रिश्तों के होते हैं दो छोर
एक सहयोग और एक विश्वासरिश्तों में उठती तब भोर
जब हो उसमें प्रेम और अनुरागरिश्तों में हो तभी मधुरता
ना हो शक और झूठ की दीवाररिश्तें बनते तभी अनमोल
जब हो समझ और मधुर व्यवहाररिश्तों में हो तभी मिठास
जब हो उसमें सांच और सोहार्दरिश्तों में बन जाती दरार
जब हो दौलत की भूख और स्वार्थरिश्तों को बढ़ायें ये आधार
एक मधुर वाणी और दूसरा सम्मानरिश्तों में पड़ जाती गांठ
जब होती उसमें इर्ष्या और जलनरिश्तों में हो तभी महोब्बत
जब हो उसमें त्याग और समर्पण
ये कविता मैंने इसलिए लिखी-
क्यूंकि आजकल के रिश्तें ताश के पत्तों की तरह है ।
ना जानें कब और कहाँ पे आकर बिखर जाएँ ।
क्यूंकि आज के रिश्तों में सिर्फ स्वार्थ ही नजर आया ।
रिश्तें चलते हैं दो ही कड़ी पे तू मेरा हैं मैं तेरा हूँ ।
पर आज का रिश्ता दौलत की भूख और जलन से भरा पड़ा हैं ।
ना जाने क्यों लोग ख़ुद ही ख़ुद में खो गए है ।
किसी को किसी की ना तो आस है और ना विश्वास हैं ।
बदलते युग में खो गए ये अनमोल रिश्तें,
हर किसी को रोज मधुर-मधुर रिश्तो की तलाश हैं ।
Note::-
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