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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for बादल और बारिश पर कविता

बादल और बारिश पर कविता

बरसो अब तो मेघ।

Kmsraj51 की कलम से…..

Baraso Ab Toh Megh | बरसो अब तो मेघ।

आओ-आओ क्षितिज तट पर,
छोड़ नभ आकाशगंगा को सेघ।
वरण करो स्वर्ण बूंद गंगा को,
घन बनकर बरसो अब तो मेघ।

घिर-घिर कर आओ,
चहुँ दिश छा जाओ।
बंद कर नयन अपने,
बूँदों से तृप्त कर जाओ।

भर दो निखिल रंगों से धरा को,
उज्जवल धवल नीरों को लाओ।
हे मेघ! बरसा के नेह,
प्रीति पवन के संग बह जाओ।

भीगे भुवन सारा पाकर नेह तुम्हारा,
निर्जन विजन को सुंदर कर जाओ।
अमृत सुधा का वर्षण कर तुम,
अतुल्य प्रीति देकर हरियाले हो जाओ।

भूले बिसरे क्षण की व्यथा वेदना,
पुष्कर अनंग पत्थर फूल जो खिन्न।
वरण करो स्वर्ण बूंद गंगा को,
घन बनकर बरसो अब तो मेघ।

घोष करो शंखनाद करो अपना,
सौम्य स्कन्ध बनकर घनमाली।
उड़े जैसे धरा पर तुरग शिरस वाली,
पुलकित हो प्रमुदित हो मराली।

खुले गगन में जड़ित अंध रस
वाताज बनकर तुम फिर-फिर आओ
वरण करो स्वर्ण बूंद गंगा को
घन बनकर बरसो बरस जाओ मेघ।

रिमझिम-रिमझिम झर-झरकर,
बरसो तुम रंग गगन से।
भीगे-भीगे से स्वप्नों से तुम,
स्वप्निल छटा बनकर आओ रे।

करे कल्पना मन तरंगों पर,
नर्तन करे मानव संसाधन।
वरण करो स्वर्ण बूंद गंगा को,
घन बनकर बरसो अब तो मेघ।

जय हो! जय हो! हे घनराज!
सज्जित करो रंजित शरासन को।
जोड़ो पुहुमी को गगन से,
भरो तुम आकंठ ताल तलैया को।

प्रियदत्ता करे आरती श्रुति तेरी,
निज अनुरंजन अनुराग बढ़ाये।
वरण करो स्वर्ण बूंद गंगा को,
घन बनकर बरसो अब तो मेघ।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (बरसो अब तो मेघ।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बरखा बहार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Barkha Bahar | बरखा बहार।

बीत रहे पलछिन के तौर तरीके,
आने वाले आज की पहली फुलबहारें।
घटा छटा घिर-घिर आ रही,
मन की चंचलता को प्रतिपल बढ़ा रही है।
पुरवा पवन की दुहाई है,
पछवा बयार की अब विदाई है।

अंब पावस का गली-गली डंका बज रहा,
शम्पाओं का शोर है सुदामन का जोर है।
पयोजन्मा की वाहिनी आगे-आगे है,
श्वेत – श्याम और काले-काले हैं।
रिझते हैं कहीं-कहीं और कहीं निराले हैं,
कहीं क्षत्रप की तरह छा जाते।

एक टुकड़ी आती गरज-बरस कर जाती,
दूसरी वाहिनी बना छावनी गोले अंब का बरसाती।
आते जाते फिर घूम कर चले आते,
सिंगार सजा चंचला दामिनी का।
निहार-निहार विहार कर देखते सूने आँगन का,
चलती जैसे पवन की परछाँईं।

अक्षित करते पुष्कर ताल तलैईया के,
मेघराज गरज – गरज कर धरणि का।
पल-पल अपने आभा का रूप दिखला कर
बदली में फिर कहीं छुप जाते।
हँसकर मुँह चिढ़ाते तपन की,
इठलाते हर्षाते दूर क्षितिज पर।

कभी कुम्हलाते कभी खिल-खिल जाते,
ये बरखा के बादल पल भर में,
उमस गर्मी को दूर भगाते।
नवयौवना से मचल कर चलते,
अँगड़ाई ले-लेकर मन की अगन बढ़ाते।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (बरखा बहार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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आफत की बारिश।

Kmsraj51 की कलम से…..

Rain Of Disaster | आफत की बारिश।

हिमाचल की प्राकृतिक,
शान है देखो कितनी निराली।
अरे ओ मानव तूने यहां भी,
ये कैसी साजिश रच डाली।

बना – बना के बड़ी – बड़ी इमारतें,
सब नदी नालों की राहें रोक डाली।
तभी तो हो रही ये आफत की बारिश आज,
त्राहि – त्राहि कर रहा मेरा शिमला,
मंडी, कुल्लू हो या फिर हो मनाली।

क्यों कर रहे हो पहाड़ों से,
छेड़छाड़।
बना – बना के सुरंगे,
सारी ज़मीन खोखली कर डाली।

अभी तो रुक जाओ,
बीस साल बाद देखना मेरा प्रकोप।
जब बह जायेंगे सारे भवन,
बनकर कंकड़ पत्थर।
तो फिर मनाना सिर पर,
दोनों हाथ रखकर तुम शोक।

अभी भी संभल जाओ,
मत बिगाड़ो संतुलन पहाड़ों में।
है तुम सब से मेरी भी ये गुजारिश,
वरना हर साल ऐसे ही आती,
रहेगी ये आफत की बारिश।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — “हिमाचल की प्राकृतिक शान है देखो कितनी निराली। अरे ओ मानव तूने यहां भी, ये कैसी साजिश रच डाली।” चारों तरफ पानी पानी, हर तरफ तबाही ही तबाही है। जो अपने आवेश में सबकुछ, ख़त्म करने पर अड़ी है। पर आज उसे भी अपना, अस्तित्व बचाने की पड़ी है। आफत की बारिश से हुई तबाही का मंजर अभी भी खौफनाक नजर आता है। बादल फटने की वजह से आसमान से जब अचानक तबाही बरसने लगे तो लोग हक्का-बक्का रह गए। जब तक वे संभलने या सुरक्षित स्थानों में जाने का प्रयास करते, तब तक मूसलाधार बारिश का कहर अपनी चरम पर पहुँच चुका था। “हे मानव अभी भी संभल जाओ और मत बिगाड़ो संतुलन पहाड़ों में, है तुम सब से मेरी भी ये गुजारिश, वरना हर साल ऐसे ही आती रहेगी ये आफत की बारिश।” जय माता दी!

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यह कविता (आफत की बारिश।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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बादल।

Kmsraj51 की कलम से…..

Clouds | बादल।

हृदय क्षितिज में घर्राते बादल,
गर्जना छोड़, बरसात बरसा।
तृषित धारा के रोम-रोम की,
आज प्रिये तू , प्यास बुझा।

सुकून मिले अब विरहिणी को,
और न इसको यूं ही तड़पा।
सोया सपना अलसाई आंखें,
निज नेह से प्रिय तू , अब तो जगा।

है यौवन की पीड़ा, सावन- भादो की क्रीड़ा,
दादुर, मोर और पपीहरा के शोर।
मानस पटल पर आग लगी है,
दिल को लूट ले गया कोई, श्यामरा चोर।

कटे न कटती है रातें काली,
दिन, न सांझ, न कटती है भोर।
प्रेम की लगी है प्यास प्रिये अब,
रूप से रूह का रुख, करो इस और।

चंद लम्हों के मिलन से क्या होगा?
नीर नीरद का बह जाने दे।
मन की बातें मन मांझ रहे न,
रोक न मुझे, सब कह जाने दे।

दिन चार की है ये जिंदगानी सबकी,
कहने को हैं प्रिये, बहुतेरी बातें।
इक बार गुजरे दिन, जिंदगी के तो,
फिर बहुर न लौट के आते।

है जीवन वही जो दिल से जिया,
फिर न पछताना कि, अभी कुछ न किया।
आज माहौल प्रलय की मानिंद बना है,
कुछ हमने करा है, कुछ कुदरत ने किया है।

रह न जाए कुछ अधूरी बातें,
जीवन प्रिये अब थोड़ा है।
घनघोर घटा कुछ यूं न बरसाना,
जिन्होंने, सब्र – बांध ही तोड़ा है।

हो जाने दे रिमझिम बारिश,
बरसात तो प्रिय अब आनी है।
बिरह बदरी बन घुमड़ रहा है,
आत्म निवेदन – नेह का पानी है।

घनश्याम पिया के संदेशे ले – ले,
आती नीरद की जलधारा है।
कब तक, विरहिणी वेदना झेले?
यह जीवन कितना प्यारा है?

भीग जाने दे दिल के दरी खाने,
कलेजा भी ठंडा हो जाए।
मिल जाने दे नदी समंद में,
एक दूजे में प्रिये बस खो जाने दे।

सिर्फ गरजते मत रहना रे ओ बादल,
बरसात तो अब तू आने दे।
सदियों पुराना बिछड़ा यार,
रूह को अब तो तू पाने दे।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्यार एक खूबसूरत एहसास है। एक व्यक्ति जिसके पास प्यार भरा दिल है, वह हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता है। वह हर किसी से प्यार करता है जैसे हम जो देते हैं वह हमें मिलता है। इसलिए, अगर हम प्यार देते हैं तो हमें बदले में प्यार मिलता है और यह हमारे जीवन को सुंदर बनाने की शक्ति रखता है। सच्चा प्यार रूह का रूह से होता है, और सच्चे प्यार में समय का बंधन नहीं होता है। सच्चे प्यार में दो जिस्म एक जान की कहानी होती है।

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यह कविता (बादल।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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वर्षा ऋतु कृष्ण कोडर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ वर्षा ऋतु कृष्ण कोडर। ♦

वर्षा ऋतु का जब शुभारंभ होता,
सभी प्राणियों की बढ़ती हो जाती।
आकाश क्षुब्ध – सा दिखने लगता,
नीले – घने बादल घिर जाते हैं॥

बिजली की कौंध डराती धमकाती,
बार – बार गड़गड़ाहट सुनाई पड़ती।
सूर्य चंद्रमा – तारे रह – रह ढ़क जाते,
समय – समय किरण अंध छांटता॥

प्राणी के कल्याण में बादल बरसता,
जनजीवन पाकर मानव खुश होता।
जेठ आषाढ़ गर्मी धरा सूख जाती,
वर्षाऋतु जल सिंचित करने आती॥

तप करते जस शरीर – दुर्बल हो जाता,
जल को पीने से हृष्ट पुष्ट होता दिखता।
वर्षा के सायंकाल घना अंधेरा छा जाता,
घर – बाहर निकला बालक डर जाता॥

नदियां जो सूख रही थी जेठ – आषाढ़,
उमड़ – घुमड़ घर के बाहर बहने लगती।
शरीर का छुपा कौमार्य जागने लगता,
पृथ्वी पर हरियर घास उगने लगती॥

खेतों में हरी – भरी हरियाली छाने लगी,
किसान में आनंद की लहरें उठने लगी।
आनंद के पुष्प कमल खिलने लगते,
बरसाती मेंढक टर टर करते – निकलते॥

वर्षा ऋतु में उपयोगी हवा तेज बहती,
नदियों के किनारे और वह क्षुब्ध रहती।
कामनाओं के उभार से मन भर जाता,
मूसलाधार वर्षा से पहाड़ दरकने लगता॥

इंद्र धनुष की शोभा में सगुण दिखाती,
चंद्रमा की उज्जवल चांदनी दिखती।
तब बादलों से सही समय पता चलता,
मोर – मोरनी का रोम – रोम खिल जाता॥

कुहुक से नृत्य के आनंदोत्सव मनाता,
भगवत भक्त जी आनंद मग्न हो जाता।
सारस – क्षण भर तालाब नहीं छोड़ते,
भील – भीलनियां आनंद मगन होती॥

पर्वतों के झर – झर झरने से जल बहते,
झरते जल की आवाज सुरीली लगती।
कृष्ण किसी कोडर में जाकर छिपते,
कंद मूल ग्वाला खाकर खेलते रहते॥

कभी किसी चट्टान पर जाकर सभी बैठते,
ग्वाल बाल दही भात साग खा जाते।
थोड़ी देर में गाय भर पेट घास चर लेती,
आंख मूंदकर बैठ जुगाली करती रहती॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में — वर्षा ऋतु के मनभावन दृश्य, प्रकृति का सुन्दर दृश्य, इंद्र धनुष की शोभा, चंद्रमा की उज्जवल चांदनी, मोर- मोरनी का सुन्दर नृत्य, पर्वतों के झरने से झर-झर कर बहते जल, खेतों में हरी-भरी हरियाली, किसान में आनंद की लहरें, और बारिश के दौरान श्री कृष्ण का ग्वाल बालों के साथ क्रीड़ा का खूबसूरत वर्णन किया है।

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sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (वर्षा ऋतु कृष्ण कोडर।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

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सावन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सावन। ♦

आया सावन
अति मनभावन
पड़ गए झूले
अमुआ की डाल पे
चल सखि झूलें
नभ तक ले – लें
पींगे सँभाल के।

आया सावन —
करतल करके
वृक्षों के पात भी
मिल बूँदों से
ख़ुश हो कर के
करते हैं बात भी।

आया सावन —
प्यासी धरती
सूखे हैं गात भी
जल बिन तरसी
बदली बरसी
जल की सौग़ात दी।

आया सावन —
बम-बम भोले
गूँजे शिव द्वार पे
शंकर भोले
सारे बोलें
तू पालनहार रे।

आया सावन —
चूनर धानी
धरती ने ओढ़ ली
बरखा रानी
करे मनमानी
सागर से होड़ की।

आया सावन —
काग़ज़ कश्ती
पानी में डाल के
छोड़ के सुस्ती
मिलकर मस्ती
करते हैं बाल रे।

आया सावन —
साजन सजनी
हाथों में हाथ ले
अपनी अपनी
प्रेम प्रीत की
करते हैं बात रे।

आया सावन —
जंगल – जंगल
नाचे हैं मोर रे
नभ से थल तक
केवल जल-जल
नदियों का शोर रे।
आया सावन,
अति मनभावन।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की हैं – सावन के मौसम में धीमी – धीमी बारिश का होना, प्रकृति का खूबसूरत दृश्य, झूला-झूलना, हर तरफ हरियाली ही हरियाली, पृथ्वी पर चारो ओर प्रकृति का सुन्दर नज़ारा नजर आती है। मन खुशियों में झूमता है जैसे मोर मस्त होकर नाचता हैं।

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यह गीत/कविता/आर्टिकल (सावन।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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