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Brahmacharini Mata | ब्रह्मचारिणी माता।
“ब्रह्मचारिणी”
लाल रंग अति प्रिय माता को,
चीनी का भोग लगाते हैं।
तप की चारणी ब्रह्मचारिणी में
तप से ध्यान लगाए हैं॥
शास्त्र ज्ञान सर्वज्ञ संपन्न मां,
गुड़हल – कमल दल चढ़ाते हैं।
दूध युक्त चीजों का भोग,
घी – कपूर से दीपक जलाते हैं॥
श्रद्धा सुमन अर्पित करते,
ब्रह्मचारिणी की आरती पढ़ते हैं।
वर्षों शिव भक्ति में लगे,
विल्व पत्र केवल मां खाती थी॥
आंधी गर्मी बहुत थी झेलीं,
तप में मां का कोई न शानी है।
श्वेत वस्त्र में लपेट शरीर को
सृष्टि में सक्षम ऊर्जा भरती हैं॥
एक हाथ में अष्टदल माला,
दूजे में कमंडल धारण करती हैं।
आंतरिक शक्ति विस्तार करती,
पथ विचलित नहीं करने वाली हैं॥
जो शक्ति आराधना करे मन से,
उसके कठिन काम बन जाते हैं।
माता से कृपा आशीष मिलने पर,
बड़े संकट दूर भाग जाते हैं॥
नारद जी के उपदेश से माता,
कठिन तपस्या खुद कर डाली थी।
तप से मिलेंगे भोला शंकर,
मिलने वाली उसने मन में ठानी थी॥
पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री,
हवन कुंड में कूद शरीर गवाई हैं।
दूजे जन्म में ब्रह्मचारिणी रूप,
धर कर माता शक्ति स्वरूपा आई है॥
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। प्रात: स्नान के बाद मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति स्थापित करें। फिर उनकी पूजा करें, मां ब्रह्मचारिणी को अक्षत्, फूल, कुमकुम, गंध, धूप, दीप, नैवेद्य, फल आदि चढ़ाते हैं। यदि संभव हो तो आप उनको चमेली के फूलों की माला अर्पित करें।
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यह कविता (ब्रह्मचारिणी माता।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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