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यह कविता (पशु बलि।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हस्पताल की।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hospital | हस्पताल की।

उदासी में उगती हर सुबह यहां की,
उदासी में डूबती हर सांझ और रात।
उदासी में ही बीतता है दिन भी सारा,
बीमार बेटे के देख कर बिगड़े हालात।

कभी दिमाग में इन्फेक्शन तो कभी,
दिल में छेद की डाक्टर कहता बात।
हर रोज बीमारी नई – नई सुन कर,
कैसे खुश रहता जवान बेटे का बाप?

कब तक छुपाऊं बेटे से कितना और कैसे?
परेशान मां, दादी, छुटकू, कुल कुनबा साथ।
एक ही आश विश्वास कि रब राखेगा अब,
उसके आगे भला किसकी क्या औकात?

सिर तो फाड़ा है सीना भी चीरना है,
क्यों कर उदास न होगा एक बाप?
यह जगह है, जहां पैसा तो चाहिए ही,
पर सबसे ज्यादा चाहिए रब का साथ।

गुरुद्वारे का कीर्तन चहुँ ओर है गूंजता,
मस्जिद की गूंजती है ऊंची सी अजान।
मंदिरों का शंख – घंटा नाद भी है गूंजता,
पर तुम कहां छुपे हो हे करुणानिधान?

भूत का प्रारब्ध है भोग रहे यह या कि,
भविष्य का संचित वर्तमान का क्रियमाण?
पूछता हूं बार – बार सवाल कई ऐसे बस,
निरुत्तर है दीवारें हस्पताल की आलिशान।

जानता हूं हर जन्म का अन्त मरण है,
वह आएगा, यह एक कड़वी सच्चाई है।
अस्त व्यस्त हो जाए जवानी में जीवन,
कुदरत की भला इसमें कौन भलाई है?

हँसने खेलने के जो दिन होते हैं जीवन के,
क्या बीत जाएंगे बेटे के रोग शोकों में नाथ?
आक्रोश घना है, उतारूं तो उतारूं किस पर?
मानुष जीवन की विवशताएं कही न जात।

हर दोष दूसरों के ही सर पर मढ़ना,
यही तो फितरत जगत में इंसानी है।
गुनाह जरूर हमारा ही होगा दाता,
यह आक्रोश व तुझ पर मढ़ना दोष,
यह हमारी मनुष्य सोच की नादानी है।

Note : यह रचना मैंने अपने जीवन के वर्तमान हालात पर लिखी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कभी दिमाग में इन्फेक्शन तो कभी, दिल में छेद की डाक्टर कहता बात। हर रोज बीमारी नई – नई सुन कर, कैसे खुश रहता जवान बेटे का बाप? सिर तो फाड़ा है सीना भी चीरना है, क्यों कर उदास न होगा एक बाप? यह जगह है, जहां पैसा तो चाहिए ही, पर सबसे ज्यादा चाहिए रब का साथ। हँसने खेलने के जो दिन होते हैं जीवन के, क्या बीत जाएंगे बेटे के रोग शोकों में नाथ? आक्रोश घना है, उतारूं तो उतारूं किस पर? मानुष जीवन की विवशताएं कही न जात। जीवन को दर्द और आनंद के मिश्रण के रूप में देखने की हमारी क्षमता हमें जीवन को उसकी पूर्ण सीमा तक अनुभव करने की अनुमति देती है। जब आनंद आता है तो हम उसके लिए खुलना सीखते हैं, इसे अपनी इंद्रियों के माध्यम से लेना और इसकी सराहना करना सीखते हैं, ज्ञान के साथ यह एक आगंतुक है जो आता है और जाता है।

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यह कविता (हस्पताल की।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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शहीद दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

Shaheed Diwas | शहीद दिवस।

सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह को फंदे पर लटकाया था।
23 मार्च के दिन को इसी लिए ही शहीद दिवस मनाया था।

भारत मां के इन लालों ने, अंग्रेजों के नाकों चना चबाया था।
भारत को आजाद करवाने हेतु अपना बलिदान चढ़ाया था।

मेरा रंग दे बसंती चोला माए, कह कर जो फंदे पर झूल गए।
दुख होता है आज कि हम उनको, क्यों और कैसे भूल गए?

जब लुटती रहती बहु – बेटियां और बच्चे – बूढ़े पीटते जाते।
दावे से कहता हूं कि ऐसे में, इन वीरों को कोई भूल न पाते।

हैरान हूं जग की रीत को, सुख दिलाने वालों को भुलाया है।
महता उसको देते हैं, जो हाल में ही, हमारे जीवन में आया है।

खुश रहो पर याद रखो कि, यह आजादी पुरखों की थाती है।
खून बहाया है पुरखों ने, जिस पर नव पीढ़ी हक जताती है।

इसे सहेजना न कि गढ़े मुर्दों को कुरेदना, हमारी जिम्मेवारी है।
पर हमे तो मौज मस्ती में खो कर, हो गई भूलने की बीमारी है।

चलो जी कहें तो क्या कहें? आज हमारे हाथों में सरदारी है।
जमाने का प्रभाव है यह सब या कि, हमारी सोच नकारी है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कितने दुःख की बात है की हमसब देशभक्त भारत माता के असली पुत्रों (सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह) को भूल कर, फालतू लोगो को याद रखते हैं। ये भूल ना जाना की आज जो तुम्हे आज़ादी हैं ये इन्हीं की दें है, जो इनके बलिदान से ही मिला है। जान हथेली पर लेकर सभी दुश्मन का चीर सीना दिया। फिर से वीर भारत माँ के शहीद (सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह) हो गए । याद करेगा तुमको ये भारत सदैव और वंदे मातरम् गायेगा। फिर से वीर भारत माँ के शहीद हो गए।

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यह कविता (शहीद दिवस।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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नव संवत्सर आया है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Nav Sanvatsar Aaya Hai | नव संवत्सर आया है।

आओ रे भैया, आओ री बहना, नव संवत्सर आया है।
हमारे पुरखों ने भारत में, नया साल यहीं से मनाया है।

ब्रह्मा ने सृष्टि रची, राम, युधिष्ठिर राज्याभिषेक कराया है।
अंगददेव और संत झूलेलाल, इसी दिन जग में आया है।

चैत्र नवरात्र का शुभारम्भ है भाई, नव संवत्सर मनाया है।
विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत को, इसी दिन से चलाया है।

दयानन्द ने इसी दिन ही, आर्य समाज स्थापित कराया है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हेडगेवार, आज जग में आया है।

भूल न जाए नई पीढ़ी, निज संस्कृति को याद करवाया है।
हमारे पुरखों ने सदियों से, नया साल आज से ही मनाया है।

रक्त में रवानगी, मौसम में दिवानगी, ले कर यह पर्व आया है।
चारो ओर को हरियाली ही हरियाली का आलम छाया है।

फैसले है लहलाती, तरु है फूले, वन पांखी कुल चहचाया है।
कुदरत के कण – कण ने मानो, आज नव संवत्सर मनाया है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — विक्रम-संवत के अनुसार नव वर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ‘विक्रम संवत’ अत्यंत प्राचीन संवत है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत ‘विक्रम संवत’ ही है। ‘विक्रम संवत’ के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। फ़ारसी ग्रंथ ‘कलितौ दिमनः’ में पंचतंत्र का एक पद्य ‘शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्’ का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः ‘कृत संवत’ को ‘विक्रम संवत’ का पूर्ववर्ती माना है। विक्रम संवत :​​ विक्रम संवत में सभी का समावेश है।

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यह कविता (नव संवत्सर आया है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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यह डूबती सांझ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Doobati Sanjh | यह डूबती सांझ।

यह डूबती सांझ देखो, लेके, घना अंधेरा आएगी।
दिन भर की आपाधापी से, हमे मुक्ति दिलाएगी।

यह बात सच है कि यह, दैनिक प्रकाश छुपाएगी।
यह भी तो सच है कि, यह अपनी गोद में सुलाएगी।

मुमकिन है यह कि रात अंधेरी, हर दृश्य छुपाएगी।
पर यह भी वाजिब है कि, यह स्वप्न भी दिखाएगी।

कौन कहता है कि हर सांझ, दिवस को ही खाएगी?
मालूम है जग को यह भी कि, फिर नई भोर आएगी।

नाउम्मीदी में जीने से तो हमेशा, निराशा ही छाएगी।
सांझ ही तो रात को ला कर, सब थकान मिटाएगी।

आशावान को तो यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी।
निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम सब ये जानते है की सूर्यास्त के बाद शाम होगी ही और शाम होगी तभी रात भी होगा और इंसान दिन भर के कार्य से थका हारा आराम की नींद, ले पाता है जिससे उसकी सारी थकावट दूर होती है। आशावान को तो सदैव ही यह सांझ, पास मंजिल सी भाएगी, लेकिन निराशावान के लिए तो उसका, सारा संसार खाएगी। क्योकि आशावान जनता है की फिर भोर होगी और सूर्य उदय होगा। इसी तरह से जीवन में भी जब चारों तरफ से मुसीबत आ जाए तो घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि कोई भी समय लंबे वक्त तक नहीं रहेगा, उसके बाद अच्छा समय भी आएगा। इसलिए सदैव ही आशावान बने रहे और अच्छे कार्य करते चले जीवन में, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

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यह कविता (यह डूबती सांझ।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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आई है होली।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aaee Hai Holi | आई है होली।

होली रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।

आई है होली चौहूं ओर लोग झूमे हैं नाचे, रंगों की बौछार है।
किसी के दिल में वासनाएं हैं घनी, किसी के प्यार ही प्यार है।

आई है होली हरदम हृदय को, छेड़-छेड़ कर ये आती है।
फाल्गुन मास की यह क्रीड़ा, किसके मन को न भाती है?

कुदरत करती है वसंती श्रृंगार, तो हवा भी होती मदमाती है।
फूलों से सजते वन उपवन हैं, चौहूँ ओर से खुशबू आती है।

होलिका दहन से उपजी यह क्रीड़ा, ऐसे ही बस चलती है।
बुराई का दहन अच्छाई का वहन, परम्परा यूं ही फलती है।

बरसाणे की होली, कृपाण व गोली, रक्तिम रंग से खेली है।
वे प्रेम के रंग से खेले, इन्होंने प्रणाहुतियों की पीड़ा झेली है।

मलिन मन क्या जाने होली का उत्सव? पावनता जरूरी है।
तन के रंगने से नहीं मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है।

मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है।
संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है।

उछलते कूदते, नाचते गाते, खलियानों में युवक युवती है।
बाल वृद्ध सबको निज पाश में, बांधने की इसमें युक्ति है।

वीर शहीदों ने फिरंगी संघ, होली खेल के यातनाएं भुक्ति है।
प्रेम गुलाल से जो खेलेगा होली, उसी के लिए यह मुक्ति है।

नदी मानिद बहती परंपराएं, विकार आए हो कहां रुकती है?
भारत की अनूठी पर्व यात्रा, किसी के टोके कहां टूटती है?

बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं।
प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आत्मिक प्रेम, निस्वार्थ स्नेह, करुणा व मानवता का पवित्र महापर्व होली हैं। अपने सम्पूर्ण विकारों को अग्नि को समर्पित कर एक अच्छे व सच्चे योगी जैसे पवित्र जीवन के नियमों के अनुसार जीना ही सच्ची होली हैं। याद रहे मलिन मन क्या जाने इस होली का उत्सव? पावनता तो जरूरी है। तन के रंगने से नहीं मन के रंगे बिन, होली सबकी अधूरी है। मौसम के बदलाव की, नव फसलों के उगाव की, यह धुरी है। संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की, होली की क्रीड़ा पूरी है। बहन, भाई, मां, बेटी, पत्नी, पिता को, होली के रंग ही लहदे हैं। प्रेम है सब में, पर रूप अनेक है, यही तो रिश्तों के ओहदे हैं। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

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यह कविता (आई है होली।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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पिता की सीख ही सच्ची थी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Pita Ki Seekh Hi Sacchi Thi | पिता की सीख ही सच्ची थी।

“कहलाना तो है मानव हमको,
पर पशु सा हमे सब करने दो।
पिता हो तुम तो फिर क्या हुआ?
हमे मर्जी से ही सब करने दो।”

“जन्म दिया और पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया, बड़ा किया।”
“कौन सा तीर मारा है तुमने?
फर्ज मां – बाप का अदा किया।”

“धन्य लला तुम जो जान खपा कर,
आज तुमसे ये शब्द उपहार मिला।
नेकी कर दरिया में डाल का उम्दा,
पितृ कर्म का उत्तम उपकार मिला।

निवाला अपने मुंह का छीन कर,
तेरे मुंह में, इसी लिए ही डाला था?
नूर गंवाया, तेरी मां ने तुझे जनाया,
क्या इसी लिए ही तुझे पाला था?”

सुन भारी-भरकम बोझिल शब्द पिता के,
हुए अनुगुंजित अधिभारित अनुशासित थे।
हुए अंकुशित बुद्धि के घोड़े डर बेदखली के,
पर मनोभाव तो अभी भी त्यों विलासित थे।

होते ही जायदाद नाम अपने पिता की,
हुआ बेटा फिर से आपे से ही बेकाबू था।
उद्भासित पिता के अनुभव को भुला कर,
किया दूर प्रयोग से विवेक का तराजू था।

कुछ यारों ने लुटा, कुछ विकारों ने लुटा,
शेष कुछ लूट गई बेवफा महबूबा थी।
पिता की कमाई तो जाती रही हाथ से,
खुद के लिए तो कमाई उसे अजूबा थी।

पिता की पीठ में बजे नगाड़े की धुन,
समझा, कितनी मीठी, कितनी खट्टी थी।
मालामाल था, कंगाल हो लिया था जब,
तब समझा, पिता की सीख ही सच्ची थी।

गर्म खून था ठंडने लगा जब उसका,
लगा तोलने हर सौदा विवेक तराजू से।
संभलती दुकान फिर से जिंदगानी की,
तब तक जा चुकी थी ताकत ही बाजू से।

पछतावा तो था पर किस काम का ?
चिड़िया ने चुग लिए खेत अब सारे थे।
स्मृति पटल में अनुगुंजित शब्द पिता के,
अब समझा कि उनमें कौन से इशारे थे?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। आमतौर पर एक बच्चे का जुड़ाव सबसे अधिक उसके माता-पिता से होता है क्योंकि उन्हीं को वो सबसे पहले देखता और जानता है। माँ-बाप को बच्चे का पहला स्कूल भी कहा जाता है। लेकिन आजकल के बच्चों को हो क्या गया है ओ यह क्यों भूल जाते है की जैसा ओ अपने माता-पिता के साथ करेंगे वैसा ही उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। एक बात याद रखें – पिता सदैव ही अपने अनुभव से आपको अच्छी सीख देते है, उनका कभी भी अनादर न करे, माता-पिता का यदि आप अनादर करेंगे तो सबकुछ मिल तो जायेगा लेकिन वह जल्द ही ख़त्म भी हो जायेगा। उनकी दुआओ व सीख से ही आप जीवन में आगे बढ़ेंगे।

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यह कविता (पिता की सीख ही सच्ची थी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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यह अकेला है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Akela Hai | यह अकेला है।

हमने जाड़े की सर्दी है झेली,
हर गर्मी का मौसम है झेला।
वसन्त ऋतु की बहारें हैं देखी,
देखा वर्षा ऋतु का क्रुद्ध खेला।

स्मृति के विलासित गहवार में,
हैं उभरती धंसती कई यादें।
हसरतें जो कुछ थी पूरी हुई,
रह गए अधूरे ही थे कई वादे।

इस जिन्दगी के अधूरे सफर में,
खूब है देखा यह जग का मेला।
किसी के धन की अम्बर है देखी,
किसी के नसीब में न देखा धेला।

अजूबों से भरी इस दुनियां में,
मैंने सपने सबके अधूरे देखे।
राजा रंक सब परेशान हैं देखे,
किसी के ख़्वाब नहीं पूरे देखे।

किसी को अहम से इठलाते देखा,
तो किसी को शर्म से शर्मिंदा देखा।
अमीर – गरीब सबको मरते हैं देखा,
किसी को सदा न यहां जिन्दा देखा।

पर होड़ाहोड़ी और आपाधापी में,
निरन्तर छटपटाते हैं सबको देखा।
लक्ष्मण रेखा को लांघते जो संघर्ष में,
उनको समाज द्वारा नकारते हैं देखा।

अजीब करिश्मा है इस जीवन का,
इस भीड़ भड़ाक में यह अकेला है।
इस जीवन ने अपने पूरे सफर में,
हर वफा व छल प्रपंच को झेला है।

यह जीवन इस जग के लगभग,
हर सम्भव सुख दुख से खेला है।
हसरतें तो थी आकाश में उड़ने की,
पर जीवन की हद ने इसे नकेला है।

अनुभव में जो आया है अब तक मेरे,
कि यह जीवन तो निरन्तर अकेला है।
आया इस दुनियां में यह अकेला ही था,
जाता भी इस दुनियां से यह अकेला है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते है, लेकिन एक बात सदैव ही कॉमन होती है, कोई भी मनुष्य आता भी अकेला है और सदैव जाता भी अकेला ही है, कुछ साथ भी लेकर नही जाता है, तो सोचने वाली बात है की फिर मनुष्य अपने जीवन में अहंकार क्यों करता है, इतना गुमान किस बात का करता है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि शरीर का निर्माण पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और तीन गुणों- सतो (सत), रजो (रज) व तमो (तम) से हुआ है। इसके बाद ब्रह्म का अंश जीव के रूप में शरीर में प्रवेश करके उसे जीवात्मा बनाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति के गुण जीव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस प्रकार मनुष्य बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था तक पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं, उसी प्रकार परिवार भी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं।

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यह कविता (यह अकेला है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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