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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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कर्म करने की प्रेरणा देने वाली कविता

जागो अब तो जागो।

Kmsraj51 की कलम से…..

Jago Ab To Jago – जागो अब तो जागो।

ले रही अँगड़ाई, पूरब से है आई
रक्तिम कर लाई है।
प्रथम संदेशा आई है,
सूरज की अँगड़ाई है।
धरती की अरुणाई है,
जागोऽऽ अब तो जागो।

इठलाती वसुंधरा चली,
हरियाली की छाया तले।
सदियों से दु:ख झेले,
ममता के सजे मेले।
अब तो टूटे भव के बंधन,
जुड़े प्रेम के बंधन।
ली रेणुका ने अँगड़ाई है,
जागोऽऽ अब तो जागो।

आया जमाना नया-नया,
नई-नई इसकी सुबह।
उम्मीदों के दामन में,
घायल हुआ यकीन।
वैदिकता से भरा रहा,
भरतवंश का देश।
शौर्य सुहृद हरियाली, शांति का,
ऐसा ही है इसका परिवेश।
देख इसे रत्नगर्भा हर्षाई,
कहती जागोऽऽ अब तो जागो।

आये तुम गोदी में,
निर्वस्त्र न कर डालो।
माँ हूँ तुम सबकी,
कुछ शर्म तो दिखाओ।
सनातन धर्म को सुदृढ़ बनाओ,
रहो भूखे मगर
इक-दूसरे को खुशियों से भर जाओ।
प्रेम प्रीति त्याग की मूरत बन,
जग में ब्रह्मदेश का नाम कर जाओ,
जागोऽऽ अब तो जागो।

सदा पाठ पढ़ाया है,
अपना स्वार्थ भुलाया है।
दूसरे की खातिर,
प्राणों का जौहर कराया है।
भगवा लाल पीले से,
पन्थ शहीदों का कहलाया है।
विश्वास श्रद्धा कर्म-धर्म देकर,
तुम्हें सनातन मैनें बनाया है।
लाज मेरी तुम सब रख लेना,
तिरंगे की शान न घटने देना।
प्राणों को प्राणों मे भर लेना,
हँसकर तुम उसे दे देना,
जागोऽऽ अब तो जागो।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला – सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (जागो अब तो जागो।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: jago ab to jago, kavi satish shekhar srivastava parimal, satish sekhar poems, Satish Shekhar Srivastava 'Parimal', उत्साह बढ़ाने वाली कविता, कर्म करने की प्रेरणा देने वाली कविता, जागो अब तो जागो, जागो अब तो जागो - सतीश शेखर श्रीवास्तव परिमल, प्रयत्न पर कविता, प्रेरक कविता इन हिंदी, प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ, सतीश शेखर श्रीवास्तव - परिमल, सीख देने वाली कविता

आफताब बन जाऊँगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आफताब बन जाऊँगा। ♦

है बुलन्द हौसला दूर फ़लक पे छा जाऊँगा,
धरा क्या कहकशां में आशियां बनाऊँगा।
चमकने का थोड़ा-सा वक्त दे दो दोस्तो,
तपकर खुद ही आफताब बन जाऊँगा।

है मजबूत इरादे डगर हर पार कर जाऊँगा,
दिल में जज़्बा काट पर्वत राह नई बनाऊँगा।
निकल पड़ा हूँ अब मंजिल की ज़ुस्तज़ु में,
मरुधरा में शीतल सरिता धारा ले आऊँगा।

ढ़ल जायेगी ये स्याह रात नई सुबह लाऊँगा,
है कठिन राह जरा सी पर मैं ना घबराऊँगा।
है यकीन खुद के ही साहस दृढ़ मनोबल पर,
कर नव संकल्प तूफानों से भी टकराऊँगा।

मुश्किलें तो आएंगी जरूर मैं ना डगमगाऊँगा,
सितारों भरी रात में चाँद – सा खिल जाऊँगा।
हूँ जुगनू किसी रोशनी का, मैं मोहताज नहीं,
निशां कामयाबी के फ़लक पे छोड़ जाऊँगा।

♦ सुरेश राणा ‘सुमेश‘ जी – कैथल, हरियाणा ♦

—————

  • “सुरेश राणा ‘सुमेश‘ जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — साहस वह महत्वपूर्ण गुण हैं जो हमारे अंदर शारीरिक व नैतिक रूप में शामिल होता है। इसके द्वारा हम किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सदैव सक्षम रहते है। किसी भी परिस्थिति में कौन से साहस का उपयोग करना है, यह पूरी तरह से आपकेआत्मशक्ति पर निर्भर करता है। कोई भी चुनौतीपूर्ण कार्य केवल कहने मात्र से नहीं बल्कि उसे बहादुरी के साथ करना ही साहस है। कोई भी कार्य कहने मात्र से पूर्ण नहीं होता बल्कि साहस के साथ उस कार्य को करना होता हैं। जीवन में मुश्किलें तो आएंगी जरूर, लेकिन जीतता वही हैं जो बिना रुके, बिना थके व बिना डगमगाए आगे बढ़ता रहता है।

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यह कविता (आफताब बन जाऊँगा।) “श्री सुरेश राणा ‘सुमेश‘ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे। महाकाल और माता रानी की कृपा आप पर सदैव ही बनी रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सुरेश राणा ‘सुमेश‘ है। मैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कमालपुर, कैथल, हरियाणा में “हिंदी प्राध्यापक” के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी शिक्षा, एम. ए.,(हिंदी, अंग्रेजी) बी. एड., एम. फिल., डिप्लोमा इन एजुकेशन। अब तक शिक्षण अनुभव: 24 वर्ष का।

सम्मान: हरियाणा राज्य शिक्षक पुरस्कार (राज्यपाल से सम्मानित)

साहित्यिक उपलब्धियाँ —

पुस्तक प्रकाशित: अंकुरण, स्त्री अस्तित्व का संघर्ष(काव्य संग्रह)

मुख्य सम्पादक: बाल मंथन मासिक पत्रिका

♦ ⇒ विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में कहानियाँ, ग़ज़लें, कविताएं, शैक्षणिक लेख प्रकाशित। ‘शिक्षा सारथी’ हरियाणा शिक्षा विभाग की मासिक पत्रिका में नियमित शैक्षिक लेख प्रकाशित। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध पत्र वाचन एवम प्रकाशन।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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चलो चलते हैं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ चलो चलते हैं। ♦

चलो चलते है सब हौसलों की कमान लेकर।
सपनों को उमंग के पंखों की नई उड़ान देकर।

सीधे रास्ते कभी नही मिलते इस जीवन में।
जिस पर चलकर सहज खुशी हो जाए मन में।

राह में आयेंगे अनेकों बार दुखों के रोड़े।
पर धैर्य के दामन को हम कभी न छोड़े।

सहनशीलता है सबसे सुंदर गुण एक ऐसा।
सोने पर हो बिल्कुल सुहागे ही जैसा।

आओं तराश ले कुछ अपने ही हुनर को ऐसे।
सुनार सोने के आभूषण गढ़ सुंदर रूप दे जैसे।

रास्ते की आई किसी भी मुसीबत से न घबराना।
बस नेक कर्म संग प्रभु स्मरण ही करते जाना।

हर अंधेरा छंट जाएगा तेरी उस नायाब राह का।
जवाब हँसी में मिलेगा तुझें तेरी हर आह का।

विवेक को सदैव ही रखना दिल में करके समाहित।
फिर हासिल हो जाये जीवन में हर मंजिल की जीत।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जैसे सोने को जितना तपाया जाता है उससे सारी गंदगी बाहर आ जाती है, तब जाकर अच्छा आभूषण बनता है, अपने इसी सहनशीलता के गुण के कारण सोने का मूल्य बढ़ जाता है। मानव जीवन में भी बहुत उतार चढ़ाव आते है, लेकिन संयम व धैर्य से जीवन के हर मुश्किलों से बाहर निकला जा सकता हैं। एक बात सदैव ही याद रखे अपने कर्म पर व अपने आप पर सदैव ही विश्वास बनाये रखे, अपने सपनों को उमंग के पंखों की नई उड़ान देकर आगे चलते चले।

—————

यह कविता (चलो चलते हैं।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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रचनाएं भर रात जगाती।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ रचनाएं भर रात जगाती। ♦

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भर रात जगाती रचनाएं,
नींद ना आती।
रात गुनगुना कर कह जाती,
कही कहानी अपनी।

चार दिसंबर दो हजार सत्तरह,
लहुरावीर की बात बताती।
लोगों में भरा कितना कलियुगी,
जीवन इतिहास दोहराती।

इठलाते-बलखाती व्यंग बराबर,
कसते उपहास उड़ाती।
इसे विडम्बना ही मानो ,
सच्चाई सपने में कह जाती।

वह दिन भी सूना ही होगा।
वस्तु लोग खोई लौटाते…
पर देशों की परम्परा को,
राष्ट्र हम नहीं ला पाते।

दक्षिण भारत की सभ्यता को,
भी हम नहीं अपनाते।
भूलें अपनी या प्रवंचना,
औरों को भी बतलाऊं।

उस गाथा को कैसे गाऊं,
अंधियारी की रात सुनाऊं।
नहीं-नहीं खिलखिली धुप में घुप,
हंसता हुआ मित्र एक आता।

अपनी वह पाथेय एक सौ छत्तीस,
साथ लेकर रचना जाता।
सुनकर क्या कर सकते हो ?
मेरी अमृत बीती गाथा।

अभी समय है सोई नहीं मेरे,
परीश्रम की मौन व्यथा।
साइट पर मेरे विद्यमान है,
लेकर एक सुनहरी आभा।

उसने व्यसन में अपने साथियों के,
साथ छका – गांठा।
कुतूहल थी जिन आँखों में,
उस दिन पानी भर आया।

स्वच्छंद सुमन जो खिले थे कल तक,
प्रतिभा छाया गुनगुना उठी।
कहती ! ठहरो कुछ सोचो -विचार करो,
अपने भी घातक होते लहरी।

हो चकित निकल आई सहसा।
कोमल पंखुड़ियां आँखों में गहरी।
‘मंगल’ सौन्दर्य जिसे कहते हैं।
अनंत अभिलाषा के सपने तुझमें।

सुन्दरता मेरी आँखों को रह-रहकर,
समझा जाती है, और बताती।
हलकी सुशान की भाषा में,
मित्रों की दुर्बलता को भी गाती है।

तुम्हें स्मित रेखा खींच कर एक अभी,
संधिपत्र लिखना ही होगा।
उस अंचल मन पर उन्हीं मित्रों से,
कुछ – कुछ सीखना होगा।

नित्य विरुद्ध संघर्ष सदा,
विश्वास, संकल्प अश्रु जल से।
आसमान में पक्षी उड़ती,
समंदर में तुझे उतरना होगा।

‘मंगल’ कह दो अपनी यादों को,
मुझे जलाना छोड़ दे।
उस पर आंसूं बहाना व्यर्थ है।
रक्त बहाना छोड़ दें।

बहुत पहेलियाँ सुलझाया होगा,
अपने इस जीवन पल में।
सद्भाव – प्रेम की पोथी पढाओ।
अपने विछुरे साथियों में।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – रियलिटी को समझो, अपने आप में सुधार करो, मायाजाल में न फसो।

—•—•—•—

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यह कविता “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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