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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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हिंदी कविता

विपदा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vipada | विपदा।

Do every task in life in a balanced manner, and save money for sudden bad times, otherwise you will get anxious.

रही पति की अच्छी पगार,
थी होटल में खाती।
व्यंजन कैसे खाने में,
आसपास बताती थी।

कह देता यदि कोई भी
पास कुछ रखा करो!
लेती सिकोड़ मुंह अपना,
भौहें तन जाती जी।

मंगल बने दीवार बच्चे,
वरना होटल में ठहरती।
बिताती रात भर वहीं,
सुबह – सुबह घर आती।

शौहर जब भी बोलता,
उसके सर चढ़ जाती।
दिये दहेज पापा की,
बार बार वह चिल्लाती।

विधान विधाता का क्या,
जानता कौन भला है।
विपत्ति विक्रमादित्य पर,
भूनी मछली जल में पड़ी।

है रोटी कपड़ा और मकान,
सीना तान बैठा सब कोई।
मैं विष्णु का आहार जो,
शास्त्रीय ही बतलाता है।

फिर भी घमंड में मानव,
अपना अपना सुनाता है।
दुनिया से कैसा एम प्रेम,
सोर हर ओर रहा कैसा?
झगड़े झंझट से मुक्ति ले,
दुपट्टे में छुप जाती थी।

जलना जीवन का ध्येय है,
जलना बना ली है सीमा।
कूंजती कोयल काली,
डोलती मद मतवाली।

शौहर पगार पतली पड़ी,
बजा हृदय में विकल राग।
घिर गयी घटा सी उलझन,
दाने दाने को तरस रही।

दशा देख नभ हुआ अधीर,
झर झर नयनों बह रहे नीर।
कोलाहल पथ चल के आयी,
अंतस में नव हर्ष – विषाद।

कास संभल के जीवन जीती,
लहरों का नहीं होता उन्माद।
संस्कृति – सभ्यता में चलती,
जो जीवन का रहस्य खास।

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — कविता में एक पत्नी की कहानी है, जो अपने पति की जब ज्यादा पगार होती है तब खूब होटल में ही खाना खाती है और जब पति कुछ बोलता तो उसे कैसे खाना खाने का तरीका सिखाती है। वह अपने पति से कहती है कि वह कभी भी अपने पास कुछ न रखें, लेकिन जब पति कुछ बोलता तो उसे पापा के द्वारा दिए दहेज का जिक्र कर जाती हैं, और वह चिल्लाती है। समय एक जैसा नहीं रहता हैं, मानव अपने घमंड में क्यों सबकुछ भूल कर अपना ही अहित करता जाता है, जैसे इस पत्नी ने किया अपने पति की बात ना मानकर अपने पुरे परिवार को आर्थिक संकट में डाल दिया। अब तो बजा हृदय में विकल राग, घिर गयी घटा सी उलझन, दाने दाने को तरस रही। इसलिए जीवन में हर कार्य एक संतुलन में रहकर करें, और अचानक से आने वाले ख़राब समय(बुरा समय) के लिए बैकअप योजना (पैसा बचाकर रखे) नहीं तो फिर बहुत ज्यादा परेशान हो जायेंगे।

—————

यह कविता (विपदा।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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धागा प्रेम का।

Kmsraj51 की कलम से…..

Dhaga Prem Ka | धागा प्रेम का।

आज वह धागा प्रेम का ओ बहना, तुम जरूर पहनाना।
हर भाई को अपने बहन होने का, एहसास जरूर कराना।

इस नफ़रत भरे मतलबी दौर में, रिश्तों की रसम निभाना।
महज रसम न रखना ओ पगली, राखी का भाव जगाना।

वासना के बाजारों से पुरुष को, प्रेम के घर को ले आना।
कामुकता की खीर ठुकरा बहना, प्रेम का लड्डू खिलाना।

अपने पति के सिवाए पगली, हर नर की बहन बन जाना।
वरना तो तृष्णा में डूब जाएगा, ओ शालीनें! यह जमाना।

बहन भाव का उपहार ही मांगना, और न कुछ ले जाना।
तू भी भाई को कुमकुम का नहीं, भ्रातृत्व तिलक कराना।

महज की रसमों ने शुरू किया है, रिश्तों को पंगुन बनाना।
यह भाई बहन का रिश्ता है पगली! कमजोर न इसे कराना।

नशों दलदल से बाहर ला कर, तू भाभी को भाई लौटाना।
भगनी आलिंगन के जल से, भाई के दिल का मैल धुलाना।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में प्रेम और भाई-बहन के आपसी संबंध की महत्वपूर्णता पर बल दिया गया है। रिश्तों की अनमोल भावना को जीवंत रखने की बात कही गई है, जहाँ राखी के पीछे छुपे भाव का महत्व बताया गया है। व्यक्ति को कामुकता के प्रति नहीं, बल्कि प्रेम के प्रति आकर्षित होना चाहिए। भाई-बहन के आपसी संबंध में मात्र रसमों से ज्यादा अपनत्व का प्रेम होता है और इसका सार कोई कमजोर नहीं कर सकता। अपने पति के आलावा, प्रत्येक पुरुष को हर औरत व लड़की को अपना भाई समझना चाहिए। भाई-बहन के प्रेम का मूल्य उपहारों से अधिक होता है और भाई को कुमकुम नहीं, बल्कि भ्रातृत्व का तिलक पहनना चाहिए।

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यह कविता (धागा प्रेम का।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हम है चंद्रमा वाले।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hum Hai Chandrama Wale | हम है चंद्रमा वाले।

चंदा मामा हम आ गए,
भारतवासी छा गए।
हमारे वैज्ञानिक सारी
दुनिया को भा गए।

हम उन चार देशों में भी थे,
जो चंद्रमा पर गए थे।
हम संसार के उस देश के,
गौरवशाली नागरिक हैं,
जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर,
सबसे पहले पहुंचे है।

जापान, रूस, चीन,
अमेरिका देखते ही रह गए।
अब दुनिया को,
रहस्यों से अवगत कराएंगे।

भारत का परचम और
ग्रहों पर भी लहराएंगे।
दुनिया वाले,
देखते ही रह जायेंगे।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में व्यक्त किया गया है कि चंद्रमा के स्पेस मिशन के माध्यम से भारतवासियों ने अपने वैज्ञानिक और तकनीकी योगदान के साथ दुनिया के स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। वे चार देशों को संदर्भित कर रहे हैं, जो चंद्रमा पर मानव अभियान का आयोजन कर रहे हैं। हम संसार के उस देश के गौरवशाली नागरिक हैं, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले पहुंचे है। कविता का समापन भारत के वैज्ञानिक प्रगति को और उनके अंतरिक्ष मिशन को संकेतित करता है, जो दुनिया भर के लोगों की नजरों में होगा।

—————

यह कविता (हम है चंद्रमा वाले।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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राखो चुंदरिया संवारि।

Kmsraj51 की कलम से…..

Rakho Chundaria Sanvaari | राखो चुंदरिया संवारि।

भीगल जाले मोर चुनरिया, छुपाये छिपे ना द्युति दागरी।
चूक चटक चंदा जो छिपा था, चुंदरी तो चटकार री॥

भीगल चुंदरी निखिल निचोड़ा, मोहन ज्यों सपने साथ री।
घट-घट खोजत नीक चुनरिया, पायो अपने पास री॥

इहै चुनरिया नहीं तुम्हारी, प्यारी-प्यारी यारी दुलारी।
जेते सुन्दर चुंदरी पायो, तेते ज्ञान, मान, ग्यान अगाध री॥

जा बुन लायो मोहन मोरे, मौन ज्यों महा भंडार री।
चुनरी चुरा चारो चौकछु रे, सूर्य चन्द्रमा जान्यो संसार रे॥

आंगन लाये पिया चुनरिया भीगी झीनी सारी।
गणपति गावत बीच बाजार, नीक चुनरिया नीक किनारी॥

रंगी चुनरिया को रंग निराला, मागत मधुवन मां नन्दलाल।
मंगल मंदिर बूझत न्यारी, देखत बारी – बारी – सारी॥

सोलह सी बंद चुंदरी चोखी, चार चौपटा नाग-पास री।
रंगना धूमिल चुंदरी चटकीली, राखो राजे इसे संवारि री॥

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — यह कविता मोहन (श्री कृष्ण) और उसकी प्यारी चुंदरी के प्रेम की कहानी को व्यक्त करती है। चुंदरी को धीरे-धीरे मोहन की प्यारी यारी और उसके ज्ञान के साथ मिल जाती है। मोहन की प्रेरणा से, वह चुंदरी अपने स्वामी के पास आती है और उसका साथ देती है, जैसे सूर्य और चंद्रमा समय-समय पर संसार को प्रकाशित करते हैं। चुंदरी का रंग निराला होता है और वह मंगल मंदिर की शोभा को बढ़ाती है, जैसे मधुवन में नन्दलाल के साथ खुशियों की गाथा। इस रूप में, चुंदरी को मोहन के प्रेम और उसकी भक्ति का प्रतीक माना जा सकता है।

—————

यह कविता (राखो चुंदरिया संवारि।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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मैं हिमाचल हूं।

Kmsraj51 की कलम से…..

Main Himachal Hoon | मैं हिमाचल हूं।

मैं हिमाचल हूं,
हिमालय का सरताज हूं।
मैं टूटूंगा नहीं,
कितनी भी मुसीबत,
आ जाए मुझ पर,
मैं झुकूंगा नहीं।

मैं हिमाचल हूं…….
आखिर कितना खोखला करोगे मुझे,
कितनी मेरी अंतरात्मा को कटोचोगे,
कितने जख्म दोगे मुझे,
सब सहन करके फिर उठूंगा मैं।

मैं हिमाचल हूं…….
शिमला मनाली को
कितना कंक्रीट बनाओगे,
पैसों के चक्कर में
खुद को ही नुकसान पहुंचाओगे,
क्यूं कुदरत को बेबस कराते हो,
पर्यावरण का नुकसान कराते हो,
भोली भाली जनता के,
आशियानों को क्यों उजड़वाते हो,
मानव तुम अपनी,
करतूत से क्यों बाज़ नही आते हो,
अपने इस हिमाचल में,
फिर कैसे तुम सभ्य मानव कहलाते हो?

मैं हिमाचल हूं…….
हिमालय का सरताज हूं।
सब लोगों के प्यार का मोहताज हूं,
अपनी अनूठी प्राकृतिक छठा के लिए,
जाना जाता बेबाक हूं।

मैं हिमाचल हूं…….
मैं झुकूंगा नहीं।
अगर किसी ने मुझको बेवजह कुरेदा,
तो मैं विनाश करने से रुकूंगा नहीं।

मैं हिमाचल हूं…….
मैं शिव के सिर का ताज़ हूं।
अगर कोई मेरा सिंहासन डोलेगा,
तो फिर मानव त्राहिमाम त्राहिमाम बोलेगा।
चाहे हो फिर शिमला की शिवबौड़ी,
या मंडी का पंचवक्तावर,
अपने पास से तांडव रचाऊंगा।
पानी से ऐसी गंगा बहाऊंगा,
सारी सृष्टि को साथ ले जाऊंगा।

मैं हिमाचल हूं…….
मैं झुकूंगा नहीं।
मैं रुकूंगा नही,
मैं ठार नही ठानूंगा।
मैं रार नही मानूंगा,
हिम का मैं आंचल हूं,
मैं हिमाचल हूं।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — यह कविता “मैं हिमाचल हूं” के रूप में हिमाचल प्रदेश की सुंदरता, प्राकृतिक सौंदर्य और साहित्यिक रूपरेखा का सुरुवातीकरण करती है। कविता के व्यक्तिगत व्याख्यानों के माध्यम से कवि हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण बातों को स्पष्ट करते हैं। कवि यहां बताते हैं कि वे हिमाचल प्रदेश के हैं, जिन्हें हिमालय का सर्वोत्तम अंश कह सकते हैं। उनका इरादा है कि वे कितनी भी मुश्किलों का सामना करने के बावजूद, किसी भी परिस्थिति में झुकने का नाम नहीं लेंगे। कवि के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि व्यक्ति को हिमाचल प्रदेश की सुन्दरता का सच्चा संदर्भ समझना चाहिए और उसे अपने कार्यों में इसका सही रूप से पालन करना चाहिए। कवि यह भी दिखाते हैं कि पर्यावरण के साथ कैसे सच्चा संबंध बनाया जा सकता है और उसके प्रति किसी के व्यवहार का क्या प्रभाव हो सकता है। इस कविता में कवि अपने प्राकृतिक धरोहर, अपनी मानवीयता और अपने जीवन के मूल्यों को प्रकट करते हैं। उनकी भावनाओं और विचारों के माध्यम से व्यक्ति को यह बताने का प्रयास किया जाता है कि हिमाचल प्रदेश की अनूठी पहचान क्या है और उसकी महत्वपूर्णता क्या है। कुल मिलाकर, “यह कविता हिमाचल प्रदेश के सौंदर्य, अद्भुतता और विविधता को महसूस करने का एक माध्यम है, साथ ही साहित्यिक दृष्टिकोण से भी यह एक महत्वपूर्ण कविता है।”

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यह कविता (मैं हिमाचल हूं।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हे भोले सुनो पुकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Hey Bhole Suno Pukaar | हे भोले सुनो पुकार।

तेरा सावन का महीना जैसे ही आया।
मेघों ने खूब जम के जल बरसाया॥

तेरे भक्त चले शिवलिंग का जल लाने।
तुझे हर्षित कर तेरे आशीष को पाने॥

माना की बंधी है गंगा जटाओं में तेरी।
पर काल ने न जाने कैसी माला है फेरी॥

चहुँ ओर हो रहा है सब कुछ जल मगन।
केवल सताए एक जीवन जीने की लगन॥

लगे ऐसा जैसे तुमने जटाओं को हो खोला।
जैसे भक्ति को कलयुग में शायद हो तोला॥

सावन में पानी ने इस कदर नहीं की थी मनमानी।
जुबां कहे न आंखों के आंसू, कहे दर्द की जुबानी॥

हे भोले भंडारी!
समा लो अपनी जटाओं में इस पानी की लीला को।
माफ कर देना इंसान के गुनाहों के हर गिला को॥

पानी के तांडव को रोक लो कोई जीवन राग गाकर।
डमरू की तान पर मोहक अपना नृत्य दिखाकर॥

अभिषेक तो तेरे शिवलिंग पर प्रकृति ने सर्वप्रथम किया।
सावन आते ही जो इतना जल, जो धरा पर बरसा दिया॥

हे महादेव!
उसी जलाभिषेक को स्वीकार सुंदर सावन दे दो माह।
खुशी में बदल जाए पानी से त्रस्त दिलों की आह॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सावन के महीने को भगवान शिव की भक्ति का भी महीना कहते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु के बाद आता है और लोगों को गर्मी के कहर से राहत देता है। सावन के महीने में बहुत बरसात होती है जिससे मौसम सुहावना हो जाता है। सावन माह में भोले के भक्ति में डूबकर, शिवलिंग पर “जल अभिषेक” करना बड़े ही पुण्य का कर्म है। मौसम सुहावना हो तो लोग ऐसे ही वक्त पर अपने परिवार के साथ बाहर घूमते हैं और सावन के खुशनुमा मौसम का आनंद लेते हैं।

—————

यह कविता (हे भोले सुनो पुकार।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
    {International Internship University and Swarn Bharat Parivar}
  • Teacher’s Icon Award — 2023
  • राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
  • सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
  • राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
  • गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
  • राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
  • अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
  • साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
  • 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
  • 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
  • इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
  • 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।

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आँखों ने आँखों से कहा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Aankhon Ne Aankhon Se Kaha | आँखों ने आँखों से कहा।

आँखों ने आँखों से कहा…
मौन आँखियों ने अँखियों से,
चुप-चुप स्वर में बातें कर ली।
प्रेम ने पवित्र प्रणय से,
स्वीकृति आज प्राप्त कर ली।

हिय ने समझी हिय की बातें,
अनबोले अभाषित अनुरक्त भाषा।
हृदय पिपासु जानते हैं,
हिय की प्यासी-प्यासी परिभाषा।
नयन की नत पलकों ने,
उपहार स्वीकार कर ली।

अभिलाषाओं की आहटें,
पहचानती हैं कामनायें।
मनोभावों के व्यवहार को,
जानती इन भावनाओं को।
वेदना ने वेदना की,
व्यथाओं को जान ली।

व्याकुल हृदय की विकलता,
उद्विग्न करती अंतस् को।
वल्लभा सब पहचानती है,
प्रणय पाणिग्रहण के परस को।
लालित्य से चारुता की,
सुंदरता अच्युत कर ली।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (आँखों ने आँखों से कहा।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जहरीली जिंदगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Toxic Life | जहरीली जिंदगी।

कभी हसीं रुकती नहीं थी,
अब छुप छुप कर आंसू पीता हूँ,
लोग मजे लेंगे दर्द भरी दास्तान सुनकर,
किसी को कुछ कहता नहीं।

बेज़ान जिस्म लेकर ही जीता हूँ,
एक ज़माना था मम्मी पापा का,
हर जिद्द होती थी पूरी,
गुजरी यादों को बसा लिया सीने में।

याद आती है हर वो बात,
जहर जिन्दगी का यूं ही पीता हूँ।
लगता था सभी अपने हैं,
रिश्तों की अहमियत कोई क्या जाने।

लोग सभी मौसम की तरह बदलते हैं,
सपनों में रहने वाले स्वार्थी लोग।
एक दिन खुद ही सबसे रिश्ता तोड़ते हैं,
आंसूं रुकती नहीं मेरी।

अफसोस की चादर में मुँह ढक लिया हूँ,
दुनिया का रस्मों रिवाज़ देखकर।
औरों के लिए आया कफ़न, ख़ुद ओढ़ लिया है,
मुझे अंजाम की ख़बर नहीं।

फिर भी मेरी शराफत तो देखो,
झूठे लोगों के शहर में,
सच की ज़ुर्रत तो देखो।
सत्य बोलने की हिम्मत है,
“भोला” की हिमाकत तो देखो।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150 / नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आज का रोता हुआ इंसान यूँ ही बेज़ान सा जिस्म लेकर ही जीता हैं, वह भी एक ज़माना था मम्मी पापा का, हर जिद्द होती थी पूरी अपनी, गुजरी यादों को अब बसा लिया मैंने सीने में। याद आती है हर वो बात, जहर जिन्दगी का यूं ही पीता हूँ अब मैं। मुझे लगता था की सभी अपने हैं, रिश्तों की अहमियत कोई क्या जाने आजकल के ज़माने में। अब लोग सभी मौसम की तरह बदलते हैं, सपनों में रहने वाले स्वार्थी लोग, एक दिन खुद ही सबसे रिश्ता तोड़ते हैं, आंसूं रुकती नहीं मेरी अब। अफसोस की चादर में मुँह ढक लिया हूँ, दुनिया का रस्मों रिवाज़ देखकर। औरों के लिए आया कफ़न, ख़ुद ओढ़ लिया है, मुझे अंजाम की ख़बर नहीं।

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यह कविता (जहरीली जिंदगी।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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वैरागी जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vairagi Jeevan | वैरागी जीवन।

बोये थे मैनें संदल के बन,
काँटे बिखरे राहों में बने बबूल।
घायल करते पग-पग पर,
बिखरे हुए बिसैले शूल।

दूर-दूर तक फैले स्याह मनोहर,
घन मिले मेघ शीतल साये से।
ऐसी बद्दुआ लगी थी कोई,
हर इक ने प्राण जलाये से।
मेरे जीवन को श्राप दे गई,
भोले बैरागी मन की चंचल भूल।

शिशिर पहने आये पतझड़,
हरे-भरे मेरे आँगन में।
वीरानों सी ख़ामोशी रहती,
अंत:पुर के शून्य गगन में।
छिद्रित हुए हृदय में शूल,
मेरे अँजुल में स्वप्नों की धूल।

नहीं पता मुझको कब किसके,
हृदय पंख नोचे मैनें।
उड़ान से पहले ही मर जाते,
संकल्प सलोने जो भी मैं बुनता।
अपने आँगना बोये थे हमने,
खिले मिले किसी और के घर फूल।

इस बैरागी के जीवन में,
होती सुबह-शाम कहाँ?
जन्मों का अभिशाप लिये चला,
इस युग का संताप कहाँ?
पग-पग पर थी ठोकर हरदम,
इक पल भी आराम कहाँ?
ये जीवन तो बना बस धूल का फूल,
खंडित हृदय तन रुधित मन रहा कूल।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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होली के रंग खुशियों के संग।

Kmsraj51 की कलम से…..

Holi ke Rang Khushiyon ke Sang | होली के रंग खुशियों के संग।

फागुन की बयार लाए, मौसम की फुहार,
उदास मन में लाए नवीनता की बहार।
सूने चमन में छाए, उमंगों की खुमार,
अनकहे रिश्तों में लाए बेहतरीन निखार।

टूटे दिलों को जोड़े ऐसे रंगतों में सुमार,
फगुआ, आमोद प्रमोद का एकमात्र त्योहार।
आपसी भाईचारे को बनाता खास,
प्रेम बंधुत्व में घोलता, नई मिठास।

सूने जीवन को रंगीन बना, करता सपने साकार,
आपसी रंजिश मिटा, लोग होते गुलजार।
एक दूजे संग कड़वाहट भूला, होते एक,
लाल हरी पीली मगर गुलाल होते एक।

गालों पर लगी रंगों की लाली,
हाथ में सजी गुलाल से भरी थाली।
लगाकर एक दूसरे को गले, जतलाते प्यार,
ये बस एक रिवाज नहीं, है अनोखा त्योहार।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — होली अर्थात – प्रेम, स्नेह व स्वार्थ से मुक्त आत्मिक रिश्ता, जहां अपने विकारों को त्याग कर, सभी के प्रति करुणा का भाव मन में रख सबका भला करना। सभी गीले शिकवे भुला कर प्रेम से सबका सम्मान करना व गले लगाना, सबकी मदद करने का भाव मन में प्रकट हो। रंगो की तरह सदैव ही जीवन खुशहाल हो सभी का यही संदेश देता ये महापर्व होली।

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यह कविता (होली के रंग खुशियों के संग।) “विवेक कुमार जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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