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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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Poem on Nature in Hindi

सारंग – सुमन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Sarang – Suman | सारंग – सुमन।

हे अचले! तेरे तारक सारंग,
ये सृष्टि के धवल मुक्ताहार।
दीप बागों के उज्जवल धवल,
जिससे है वन जुगनू सुकुमार।

मेरी कोमल कल्पना के तार,
तरंगित उत्साहित उद्भ्रांत।
हृदय में हिल्लोर करते रहते,
भावों के कोमल-कोमल कान्त।

नालों-नालों की ज्योति,
जगमग उर्मि पसार।
ज्योतित कर रहे आज,
किसलिए कालिमा का संसार।

ये परियों का सुंदर-सा देश,
मृदुहासों का मृदुलमय स्थान।
दिव्य ज्योत्स्ना में घुल-घुलकर,
दिखता जैसे हो अम्लान।

मोहक तरंगिणी ने धो-धो कर,
हिम उज्जवल कर लिया परिधान।
आओ चलें प्रकाशित वन में,
खोजे ज्योतिरिंगण वो अनजान।

मलय समीरों के मृदुल झोंकों में,
कतिपय कंपित डोल-डोल।
अंतर्मन में क्या सोच रहा,
अनबोले रह जाते मेरे बोल।

स्वयं के ‘परिमल’ से सुशोभित,
निज की अपनी ज्योति द्युतिमान।
मुग्धा-से अपनी ही छवि पर,
निहार पड़े स्रष्टा छविमान।

खुद की मंजुलता पर अचम्भित,
देखे विस्मित आँखें फाड़।
खिलखिलाते फूल-पल्लवों को देख,
आत्मीयता से नयनों को काढ़।

सृजित हो रहे स्वर्ग भूतल पर,
लुटा रहे उन्मुक्त विलास।
अग्नि की सुंदरता का सौरभ,
सुमन-सारंग का उल्लास।

कवि का स्वप्न सुनहला,
देखे नयन ये बार-बार।
हर पंक्ति-पंक्ति में रच डाली,
नयनों की देखी साभार।

अनन्त के क्षुद्र तारे तो दूर,
उपलब्धि के गहरे-गहरे पात।
देव नहीं हम मनुजों की,
प्रियतम है अवनी का प्रान्त।

बीते जीवन की वेदनाएं,
अम्बा की चिन्ता क्लेश।
वादी में सृजित किया तूने,
मंजुल मनोहर आकर्षक देश।

स्वागत करो अरुणोदय का,
स्वर्णिम शीशों पर पुष्कर विहार।
विश्राम करे धवल तमस्विनी,
आँचल में सोते हैं सुकुमार।

कितनी मादकता है बसी यहां,
कुंडा-कुंडा है छन्दों का आधार।
पुष्पों के पल्लव-पल्लव में बसा,
सुरभि सौरभ सुगंध का भार।

विश्व के अकथ आघातों से,
जीर्ण-शीर्ण हुआ मेरा आकार।
अश्रु दर्द व्यथा वेदना से,
परिपूरित है मेरा जीवन आधार।

सूख चुका है कब से,
मेरे कलियों का जीवात्म।
हृदय की वेदना कहती है,
बचा विश्व में बस पयाम।

इक-इक पंक्ति से बन गई,
मेरी कविता का संसार।
लेखनी को घिस-घिस कर,
उद्धृत किया अपना संस्कार।

आशा के संकेतों पर घूमा,
सृष्टि के कोने-कोने हाथ पसार।
पर अंजलि में दी ‘दुर्गा’ ने,
आत्म तृप्ति का उपहार।

छोटे से जीवन के इस क्षण में,
भरा अंतस् कण-कण में हाहाकार।
भरत-भूमि तेरी सुंदरता पे,
खड़ा सारंग-सुमन तेरे द्वार।

इक पल के मधुमय उत्सव में,
भूल सकूँ अपनी वेदना हार।
ऐसी हँसी दे दो दाता मुझको,
नित दे सकूँ सबको हँसी बेसुमार।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (सारंग – सुमन।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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विधात्रि की माया।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vidhatri Ki Maya | विधात्रि की माया।

रे मन तुझे रोकता हूँ,
क्षण-प्रतिक्षण तू क्युँ खिंचा जाता है।
मनःशक्ति जिसे समझता तू नारी,
इस जग में कब से उसका नाता है।

कुछ-कुछ यादों सा परिचित है,
सुध से बढ़ता अनुराग बड़ा।
रग-रग में कौन छिपा अपना,
रहता जिससे विराग बड़ा।

कैसी सुंदर यह नगरी,
कैसी इसकी सुलक्षण काया।
स्तुत्य है पावन यह धरती,
धन्य-धन्य है भरत भूमि की माया।

पहन-पहनावा शशिप्रभा का,
श्रृंगारित करती पिण्ड ग्रहों को।
निसर्ग हर्षोल्लातित हो खोली आँखें,
निहारती अपने स्वर्णिम संसार को।

झिलमिलाते विटपों पर जगमग पुष्प घनेरे,
गुच्छों – गुच्छों से भर जाते आम्र रसीले।
आलिंगन में लेकर नील गगन को,
कभी दृश्य कभी दर्पण बन जाते निराले।

कलरव करती कहीं कोकिला सारी,
उड़-उड़कर बैठती डाली-डाली।
चितचोर चंचल-सी तितलियाँ उड़ बैठती,
यह फूल डाली उस फूल डाली।

हरित वनों के उन्मुक्त कंठों से,
निर्झरी बन जाते झरने नाले।
घुल-घुलकर वादियों में चंद्रभूति-सी,
निर्मल गंगा की झिलमिल आले।

उतरती खेतों में स्वर्णिम आभा,
सींचकर साँझ सुनहली गाथा।
अनन्त की नील उपवन के बीच,
विहँस पड़ती प्रकृति दे अपना साथा।

बनैले शस्य भी तो पुलकित हर्षित,
समीरण में झूम रहे स्वच्छंद।
महामाया के अंग – अंग में भरा,
किरणित हो फूटता महा आनन्द।

मदमस्त हो देखती सृष्टि की ओर,
झंकृत करती उर के हर तार।
उमड़ पड़ते हृदय के उच्छवास,
अभिनंदित हे सृजक! तेरा व्यापार।

हे मातु तू धन्य;
नाना कुसुमों से सिंगारित कर उपवन,
निहारती वासा-व-लोक इसकी छवि न्यारी।
विविध सारंगों से सजी-धजी यह,
रंग-बिरंगी-सी सजी यह क्यारी।

बाँस है बबूल है कहीं-कहीं पर धूल है,
चहुँ ओर बिराजती बस हरियाली है।
कहीं कास है कहीं दूब है कहीं फूल से,
श्रृंगारित नदी नाल वरुणवास है।

नारी = मन की शक्ति

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (विधात्रि की माया।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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प्रकृति नियंता।

Kmsraj51 की कलम से…..

Prakrti Niyanta | प्रकृति नियंता।

प्रकृति नियंता जग जीवों को,
प्राण वायु जीवन धन देता।
लेता नहीं किसी से कुछ भी,
दूषित वायु स्वयं पी लेता।

नदी – झील – झरना – वन – उपवन,
इनके कोमल अंग हैं प्यारे।
इनसे सृजन जलद का होता,
हारते प्यास धरा – जल – ढारे।

धरा – धाम के आभूषण ये,
‘मंगल’ मोद सदा भरते हैं।
समता के पोशाक हैं सारे,
भौतिक ताप सदा हरते हैं।

नीरव जननी में नभ – आंगन,
उद गण ज्योति जलाते रहते।
हरित गैस के कुप्रभाव से,
छिद्र ओजोन घटाते रहते।

शब्दार्थ: उद – उत्कर्ष, प्रकाश,

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — प्रकृति सभी तरह के जीवों को अपनी गॉड में पलटा है, सदैव ही सभी को प्राण वायु जीवन धन देता। प्रकृति कभी भी कुछ लेता नहीं किसी से कुछ भी, दूषित वायु स्वयं पी लेता। नदी-झील, झरना, वन-उपवन ये इनके कोमल अंग हैं प्यारे। इनसे ही सृजन जल का होता है सभी की प्यास बुझती है। धरा के आभूषण ये सदैव ही ऊर्जा प्रकृति में भरते है, सभी जीवों के लिए। मानव ने जो आधुनिकता के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर तापमान गर्म बना दिया है उसे भी प्रकृति काफी हद तक कम करती हैं। प्रकृति जननी है, सदैव ही प्रकाश व ऊर्जा से सभी जीवों का पोषण करती है। हरित गैस के कुप्रभाव से और छिद्र ओजोन घटाते रहते। इस प्रकृति का हम सबको ख्याल रखना है, तभी वर्तमान और आने वाली पीढ़िया रह पाएंगी इस धरा पर अच्छे से खुशहाल।

—————

यह कविता (प्रकृति नियंता।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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वो त्रिवेणी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Vo Trivenee | वो त्रिवेणी।

हाल ही में मैंने एक त्रिवेणी का देखा संगम,
जिनके अथाह प्रेम को देख आँखें गई थम।

एक विशालकाय नीम की जड़ की कोटर में,
जैसे आश्रय लिया दो साथियों ने उनके घर में।

मैंने इस सुंदर नजारे को देखा जब पास से,
पीपल के घने पत्ते लहराये थे बड़े होने की आस में।

मेरी भी खुशी का जब कोई ठिकाना न रहा,
जब मैंने पीपल के नीचे बरगद भी देखा वहां।

इस त्रिवेणी को देख प्रफुल्लित हुआ मेरा दिल,
सोचा कैसे पेड़ों ने भी बनाया खुद को एक दूसरे के काबिल।

एक नीम के तने में दोनो वटवृक्षों ने ले ली पनाह,
प्रकृति का अनुपम नजारा देख मुँह से निकला वाह।

इस संगम को देख दिल ने सजदे में सिर झुकाया,
इन त्रिवेणी के इस मेल पर खूब प्यार आया।

हर वर्ष इस बसंती माह में खूब त्रिवेणी लगाएंगे हम,
फिर इस धरा पर प्राण-वायु बिल्कुल न होगी कम।

काश! इंसान भी इस बोलती प्रकृति के गुण सीख जाए,
अपने गुणों को बस मानवता की भलाई में लगाए।

प्रकृति तो पग-पग पर ही अच्छी सीख सिखलाये,
बशर्ते इंसान भी इनसे प्रेम का रिश्ता ही निभाए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब प्रकृति खुशनुमा होती है तो इंसानी मन भी प्रसन्न होती है। अपने चारों तरफ सबकुछ अच्छा – अच्छा लगता है। प्रकृति की हरियाली हर एक मन को मोह लेता है और एक अलग ही सुखमय शांति की अनुभूति कराता है प्रकृति। एक विशालकाय नीम की जड़ की कोटर में, जैसे आश्रय लिया दो साथियों ने उनके घर में। मैंने इस सुंदर नजारे को देखा जब पास से, पीपल के घने पत्ते लहराये थे बड़े होने की आस में। इस त्रिवेणी को देख प्रफुल्लित हुआ मेरा दिल, सोचा कैसे पेड़ों ने भी बनाया खुद को एक दूसरे के काबिल। एक नीम के तने में दोनो वटवृक्षों ने ले ली पनाह, प्रकृति का अनुपम नजारा देख मुँह से निकला वाह।

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यह कविता (वो त्रिवेणी।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
    {International Internship University and Swarn Bharat Parivar}
  • Teacher’s Icon Award — 2023
  • राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
  • सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
  • राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
  • गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
  • राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
  • अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
  • साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
  • 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
  • 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
  • इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
  • 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।

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नाचती बसंती।

Kmsraj51 की कलम से…..

Dancing Basanti | नाचती बसंती।

चानी के फूल खिले, चांदनी मंगन,
सुधियों के दीप जले राहों में,
नाचती बसंती रही बाहों में।

रुनुन – झुनुन भनक उठी पायलिया पांव,
महमहायि रजनी गन्धा रजनी के गांव।

चंचल चित्त चहक उठा चाहों में,
नाचती बसन्ति रही बाहों में।

छुवन चाहे अरुणायी अधर को हिलोरे,
खग कुल के कलरव में नाच उठी भोर।

प्रीति पगे द्रम – दल के छाहों में,
नाचती बसन्ति रही बाहों में।

अलसाये नयनों से सुषमा निहार,
भक्त जुटे नवरात्रि माता के द्वार।

‘मंगल’ कुहांस घिरे राहों में,
नाचती बसन्ति रही बाहों में।

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — जब प्रकृति खुशनुमा होती है तो इंसानी मन भी प्रसन्न होती है। अपने चारों तरफ सबकुछ अच्छा – अच्छा लगता है। जब भी नवरात्री आती है भक्तों का उमंग उत्साह देखने लायक होता है, जैसे अभी सावन में शिव भक्तों का उमंग उत्साह देखने लायक देखने लायक है। प्रकृति की हरियाली हर एक मन को मोह लेता है और एक अलग ही सुखमय शांति की अनुभूति कराता है प्रकृति।

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यह कविता (नाचती बसंती।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Anuragi Lalima Kapolon Par | अनुरागी लालिमा कपोलों पर।

अनुरागी लालिमा कपोलों पर,
छटा इंद्रधनुषी-सी खिल गई।
प्रफुल्लित तरुणी की शायद,
कुमारत्व से नयन मिल गई।

दिन हो गये स्वप्निल-स्वप्निल,
आकुल बाट जोहती क्षुब्ध रजनी।
अंग-प्रत्यंगों में धूप बासंती,
नयन पटों पर खिली चाँदनी।
निंद्रित उर के धड़कन में,
मनभावन नवज्योति जल गई।

जगी मृदुल-मृदुल मादक वेदना,
अकेलेपन के आलिंगन में।
मधुर – मधुर मुग्धित कल्पना,
अरुनारा कमसिन नयन में।
हो गई निंदिया वैरागन-सी,
चेतना खोई निशा ढल गई।

परवाना पतंगे जैसी अभिलाषाएं,
श्वेत-श्याम विहंगों-सी घिरती।
अंतहीन अनंत महाशून्य में,
पंख फैलाये फिर बिचरती।
सशक्त शोभित भुजपाशों की,
बाँहों में आस लिये पल गई।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (अनुरागी लालिमा कपोलों पर।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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प्रकृति के रंग।

Kmsraj51 की कलम से…..

Prakriti Ke Rang | प्रकृति के रंग।

फिर से वही मौसम आया,
जिसने प्रकृति को खुशनुमा बनाया।

सतरंगी रंगों की छटा बिखेरी है इस कदर,
जिसे देख नई नवेली दुल्हन भी शर्माए।

कहीं पर खेतों में गेहूं की दुधिया बाली,
पवन संग इठलाती झूम~झूम जाए।

कहीं पर दिखाई दे पत्तों से ज्यादा फूल,
अपनी खुशबू की बाहें फैलाए।

आम के पेड़ तो हरे~हरे बौर से,
धरती को गले मिलने आए।

कोयल भी अब तैयार होकर,
मस्त कुहू ~कुहू के स्वर सुनाए।

चिड़िया भी भोर होने से पहले ही,
ची~ची करती मधुर सुर सजाए।

जिधर देखो उधर ही इस बसंत ने,
अपने खूबसूरत पांव है फैलाए।

हर पेड़ की डाली पर नई कोपलें,
पेड़ से निकल दुनिया देखना चाहे।

धरा भी वही आसमां भी वही है,
प्रकृति भी बसंत में अपना रूप दिखाए।

इस प्रकृति में छिपे हैं वो रंग हजार,
जिसे अपनाकर इंसान हर पल मुस्कराए।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वसंत ऋतु फूलों और त्योहारों का मौसम है, इस प्रकार यह बहुत सी खुशियाँ और आनंद लाता है। रंग-बिरंगे और सुन्दर फूल पूरी तरह से दिल जीत लेते हैं और हरी घास हमें टहलने के लिए अच्छा मैदान देती है। सुबह या शाम को सुन्दर तितलियाँ प्रायः हमारे ध्यान को खिंचती है। दिन और रात दोनों ही बहुत सुहावने और ठंडे होते हैं। ऐसा लगता है आम के पेड़ तो हरे~हरे बौर से, धरती को गले मिलने आए। कोयल भी अब तैयार होकर, मस्त कुहू ~कुहू के स्वर सुनाए।चिड़िया भी भोर होने से पहले ही, ची~ची करती मधुर सुर सजाए। जैसे पेड़ों पर पतझड़ आता है उसी तरह इंसान के जीवन में भी बहुत उतार – चढ़ाव आता है, अगर दुःख है तो, बहुत जल्द ही सुखी समय भी आएगा।

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यह कविता (प्रकृति के रंग।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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क्षुधा और असंतुष्ट हो गई।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ क्षुधा और असंतुष्ट हो गई। ♦

उपवन-उपवन के कोंछे में,
तपते अधर पिपासु बन चूमें।
क्षुधा और असंतुष्ट हो गई,
रद् कलियों को जब-जब चूमे।

अधिवासित अलि मदिर अंक में,
बिखरा हुआ मधुर पुष्प-पराग।
जागृत हो उठता गातों में,
ले अँगड़ाई प्रीति अनुराग।
सुधबुध खोई रोम-रोम बहार,
मृदुल प्रमादमयी सुगंधों में।

बार-बार हुआ मन आहत,
लुके – छिपे अनछुये शूलों से।
चुलबुल हृदय हुआ है घायल,
उच्छवासित कलियों से।
तकते-तकते अवलुंचित तितलियाँ,
यह अभिवाँछित चाहें झूमें।

चिर-परिचित कामदूती ये राहें,
करने लगी मन को मोहित नवेली।
उनकी ओर बढ़े कदमों में मैनें,
जन्म-जन्मांतर की वेदनायें झेली।

बिखरे आभास ताकते रहते,
अविरल गिरते आँसू में।
क्षुधा और असंतुष्ट हो गई,
रद् कलियों को जब-जब चूमें।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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सागर और सरिता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सागर और सरिता। ♦

“सुनो सरिते रौद्र रूप धर,
क्यों तांडव तुम यूं करती हो?
है सहज सरल तुम शांत स्वभावी,
फिर दहशत क्यों तुम भरती हो?

आकंठ डुबाकर जनजीवन जल में,
क्यों त्राहि – त्राहि तुम मचाती हो?
रो उठते हैं प्राणी मात्र सब तब,
जब नीड़ उनका तुम बहाती हो।”

“मैं भूली बिसरी पावन सरिता,
हिमगिरी के शिखर से बहती हूं।
मैं कहां से निकली, कहां को जाती?
कभी, किसी से कुछ न कहती हूं।

गांव के पावन गलियारों में बहती,
पवनों में, शीतलता मैं ही देती हूं।
संचित कर के कृषित भूमि को,
मैं घट – घट को नवजीवन देती हूं।”

घाट – घाट पर तृप्ताती हूं सब को,
सब कूड़ा – कचरा जब मैं ढोती हूं।
सच कहती हूं मैं कुदरत की बेटी,
मानुषी करणी पर तब मैं रोती हूं।

क्यों भूल जाते हैं लोग मुझको?
तृषा नाशिनी मैं उनकी रोटी हूं।
निर्मल – पावन मैं आई गिरी से,
पिया तक पहुंचते मटमैली होती हूं।

जो जिसका किया वह उसे लौटाती,
मैं बदला कहां कब किसी से लेती हूं?
निज करणी का फल भोग रहे हैं सब,
तुम कहते हो मैं यह सब दंड देती हूं?

जिन जनी नहीं कोई जान जिस्म से,
प्रसव पीड़ा को वे भला क्या जाने?
मैं जननी हूं जलचर – थलचर की,
मेरी पीड़ा को भला वे क्यों माने?

मैं सज – धज – पावन निकली थी प्रियतम,
मटमैली गंदली होकर तुमसे मिलती हूं।
निर्दोष हूं मैं सनातनी परंपरा प्रवाहित,
निज प्रहारों से देहे कई की छीलती हूं।

“होती है मुझे भी पीड़ा तब प्रियतम
यह सब सुनकर सागर अकुलाता है।”
“मदहोश मानुष की यह जरूरत?” सागर,
सुनामी लहरों से आगबबूला हो जाता है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रकृति के पांच तत्व सलीके से अपना-अपना चक्र पूर्ण करते है, अर्थात प्रकृति के पांच तत्व तब तक मानव या जीव जंतु का नुकसान नहीं करते जब तक मनुष्य उनके प्राकृतिक रूप व पथ को अवरुद्ध न करें। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के पांच तत्व के साथ खिलवाड़ करता आ रहा जिसका परिणाम कहीं भूकंप, तो कहीं बाढ़, कहीं सुनामी, तो कहीं बर्फबारी और भी अनेकानेक रूप देखने को मिल रहे है, क्या नदी हो क्या समुद्र मनुष्य ने सभी के साथ खिलवाड़ किया हैं। हे मानव अब भी समय हैं सुधर जा वर्ना ये धरा तेरे रहने के लायक बिलकुल भी नहीं बचेगी। फिर कहां जायेगा तू रहने सोच जरा।

—————

यह कविता (सागर और सरिता।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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मौसम बुलाने की कोशिश।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मौसम बुलाने की कोशिश। ♦

मौसम इशारों से बुलाने की सोचिए,
रुठा वह तो उसे मनाने की सोचिए।
जमाने में कोई दिवाना नहीं है तेरा,
गर मचले, सीने से लगाने की सोचिए।

ख़त लिख दी, एक प्यार की बातें,
तनहाई रंगीन बनाने की सोचिए।
जाग रहे मुझे अच्छा नहीं लगता,
अंधेरे की नींद चुराने की सोचिए।

मौसम मिजाज बढ़ चढ़ दिखाएं,
उमड़े ख्वाब दिखाने की कीजिए।
दिल को खुद समझाने की सोचिए,
पूर्वजों की थाती सजाने की सोचिए।

नदियां – झरना बचाने की सोचिए,
धरा पर पौधा लगाने की सोचिए।
कूड़ा – करकट हटाने की सोचिए,
मौसम धीरे से बुलाने की सोचिए।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — मनुष्य के द्वारा प्राकृतिक संसाधन के असंतुलित दोहन प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा हैं। अगर चाहते हैं की आने वाली पीढ़िया सुखमय जीवन जिए तो – आओ हम सब मिलकर ये संकल्प ले की सभी को प्रत्येक वर्ष कम से कम 1 पेड़ जरूर लगाना है, और उसका देखभाल भी करना है, तब तक जब तक वो पेड़ अच्छे से अपना बचाव और बढ़ाव खुद न करने लगे। जब ज्यादा पेड़ होंगे वर्षा भी अच्छी होगी जिससे नदियां – झरना सब जल से भरपूर होंगे, चारो तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी। हमें साफ – सफाई का भी ध्यान रखना है कहीं भी यूँ ही कूड़ा – करकट नही करना हैं।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (मौसम बुलाने की कोशिश।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें — प्रातः उठ हरि हर को भज।

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