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Vivek Aur Vichar | विवेक और विचार।
पंचायत नहीं विचारों में स्वतंत्रता लाएं,
विवेक कल्याण कारक होता है।
रीति – रिवाज, शास्त्र – नियम अपनाएं,
अंधानुकरण कभी ना करें।
समय – समय पर नियम बदलते रहते हैं,
विचार धाराओं में परिवर्तन होते रहते हैं।
उसमें कोई – कोई पिछड़ भी जाता है,
अंधानुकरण नहीं करना चाहिए।
परीक्षा लेना मानव व्यवहार में आता है,
परमात्मा दीया विवेक और विचार है।
जो बात बुद्धि – विवेक में खरी उतरे,
उस पर ही हमें अमल करना चाहिए।
विवेक पूर्ण किया गया निर्णय ही,
सर्वथा कल्याणकारी होता है।
न्यायशीलता – निष्पक्ष- सतोगुणी,
सहृदय, उदार और हितैषी बनें।
विवेकी व्यक्ति दुराग्रही नहीं होता है,
नीर – क्षीर विवेक अलग करता है।
नेक व्यक्ति में बुराई हो उसे छोड़ें,
बुरे व्यक्ति की भी अच्छाई ग्रहण करें।
सिद्धांतों का परीक्षण करना आवश्यक है,
परस्पर विरोधी विचार निरर्थक होता है।
समर्थक और विरोधी कम नहीं होते हैं,
दोनों विचारधाराएं आपस में टकराती हैं।
परीक्षण से सच – गलत की पहचान है,
परीक्षा और समीक्षा ही आधार है।
दूसरों की नकल करना सुगम है,
अधिक माथापच्ची लोग पसंद नहीं करते हैं।
वाणी द्वारा प्रकट विचार क्षण स्थाई होता है,
लेखनीबद्ध किया हुआ चिरस्थाई होता है।
बुद्धि को जो उचित लगे उसे अपनाते हैं,
अंधानुकरण नहीं, हम कतराते हैं।
किसी के महानता को कम ना आंकिए,
पवित्र ग्रंथों का आदर करते रहिये।
बुद्धि संगत अंश ग्रहण करना चाहिए,
जिज्ञासु के सत्य खोज को अपनाएं।
दुनिया उज्ज्वल व्यक्तित्व पर सिर नवाती है,
उनके अनीश्वरवादी मत को नहीं मानती है।
उपयोगी तत्व को ग्रहण करना भी आता है,
महापुरुषों के लेखन में समरसता है।
काल से ही मानव का सम्मान था,
आधुनिक काल में कुत्ते पर स्वाभिमान।
मनुष्य रोटी के लिए कड़ी मेहनत करता है,
परंतु कुत्ता ए .सी .गाड़ी में चलता है।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — जैसे – जैसे समय बदला वैसे – वैसे इंसान के सोचने व समझने की छमता ख़त्म होती जा रही है, अपने प्राचीन महत्वपूर्ण संस्कारों को भूलता जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप कई तरह के समस्याओं से परेशान है, फिर भी भौतिक विकास के नाम प्रकृति के पञ्च तत्वों से खिलवाड़ करने से नही चूक रहा है। हे मानव अब भी समय है सुधर जाओ वर्ना ये पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी। याद रखें की – जिस देश के लोग अपनी प्राचीन संस्कृति, संस्कार व सभ्यता को भूल जाते है, उनको विलुप्त होने से कोई भी नहीं बचा पायेगा। इसलिए अपने अंदरऔर वर्तमान पीढ़ी व आने वाली नई पीढ़ी को प्राचीन भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता का पूर्ण ज्ञान दो, और उन्हें अनुसरण करना भी सिखाओ।
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यह कविता (विवेक और विचार।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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