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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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2022-KMSRAJ51 की कलम से

भाद्रो रा महीना।

Kmsraj51 की कलम से…..

Bhadro Ra Mahina | भाद्रो रा महीना।

The poem mentions festivals ranging from the festival of Rakhi to Janmashtami, Guga Naumi, Avansa Dugansa, and Sairi.

सौणा ते बाद भाद्रो गया आई।
हुण भान्ति भान्ति रे तवाहर लैणे मनाई॥

सबणी ते पैहले राखड़िया रा तवाहर गया आई।
ता बैहणी अपणे भाई जो राखड़ी लैंईं पैहनाई॥

गूगे री मण्डलियां घरा घरा जांई आई।
गूगे री गाथा सुणाई कने सबणी जो निहाल करी जाईं॥

तेते बाद चनण षष्ठी जाईं आई।
कोई व्रत कराएं ता कोई व्रत छिद्री कने भट्टी लैं ख्वाई॥

ऐते बाद जन्माष्टमी रा ध्याड़ा जां आई।
दिना जो व्रत रखी ने राती जो कृष्ण महिमा लैं गाई॥

गूगा नौमीं जो गूगे री मण्डलियां फिरना करी देईं बंद।
गूगे जो रोट चढ़ाई कने रोट खाई कने लैं बड़ी नंद॥

फेरी अवांसा डुगांसा जाईं आई।
घोघड़ा रिया धारा देवतेया कने डैणी च खूब हुईं लड़ाई॥

दूज कने तृतीया रे ध्याड़े मुनियां कने जनाना व्रत करी लईं।
जनाना सदा सुहागण कने मुनियां बांके लाड़े जो पाणे री आस लगाई जाईं॥

पत्थर चौथा रा डर सबणी जो लगां।
झूठा लांछण नी लगो इदी डरा ते तयाड़े घरा आंदर रैहणा ही बांका लगां॥

हलावे बजौए री पूजा भी हुई जाईं।
हुण नौईं फसल बाहणे री तयारी भी हुई जाईं॥

सैरी रा तवाहर भी जां आईं।
नौईं लाड़िया हुण अपणे सौरया चली जाईं॥

♦ विनोद वर्मा जी / जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता का सारांश है कि इसमें विभिन्न त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है, जो भाद्रपद महीने में मनाए जाते हैं। कविता में राखी के त्योहार से लेकर जन्माष्टमी, गूगा नौमी, अवांसा डुगांसा, और सैरी जैसे त्योहारों का जिक्र किया गया है।
  • राखी: बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं।
  • गूगा नौमी: गूगा की मंडलियां घर-घर जाकर गाथाएं सुनाती हैं, और लोग गूगे के रोट चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
  • जन्माष्टमी: लोग दिन में व्रत रखते हैं और रात में भगवान कृष्ण की महिमा गाते हैं।
  • अवांसा डुगांसा: इस त्योहार में देवताओं के बीच युद्ध की कहानी सुनाई जाती है।
  • सैरी: यह एक पारिवारिक त्योहार है, जिसमें नई बहुएं अपने ससुराल जाती हैं।
  • कविता में इस महीने के त्योहारों और अनुष्ठानों के महत्व को दर्शाया गया है, जो समाज में रिश्तों और परंपराओं को मजबूत करते हैं।

—————

यह कविता (भाद्रो रा महीना।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से Tagged With: Bhadro Ra Mahina, Poem On Janmashtami In Hindi, Vinod Verma, vinod verma poems, कृष्ण जन्माष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता, जन्माष्टमी पर प्यारी सी कविता, भाद्रो रा महीना - विनोद वर्मा, विनोद वर्मा, वो है मुरली वाला, हिन्दी कविता - भाद्रो रा महीना

वो बंधन रक्षाबंधन कहलाता है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vo Bandhan Rakshabandhan Kehlata Hai | वो बंधन रक्षाबंधन कहलाता है।

Brother's wrist waits, sister's Rakhi fills him, Rakhi comes in the month of Saavan, it adds sweetness to relationships. That bond is called Rakshabandhan.

भाई बहन के प्यार को जो दर्शाता है,
वो बंधन सबसे प्यारा होता है,
भाई बहन की रक्षा की कसम खाता है,
वो बंधन रक्षाबंधन कहलाता है।

भाई की कलाई इंतजार करती है,
बहन की राखी उसको भरती है,
सावन के महीने में राखी आती है,
रिश्तों में मिठास घोल जाती है।

बहने बेसब्री से करतीं हैं इस दिन का इंतज़ार,
क्या – क्या देगा उसका भाई उपहार,
वर्षों से चली आ रही है ये परंपरा,
कितना सुंदर है देखो ये त्योहार।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में कवि कहते है कि रक्षाबंधन का त्योहार भाई और बहन के बीच के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। सावन के महीने में आने वाला यह त्योहार रिश्तों में मिठास भरता है और कई वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को बहुत ही सुंदर तरीके से मनाया जाता है। बहनें इस दिन का बेसब्री से इंतजार करती हैं और सोचती हैं कि उनके भाई उन्हें क्या उपहार देंगे। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है।

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यह कविता (वो बंधन रक्षाबंधन कहलाता है।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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योग दिवस – 21 जून

Kmsraj51 की कलम से…..

Yog Divas June 21 | योग दिवस – 21 जून

आज 21 जून के अंक
अखिल संस्कृति के मनस – प्रवाह।
योग का यह सुंदर उद्देश्य,
जगाया जन चेतन मन चाह।

प्रेरणा का पावन उद्गार,
योग से होते सभी निरोग।
यही सम्यक संत विचार,
विश्व महिमा मंडित उद्योग।

पिलाते कटुता कूट स्नेह,
पढ़ाते मानवता का पाठ।
यही सम मिश्र अहिंसा सत्य,
काछते सब सेवा का ठाट।

राग – रंग संगम ‘मंगल’ भाव,
सुझा देते सबको यह राह।
योग का यह सुंदर उद्देश्य,
जगाया जन चेतन मन चाह।

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — हर रोज़ सुबह के समय योग करने के फायदे अनमोल है – यह हमारी पहली सांस को पुन: चक्रित करता है। योग का अभ्यास करने से शरीर किक-स्टार्ट होता है। ह्रदय रोग से बचाव करता है योग। दिमाग सदैव ही रहता है एक्टिव। बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता। योग के द्वारा सांसों को साध कर परमानन्द की अनुभूति किया जा सकता है। तन और मन को निरोग रखने के लिए प्रतिदिन योग करे।

—————

यह कविता (योग दिवस – 21 जून) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, सुखमंगल सिंह जी की कविताएं।, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: a short poem on yoga day, best poem on yoga day, few lines on yoga day, kavi sukhmangal singh poems, poem on yoga day, poem on yoga day in hindi, Sukhmangal Singh, sukhmangal singh poems, Yog Divas June 21, कविता, योग दिवस, योग दिवस पर कविता, सुख मंगल सिंह की कविताएं, सुखमंगल सिंह की कविताएं, सुखमंगल सिंह जी की कविताएं

अब सोने दो।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अब सोने दो। ♦

केशों में निशा की सवारी है अभी,
पिधान में तेज धारी है अभी।
सुरमयी रंग पे न गया कोई निखार,
विभावरी तो मधु – कुँवारी है अभी।

कौमूदी के पथ पर साथ तुम हो ना,
प्रीति हमारी युगों तक अमर होगी ना।
चाहे विष पिला देना तुम कल मुझको,
पर अमृततरंगिणी में प्रेम की बात होगी ना।

क्या सारंगों के इशारे हैं उस पर गौर करो,
कह रही बसंत बयार क्या जरा ध्यान दो।
जीवन तृषित खड़ी है चौखट पर तुम्हारे,
आज मिलन का पर्व प्रीति का दान दो।

कोमल केश लहरायें मचल-मचल कर,
गहन पलक लजा कर तनिक उठ गई।
जैसे किसी कामिनी कुँज की अब्धि पैठ पर,
घटायें झुक-झुक गई झूम कर छा गई।

झूम लिया सुप्तविग्रही श्वांसों को स्थिर करने दो,
अब तक गुमनाम था थोड़ा गुमराह होने दो।
आज छाई आँखों की पलकों पर छाँह छबीली,
चिर-निद्रित इन अँखियों को अब सोने दो।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (अब सोने दो।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मन के मीत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मन के मीत। ♦

वो भी रहम की दवा रखते है,
इस भोले मन ने यह मान लिया।
हवा के झोंके की तरह हम मिले,
पर शिद्दत से पहचान लिया।

दो पल ठहर कर मन-मन से,
गुफ्तगू करने लगा।
मासूमियत देखकर भी,
मन बहम से भरने लगा।

लेता दवा अपने मर्ज की,
बात-बात से तनती गई।
मर्ज और दवा की,
आपस मे ठनती गई।

हम भी नेक इंसान है,
जख्म फिर भी पलते रहे।
खुशियों की इस सौदेबाजी से,
लोग हमसे जलते गए।

आया बनावटी भूचाल,
सब कुछ तहस-नहस कर गया।
ईरादा था सब खण्डहर करने का,
पर मन मे दवा और मर्ज का,
कौना दबकर रह गया।

♦ लाल सिंह वर्मा जी – जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

• Conclusion •

  • “लाल सिंह वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — दो पल ठहर कर मन-मन से अब गुफ्तगू करने लगा। मासूमियत देखकर भी न जाने क्यों मन बहम से भरने लगा। आया बनावटी भूचाल, कुछ ऐसा की सब कुछ तहस-नहस कर गया। ईरादा था सब खण्डहर करने का पर मन मे दवा और मर्ज का कौना कही दबकर रह गया। कर्मों के उपरांत, परोपकारी बनने, दान पुण्य को नियमित करने से ही मानव तन मिलता है। जब परमात्मा ने हमें सर्वश्रेष्ठ जीव बना कर धरा पर भेजा है तो यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि हमें इंसानियत का भाव रखते हुए सर्व जीव कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।

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यह कविता (मन के मीत।) “लाल सिंह वर्मा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं लाल सिंह वर्मा सुपुत्र श्री भिन्दर सिंह, गांव – खाड़ी, पोस्ट ऑफिस – खड़काहँ, तहसील – शिलाई, जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक शिक्षक हूं, शिक्षा विभाग में भाषा अध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है, हिंदी भाषा से सम्बन्धित साहित्यिक विधाओं में रचनाएं लिखना तथा विशेष रूप से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों से सम्बन्धित रचनाओं का अध्ययन करना पसंद है। इस Platform (KMSRAJ51.COM) के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

शैक्षिक योग्यता – J.B.T, BEd., MA in English and MA in Hindi, हिंदी विषय में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की है। अध्यापक पात्रता परीक्षा L.T., J.B.T., TGT पास की है। केंद्र विश्वविद्यालय PHD• (पीएचड•) प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है।

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नव वर्ष।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नव वर्ष। ♦

आओ हम सब…
नव वर्ष का स्वागत करते है।
नये सपनों के साथ नयी उम्मीदों,
को फिर से हम पूरा करते है।

बुरी सब यादे मिटाकर,
नव वर्ष में खुशियों की बौछार करते है।
नव वर्ष में हम अपनी मंजिल,
का आगज करते है।

समाज और देश के लिए,
कुछ परिवर्तन करते है।
सकारात्मक ऊर्जा का हम,
सबके मन में संचार करते है।

सब प्रेम, सम्मान, आदर एक दूसरे को,
देकर नयी मिसाल कायम करते है।
बुरे विचारों का त्याग कर,
नए विचारों का उदय करते है।

मानवता अपनाकर सभी,
के लिए दिल में सहयोग रखते है।
न हो किसी के प्रति भेदभाव,
बैर और कपट के भाव का त्याग करते है।

सबके मन में प्रेम, सद्भावना,
दया का भाव भरते है।
नयी उमंगों और नई आशाओं के,
साथ नव वर्ष का आगाज करते है।

सभी को माफ कर दिल से,
उन्हें प्यार से हम स्वीकार करते है।
घर के सभी बड़ों का सम्मान,
करने का हम प्रण करते है।

अपने पराएं का भेदभाव मिटाकर
सबको गले लगाएं।
पुरानी सारी बुरी यादों को,
भुलाकर नये गीत गाएं।

प्रकृति को न करें नष्ट,
बहुत सारे पेड़ लगाएं।
प्रकृति के महत्व को समझे,
दूसरों को भी समझाएं।

नव वर्ष लायेगा सबके,
जीवन प्रकाश ही प्रकाश है।
आओ हम सब मिलकर प्रेम से,
नववर्ष का स्वागत करते है।

आप सभी को तहे दिल से नव वर्ष की शुभकामनाएं।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

—————

  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम सब समाज और देश के लिए कुछ परिवर्तन करते है और सकारात्मक ऊर्जा का हम सबके मन में भरपूर संचार करते है। सब प्रेम, सम्मान, आदर एक दूसरे को देकर नयी मिसाल कायम करते है। बुरे विचारों का त्याग कर सच्चे मन से नए विचारों का उदय करते है। सच्चे दिल से मानवता अपनाकर सभी के लिए दिल में सहयोग का भाव रखते है। न हो किसी के प्रति भेदभाव मन में, बैर और कपट के भाव का अब त्याग करते है। सबके मन में प्रेम, सद्भावना, दया का भाव भरते है। नयी उमंगों और नई आशाओं के साथ नव वर्ष का आगाज करते है। घर के सभी बड़ों का व गुरुजनों का सम्मान करने का हम प्रण करते है। अपने पराएं का भेदभाव मिटाकर सबको गले लगाएं। पुरानी सारी बुरी यादों को भुलाकर नये गीत गाएं। और सबसे जरूरी बात प्रकृति को न करें नष्ट, सब मिलकर बहुत सारे पेड़ लगाएं। प्रकृति के महत्व को समझे,
    दूसरों को भी समझाएं।

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यह कविता (नव वर्ष।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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समर्पित नव वर्ष को।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ समर्पित नव वर्ष को। ♦

नयन में चंचला दीप्ति है,
बाँहों में बीजल धनु मण्डित।
केयूर स्थिरता चरण में,
उर में श्रद्धा अखंडित।

प्राणों में जलती ज्वालामुखी,
ड़मरु-मध्य हथेली पर सँभाले।
जा रहा है जो संभाग,
ध्वजस्तंभ को गगन में उछाले।

सुदर्शन विजय उद्घोष कर,
युग निर्माण में अभिनव बढ़ा है।
युधान को ललकारता जो,
शिखर शैलाधिराज पर चढ़ा है।

दर्प भी कन्दर्प का,
मुख कांति का देख मर्दित।
देश के उस ज्वान को,
मेरी काव्य संजीवनी समर्पित।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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भूलने के लिए सौ जनम तो चाहिए।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ भूलने के लिए सौ जनम तो चाहिए। ♦

सुरमयी शाम कब की विदा हो गई,
न भूल पाये चंपई गंध को हम सारे।
भूलने के लिये सौ जनम तो चाहिए,
नैन संबंध जुड़े क्षण भर को हमारे।

प्रभात किरणों की गुलाबी-गुलाबी छुअन,
निद्रा के भ्रमरंगों को स्वप्न दे गई।
निशा को देकर शबनमी से रतजगे,
खिलखिला कर मोहित मन को कर गई।

याद करते रहे थरथराते अधर,
सौगंध हृदय की आरक्त हो गये हमारे।

उठती प्रभात से नीली साँझ तक,
तपिस सहते रहे प्राण सलिलज से।
बदन जलाती रही धूमिल बदलियाँ,
अंग-अंग सुलगते रहे उजयाली रैन से।

अनछुई चाहतों को न छोड़ पाए हम,
खंड-खंड कर गई आसक्त आबंध हमारे।

सरगम गाती मुस्कुराती हुई परी,
देखते – देखते अनजान हो गई।
मृदुल पलकों में जलते चराग सो गये,
झिलमिलाती हुई ज्योति खो गई।

लहरों सी चली अश्रुओं की मचलती तरंगिणी,
बड़े योग से बँधे मन के गुबार तोड़े तटबंध हमारे।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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गुरु गोबिंद सिंह जयंती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ गुरु गोबिंद सिंह जयंती। ♦

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इस वर्ष शुक्ल सप्तमी 29 दिसंबर को है इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाते हैं, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था, बिहार की राजधानी पटना के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोबिन्द राय था उनके पिता नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी कुछ समय बाद पंजाब वापस आ गए थे पटना के जिस घर में उनका जन्म हुआ उसमें उन्होंने 4 साल बिताए। गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन से ही स्वाभिमानी और वीर थे, घोड़े की सवारी करना, हथियार पकड़ना, मित्रों की टोलियां एकत्रित करके युद्ध करना, शत्रु को हराने के लिए खेल में शामिल थे। उनकी बुद्धि काफी तेज थी, उन्होंने बहुत ही सरलता से हिंदी, संस्कृत, फारसी का ज्ञान प्राप्त किया था।

1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया, हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर रहने लगे चक्क नानकी ही आजकल आनंदपुर साहिब कहलाता है। यहीं से उनकी शिक्षा का प्रारंभ हुआ गोबिन्द राय जी नित्य प्रति आनंदपुर साहिब में आध्यात्मिक, निडरता का संदेश देते थे। गोबिन्द जी शांत और क्षमा और सहनशीलता की मूर्ति थे।

कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने के विरोध में गुरु तेग बहादुर जी आगे आए उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी की उम्र 9 साल की थी। कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकार न करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सर कटवा दिया। इसके बाद वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए। गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही, उन्होंने लिखना-पढ़ना, सवारी करना अनेक सैन्य कौशल सीखे।

1684 में उन्होंने चंडी दी वार की रचना की। गुरु गोबिंद सिंह जी जहां विश्व के बलिदानी परंपरा में अद्वितीय थे, वही वे एक महान लेखक, मौलिक चिंतक और संस्कृत व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की है। विद्वानों के संरक्षक थे उनके दरबार में 52 कवियों के लिए उपस्थिति रहती थी। उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता था उन्होंने हमेशा भाईचारा, एकता प्रेम को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में हर साल मनाई जाती है। इस दिन विश्व भर में गुरुद्वारा को सजाया जाता है लोग अरदास भजन, कीर्तन के साथ लोग गुरुद्वारे में मत्था टेकने भी जाते हैं। इस दिन नानक वाणी भी पढ़ी जाती है और लोक कल्याण के तमाम अनेक कार्य किए जाते हैं। सभी लोग गुरुद्वारा में गुरु गोबिंद सिंह जयंती का महाप्रसाद खाने जाते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की 1708 में मृत्यु हो गई।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — गुरु गोबिंद सिंह जी जहां विश्व के बलिदानी परंपरा में अद्वितीय थे, वही वे एक महान लेखक, मौलिक चिंतक और संस्कृत व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की है। विद्वानों के संरक्षक थे उनके दरबार में 52 कवियों के लिए उपस्थिति रहती थी। उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता था उन्होंने हमेशा भाईचारा, एकता प्रेम को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

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यह लेख (गुरु गोबिंद सिंह जयंती।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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कोहरे का प्रकोप।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कोहरे का प्रकोप। ♦

उत्तरी भारत में सर्दी से मुख ऐसा मोड़ा सुनहरी धूप ने,
ठंडक में ढल गया दिन, रात सिर्फ एक ही रूप में।

अभी कुछ दिन से ही ठंडक ने अहसास कराया,
आसमां से लेकर धरा तक सफेद धुंध की चादर को फैलाया।

सर्दी ने अपना वो रंग कुछ झटके में ही दिखा डाला,
नब्जों में खून ही जमा दिया पड़ा जो धुंध से पाला।

सड़कों पर वाहनों की रफ्तार हो ही जानी चाहिए कम,
फिर इस भागदौड़ की जिंदगी में किसी की आंखें न हो नम।

क्यों रक्तरंजित हो उठी है ये सड़कें इन शहर, नगरों की,
अंधाधुंध वाहनों की चाल से कोई लाल रंग न दिखे डगरों की।

ये इंसान का जीवन तो बहुत ही कीमती बहुत अनमोल,
धीरे – धीरे कदम बढ़ाकर मंजिल की ओर राहें खोल।

वक्त के संग प्रकृति का ये रूप भी बदल ही जायेगा,
गर जल्दबाजी में कुछ खोया तो वो कभी नही पाएगा।

माना कि इस कोहरे ने अपना जम कर पाला है बरसाया,
इसके बरसने से ही तो फसलों ने अपने यौवन को पाया।

जब दूर तलक निगाह न देख पाए तो देखे केवल पास का,
निराशा की किसी भी स्थिति में दामन न छोड़े आस का।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — उत्तर भारत में सर्दी से मुख ऐसा मोड़ा सुनहरी धूप ने की अब ठंडक में ढल गया है पूरा दिन और रात सिर्फ एक ही रूप में महसूस हो रहा। अभी बस कुछ ही दिन से ही ठंडक ने अपना अहसास कराया व आसमां से लेकर धरा तक सफेद धुंध की चादर को फैलाया है। सर्दी ने अपना वो रंग कुछ झटके में ही दिखा डाला, जिससे नब्जों में खून ही जमा दिया पड़ा जो धुंध से अचानक से पाला। कोहरे में सभी वाहन चलाने वालों को रोड़ पर बहुत ही सावधानी से धीमी गति से वाहन चलाना चाहिए, जिससे कोई दुर्घटना न हो। कुछ दिनों तक ज्यादा ठंडक पड़ना भी जरूरी है, कुछ फसलों के अच्छे पैदावार के लिए जैसे – गेहूं की फसल। जब जीवन में दूर-दूर तक नज़र ना आये कुछ तो, भी कभी आस ना छोड़े धीरे-धीरे ही कदम बढ़ाते चले, आगे रास्ता मिलता जायेगा।

—————

यह कविता (कोहरे का प्रकोप।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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