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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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You are here: Home / Archives for poet Satish Shekhar Srivastava ‘Parimal’

poet Satish Shekhar Srivastava 'Parimal'

श्रीगन्ध बयार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ श्रीगन्ध बयार। ♦

देखो आई श्रीगन्ध बयार रे,
किस दूरागत अनजान दिश से,
अलीयों की बहीर रे,
देखो आई श्रीगन्ध बयार रे।

असन्नद्ध आरस स्मित जोबन सिन,
मदिर शैया पर आसक्त बेजान।
कंपित कुसुमरेणु सा अवसन्न,
पसर गई विभावती चिकुरों की,
मंजरी भरी लर रे।

सार बूंदों का कोमल परस ले,
तिमिरारपु दग्ध फुलवा मुकुलों के,
बिखरा सौरभ का आलोक रे,
पल्लवन अबोध खड़ी सपनों की,
अमल वहती के कूल रे।

वनदेवी के नूतन वनांचल के अनुहार,
हिल रहा धरुण धवल शून्य तिमिर।
खुला धाराधर काल मिहिर-मयंक अनुहार,
कांत-निसर्ग प्राण बन कितने लुढ़क रहे।
क्षीर-वीर्य रे, देखो आई श्रीगन्ध बयार रे।

अर्थ: श्रीगन्ध = चंदन, अलीयों = भौंरा, बहीर = भीड़, कुसुमरेणु = केसर,
चिकुर = बाल(केश), वहती = नदी, धरुण = आग,
क्षीर-वीर्य = आत्मबल, परस = स्पर्श, स्मित = अधखिला पुष्प

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है हरी-भरी प्रकृति के कारण ही हमारा जीवन इतना अच्छा सरल सुन्दर है। बहती नदी के पानी का कलकल की आवाज मन को सुकून देता है। प्रकति के बीच रहने पर चंदन सा सुगन्धित जीवन व आत्मबल भी तेज होता है। सदैव रंग बदलती यह प्रकृति हर पल मन को भाए, नभ में कभी बादल तो कभी नीला आसमां हो जाए, जो मन को भाये, रूप तेरा (प्रकृति) देख कर हर किसी का मन मोहित हो जाए। प्रकृति हमें सब से प्रेम करना सिखाए। सुन्दर पक्षियों की मधुर आवाज मन को सदैव ही प्रफुल्लित कर जाये।

—————

यह कविता (श्रीगन्ध बयार।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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बहारों के दिन आ गये।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बहारों के दिन आ गये। ♦

देखो रे! बहारों के दिन आ गये,
कलिका बालाओं के रदों पर मधुकर गीत छाये।

अबोध वल्लरियों सार पनघट पर,
ले तरुणाई अंतर्घट हर्षित अंतर।

हँस रही अँखियों में अलसाई मधुल अनुराग भाये,
विपिन अमरी की रोमलताओं सी।

आनंदित हो उठी पर्ववल्ली दल इंदिरा श्री,
मीहिका कनों के धंधला कितने श्रम धूलिका लहराये।

कोरक कुंतल ने विभु लालसा से,
‘परिमल’ प्रसिद्ध प्रीति लज्जा से।

सौंदर्यांचल में मनोहर धुलि से मुक्तामणि बिखराये,
देखो रे! बहारों के दिन आ गये।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है हरी-भरी प्रकृति के कारण ही हमारा जीवन इतना अच्छा सरल सुन्दर है। सदैव रंग बदलती यह प्रकृति हर पल मन को भाए, नभ में कभी बादल तो कभी नीला आसमां हो जाए, जो मन को भाये, रूप तेरा (प्रकृति) देख कर हर किसी का मन मोहित हो जाए। प्रकृति हमें सब से प्रेम करना सिखाए। सुन्दर पक्षियों की मधुर आवाज मन को सदैव ही प्रफुल्लित कर जाये।

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यह कविता (बहारों के दिन आ गये।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हिन्दू नववर्ष – आयो रे नवरात्रि।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिन्दू नववर्ष – आयो रे नवरात्रि। ♦

शुभ मंगल गीत गाओ गुञ्जार करो भू-गगन को,
मैया की अगुवानी को आतुर नैना।
पर्ण-पलास पुष्पो से उसको सजाओ,
नववर्ष के नव दिन रहेगी मैया।
झूम-झूमकर गीत गाओ,
शुभ दिन आया है नवरात्रि का,
मंगलचारी गीत गाओ झूमों नाचो गाओ॥

शुभ आगमन है माँ का शुभ आगमन है,
मंजरित है आम की बगिया।
बाग – बहार रंगीली कलियों की निखार बनके,
रंगो – अबीरों से सज के सिंह पे सवार होके,
आई माता रानी, आजा मेरी मैया आजा।
शुभ आगमन है, माँ तेरा शुभ आगमन है,
मंगलचारी गीत गाओ झूमों नाचो गाओ॥

नवरात्री में आई नवदुर्गा नव रूप धरे,
हर रूप की महिमा अपनी।
जो शब्दों से बखान न हो सके,
कलश पर विराजे लक्ष्मी मैया।
संग-संग विराजे गणपति राजे,
पहली शैलपुत्री हिमराज सुता कहलाती।
दूसरी ब्रह्मचारिणी दुखियों की दुखहारिणी हो तुम॥

तीसरा रूप मैया का चंद्रघंटा कहलाये,
खल – अधम प्रकम्पित होते सारे।
चौथा रूप मैया का कुष्मांडा कहलाये,
पुलकित करती हर्ष – उल्लास जगाये।
पांचवी शक्ति स्कन्दन माता कहलाये,
शिव पुत्र कार्तिकेय के संग पूजी जाये।
छठवीं शक्ति मैया कात्यायनी हो तुम॥

ऋषिराज कात्यान की सुता बन आई,
सातंवा रुप है तेरा मैया कालरात्रि का।
दुर्जनों की विनाशक बन आई,
आठवां रूप महागौरी कहलाये।
अमोघ फलदायिनी तमाम कल्मष धोती मैया,
नौवीं मैया सिद्धिदात्री कहलाती।
सुख समृद्धि और मोक्ष की माता बन आई,
आई नवरात्रि हिन्दू नववर्ष ले आई।
मंगलचारी गीत गाओ झूमों नाचो गाओ॥

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — Hindu Calendar Vikram Samvat 2079, 2 अप्रैल, शनिवार से चैत्र नवरात्रि शुरू होने जा रहे हैं और इसी के साथ नया हिंदू वर्ष नवसंवत्सर 2079 भी आरंभ हो जाएगा। हर वर्ष चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष को हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र का महीना हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। इसका प्रारंभ सम्राट विक्रमादित्य ने किया था, जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है। इस बार 02 अप्रैल को हिंदू नववर्ष 2079 या विक्रम संवत 2079 का प्रारंभ होगा। हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत, नव संवत्सर, गुड़ी पड़वा, उगाड़ी आदि नामों से भी जाना जाता है। विक्रम संवत के प्रथम दिन से ही बसंत नवरात्रि का प्रारंभ होता है, जो चैत्र नवरात्रि के नाम से लो​कप्रिय है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना करते हैं और मां दुर्गा का आह्वान करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत रखा जाता है। पारण के साथ इसका समापन करते हैं। हालांकि जो लोग पूरे 9 दिन व्रत नहीं रहते हैं, वे प्रथम दिन और दुर्गाष्टमी के दिन व्रत रखते हैं।

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यह कविता (हिन्दू नववर्ष – आयो रे नवरात्रि।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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विश्व कविता दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ विश्व कविता दिवस। ♦

काव्य जगत।

धरणि के खंडों में विकसित अपनी-अपनी बोली,
हर साँस में बसी गंगा साहित्य काव्य की लहरी।

रंग बिरंगी आभा जिसकी मधुर-मधुर है वाणी,
प्रेम प्रीति बसी वक्ष में आकर्षित करती शैली।

चारण चाक्रिक भट्ट मंख भू जग में भरे सभी,
पावन पुनीत कोमल पल्लवन से सजे सभी।

हर्षित हो लिखें सभ्यता हृदय की भावों से भरी,
मसीपथ बनी आदर्श सभी की उत्कीर्ण करे मन की।

खलक जगत में कविता की मीठी-मीठी स्वर लहरी,
सुर-सरगम से सदा रची रहे विश्व जगत की ये बोली।

साहित्य सभ्यता संदर्प यहां कथन काव्य की जननी,
चिर-काल से संघर्ष समर करे वर्णाका मसी लेखनी।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — कविता दिल की एक सच्ची अनुभूति है, जो एक कवि के हृदय की गहराई से निकली हुई कृति है। भाव स्वरूप कविता तो होता है जीवन का एक प्रवाह, जो सदैव ही प्रेरित करता है कार्यशील होने के लिए। हृदय की गहराई से निकली हुई कृति में न तो होती उसमें कोई भी बनावट, होती बस दिल के उदगारों की सजावट है। याद रखें – केवल शब्दों को लयबद्ध करना ही नही काफी होता है, सार्थक अर्थ के बिना तो शब्दों के संग नाइंसाफी होता है। गहरे अर्थ लिए हुए शब्दों का इक आईना होती है कविता, जिसमें अति सुंदर भाव के साथ-साथ होता हर शब्द का मायना है। ये कविता प्रेम का गहरा समुद्र है, दरिया इश्क का भी, जिसमें करुणा, जज्बात का अहसास, मरहम होता अश्क का भी। कहते है इंसान जब भी इसमें खो जाए तो हर शह में ही कविता गुनगुनाए, फिर जज्बातों की कलम से सदैव ही ह्रदय पर भाव अंकित करता जाए।

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यह कविता (विश्व कविता दिवस। – काव्य जगत।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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होली।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ होली। ♦

(रंग, विचार, उल्लास)

सृष्टि संसार की अगम होती अति वृष्टि,
सजती संवरती निसर्ग ले पल्लव पुष्प आसंग।
चढ़ते माघ शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि विशिष्ट,
बसंत राज का आगमन नव श्रृंगार का अहंग।

नए गुलाबी रंग पल्लव मन को मुग्ध करे,
प्रकृति सौन्दर्य प्रधान के त्रयी रंग कमाल।
कानन अगिन उजार दे टेसू पुहुप समान,
पीली साड़ी ओढ़े प्रमृत सदृश सजी धमाल।

आम्र मंजरी पुकारती गुलाब मालती प्रसून,
भटकते प्रियतम बन अलिमक भृंग समरेख।
विकल हो कोकिला करे कुहू-कुहू की टेर,
प्राणों को उद्वेलित करे फगुआ को देख।

वन वृक्षों की हरीतिमा मन को खींचे अपनी ओर,
आकर्षित करे पल-पल बालें गेहूँ-जौ की और बौर।
पतंगम गुंजन मधुकर कोकिला करे अति शोर,
देखो आया गली-गली रंग धुलिवंदन का अंदोर।

गीत गोविंद धमार की गायन वाद्य नृत्य विभोर,
कामिनी कानन यौवन फूटे उत्साह मस्ती चहुँओर।
प्रीति प्रेम त्याग की द्वेषरहित रहे ये संसार,
अन्न-घी-गुड़-दाव रंग से पितृतर्पण करते चहुँओर।

रंग अबीर गुलाल संग बजे फाग धमार की मृदंग,
धुलेंडी धुरड्डी, धुरखेल धूलिवंदन इसके नाम प्रतिष्ठ।
गीत गायन कर मिटाये कटुता द्वेष सब ये उद्वेग,
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी मनुष्य उल्लास इससे यथेष्ट।

मंच (KMSRAJ51.COM) से जुड़े समस्त कवि/कवित्रियों को होलिका दहन एवं होली की शुभकामनायें।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस समय पतझड़ के बाद नए पतों का वृक्षों पर आना वन वृक्षों की हरीतिमा मन को खींचे अपनी ओर आकर्षित करे पल-पल बालें गेहूँ-जौ की और बौर पतंगम गुंजन मधुकर कोकिला करे अति शोर देखो आया गली-गली रंग धुलिवंदन का अंदोर। होली रंगों का ही नहीं सामाजिक भेदभाव मिटाने एवं सामूहिकता का पर्व भी है। होली बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का पर्व भी है। इस बार हम होलिका दहन के साथ कोरोना वायरस का भी दहन करें तो फिर पहले की तरह सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में एक-दूसरे से गले मिलते हुए होली मना सकेंगे। होली रंगों का त्योहार है और जीवन में रंग तभी तक हैं, जब तक परिवार-समाज सुरक्षित है।

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यह कविता (होली – रंग, विचार, उल्लास।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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रंग बिरंगी होली आई रे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रंग बिरंगी होली आई रे। ♦

चल पड़ी मतवालों की ये टोली,
सबके होंठों पर सजी इक प्यारी बोली।
लो फिर से सजेगी रंगों की टोली,
प्रीति प्रेम की राह बनेगी होली।

होली के यंत्र-करण कई है,
संग जोड़ने वाले संबंध कई है।

रंग बिरंगे गर्द गुबारों से,
फिर से गुलालों की झड़ियों वाली है।
फिर से संवरेगी रंगों की हमजोली,
प्रीति प्रेम की स्रोत बनेगी होली।

कब तक रुष्ट रहोगे तुम सबसे,
कुछ तो बोलो क्यों हो गुमसुम तुम।

तुमको रंग लगाने में जाएगी गुम,
कटुता के कारावास से निकलो,
बन जाओ अब तो हमजोली।
फिर सजधज के आई रंगों की टोली,
प्रीति प्रेम की साधन बनेगी ये होली।

अंतस् में नहीं वंचना किसी के,
उत्तङ्ग बहुत है आत्मबल सबका।
होली के रंग बिरंगे कंगना,
उर पावन ब्रम्हद्रव से सजना।

अंत:सार भी निर्मल हो पूरा,
आनन अगर है परमप्रिय बोली।
फिर श्रृंगारित होती रंगों की होली,
प्रीति प्रेम की उर्मि बनेगी होली।

निकल पड़ी अलमस्तों की ये टोली,
सबकी जिह्वा पर इक ही बोली।
फिर बन-ठन कर आई रंगों की होली,
प्रीति प्रेम की निर्झर-सी बनेगी ये होली।

मंच (KMSRAJ51.COM) से जुड़े समस्त कवि/कवित्रियों को होलिका दहन एवं होली की शुभकामनायें।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — होली रंगों का ही नहीं सामाजिक भेदभाव मिटाने एवं सामूहिकता का पर्व भी है। होली बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का पर्व भी है। इस बार हम होलिका दहन के साथ कोरोना वायरस का भी दहन करें तो फिर पहले की तरह सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में एक-दूसरे से गले मिलते हुए होली मना सकेंगे। होली रंगों का त्योहार है और जीवन में रंग तभी तक हैं, जब तक परिवार-समाज सुरक्षित है।

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यह कविता (रंग बिरंगी होली आई रे।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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उन्मुक्त जिंदगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ उन्मुक्त जिंदगी। ♦

याद इन्हें भी कर लें आज।

दे दी हमें उन्मुक्त सी जिन्दगी।
आज़ादी में साँस लेने के लिये।
रो रही थी माँ भारती।
बेड़ियों में पड़ी गुलामी में,
हुंकार उठी नव खूनों में।

दासता की बेड़ियां तोड़ने के,
सन् सत्तावन में लगी आग बरसने।
अंग्रेजों के सीनों पर,
नाना तात्या मंगल बहादुर,
रानी लक्ष्मी कुंवर के हाथों से।

ह्यूज कार्नेल और डलहौजी जैसे,
कितने भागे अपने सिवरों में।

मेरठ कानपुर सतारा झांसी,
दिल्ली बिठूर लेते जाते वीरों ने।
फड़नवीश के तलवारों से,
क्रांतिवीर के हुंकारों से।

बेड़ियां लगी टूटने जब,
हाय! कैसी बिडंबना आई।
रानी गई काल-कवलित हो,
दे अगली पीढ़ी को,
हम न सके पूरे तोड़ने बेड़ी को,
माँ रो रही है बेड़ी में।

भुवन के नन्हें कामों से,
फिर जोश-उल्लास भर गया।
नौजवानों में।
हुंकार उठे कूका-बिरसा,
ले आदिवासी वीरों ने।

नीलांबर-पीताम्बर बंधुओं ने,
बरसा तीर-कमानों से।
छुड़ा दिये पसीने अंग्रेजों के,
लेकिन ये भी लड़े भिड़े,
तोड़ न पाये जंजोरों को।

पुनः नई आवाज उठी,
बेटों-बेटियों के हुंकारों से।
किशोर युवा चले मिटाने।
गुलामी की जंजीरों को।

कूद पड़े लाला लाजपत राय,
तिलक चापेकर बंधु पटेल खान।
ये सब बातों से,
कहां सुनने वाले थे।

बहरे थे कानों के,
इन्हें धमाके सुनने थे।
असफाक विस्मित दीनबन्धु,
खुदीराम बोस के गानों के।
पंजाब से उठे शोले फैले।

उत्तर प्रदेश बंगाल गुजरात,
मध्यभारत ओड़ीसा कर्नाटक,
आन्द्रा के हुंकारों से,
डोल गया एलिजाबेथ का,
सिंहासन लंदन के गलियारों में।
थर-थर कांपने लगे कागज के वीर,
जो उन्मुक्त हो करते,
अत्याचार भारत के गलियों में।

सुभाष बोस की सेना जब रंगून गई,
भागे अंग्रेज अपने घरों में।
लक्ष्मी सहगल बनी लेफ्टीनेंट,
मुजिबुर्रहमान बने कमाण्डर।
कर दिये बेड़ागर्क अंग्रेजों के,
उपनिवेश की आँधी ले चलते थे,
उड़ गए फिर तूफानों में।

भगत सिंह राजगुरू सुखदेव,
भाभी दुर्गा के चण्डों से।
फणीश्वर जैसे बच्चे गरजे,
भरी अदालत में बंदूकों से।
रक्त जब गिरने लगा अंग्रेजों के,
नाच उठी मौत की छाया।
जब इनके सीनों में।

भाग पड़े अंग्रेज अपने बिलों में,
दिल कांपा मन बिचलित हो भागा।
फिर लंदन की गलियों में।
मिली स्वतंत्रता जब भारत को,
माउण्टबेटन ने तभी चली चाल।

माँ भारती के सीने में,
कर दिये दो टुकड़े।
हिन्दुओं के वृहद को खंडित कर,
यवन को पाकिस्तान दे।
भारत को खंडों में विभक्त कर दिया।

आजाद भगतसिंह खुदीराम सुभाष,
असफाक विस्मिल राजगुरू जैसे,
कितने वीरों के सपनों को तोड़,
कर दिया टुकड़े में अंग्रेजों ने।

जतिन दास के भूखों में भी,
देखे थे सपने उन्मुक्त वृहद भारत के।
आज़ादी के सपने,
सब शहीदों ने मिलकर दें दिया हमको,
आज़ादी से उन्मुक्त जीने को।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — कड़वा है मगर सत्य है — जिन सूरमाओं ने अपने रक्तिम रंग से खेली क्रांति की होली थी। भारत की स्वतंत्रता खातिर, खाई वक्ष स्थल में गोली थी। सदैव ही इंकलाब की जिनके मुंह में, रहती सदा एक ही बोली थी। वह नर के वेश में नारायण की, अवतरी भारत में टोली थी। इतिहास छुपाया सच न बताया, इज्ज़त, माटी में रोली थी? यह राष्ट्रीय पर्व हमें देश की एकता और गौरव को बनाये रखने की प्रेरणा देता है। हम सभी को संविधान के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हो गया था। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। 26 जनवरी के दिन ही भारत को गणराज्य का सर्वोत्तम दर्जा प्राप्त हुआ। 26 जनवरी के दिन दिल्ली में इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक परेड निकाली जाती है। जिस वतन ने हमें प्यार, मां का आंचल, समरसता, रंग रूप भेष भाषा सभी को मिलता मान दिया उस वतन पे हमें नाज है। जिस वतन का सबसे बड़ा संविधान लोकतंत्र जिसकी शान वो भारत देश महान वो भारत देश महान। वतन हमारी आन हमारा सम्मान है उस मां को हमारा सलाम वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्॥

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सृजनहार माँ और गुरु।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सृजनहार माँ और गुरु। ♦

ब्रह्मांड की दो अनुपम कृति,
इक जननी तो इक गुरू दोनों हैं सृजनहार।

श्रद्धा विश्वास भक्ति और समर्पण की मिसाल,
आकार संस्कार से बांधे धर्म-कर्म के सृजनहार।

शक्ति सामर्थ्य सदृश्य संसार,
साकार पारब्रह्म के समान।

ज्ञान विद्या जीवंतता कल्याण,
परम पद आलंभ के चर-सर्वशक्तिमान।

ज्योति सद्वृत्ति नीरद गान,
अनन्य अद्भुत माधुर्य का मिश्रित वरदान।

अध्येता सम-जड़ता अविदित दर्प कुसुम समान,
गुरू सूक्तद्रष्टा धात्री जगदम्बिका समान।

प्रदीप्त आत्मज्ञान की कान्ति-सौरभ गान,
गुरू और मातु हैं दृग उर्वी पुष्कर समान।

हम थे निर्बुद्धि मुर्च्छित मृण प्रस्तर समान,
परस प्राप्ति जब मिली हम हुये आकृति समान।

मातु और गुरू हैं उदधि उर्मि अमर्त्य वसुंधरा समान,
शत-शत नमन है इन्हें, जो हैं रत्नगर्भा अंबुनिधि व्योम समान।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में माँ और गुरु की जगह कोई भी नही ले सकता। जहां माँ जन्म देने के साथ साथ प्रथम गुरु है और सदैव ही अपने बच्चे के सर्वागीण विकास के लिए तत्पर रहती है। वही एक सच्चा गुरु उसे सदैव ही सन्मार्ग पर चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम ज्ञान व ध्यान से भरपूर जीवन जीने की कला सीखाता है। माँ और गुरु सदैव ही जीवन के हर क्षेत्र में वृद्धि चाहते है, उन्नत और प्रगतिशील जीवन के सूत्रधार है दोनों।

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यह कविता (सृजनहार माँ और गुरु।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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राष्ट्रभाषा हिन्दी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राष्ट्रभाषा हिन्दी। ♦

ऊसर होती जमीन को, पुनः जीवन देना चाहिये;
जाती हुई भाषा को, पुनः स्थापित करना चाहिये।

आज के परिवेश में, हिन्दी का होता अपमान;
अंग्रेजियत का हो रहा बोलबाला, हिंदी को कर दरकिनार।

मिठास भरी जिसमें, जहर का नाम दे रहे;
मधुरता जिसके शब्दों में, कड़वाहट उसमें घोल रहे।

पृष्ठिभूमि जिसने बनाई, उसकी नींव हिला रहे;
सम्पूर्ण जगत में, सभ्यता संस्कृति को रखा है।

आज तक जन – जन तक, हृदय की गहराई तक बसी;
पर निगाहों से उतारी गई, भाषा हिन्दुस्तान की।

हिन्दी सम्मान है, हिन्दी अभिमान है;
हिन्दी स्वाभिमान है, भारत की जान है।

भरतखण्ड की संस्कृति है, संस्कारों की जननी है;
आत्मा जग की, विश्व भाषा की माँ है।

विश्वास जगत जनार्दन की, एक डोर में सबको है बांधती;
हर भाषा को सगी बहन समझे, भरी-पूरी हों सभी बोलियां।

यही कामना हिंदी है, यही साधना हिंदी है;
सौतन विदेशी भाषा न बने, महारानी हमारी हिन्दी ही रहे।

आन हमारी है, शान हमारी है हिन्दी;
चेतना हमारी है हिन्दी, वाणी का शुभ वरदान है हिन्दी।

वर्तनी हमारी है हिंदी, व्याकरण हमारी है हिन्दी;
संस्कृति हमारी है हिंदी, आचरण हमारी है हिन्दी।

वेदना हमारी है हिंदी, गान हमारी है हिन्दी;
आत्मा हमारी है हिन्दी, भावना का साज़ है हिन्दी।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली , मध्य प्रदेश ♦

—————

ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — अंग्रेजो से आजादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता आधिकारिक रूप से क्यों दर्ज नही हुआ, हिंदी को उसका सम्मान क्यों नहीं मिला? हिन्दी राष्ट्रभाषा के महत्व, गुणों और प्रभाव को बताया है। हिन्दी हर भारतीय के दिल से निकलने वाली भाषा हैं। हिन्दी भाषा दिल को दिल से जोड़ने का कार्य करती है। एकलौती हिन्दी भाषा ही है जिसमे अपनापन है दुनिया की किसी भी अन्य भाषा अपनापन का स्थान नहीं।

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यह कविता (राष्ट्रभाषा हिन्दी।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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