Kmsraj51 की कलम से…..
♦ क्षुधा और असंतुष्ट हो गई। ♦
उपवन-उपवन के कोंछे में,
तपते अधर पिपासु बन चूमें।
क्षुधा और असंतुष्ट हो गई,
रद् कलियों को जब-जब चूमे।
अधिवासित अलि मदिर अंक में,
बिखरा हुआ मधुर पुष्प-पराग।
जागृत हो उठता गातों में,
ले अँगड़ाई प्रीति अनुराग।
सुधबुध खोई रोम-रोम बहार,
मृदुल प्रमादमयी सुगंधों में।
बार-बार हुआ मन आहत,
लुके – छिपे अनछुये शूलों से।
चुलबुल हृदय हुआ है घायल,
उच्छवासित कलियों से।
तकते-तकते अवलुंचित तितलियाँ,
यह अभिवाँछित चाहें झूमें।
चिर-परिचित कामदूती ये राहें,
करने लगी मन को मोहित नवेली।
उनकी ओर बढ़े कदमों में मैनें,
जन्म-जन्मांतर की वेदनायें झेली।
बिखरे आभास ताकते रहते,
अविरल गिरते आँसू में।
क्षुधा और असंतुष्ट हो गई,
रद् कलियों को जब-जब चूमें।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (क्षुधा और असंतुष्ट हो गई।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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