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GyanaSeni | ज्ञानसेनी।
“ज्ञानसेनी”
अधरों का पुष्प,
उम्मीदों का सूरज,
करें संकट दूर रघुवर,
ज्ञानसेनी सजाया है।
रिश्तों का मिठास,
हैं स्वप्नों में आप।
चलो फिर गीत गाएं,
ज्ञान दर्पण लाया हूं।
भोला का डिम डिम डमरू,
काशी की मस्ती भरी।
धनुष वाण में श्री राम,
ज्ञानसेनी भरत से मिलाया है।
स्मृतियों में अयोध्या धाम,
चक्रवर्ती साम्राज्य है नाम।
प्रकृति का आलिंगन,
ज्ञान सेनी ने दिखाया है।
ज्ञानसेनी …
ज्ञान की छोटी थाली,
नक्काशीदार थाली।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — अपने भारत देश में प्राचीन काल से ही हर रिश्तों का अपना – अपना महत्व व सम्मान है। श्री राम व उनके भाइयो लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न से हमे सीख़ मिलती है की भाई का भाई से कैसा प्रेम व व्यवहार होना चाहिए आपस में और माता-पिता का आदेश व सम्मान सर्वोपरि हैं। हमे गर्व है अपने प्राचीन काल से चली आ रही भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता पर, “गर्व से कहो हम सनातनी है, जय जय श्री राम!” जैसे – जैसे समय बदला वैसे – वैसे इंसान के सोचने व समझने की छमता ख़त्म होती जा रही है, अपने प्राचीन महत्वपूर्ण संस्कारों को भूलता जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप कई तरह के समस्याओं से परेशान है। हे मानव अब भी समय है सुधर जाओ वर्ना ये पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी। याद रखें की – जिस देश के लोग अपनी प्राचीन संस्कृति, संस्कार व सभ्यता को भूल जाते है, उनको विलुप्त होने से कोई भी नहीं बचा पायेगा। इसलिए अपने अंदरऔर वर्तमान पीढ़ी व आने वाली नई पीढ़ी को प्राचीन भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता का पूर्ण ज्ञान दो, और उन्हें अनुसरण करना भी सिखाओ।
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यह कविता (ज्ञानसेनी।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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